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अर्थव्यवस्था के नये संकटमोचक!

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Category: अगस्त 2013

राजेश रपरिया, सलाहकार संपादक : 

जब-जब पृथ्वी पर संकट आयेगा, तब-तब मैं जन्म लूँगा।

भगवान श्रीकृष्ण का यह अमर वाक्य भारतीय आर्थिक संकट पर सटीक बैठता है! साल 1991 के आर्थिक संकट के समय अर्थशास्त्री मनमोहन सिंह का अवतरण हुआ और अब अर्थशास्त्री रघुराम राजन का। रघुराम राजन भारतीय रिजर्व बैंक के नये गवर्नर नियुक्त किये गये हैं। वे चार सितंबर 2013 को इस पद पर आसीन होंगे। साल 2008 के वित्तीय संकट की भविष्यवाणी करने वाले अर्थवेत्ता के रूप में पूरी दुनिया में उन्हें याद किया जाता है। साल 2005 में ही दुनिया के शीर्ष केंद्रीय बैंकों को उन्होंने सीधे-सीधे शब्दों में आगाह किया था कि नये-नये वित्तीय उत्पाद विश्व की आर्थिक व्यवस्था के लिए खतरनाक हैं। तब उनकी चेतावनी को हल्के से लिया गया था।
साल 1963 में भोपाल में जन्मे और अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष के मुख्य अर्थशास्त्री रहे रघुराम राजन ने आईआईटी दिल्ली से इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग और आईआईएम अहमदाबाद से एमबीए किया। मशहूर अमेरिकी संस्था एमआईटी से उन्होंने पीएचडी की। कोई इतना लब्ध-प्रतिष्ठ शक्स पहली बार भारतीय रिजर्व बैंक का मुखिया बना है।
उनके विचार जान कर आप हैरत में पड़ सकते हैं। आय की बढ़ती असमानता को वे अमेरिकी सबप्राइम संकट की जड़ मानते हैं। वे इसके लिए अमेरिका की राजनीतिक नीतियों को दोषी करार देते हैं। वे पूँजीवाद को ठग पूँजीपतियों से बचाने के प्रबल पैरोकार हैं और उदारीकरण के भारी समर्थक। वे केंद्रीय बैंक के कायदे-कानूनों को सरल करने और कम करने के हामीकार हैं। वे देश में नेताओं और कारोबारियों के गठजोड़ को विकास के लिए खतरनाक मानते हैं। साल 2010 में यूपीए सरकार जब अपनी सफलता पर आत्ममुग्ध थी, तब रघुराम राजन ने सचेत किया था कि भारत अपनी आर्थिक विकास दर ऊँची रहने को सुनिश्चित (गारंटेड) मान कर नहीं चल सकता। आत्म-प्रवंचना विनाश की पहली सीढ़ी है।
रघुराम राजन इस समय प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह, वित्त मंत्री पी चिदंबरम और योजना आयोग के उपाध्यक्ष मोंटेक सिंह अहलूवालिया की आँखों के तारे बने हुए हैं। इस तिकड़ी को देश की तमाम आर्थिक समस्याओं के निवारण के लिए रघुराम राजन से काफी उम्मीदें हैं।
साल 2008 में भी उनका नाम इस पद के लिए आया था। तब प्रधानमंत्री ने उनका नाम यह कह कर खारिज कर दिया था कि उन्हें भारत का कोई अनुभव नहीं है। इसलिए उन्हें पहले प्रधानमंत्री का मानद आर्थिक सलाहकार बनाया गया और वित्तीय सुधारों के लिए बनी समिति का मुखिया भी। इस समिति की रिपोर्ट आ चुकी है। कौशिक बसु की विदाई के बाद रघुराम राजन को वित्त मंत्री का आर्थिक सलाहकार बनाया गया। उम्मीद की जा सकती है कि उनकी नियुक्ति से भारतीय रिजर्व बैंक और वित्त मंत्रालय की तकरार समाप्त हो जायेगी और दोनों जुगलबंदी से काम करेंगे, क्योंकि इस तिकड़ी की पहल पर ही वे भारत आये हैं और उन्हें यह ओहदा दिया गया है। मौजूदा गवर्नर डी. सुब्बाराव पर साल 2011 से ही ब्याज दरें कम करने के लिए भारी दबाव था। लेकिन महँगाई की उच्च दर को देखते हुए उन्होंने यह मुनासिब नहीं समझा।
रघुराम राजन को इस कुर्सी पर बैठते ही अनेक विकराल आर्थिक समस्याओं से जूझना है। उन्हें गिरते रुपये को थामना है, जो 2013 में डॉलर के सापेक्ष 12% गिर चुका है। उन्हें विकास दर को भी पटरी पर लाना है और खुदरा महँगाई को काबू करना है। यह विरोधाभासी लक्ष्य वे कैसे प्राप्त करेंगे, इस पर सबकी निगाहें टिकी हुई हैं। रुपये की गिरावट को थामने के लिए अप्रैल से ही भारतीय रिजर्व बैंक और वित्त मंत्रालय कई उपाय कर चुका है। लेकिन कोई अपेक्षित सफलता अब तक नहीं मिली है। तात्कालिक रूप से रुपये को थामने के लिए दो ही उपाय हैं - कर्ज के रूप में पर्याप्त मात्रा में डॉलर लायें या आयात पर सख्त लगाम कसी जाये। लगता है कि फिलहाल इन दोनों उपायों का इस्तेमाल किया जायेगा। रघुराम राजन के लिए सुकून की खबर यह है कि एक साल पहले की तुलना में जुलाई 2013 में निर्यात बढ़े हैं और आयात गिरे हैं। व्यापार घाटा जुलाई 2012 की तुलना में तो ठीक-ठाक घटा है, पर जून 2013 की तुलना में इसमें कोई खास सुधार नहीं हुआ है।
स्वर्ण और राजन का गहरा रिश्ता रहा है। वे आईआईटी और आईआईएम के स्वर्ण पदक विजेता हैं! अपने नये अवतार में स्वर्ण आयात और अन्य विलासतापूर्ण वस्तुओं पर वे कैसे काबू पायेंगे, यह देखना दिलचस्प होगा।
(निवेश मंथन, अगस्त 2013)

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