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अमेरिका का प्रवास कानून, आईटी कंपनियों की साँसत में जान

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Category: जुलाई 2013

लगातार गिरते रुपये की वजह से भले ही शेयर बाजार के निवेशक आईटी क्षेत्र की कंपनियों के शेयरों की ओर आकर्षित हो रहे हों,

लेकिन आईटी कंपनियों की जान इन दिनों उस अमेरिकी इमिग्रेशन (प्रवास) बिल की वजह से अटकी हुई है जो सीनेट में पारित हो चुका है और जल्दी ही हाउस ऑफ रिप्रेजेंटेटिव्स (प्रतिनिधि सभा) में भेजा जाने वाला है जहाँ पारित होने के बाद साल 2014 की शुरुआत से यह कानून का रूप ले लेगा। भारत की आईटी कंपनियाँ इस कानून की संभावित शर्तों और अपने मुनाफे पर उसके संभावित असर की वजह से चिंतित हैं।
दरअसल इस विधेयक में कई ऐसे प्रावधान प्रस्तावित किये गये हैं जिन्हें भारतीय आईटी कंपनियाँ भेदभावपूर्ण बता रही हैं। सीनेट में पारित किये गये विधयेक में यह प्रस्तावित है कि एक आवेदन फॉर्म पर एच1बी वीजा शुल्क बढ़ा कर 5,000 डॉलर किया जायेगा। अगर ऐसा होता है तो भारतीय सॉफ्टवेयर कंपनियों के लिए न केवल वीजा से संबंधित लागत में वृद्धि होगी बल्कि इससे इनका कारोबारी मॉडल भी प्रभावित होगा। ऐसे में भारतीय कंपनियों को अमेरिका में एच1बी वीजा पर काम कर रहे लोगों को वहाँ से हटा लेने को मजबूर होना पड़ सकता है। विधेयक में यह प्रस्तावित है कि जिन कंपनियों के पास अमेरिका में वीजा पर 15% से अधिक कर्मचारी हैं वे कंपनियाँ अपने कर्मचारियों को ग्राहक स्थल पर नहीं भेज सकेंगी। इस प्रस्ताव का सीधा असर घरेलू भारतीय कंपनियों की प्रोजेक्ट हासिल करने और उसे पूरा करने की क्षमता पर पड़ेगा। प्रस्तावित प्रावधानों के हिसाब से वे आईटी कंपनियाँ फायदे में रहेंगी, जिनके पास अमेरिकी कर्मचारी काफी संख्या में हैं, जैसे आईबीएम, एक्सेंचर और एचपी आदि। यह कानून ऐसे समय लागू होगा जब अरबों डॉलर की परियोजनाओं का नवीनीकरण होने वाला है। परियोजनाओं के नवीनीकरण के समय ये कंपनियाँ फायदे में रह सकती हैं। ऐसे में इन कंपनियों की वजह से भारतीय कंपनियों को अब काम हासिल करने और प्रतिस्पद्र्धी बने रहने में दिक्कत होगी।
दरअसल अमेरिका में पेशेवर इंजीनियरों की सबसे बड़ी संस्था इंस्टीट्यूट ऑफ इलेक्ट्रिकल एंड इलेक्ट्रॉनिक्स इंजीनियर्स (आईईईई-यूएसए), ने कुछ समय पूर्व सीनेट की न्यायिक समिति से आग्रह किया था कि वह एच1बी अस्थायी वीजा से संबंधित नियमों को कठोर बनाये और भारतीय पेशेवरों में लोकप्रिय एच1बी वीजा का वार्षिक कोटा बढ़ाये जाने की माँग खारिज कर दे। माना जा रहा है कि आईईईई-यूएसए के इस आग्रह के बाद अपने यहाँ के आईटी पेशेवरों को अधिक अवसर उपलब्ध कराने के इरादे से अमेरिका यह कानून बनाने जा रहा है।
नियम कड़े होने की स्थिति में भारतीय इंजीनियरों के लिए अमेरिका में अवसर कम होंगे तो अमेरिकी इंजीनियरों के लिए रोजगार के मौके बढ़ेंगे। अमेरिका में काम कर रही भारतीय कंपनियों, जैसे इन्फोसिस आदि को अमेरिकी इंजीनियरों से काम चलाना होगा। हालाँकि कठिन वीजा नियमों के बावजूद भारतीय कंपनियों को आउटसोर्सिंग का काम मिलता रहेगा, क्योंकि यहाँ पर अमेरिकियों के मुकाबले सस्ता श्रम उपलब्ध है।
आईटी क्षेत्र के प्रतिनिधि उद्योग संगठन नैस्कॉम के अध्यक्ष सोम मित्तल का कहना है कि ये प्रस्ताव भारतीय आईटी कंपनियों के लिए विभेदकारी हैं और हजारों अमेरिकी कंपनियों को इनकी सेवाएँ हासिल करने से रोकेंगे। लेकिन ऐसा नहीं है कि इसका नुकसान केवल भारतीय आईटी कंपनियों को उठाना होगा। मित्तल कहते हैं कि जब यह विधेयक कानून का रूप धारण कर लेगा तो इसके बाद अमेरिकी कंपनियों की लागत में बढ़ोतरी होगी। इसीलिए नैस्कॉम को उम्मीद है कि अमेरिकी प्रतिनिधि सभा में और अधिक संतुलित विधेयक पेश किया जायेगा।
(निवेश मंथन, जुलाई 2013)

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