राजीव रंजन झा :
वाकई यह दिलचस्प है कि निफ्टी के लिए बार-बार 6000 का स्तर महत्वपूर्ण हो जाता है, भले ही हम अलग-अलग समय की अलग-अलग चार्ट-संरचनाओं को देख रहे हों।
इस समय निफ्टी के चार्ट पर सबसे ताजा महत्वपूर्ण संरचना है 20 मई 2013 के शिखर 6229 से 24 जून 2013 की तलहटी 5566 तक की गिरावट की। इस संरचना में 61.8% वापसी का स्तर बन रहा है 5976 पर।
आपको शायद याद होगा कि मई अंक में राग बाजारी का शीर्षक था - आसान नहीं होगा 6000 के ऊपर टिकना। मई के पहले हफ्ते में ही निफ्टी 6000 के ऊपर लौटा था। जनवरी 2013 के शिखर 6111 से अप्रैल 2013 की तलहटी 5477 तक की गिरावट के बाद इसने बड़ी तेज रफ्तार से अप्रैल-मई के दौरान वापसी की थी। तब मैंने मई अंक में लिखा था, '6000 के पास निफ्टी के लिए कई संरचनाओं में कड़ी बाधा है। इन सब बातों के मद्देनजर सेंसेक्स के लिए 19792 और निफ्टी के लिए 5971-6000 के ऊपर टिक पाना आसान नहीं लगता।’ लेकिन साथ ही मैंने यह भी लिखा था कि %निफ्टी 5971-6000 के आगे जाने पर जनवरी का शिखर फिर से छू सकता है। इसी तरह सेंसेक्स 19792 से आगे बढ़ सका तो 20,204 तक चढऩे की उम्मीद बन जायेगी।’
बाजार की अद्भुत चाल ने इन दोनों ही संभावनाओं को पूरा कर दिया। जो बाधा स्तर सामने दिख रहे थे, उन्हें पार करने के बाद सेंसेक्स और निफ्टी ने जनवरी 2013 के स्तरों को छू लिया। न केवल छू लिया, बल्कि पार करके कुछ और ऊपर तक भी चले गये। लेकिन साथ ही यह मोटी बात भी सही हो गयी कि निफ्टी के लिए 6000 के ऊपर टिकना मुश्किल है। निफ्टी 20 मई को 6229 तक चढ़ा और जब बाजार में ज्यादातर लोगों ने मान लिया कि अब पिछले रिकॉर्ड स्तरों यानी करीब 6350 को छूना बस एक औपचारिकता भर है, तो यह एकदम से नीचे पलट गया।
इसी को मैं बाजार का छकाना कहता हूँ। दरअसल जनवरी 2013 का शिखर पार होने के बाद किसी भी विश्लेषक के लिए यह सोचना स्वाभाविक ही था कि 6350 तक चढऩा और शायद इसके भी आगे जाना ही निफ्टी का अगला कदम है। लेकिन जब ऐसी आम राय बनने लगी तो बाजार को पलटने का अच्छा मौका मिल गया!
जून के अंतिम हफ्ते में बाजार ने इसी तरह अचानक पलटी मारी । सेंसेक्स ने 24 जून से 28 जून के बीच केवल चार दिनों में 18467 की तलहटी से 28 जून के ऊपरी स्तर 19433 तक 966 अंक की छलाँग लगा ली। इसी तरह निफ्टी इन चार दिनों में 5566 से 5853 तक चढ़ कर 287 अंक यानी 5% से ज्यादा उछल गया। इसमें सबसे ज्यादा योगदान शुक्रवार 28 जून की उछाल का रहा। दरअसल गुरुवार 27 जून को केंद्र सरकार ने प्राकृतिक गैस की कीमत दोगुनी कर 8.4 डॉलर प्रति एमबीटीयू किये जाने का फैसला किया। इसका उत्साह बाजार में 28 जून को दिखा और सेंसेक्स ने एक ही दिन में सवा पाँच सौ अंक की छलाँग लगा ली।
लेकिन क्या यह मान लें कि बाजार की मई-जून की गिरावट थम गयी है और इसने फिर से ऊपर की ओर नयी चाल शुरू कर दी है? इस सवाल का जवाब काफी हद तक इस बात पर निर्भर है कि क्या सेंसेक्स और निफ्टी 200 दिनों के सिंपल मूविंग एवरेज (एसएमए) के ऊपर टिक पाते हैं? जून के अंतिम कारोबारी दिन, यानी 28 जून को सेंसेक्स-निफ्टी ने 200 एसएमए पार किया, लेकिन जुलाई के पहले हफ्ते में ये 200 एसएमए के ऊपर-नीचे होते दिखे।
हालाँकि पाँच जुलाई को कारोबारी हफ्ता पूरा होने के दिन सेंसेक्स अपने 200 एसएमए 19226 से ठीक-ठाक ऊपर 19496 पर बंद हुआ। इसी तरह निफ्टी पाँच जुलाई को 200 एसएमए के स्तर 5829 से ठीक-ठाक ऊपर 5868 पर बंद हुआ। लेकिन आगे आने वाले दिनों में अच्छी बढ़त हासिल करने के लिए इन्हें 50 एसएमए की चुनौती को पार करना होगा। अभी सेंसेक्स का 50 एसएमए 19541 पर है। जुलाई के पहले हफ्ते में सेंसेक्स ने 50 एसएमए को भी छुआ, लेकिन इसके ऊपर टिक नहीं पाया। वहीं निफ्टी का 50 एसएमए 5919 पर है। निफ्टी को जुलाई के पहले हफ्ते में 50 एसएमए को छूने में सफलता नहीं मिल सकी।
साथ में हमें बाजार की मई-जून की गिरावट की वापसी के स्तरों का भी ध्यान रखना चाहिए। निफ्टी की 6229 से 5566 तक की गिरावट की 50% वापसी 5898 पर है। लिहाजा इस गिरावट की 50% वापसी और 50 एसएमए दोनों को साथ देखने पर 5900-5920 के दायरे में एक महत्वपूर्ण बाधा बनती है। इसके आगे जाने पर 6229-5566 की गिरावट की 61.8% वापसी 5976 पर है, यानी एक बार फिर मोटे तौर पर 6000 के आसपास बाधा मिल सकती है।
हालाँकि दिलचस्प बात यह है कि सेंसेक्स ने मई-जून की 20444-18467 की गिरावट की 50% वापसी यानी 19,450 को पार कर लिया है। दरअसल शुक्रवार 5 जुलाई को तो यह इस गिरावट की 61.8% वापसी 19689 के काफी नजदीक 19,640 तक चला गया।
इसलिए अगर सेंसेक्स के नजरिये से देखें तो 19,685 के ऊपर टिकने पर, और निफ्टी के नजरिये से देखें तो 5900-5920 के ऊपर टिकने पर बाजार की मजबूती और आगे बढ़ती दिखेगी। लेकिन निफ्टी को फिर से 5970-6000 के दायरे में बाधा झेलनी पड़ सकती है। यानी बाजार में भरोसेमंद तेजी निफ्टी 6000 के ऊपर जाने के बाद ही देखने को मिलेगी। निफ्टी के लिए 6000 के ऊपर जाने पर 6229-5566 की संरचना में 80% वापसी के स्तर 6087 को अगला लक्ष्य माना जा सकता है। सेंसेक्स के चार्ट पर 80% वापसी का स्तर 20,046 का है। यानी सेंसेक्स अगली उछाल में 20,000 के मनोवैज्ञानिक स्तर को फिर से छूने की कोशिश कर सकता है।
मगर क्या इससे ऊपर के स्तरों की उम्मीद अभी की जा सकती है? दरअसल अगर सेंसेक्स और निफ्टी के साप्ताहिक चार्ट पर ज्यादा लंबी अवधि की चाल देखें तो ये दोनों सूचकांक अब भी साल 2011 की तीसरी तिमाही में शुरू हुई एक चढ़ती पट्टी (राइजिंग चैनल) के अंदर चल रहे हैं। सेंसेक्स की इस पट्टी की ऊपरी रेखा अभी 21000 के पास और निचली रेखा 18000 के नीचे है। सेंसेक्स इस पट्टी के बीचो-बीच खड़ा है।
लेकिन निफ्टी में यह पट्टी कुछ अलग बनी है। निफ्टी ने जून के अंतिम हफ्ते में इस पट्टी की निचली रेखा को छुआ और वहीं से पलटा। ऐसे में एक संभावना यह बनती है कि निफ्टी इस पट्टी की ऊपरी रेखा को छूने की ओर चल पड़े। लेकिन जरा दिल थाम कर पढ़ें कि यह ऊपरी रेखा अभी 6500 के ऊपर दिख रही है और जुलाई के अंत तक 6600 के ऊपर होगी।
फिलहाल मुझे ऐसा कोई चमत्कारी कारण नहीं दिख रहा जो निफ्टी को 6500-6600 की ओर ले जाने की क्षमता रखता हो। दरअसल निफ्टी मई-जून 2012 में भी इस पट्टी की निचली रेखा को छूने के बाद ऊपर चला, लेकिन इस पट्टी की ऊपरी रेखा तक नहीं पहुँच पाया। इसने दोबारा इस साल अप्रैल में निचली रेखा पर सहारा लेने के बाद ऊपरी रेखा की ओर चलने का प्रयास किया, लेकिन बीच में ही अटक गया। इसी दौरान सेंसेक्स की चाल देखें तो इसने जरूर मई-जून 2012 से जनवरी 2013 तक की चाल में अपनी इस पट्टी की निचली रेखा से ऊपरी रेखा तक जाने का काम पूरा किया। लेकिन सेंसेक्स भी अप्रैल 2013 की तलहटी से आयी उछाल में इस पट्टी की ऊपरी रेखा तक नहीं जा सका।
इसलिए दूसरी संभावना यह बनती है कि सेंसेक्स-निफ्टी आने वाले महीनों में इस पट्टी की निचली रेखा से भी नीचे फिसल जायें। अगर निफ्टी आने वाले दिनों में एक वापस उछाल (पुल बैक) पूरी करने के बाद इस पट्टी की निचली रेखा को काट दे तो यह एक बड़ी गिरावट का भी कारण बन सकता है। जून के अंतिम हफ्ते की तलहटी 5566 के नीचे फिर से लौटने पर 4531 (दिसंबर 2011 की तलहटी) से 6229 (मई 2013 का शिखर) तक की उछाल की 50% वापसी यानी 5380 तक गिरने की आशंका बन जायेगी। इसके नीचे 61.8% वापसी का अगला पड़ाव 5180 का होगा। सेंसेक्स के लिए 18,467 के नीचे फिसलने पर दिसंबर 2011 की तलहटी 15,136 से मई 2013 के शिखर 20,444 की 50% वापसी 17790 और 61.8% वापसी यानी 17,164 अगले महत्वपूर्ण पड़ाव होंगे।
लेकिन अगर अगले कुछ दिनों में निफ्टी उतार-चढ़ाव के बीच भी 5800 के ऊपर अच्छी तरह टिका रहे और उसके बाद यह 6000 के ऊपर निकल जाये, तो कमजोरी की आशंकाओं के ये बादल छँट जायेंगे। वैसी हालत में 6300 के आसपास का भी लक्ष्य बन सकता है। अप्रैल-मई के दौरान निफ्टी ने करीब 750 अंक की उछाल भरी थी। अगर उसी को दोहराते हुए निफ्टी 5566 की ताजा तलहटी से फिर 750 अंक की तेजी पकड़े तो 6300 का लक्ष्य मिल जायेगा।
इस लिहाज से कहा जा सकता है कि सेंसेक्स 19500 और निफ्टी 5900 के ऊपर टिकें, तभी जून के अंतिम हफ्ते से बनी चाल ज्यादा आगे बढ़ सकेगी। वहीं अगर सेंसेक्स 19200 से नीचे और निफ्टी 5800 से नीचे फिसलने लगे तो बाजार फिर से कमजोर होता दिखेगा और जून की तलहटी से नीचे जाना साफ तौर पर खतरे की घंटी बजने जैसा होगा।
रुपये की कमजोरी से मचा हाहाकार
जून के अंतिम हफ्ते में डॉलर के मुकाबले रुपये की ऐतिहासिक कमजोरी ने हर तरफ हाहाकार मचा दिया। एक डॉलर की कीमत 26 जून को 60.76 रुपये पर पहुँच गयी और यह पहला मौका था जब डॉलर की कीमत 60 रुपये के ऊपर गयी। इससे सरकार बुरी तरह घबरा गयी और यह कहा जा सकता है कि प्राकृतिक गैस की कीमतें बढ़ाने के फैसले में रुपये की इस ऐतिहासिक कमजोरी ने भी कुछ योगदान किया। मंत्रिमंडल के अंदर इस फैसले पर मतभेद की खबरें थीं, लेकिन रुपये की कमजोरी ने विदेशी निवेश को आकर्षित करने के तर्क को मजबूत किया।
हालाँकि रुपये की कमजोरी उस मुकाम पर भी नहीं थमी। सोमवार 8 जुलाई को डॉलर की कीमत 61 रुपये के भी ऊपर चली गयी और इसने 61.21 रुपये का नया रिकॉर्ड भाव छू लिया। सबके सामने यही सवाल है कि क्या इन स्तरों पर रुपये की कमजोरी रुक सकती है? रुपये की कमजोरी-मजबूती बताते समय इतना तो आपको ध्यान होगा ही कि इस चार्ट में डॉलर का भाव जितना ऊपर चढ़ता है, रुपया दरअसल उतना ही कमजोर होता जाता है। आसानी के लिए हम रुपये के सापेक्ष डॉलर की मजबूती-गिरावट की बात कर सकते हैं।
डॉलर की रुपये में कीमत का चार्ट देखें तो इसमें डॉलर की तेजी का ताजा दौर मई के पहले हफ्ते से चालू होता दिख रहा है, जब एक डॉलर की कीमत 53.63 रुपये थी। वहाँ से यह कीमत 26 जून को 60.76 रुपये पर चली गयी। इसके बाद एक जुलाई को डॉलर की कीमत घट कर 58.96 तक गयी। इसके बाद डॉलर का भाव फिर बढऩे लगा। सोमवार 8 जुलाई को इसकी कीमत 61.21 रुपये तक चढ़ गयी, हालाँकि अंत में यह 60.71 पर बंद हुआ।
अब तक रुपये के सापेक्ष डॉलर ने ऐसा कोई संकेत नहीं दिया है कि इसने अपनी मौजूदा चाल का शिखर बना लिया है। जब यह मई के पहले हफ्ते में तेजी शुरू होने के समय के स्तर 53.63 से लेकर 26 जून के ऊपरी स्तर 60.76 (जिस दिन पहली बार यह 60 के ऊपर गया) तक की उछाल के बाद नीचे लौटा, तो उस समय जरूर लगा कि शायद इसने शिखर बना लिया है। लेकिन एक जुलाई को 53.63 से 60.76 तक की उछाल की 23.6% वापसी के स्तर 59.08 के नीचे जाने के बाद भी वहाँ एकदम टिक नहीं पाया। इसके अगले ही दिन से इसने फिर ऊपरी शिखर और ऊपरी तलहटियाँ बनानी शुरू कर दी। और अब तो 61 के ऊपर का भाव साफ तौर पर बता रहा है कि 60.76 पर शिखर बनने की उम्मीद बेकार गयी।
अब यह संभावना बन रही है कि अगली उछाल में डॉलर का भाव 62 रुपये के भी ऊपर चला जाये। दरअसल डॉलर ने 14 जून को 57.40 पर एक छोटी तलहटी बनाने के बाद 60.76 तक की उछाल भरी थी। इसके बाद यह एक जुलाई को 58.96 तक नीचे लौटा। अगर इस उतार-चढ़ाव के आधार पर फिबोनाकी प्रोजेक्शन स्तरों को देखें तो 60.76 के ऊपर निकलने पर डॉलर की कीमत करीब 61 रुपये और उसके बाद 62.32 रुपये तक जाने के लक्ष्य बनते हैं। इनमें पहला लक्ष्य तो पूरा हो चुका, अब दूसरे लक्ष्य की ओर बढऩा स्वाभाविक लग रहा है।
यानी डॉलर के मुकाबले रुपये में कमजोरी का सिलसिला और आगे बढऩे की संभावनाएँ काफी हैं, बशर्ते डॉलर आने वाले दिनों में अपने 20 दिनों के सिंपल मूविंग एवरेज (एसएमए) के नीचे न फिसले। अभी इसका 20 एसएमए 59.31 पर है। हालाँकि 10 एसएमए को भी चाल पलटने के शुरुआती संकेत के तौर पर देखा जा सकता है, लेकिन जुलाई के पहले हफ्ते में डॉलर 10 एसएमए के नीचे आने के बाद फिर से तेज होकर छका चुका है। इसलिए 20 एसएमए को ज्यादा तवज्जो देना ठीक रहेगा।
डॉलर और रुपये का यह समीकरण शेयर बाजार की चाल के लिए भी महत्वपूर्ण है। जब तक रुपये में कमजोरी जारी रहने का अंदेशा रहेगा, तब तक विदेशी संस्थागत निवेशकों के लिए भारत में नया निवेश करना आकर्षक नहीं होगा। हालाँकि इन स्तरों पर शेयरों की बिकवाली करना भी उनके लिए दोहरे घाटे का सौदा है। एक तो शेयरों के भाव कम मिलेंगे, दूसरे रुपये को डॉलर में बदलने पर हाथ में कम डॉलर आयेंगे।
दूसरी ओर, जब उन्हें लगेगा कि रुपया वापस मजबूती हासिल करने लगा है तो वे भारतीय शेयर बाजार में नया निवेश लाना चाहेंगे। ऐसा करने से उन्हें दोहरा लाभ होगा। एक तो उन्हें शेयरों के मौजूदा निचले भावों पर निवेश का मौका मिलेगा, साथ ही उन्हें भविष्य में डॉलर के मुकाबले रुपये में मजबूती के चलते अतिरिक्त फायदा होगा।
गैस के दाम बढऩे का असली फायदा बस रिलायंस को
केंद्र सरकार ने 27 जून की शाम को गैस की कीमतें बढ़ाने का ऐलान किया और हमारा शेयर बाजार अगले ही दिन मानो गैस के दम पर रॉकेट बन गया। जहाँ तक गैस की कीमतों में वृद्धि से फायदे का सवाल है, इसका वास्तविक फायदा केवल रिलायंस इंडस्ट्रीज को होने वाला है। वैसे तो कागजी तौर पर इस फैसले का सबसे ज्यादा फायदा ओएनजीसी को मिलना चाहिए, क्योंकि अभी वास्तव में गैस का महत्वपूर्ण उत्पादन उसी का है। ओएनजीसी ने संकेत दिया है कि गैस की कीमत में एक डॉलर की बढ़ोतरी से उसे 2100-2200 करोड़ रुपये का फायदा होने वाला है।
इस हिसाब से देखें तो ओएनजीसी को होने वाला फायदा करीब 9000 करोड़ रुपये का हो सकता है, जो काफी बड़ी रकम है। लेकिन आशंका यही है कि सरकार उसके इस लाभ का ज्यादातर हिस्सा सब्सिडी साझेदारी, लाभांश वगैरह के जरिये वापस ले लेगी।
लेकिन रिलायंस पर इन दोनों सरकारी कंपनियों की तरह सब्सिडी बोझ नहीं पडऩे वाला। इसलिए गैस की कीमत में वृद्धि का पूरा-पूरा फायदा उसकी जेब में ही रहेगा। लेकिन इस समय रिलायंस के पास गैस है कहाँ? केजी डी6 में उसका गैस उत्पादन घट कर 14 एमएमएससीएमडी के नीचे जा चुका है। बेशक यह माना जा सकता है कि कीमत को लेकर स्थिति साफ होने के बाद कंपनी इस उत्पादन को फिर से बढ़ाने की दिशा में रुचि लेगी।
अगर जानकारों से मिलने वाले संकेतों पर भरोसा करें तो इस दिशा में प्रयास शुरू हो चुके हैं। लेकिन उनका नतीजा दिखने में अभी समय लगने वाला है। इसलिए रिलायंस के गैस उत्पादन में कोई ठीक-ठाक सुधार अगले कारोबारी साल के मध्य से ही दिखना शुरू हो सकता है। वास्तव में गैस उत्पादन कंपनी की कुल आय में एक महत्वपूर्ण योगदान 2015-2016 में कर सकेगा और उस समय इस मूल्य-वृद्धि का असली फायदा रिलायंस के बही-खातों में नजर आयेगा।
(निवेश मंथन, जुलाई 2013)