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नहीं था कोई और विकल्प

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Category: जुलाई 2013

नरेंद्र तनेजा, ऊर्जा विशेषज्ञ :

हमारे देश में तेल के भंडार ज्यादा नहीं हैं, लेकिन गैस के भंडार काफी हैं।

उत्तर-पूर्व में त्रिपुरा और असम में, पश्चिम में गुजरात और खास कर सौराष्ट्र में गहरे समुद्र में, दक्षिण में आंध्र प्रदेश, केरण और कोंकण में गैस के काफी भंडार हैं। पूर्वी तट में देखें तो पांडिचेरी से लेकर उड़ीसा तक गैस के अच्छे भंडार हैं, ये साबित हो चुका है। लेकिन ये गैस भंडार 8-10 किलोमीटर गहरे समुद्र में हैं। ओएनजीसी, ऑयल इंडिया और रिलायंस जैसी भारतीय कंपनियों में तकनीक और पूँजी की दृष्टि से इतना सामथ्र्य नहीं है कि वे अपने-आप वहाँ जाकर गैस की खोज कर पायें और खोजने के बाद उत्पादन शुरू कर पायें।
ओएनजीसी ने गहरे समुद्र में कुछ खोज कर रखी है, लेकिन चार साल से वे वहाँ कुछ कर नहीं पा रहे हैं। रिलायंस ने भी खोज की, लेकिन उसके बाद गड़बड़ हो गयी और दिक्कतों के चलते बीपी को साझेदार बनाना पड़ा। पर समस्या यह है कि भारत की मूल्य-व्यवस्था को देख कर विदेशी कंपनियाँ यहाँ आना नहीं चाहती हैं।
समुद्र से गैस निकालना हो तो सारा खेल बदल जाता है। आप जब जमीन पर तेल-गैस निकालते हैं तो आपकी लागत 20% भी नहीं होती है। गहरे समुद्र से खनन की लागत पाँच से लेकर बीस गुना तक हो सकती है, क्योंकि 8-10 किलोमीटर गहरे समुद्र में भी समुद्र की सतह से तीन किलोमीटर नीचे तक खुदाई कर गैस निकालना होता है। हमारे पास इसकी तकनीक नहीं है।
इसलिए अगर हमें आयात पर अपनी निर्भरता कम करनी है तो कीमतों को कुछ हद तक अंतरराष्ट्रीय स्तर पर लाना होगा। अभी हम अपनी गैस संबंधी जरूरत का 25.76% आयात कर रहे हैं, लेकिन यह आयात तेजी से बढ़ रहा है। सरकार के सामने विकल्प यही था कि या तो आयात करते रहें, या फिर कीमत पर एक फैसला लेकर यहाँ गैस उत्पादन बढ़ाने पर जोर दे। सरकार ने साहस दिखा कर फैसला किया है और मेरा मानना है कि सरकार के पास इसके अलावा कोई विकल्प नहीं था।
मंत्रिमंडल की बैठक में बिजली और खाद मंत्रालयों ने गैस की कीमत बढ़ाने का जम कर विरोध किया था। इसीलिए फैसले के 48 घंटे के भीतर ही यह बयान दिया गया कि खाद पर इस तरह सब्सिडी दी जायेगी कि गैस की कीमत बढऩे का बोझ खाद की कीमतों पर कम-से-कम रहे। सरकार का मानना है कि गैस की कीमत पर नयी नीति के चलते उसे इन कंपनियों के लाभ में साझेदारी और करों से होने वाली आय बढ़ जायेगी। सरकार मानती है कि इस बढ़ी हुई आय का मात्र एक-तिहाई देकर खाद मंत्रालय और बिजली मंत्रालय की शिकायतों को दूर कर पायेगी। मुझे लगता है कि अगर नीति का सही संचालन किया जाये तो यह संभव हो सकता है।
जब एक अप्रैल 2014 से कीमतें बढ़ेंगी, तो इसका सबसे पहला फायदा सरकारी कंपनियों को ही मिलेगा। रिलायंस का गैस उत्पादन अगले आठ महीनों में कुछ खास नहीं बढ़ सकता है। रिलायंस को जो लाभ होगा, वह करीब दो साल बाद शुरू होगा। इसके अलावा गौरतलब है कि ओएनजीसी को पन्ना, मुक्ता और ताप्ती गैस फील्ड में पहले से ही 7.5 डॉलर प्रति यूनिट की कीमत मिल रही है। भारत में तो गैस की 15 तरह की कीमतें पहले से चल रही हैं। आपके घर में जो पाइप वाली गैस आती है या गाड़ी में जो सीएनजी डलवाते हैं, उसका 25% हिस्सा तो 12 डॉलर की कीमत पर ही आयात किया जा रहा है।
(निवेश मंथन, जुलाई 2013)

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