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दवाओं पर कस गया मूल्य नियंत्रण का शिकंजा

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Category: जून 2013

सरबजीत कौर नांगरा, वीपी (रिसर्च), एंजेल ब्रोकिंग:

साल 2012 में नयी दवा मूल्य नीति की घोषणा की गयी थी, उसके बाद दवा मूल्य नियंत्रण आदेश (2013) का अंतिम मसौदा जारी किया गया।

पुरानी दवा मूल्य नीति को हटा कर उसकी जगह लेने के लिए जो मूल्य नीति जारी की गयी है, वह पहले अधिसूचित की गयी नयी दवा मूल्य नीति की ही दिशा में है। यह नीति एक जुलाई 2013 से लागू हो जायेगी।
दवा मूल्य नियंत्रण आदेश के तहत आवश्यक दवाओं की राष्ट्रीय सूची (एनईएलएम) में उल्लिखित 348 आवश्यक दवाओं (सभी फार्मुलेशंस) को मूल्य-नियंत्रण के अंदर लाया जायेगा। इस समय 74 थोक दवाओं और उनके फार्मुलेशंस की कीमतों पर ही नियंत्रण लागू है। सीलिंग प्राइस (सीपी) यानी अधिकतम मूल्य तय कर सभी फार्मुलेशंस की कीमतों पर अंकुश रखा जायेगा। दवा उत्पादक अपने उत्पादों की कीमत सीलिंग प्राइस के बराबर या इससे नीचे रख सकेंगे। जहाँ तक सीलिंग प्राइस का सवाल है, यह खुराक के आधार पर तय होगा, जैसे प्रति टेबलेट/ कैप्सूल/ स्टैंडर्ड इंजेक्शन वॉल्युम आदि, जैसा कि एनईएलएम 2011 में सूचीबद्ध है। माना जा रहा है कि इस कदम से तकरीबन 28% दवा उद्योग मूल्य नियंत्रण के तहत आ जायेगा, जबकि मौजूदा स्थिति में लगभग 18% दवा उद्योग मूल्य नियंत्रण के अधीन है।
किसी अधिसूचित फार्मुलेशन के सीलिंग प्राइस की गणना
जहाँ तक अधिसूचित दवाओं का अधिकतम मूल्य तय करने की विधि का सवाल है, वह काफी सरल है। इसमें उस दवा के उन सभी ब्रांडों की कीमतों का सामान्य औसत लिया जाता है, जिनकी बाजार हिस्सेदारी उस दवा के कुल कारोबार (सालाना कारोबार के आधार पर) के एक प्रतिशत के बराबर या उससे अधिक हो। कोई दवा कंपनी, जो ऐसा कोई अधिसूचित फार्मुलेशन बाजार में उतार रहा हो, वह इस बात के लिए स्वतंत्र होगा कि वह उस फार्मुलेशन के लिए सरकार की ओर से तय अधिकतम मूल्य सीमा के बराबर या उससे कम कीमत रखे।
संदर्भ के लिए आँकड़ा और बाजार आधारित आँकड़े का स्रोत
जहाँ तक अधिकतम मूल्य का सवाल है, यह बाजार पर आधारित आँकड़ों (एमबीडी) से तय होगा, जो दवा बाजार के आँकड़ों में विशेषज्ञता रखने वाली कंपनी आईएमएस हेल्थ (आईएमएस) के पास उपलब्ध होता है। हालाँकि संभव है कि इस दौरान सरकार कोई अन्य उपयुक्त व्यवस्था ले कर आ जाये, जिसके जरिए दवाओं के बाजार आधारित आँकड़ों का संग्रह किया जा सके। आँकड़े के संग्रह के बारे में सरकार का निर्णय अंतिम होगा। इस आदेश की अधिसूचना के बाद पहली बार इन अधिसूचित फार्मुलेशंस का अधिकतम मूल्य तय करने के लिए मई 2012 के बाजार आधारित आँकड़ों का इस्तेमाल होगा।
बाजार में आने वाली किसी नयी दवा की खुदरा कीमत तय करने के लिए जो बाजार आधारित आँकड़ा उपयोग में लाया जायेगा वह होगा- नयी दवा की कीमत तय करने के आवेदन की प्राप्ति के छह महीने पहले खत्म हुए महीने का उपलब्ध आँकड़ा। पहली अनुसूची में संशोधन की वजह से अधिसूचित फार्मुलेशन का अधिकतम मूल्य तय करने के लिए जो बाजार आधारित आँकड़ा लिया जायेगा, वह होगा पहली अनुसूची में संशोधन की अधिसूचना के छह महीने पहले से ठीक पूर्व खत्म हुए महीने का उपलब्ध आँकड़ा।
चूँकि आईएमएस से जो आँकड़ा उपलब्ध होता है वह स्टॉकिस्ट के स्तर की कीमतों के बारे में जानकारी देता है। ऐसे में सीलिंग प्राइस यानी अधिकतम खुदरा मूल्य तय करने के लिए आईएमएस से उपलब्ध कीमत में 16% की बढ़ोतरी कर दी जायेगी।
खुदरा विक्रेता का मार्जिन
ऊपर बतायी गयी विधि से स्पष्ट है कि अधिसूचित फार्मुलेशंस की सीलिंग प्राइस और नयी दवाओं की खुदरा कीमत तय करते समय खुदरा विक्रेता के मार्जिन के तौर पर कीमत का 16% रखा जायेगा। इससे पहले कीमत का 20% मार्जिन के रूप में रखा जाता था।
अधिकतम खुदरा मूल्य
जहाँ तक किसी अधिसूचित फार्मुलेशन के अधिकतम खुदरा मूल्य का प्रश्न है, यह सरकार की ओर से अधिसूचित सीलिंग प्राइस और स्थानीय करों (जहाँ लागू हों) के आधार पर दवा उत्पादक द्वारा तय किया जायेगा। इस तरह सीलिंग प्राइस और स्थानीय करों को जोडऩे पर अधिकतम खुदरा मूल्य तय होगा।
मौजूदा उत्पादकों के लिए अधिसूचित फार्मुलेशंस की कीमत
अधिसूचित फार्मुलेशंस के सभी मौजूदा उत्पादक, जो सरकार द्वारा तय और अधिसूचित सीलिंग प्राइस (और उसके साथ स्थानीय कर सहित) से अधिक मूल्य पर ब्रांडेड या जेनेरिक या दोनों तरह की दवाएँ बेच रहे हों, वे उनकी कीमत में संशोधन कर उनकी कीमत में कमी लायेंगे और वह कीमत सीलिंग प्राइस (और उसके साथ स्थानीय कर सहित) से कम होगी।
ऐसे मामलों में, जहाँ अधिसूचित फार्मुलेशन का उत्पादन उसकी सीलिंग प्राइस की अधिसूचना से पहले ही हो गया हो, या फिर बाजार में उपलब्ध करा दिया गया हो, उत्पादक इस बात को सुनिश्चित करेंगे कि ऐसी अधिसूचना के 45 दिनों के भीतर उस अधिसूचित फार्मुलेशन का अधिकतम खुदरा मूल्य उसकी सीलिंग प्राइस (स्थानीय कर सहित) से कम कर दिया जाये।
अधिसूचित फार्मुलेशंस के सभी मौजूदा उत्पादक, जो सरकार द्वारा तय और अधिसूचित किये गये सीलिंग प्राइस (और उसके साथ स्थानीय कर सहित) से कम मूल्य पर ब्रांडेड या जेनेरिक या दोनों तरह की दवाएँ बेच रहे हों, वे उनकी मौजूदा अधिकतम खुदरा मूल्य को उन्हीं स्तरों पर बनाये रखेंगे।
जहाँ तक किसी दवा के अधिकतम खुदरा मूल्य में सालाना बढ़ोतरी का सवाल है, इसे पिछले साल के मुकाबले थोक मूल्य सूचकांक में वृद्धि के आधार पर तय किया जायेगा।
विशेष परिस्थितियों में किसी दवा के अधिकतम मूल्य का निर्धारण
विशेष परिस्थितियों को देखते हुए सरकार इस आदेश में उल्लिखित बातों को दरकिनार करते हुए किसी निश्चित अवधि के लिए किसी दवा की सीलिंग प्राइस या खुदरा मूल्य सार्वजनिक हित में तय कर सकती है। अगर उस दवा की सीलिंग प्राइस या उसका खुदरा मूल्य पहले से ही तय हो और अधिसूचित कर दिया गया हो तो ऐसी स्थिति में सरकार उस साल की महँगाई दर पर ध्यान दिये बिना उसकी सीलिंग प्राइस या खुदरा मूल्य में कमी या बढ़ोतरी कर सकती है।
आयातित दवाएँ
मूल्य नियंत्रण के तहत आने वाली सभी प्रकार की दवाओं के लिए सीलिंग प्राइस तय करने का तरीका एक ही होगा। जहाँ तक आयातित दवाओं के लिए सीलिंग प्राइस का सवाल है, नियंत्रण के तहत आने वाली आयातित दवाओं के लिए कोई अलग निर्धारण व्यवस्था नहीं होगी।
दवा (मूल्य नियंत्रण) आदेश 1995 के तहत आने वाले फार्मुलेशंस की कीमत
जिन अधिसूचित फार्मुलेशंस का उल्लेख दवा (मूल्य नियंत्रण) आदेश 1995 की पहली अनुसूची में भी है, उनकी 31 मई 2012 तक के लिए तय और अधिसूचित कीमतें अगले एक साल (30 मई 2013 तक) तक के लिए भी लागू रहेंगी। दवा उत्पादकों को यह छूट होगी कि वे ऐसे अधिसूचित फार्मुलेशंस की कीमतों में संशोधन कर सकते हैं। इसके लिए डिपार्टमेंट ऑफ इंडस्ट्रियल प्रमोशन एंड पॉलिसी (डीआईपीपी) द्वारा घोषित पिछले कैलेंडर साल के सालाना थोक मूल्य सूचकांक और उसके बाद अधिसूचित दवाओं की कीमत तय करने के फार्मूला को आधार बनाना होगा।
मूल्य नियंत्रण के दायरे से बाहर की दवाएँ
मौजूदा मूल्य नियंत्रण व्यवस्था के तहत गैर-अधिसूचित दवाओं की कीमतों पर भी नजर रखी जाती है। जिन दवाओं की कीमत में साल भर में 10% से अधिक बढ़ोतरी होती है, उनके लिए कुछ शर्तों के तहत सरकार समय-समय पर कीमतें तय करती है। प्रस्तावित नीति के तहत सभी आवश्यक दवाएँ मूल्य नियंत्रण के अधीन हैं।
यहाँ इस बात का पालन किया जाता है कि आवश्यक दवाओं के दायरे से बाहर रहने वाली दवाओं के लिए नियंत्रण-आधारित व्यवस्था नहीं होनी चाहिए और इन दवाओं की कीमत बाजार में तय होनी चाहिए। हालाँकि कुल मिला कर दवाओं की कीमतों को नियंत्रित रखने के प्रयासों के तहत यह प्रस्तावित है कि इन दवाओं की कीमतों पर नियमित आधार पर नजर रखी जायेगी और जब भी ऐसी किसी दवा की कीमत में साल भर में 10% से अधिक की बढ़ोतरी होगी तो सरकार के पास यह अधिकार होगा कि वह अगले 12 महीनों के लिए इन दवाओं की कीमत को इस सीमा से नीचे ले जा सकेगी।
नयी दवा की खुदरा कीमत
जहाँ तक घरेलू बाजार में अभी अनुपलब्ध नयी दवाओं की खुदरा कीमत का सवाल है, यह सरकार द्वारा फार्मेकोइकोनॉमिक्स के सिद्धांतों के आधार पर सरकार द्वारा तय होगा। इसका आधार इस आदेश को जारी किये जाने के 60 दिनों के भीतर गठित विशेषज्ञों की स्टैंडिंग कमिटी की अनुशंसा को बनाया जायेगा। ऐसी नयी दवा की खुदरा कीमत तय करते समय रिटेलर को दिया जाने वाला 16% मार्जिन भी जोड़ा जायेगा।
नकारात्मक असर नहीं
कुल मिला कर दवाओं की प्रस्तावित प्राइसिंग पॉलिसी साल 2012 में घोषित नीति की ही दिशा में है। मूल्य प्रतिस्पद्र्धा को देखते हुए इस बात की संभावना कम है कि यह नीति इस क्षेत्र के ऊपर किसी तरह का कोई बड़ा नकारात्मक असर डालेगी।
हालाँकि यदि घरेलू और बहुराष्ट्रीय कंपनियों (एमएनसी) की बात करें तो एमएनसी पर इस नीति का अधिक असर पड़ेगा। इसकी वजह यह है कि इनकी अधिकांश दवाओं की कीमतें प्रतिस्पद्र्धी स्तरों से काफी ऊपर हैं और घरेलू बाजारों पर ही इनकी शत-प्रतिशत बिक्री आधारित है।
जहाँ तक घरेलू कंपनियों का सवाल है, वे घरेलू बाजार पर उस हद तक निर्भर नहीं हैं। घरेलू कंपनियाँ काफी हद तक इस नीति से अप्रभावित रहेंगी, क्योंकि इनकी वृद्धि के प्रमुख कारकों में कीमत उतनी महत्वपूर्ण भूमिका नहीं निभाती। इनकी दवाएँ पहले से ही प्रतिस्पद्र्धी कीमतों पर उपलब्ध हैं। इस नीति के लागू होने पर मात्रा के लिहाज से दवाओं की कुल बिक्री पर सकारात्मक असर पडऩे की उम्मीद है।
दवा क्षेत्र पर हमारा सकारात्मक नजरिया बना हुआ है। ल्यूपिन, कैडिला हेल्थकेयर, डॉ. रेड्डीज लैब, अरबिंदो फार्मा, इप्का लैब्स, डिशमैन फार्मा और इंडोको रेमेडीज के बारे में हम सकारात्मक राय रखते हैं।
(निवेश मंथन, जून 2013)

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