डॉ. प्रसून माथुर, वरिष्ठ विश्लेषक, रेलिगेयर कमोडिटीज :
सरकार ने लेवी प्रणाली खत्म करके चीनी क्षेत्र से आंशिक तौर पर नियंत्रण हटा लिया है।
अगले दो सालों तक लेवी कोटा प्रणाली नहीं रहेगी। इसका मतलब यह है कि अब चीनी मिलों को अपने उत्पादन का 10% हिस्सा सस्ते दामों पर राशन की दुकानों पर बेचने के लिए सरकार को नहीं देना पड़ेगा। अभी तक चीनी मिलों को कुल उत्पादन का 10% हिस्सा 19 रुपये प्रति किलो के भाव पर सरकार को बेचना पड़ता था। लेवी प्रणाली खत्म करने का फैसला सितंबर में पूरे हो रहे मौजूदा मौसम में ही लागू होगा।
अब चीनी कंपनियाँ जब चाहें और जितनी चाहें उतनी चीनी खुले बाजार में बेच सकती हैं। सरकार इस बारे में कोई निर्देश नहीं देगी। इसके पहले सरकार चीनी बिक्री के लिए तिमाही कोटा जारी करती थी। अगर कंपनियाँ एक तिमाही में कोटे की पूरी चीनी नहीं बेच पाती थीं तो बची चीनी लेवी चीनी में बदल जाती थी।
राज्य सरकारें अब सरकारी राशन की दुकानों के लिए चीनी खुले बाजार से खरीदेंगी। वे खुले बाजार से पारदर्शी तरीके से चीनी खरीद कर गरीब परिवारों को राशन की दुकानों के जरिये 13.50 रुपये प्रति किलो के भाव पर बेच सकती हैं।
सरकार ने अस्थायी रूप से दो साल की अवधि में सब्सिडी की गणना के लिए फैक्ट्री में चीनी की कीमत 32 रुपये प्रति किलो मानी है। केंद्र सरकार फैक्ट्री कीमत और राशन की दुकान पर चीनी की कीमत के अंतर की भरपाई बतौर सब्सिडी राज्य सरकारों को करेगी। इससे केंद्र सरकार पर सालाना करीब 5300 करोड़ रुपये का सब्सिडी बोझ पड़ेगा।
चीनी उत्पादन के उप-उत्पाद मोलेसिस और एथेनॉल पर रोक और चीनी की अनिवार्य जूट पैकिंग जैसे मसलों पर संबंधित मंत्रालय विचार करेंगे।
चीनी पर आंशिक रूप से नियंत्रण हटने से चीनी कंपनियों की नकदी की स्थिति बेहतर होगी और वे अपने भंडार का बेहतर तरीके से प्रबंधन कर सकेंगी। लेवी कोटा और चीनी कोटा प्रणाली खत्म होने से चीनी कंपनियों को सालाना 2650 करोड़ रुपये की बचत होने की उम्मीद है। हालाँकि सरकार पर करीब 5300 करोड़ रुपये का सब्सिडी बोझ पड़ेगा।
खुले बाजार में चीनी की कीमतें अब माँग और आपूर्ति के आधार पर बाजार की ताकतें तय करेंगी। अभी चीनी की आपूर्ति पर्याप्त है, हालाँकि छोटी अवधि में इसकी कीमतों में तेजी दिख सकती है।
चीनी के बाजार का सालाना आकलन
मौजूदा चीनी मौसम में 15 मार्च 2013 तक 210.5 लाख टन चीनी का उत्पादन हो चुका है, जो पिछले साल के मुकाबले तकरीबन 1% कम है, जब 212.5 लाख टन चीनी का उत्पादन हुआ था। इस मौसम में 15 मार्च 2013 तक 210.0 लाख टन गन्ने की पेराई हो चुकी है, जो पिछले चीनी मौसम में समान अवधि के दौरान हुई पेराई के तकरीबन बराबर है। उत्तर प्रदेश ने 15 मार्च 2013 तक 59 लाख टन चीनी का उत्पादन किया है, जबकि पिछले साल इसने 60.4 लाख टन का उत्पादन किया था। जहाँ तक रिकवरी का सवाल है, यह पिछले साल के 8.95% के मुकाबले इस साल 15 मार्च 2013 तक 9.05% रही है।
जैसा कि अनुमान था, महाराष्ट्र में पिछले 15-20 दिनों में उत्पादन धीमा हुआ है। इस मौसम में पहली बार वास्तविक उत्पादन पिछले साल के मुकाबले कम है। पिछले साल के 72.7 लाख टन के मुकाबले इस बार 15 मार्च तक 72.25 लाख टन चीनी का उत्पादन महाराष्ट्र ने किया है। यही नहीं, रिकवरी भी पिछले साल के 11.44% के मुकाबले इस साल 11.23% रही है।
कर्नाटक की बात करें तो पिछले साल के 32.6 लाख टन के मुकाबले 31.8 लाख टन चीनी का उत्पादन हुआ है। तमिलनाडु में चीनी का उत्पादन इस साल 11.5 लाख टन रहा है, जबकि पिछले साल यह 11.1 लाख टन रहा था। जहाँ तक आंध्र प्रदेश का सवाल है, इसने पिछले साल के 9.7 लाख टन के मुकाबले इस साल 9.2 लाख टन चीनी उत्पादित की है। गुजरात में पिछले साल के 8.8 लाख टन के मुकाबले इस बार 9.4 लाख टन चीनी का उत्पादन हुआ है।
अब तक के वास्तविक उत्पादन और कुछ प्रमुख राज्यों में उत्पादन के रुझानों को देखते हुए आईएसएमए ने भी मौजूदा चीनी मौसम (शुगर सीजन) के लिए चीनी उत्पादन के अनुमानों को संशोधित किया है। इसका नया अनुमान है कि साल 2012-13 के दौरान 246 लाख टन चीनी का उत्पादन हो सकता है।
चीनी पर नियंत्रण समाप्त होने से चीनी बाजार को थोड़ी राहत मिलेगी और इसमें तेजी का रुझान देखा जा सकता है। इसके अतिरिक्त यदि अगले साल चीनी का कम उत्पादन होता है, तो उसका असर भी कीमतों पर पड़ेगा।
महाराष्ट्र के कई हिस्सों में जबरदस्त सूखे की हालत होने की वजह से अगले साल चीनी के उत्पादन पर असर देखा जा सकता है। सूखे की वजह से महाराष्ट्र और कर्नाटक में गन्ने के बुवाई क्षेत्र में कमी आ सकती है। साल 2012 में जब बारिश की कमी की वजह से पशुओं को खिलाने के लिए अतिरिक्त आपूर्ति उपलब्ध नहीं थी तो राज्य सरकारों ने इसके लिए गन्ने की खरीद की थी। पशुओं के चारे की कमी इस साल मार्च से जून के बीच बढ़ सकती है, जिसकी वजह से चारे के तौर पर विकसित गन्ने की माँग में बढ़ोतरी हो सकती है। हालाँकि उत्तर प्रदेश इस घाटे की भरपाई कुछ हद तक कर सकता है, क्योंकि इसके गन्ना बुवाई क्षेत्र में अच्छी सिंचाई सुविधाएँ उपलब्ध हैं।
इंटरनेशनल शुगर ऑर्गेनाइजेशन ने मुख्यत: ब्राजील से होने वाले उत्पादन की वजह से 2012-13 के लिए अतिरिक्त आपूर्ति (ओवरसप्लाई) के अनुमान को 85.3 लाख टन कर दिया है। इसमें 23 लाख टन की वृद्धि हुई है। ऑर्गेनाइजेशन ने कहा है कि ब्राजील में अधिक फसल की वजह से अतिरिक्त आपूर्ति का अनुमान और बढ़ा है। ऐसे में साल 2012-13 के दौरान कच्ची चीनी का उत्पादन 28.1 लाख टन की बढ़ोतरी के साथ 18.04 करोड़ टन रहने का अनुमान है। दूसरी ओर इस दौरान 17.18 करोड़ चीनी की खपत का अनुमान व्यक्त किया गया है।
कहाँ जायेंगी कीमतें
जहाँ तक चीनी की कीमत का सवाल है, अगस्त 2012 से लेकर 25 मार्च 2013 तक भारतीय चीनी के वायदा (फ्यूचर) बाजार में चीनी की कीमत में तकरीबन 20% की गिरावट दर्ज की जा चुकी है। इसके आगे भी एनसीडीईएक्स फ्यूचर के मौजूदा स्तर (2950) से 4-5% की और कमजोरी आने की संभावना बनती है। लेकिन इसके बाद कीमतों के फिर ऊपर चढऩे की संभावना होगी।
मेरा आकलन है कि 2815-2890 के दायरे में तलहटी बनाने के बाद इसमें तेजी का रुझान आ सकता है। लंबी अवधि के लिहाज से कीमतें ऊपर की ओर जाती दिख रही हैं, क्योंकि अगले साल देश में चीनी का उत्पादन कम रह सकता है। यदि हम साल 2013 के लिए तकनीकी स्तरों की बात करें तो एनसीडीईएक्स शुगर एम 200 के लिए 2900 और 2815 पर सहारा है, जबकि 3560 और 3820 पर इसे प्रतिरोध का सामना करना पड़ सकता है।
(निवेश मंथन, अप्रैल 2013)