नवंबर 2012 में ऐंबिट कैपिटल ने अपनी एक रिपोर्ट में अगले 10 सालों में निफ्टी से बाहर जा सकने वाली और उनकी जगह निफ्टी में शामिल हो सकने वाली कंपनियों की सूची तैयार की थी।
बाहर जा सकने वाली कंपनियों में एक नाम सीमेंस का था, जिसका नाम इस साल एक अप्रैल से वाकई क्लब निफ्टी से कट गया। साथ ही विप्रो को भी देश के सबसे खास 50 शेयरों की इस सूची से हटना पड़ा। निफ्टी में इन दोनों की जगह ली एनएमडीसी और इंडसइंड बैंक ने। ऐंबिट की रिपोर्ट में ये दोनों नाम उन कंपनियों की सूची में थे, जो अगले 10 सालों की अवधि में निफ्टी में जगह बना सकते थे। इन दोनों की बारी कुछ जल्दी ही आ गयी।
निफ्टी में कौन-से शेयर रहेंगे, इसका फैसला इंडिया इंडेक्स सर्विसेज एंड प्रोडक्ट्स नाम की कंपनी करती है, जो नेशनल स्टॉक एक्सचेंज (एनएसई) और क्रिसिल की साझा कंपनी है। ये बदलाव कई पैमानों के आधार पर होते हैं, जैसे उस शेयर की बाजार पूँजी, तरलता (लिक्विडिटी), फ्री-फ्लोट यानी बाजार में खरीद-बिक्री के उपलब्ध शेयरों की संख्या वगैरह। आम तौर पर जब कोई शेयर निफ्टी से हटता है तो उसके बाजार भाव में कमी आती है। वहीं निफ्टी में शामिल होने वाले शेयर के बाजार भाव में मजबूती का रुझान बनता है। हर बार ऐसा होना जरूरी नहीं, लेकिन ज्यादातर मामलों में ऐसा देखा गया है। इसके पीछे एक तो भावनात्मक कारण है, लेकिन इसके अलावा एक और सीधा कारण है। तमाम ऐसे इंडेक्स फंड हैं, जो केवल निफ्टी वाले शेयरों में निवेश करते हैं। कोई शेयर निफ्टी से बाहर जाये तो ऐसे फंड भी उस शेयर को अपने पोर्टफोलिओ से निकाल देते हैं। उनकी बिकवाली से शेयर के भाव पर दबाव बनता है। दूसरी ओर ये फंड निफ्टी में जुडऩे वाले नये शेयर को खरीदते हैं, जिससे उसके भाव बढ़ते हैं।
अगर आज कोई आपसे कहे कि एचडीएफसी बैंक, भारतीय स्टेट बैंक, ओएनजीसी, टाटा स्टील, एनटीपीसी और बीएचईएल जैसी बड़ी कंपनियाँ शायद 10 साल बाद निफ्टी में नहीं होंगी तो आपकी प्रतिक्रिया क्या होगी? शायद आप यकीन नहीं करेंगे। लेकिन ऐंबिट कैपिटल ने अपनी उस रिपोर्ट में ऐसे पूरे 20 नामों की एक सूची दी थी, जो शायद 10 साल बाद 2022 में निफ्टी का हिस्सा न रह सकें। ऊपर जिन नामों का जिक्र है, वे सब ऐसे 20 शेयरों की सूची में शामिल हैं। इनके अलावा ऐक्सिस बैंक, आईडीएफसी, टाटा पावर, गेल, जिंदल स्टील, हिंडाल्को, कैर्न इंडिया, पीएनबी, जेपी एसोसिएट्स, बीपीसीएल, डीएलएफ, सेसा गोवा, रिलायंस इन्फ्रा और सीमेंस को भी उन 20 शेयरों की सूची में ऐंबिट कैपिटल ने रखा है, जो 2022 तक निफ्टी से बाहर जा सकते हैं।
जाहिर है कि हटने वाले इन नामों के बदले नये 20 नाम उनकी जगह भी लेंगे। कौन-सी कंपनियाँ अगले 10 सालों के दौरान निफ्टी में अपनी जगह का दावा ठोक सकती हैं? इनमें से काफी नाम मँझोली कंपनियों के हैं। ऐंबिट की रिपोर्ट में बताये गये संभावित 20 दावेदारों के नाम हैं - नेस्ले इंडिया, टाइटन, इंडसइंड बैंक, कोलगेट पामोलिव, ग्लैक्सोस्मिथक्लाइन फार्मा, बॉश, फेडरल बैंक, डाबर इंडिया, ग्लैक्सोस्मिथ सीएचएल, कमिंस इंडिया, एक्साइड इंडस्ट्रीज, यूनाइटेड ब्रेवरीज, कैडिला हेल्थ, ओरेकल फाइनेंशियल, कैस्ट्रॉल इंडिया, एमएंडएम फाइनेंशियल, क्रिसिल, टोरंट पावर और बाटा इंडिया।
निफ्टी की तस्वीर काफी बदलती रही है। नवंबर 1995 में निफ्टी की शुरुआत के समय जो 50 शेयर इसमें शामिल थे, उनमें से 22 नाम अप्रैल 2002 तक इससे बाहर हो गये थे। अप्रैल 2002 में इसके जो 50 शेयर थे, उनमें से 24 नाम अगले एक दशक में इससे बाहर हो गये। इसलिए अगर ऐंबिट का अनुमान है कि अगले एक दशक में, यानी साल 2022 तक फिर से करीब 20 मौजूदा नाम इससे बाहर हो जायेंगे, तो इसमें आश्चर्य कैसा?
ऐंबिट ने अपनी रिपोर्ट में यह भी जिक्र किया है कि 2002-2012 के 10 सालों में जो 22 शेयर निफ्टी से बाहर गये, उनमें से 15 नामों ने पिछले दशक के दौरान ही निफ्टी में जगह पायी थी। मतलब यह है कि निफ्टी में आ जाने के बाद भी उसके अंदर बने रहने के लिए किसी कंपनी को लगातार संघर्ष करना पड़ता है। निफ्टी में बने रहने का मतलब है भारतीय अर्थव्यवस्था के 50 चुनिंदा सर्वश्रेष्ठ नामों की सूची में होना। इस शिखर पर टिके रहना आसान नहीं है।
सवाल है कि क्या निवेशक निफ्टी में अपनी जगह खो सकने वाले नामों को, और उसी तरह इसमें जगह बना पाने वालों को पहले से पहचान कर औसत से ज्यादा लाभ कमा सकते हैं? अगर आपका चुनाव सही रहा, तो जरूर ऐसा हो सकता है। लेकिन यह ऐसा ही है कि रणजी मैचों के प्रदर्शन को देख कर राष्ट्रीय क्रिकेट टीम से मैदान में उतरने वाले 11 संभावित खिलाडिय़ों का अनुमान लगाया जाये। अगर आप खेल और खिलाड़ी को इतनी बखूबी समझते हैं, तो जरूर सटीक अनुमान लगा सकते हैं। लेकिन यह ‘अगर’ काफी बड़ा है।
कई आरामतलब निवेशक इस पचड़े में पडऩे के बदले सीधे-सीधे निफ्टी के साथ चलते रहने की रणनीति अपनाते हैं। कोई शेयर निफ्टी में आया तो उनके पोर्टफोलिओ में भी आ जायेगा, और अगर कोई शेयर निफ्टी से बाहर तो उनके पोर्टफोलिओ से भी बाहर। इंडेक्स फंड यही करते हैं। भारतीय अर्थव्यवस्था जिस रफ्तार से बढ़ रही है, उसे देख कर यहाँ के शेयर बाजार में यह तरीका भी बुरा नहीं है, क्योंकि इंडेक्स से बेहतर प्रदर्शन कर पाने में तो बड़े-बड़े फंड मैनेजरों के छक्के छूटते रहते हैं।
(निवेश मंथन, अप्रैल 2013)