इस अंक में तकनीकी विश्लेषक सुनील मिंगलानी बता रहे हैं मूविंग एवरेज के बारे में, जो सूचकांक, शेयर या किसी भी अन्य चार्ट में दिशा को समझने में मददगार होते हैं।
जब बाजार ऊपर या नीचे की ओर किसी रुझान के साथ के चल रहा हो तो इनसे पता चलता है कि वह रुझान जारी है या दिशा पलट रही है।
मूविंग एवरेज व्यापक रूप से इस्तेमाल होने वाला एक बहुमुखी संकेतक है। यह भाव के अत्याधिक उतार-चढ़ाव को सीधा करके मौजूदा रुझान की सही दिशा बताता है। इसका इस्तेमाल अन्य कई संकेतक बनाने में भी किया जाता है।
मूविंग एवरेज के दो मुख्य प्रकार हैं - सिंपल मूविंग एवरेज (एसएमए) और एक्सपोनेंशियल मूविंग एवरेज (ईएमए)। सिंपल मूविंग एवरेज एक तय अवधि में भाव के औसत मूल्य से बनता है। गणना के लिए समापन मूल्य यानी बंद भाव का उपयोग किया जाता है।
उदाहरण के तौर पर, पाँच दिनों का सिंपल मूविंग एवरेज निकालने के लिए पिछले पाँच दिनों के बंद भाव को पाँच से विभाजित किया जाता है। इसके बाद हर एक दिन बीतने पर उस नये दिन के भाव को गणना में शामिल करके छह दिन पुराने मूल्य को हटा दिया जाता है। इस प्रक्रिया को बार-बार दोहराने से एक चलती हुई औसत (मूविंग एवरेज) रेखा बन जाती है।
मूविंग एवरेज ऐसा संकेतक है, जो हमेशा मूल्य के पीछे-पीछे चलता है। इस कारण सिंपल मूविंग एवरेज मूल्य में अचानक परिवर्तन का असर कुछ समय बाद ही दिखा पाता है। इस दोष को दूर करने के लिए एक्सपोनेंशियल मूविंग एवरेज (ईएमए) का उपयोग किया जाता है। ईएमए सबसे हाल के मूल्य परिवर्तन को अधिक मान्यता देकर मूल्य और औसत की दूरी को कम करता है। इस प्रकार यह औसत एसएमए से तेज चलता है। विश्लेषक अपनी सुविधानुसार सिंपल या एक्सपोनेंशियल औसत का प्रयोग करते हैं।
औसत की अवधि कितनी होनी चाहिए, इसका कोई एक उत्तर नहीं दिया जा सकता। कम अवधि के लिए कारोबार करने वाले निवेशक 5, 10 और 20 की अवधि के औसत का इस्तेमाल करते हैं। लंबी अवधि के लिए काम करने वाले निवेशकों के लिए 50, 100 और 200 अवधि के औसत उपयुक्त हैं। आम तौर पर 5 दिनों के कार्य-काल का एक सप्ताह बनता है, 10 दिनों का दो सप्ताह, 20 दिनों का एक महीना, 50 दिनों की एक तिमाही, 100 दिनों का आधा वर्ष और 200 दिनों का एक वर्ष बनता है. ऐसा भी देखा गया है कि किसी खास शेयर के लिए कोई खास औसत ज्यादा प्रभावी होता है। ऐसे औसत का पता बार-बार प्रयास करके ही लगाना पड़ता है।
मूविंग एवरेज किसी रुझान रेखा की तरह ही काम करती है। मूल्य को इन पर समर्थन और प्रतिरोध दोनों मिलता है। सौदे करने का एक तरीका यह हो सकता है कि जब मूल्य किसी खास मूविंग एवरेज की बाधा को पार कर ले तो उसे खरीद लें और जब उसके समर्थन को तोड़ दे तो उसे बेच दें।
दूसरा तरीका यह है कि जब छोटी अवधि की औसत रेखा बड़ी अवधि की रेखा को ऊपर की दिशा में काट दे तो खरीदारी करें और जब यह नीचे की दिशा में काटे तो बिकवाली करें।
जब भी किसी शेयर के मूल्य का रुझान ऊपर या नीचे, किसी भी एक तरफ बना हुआ है तो उपरोक्त पद्धति अत्यंत ही लाभदायक है। लेकिन निवेशक ध्यान रखें कि जब मूल्य दिशाहीन हो जाता है तो यह पद्धति कारगर नहीं हो पाती है।
(निवेश मंथन, मार्च 2013)