उद्योग जगत इस साल के बजट को एकदम मनमाफिक तो नहीं मान रहा, लेकिन वह बड़ी निराशा भी नहीं जता रहा।
उद्योग संगठन सीआईआई के महानिदेशक चंद्रजीत बनर्जी इसे राजनीतिक के बदले समावेशी बजट बता रहे हैं। उनका कहना है कि सरकारी घाटे के नये लक्ष्य संतोषजनक तो हैं, लेकिन उन्हें पा सकने पर सवालिया निशान बाकी हैं। बजट पर उनसे एक खास बातचीत।
वित्त मंत्री चिदंबरम की छवि कुछ अलग करने वाले व्यक्ति की है। इसलिए अगर कुछ लोग आशंकित थे, तो कुछ लोग फिर से ड्रीम बजट की उम्मीदें लगा रहे थे। क्या आपको दोनों में से कोई बात होती दिखी?
हमें देखना चाहिए कि यह बजट किन परिस्थितियों में बना है। यह बजट चुनाव के समय में आया है। यह ऐसे समय में आया है, जब अर्थव्यवस्था बुरे दौर से गुजर रही है। हम इस बजट में आर्थिक समझदारी देखना चाहते थे। हम वास्तविक परिस्थितियों के अनुसार एक संतुलित बजट देखना चाहते थे। विकास को बढ़ाने वाले बजट की जरूरत थी। वास्तव में इन सभी चीजों को केंद्र में रख कर ही यह बजट तैयार किया गया है। पहली बात, यह राजनीतिक बजट नहीं है। दूसरी बात, वित्त मंत्री ने समावेशी (इन्क्लूसिव) बजट बनाया है, जो बहुत अच्छा और महत्वपूर्ण है। निवेश को कैसे बढ़ाया जाये, इस पर ध्यान दिया गया है। साथ ही सामाजिक मुद्दों पर भी उनकी नजर है। खपत को बढ़ाने के लिए उन्होंने ग्रामीण अर्थव्यवस्था और कृषि को तवज्जो दिया है। मेरे हिसाब से यह बहुत ही अच्छा बजट है। व छोटे उद्योगों को भी केंद्र में रखकर बजट बनाया गया है।
अर्थशास्त्रियों और विदेशी निवेशकों, दोनों की ही नजरें सरकारी घाटे (फिस्कल डेफिसिट) पर थीं। क्या 2012-13 में 5.2% और 2013-14 में 4.8% घाटे का जो आँकड़ा है, क्या वह संतोषजनक है और क्या इन्हें हासिल किया जा सकेगा?
हाँ, यह सवाल हम भी उठा रहे हैं। ये संतोषजनक आँकड़े तो हैं। कुछ साल पहले एफआरबीएम का जो लक्ष्य था, उसके हिसाब से तो अभी 3.5% का घाटा होना चाहिए था। वह तो हो नहीं पाया है। लेकिन महत्वपूर्ण बात यह है कि वित्त मंत्री ने सरकारी घाटे को नियंत्रित करने के लिए स्पष्ट खाका तैयार किया है। कुछ बातों का ब्योरा जरूर बजट में देखना होगा। हमारे मन में भी यह सवाल है कि वे इन लक्ष्यों को कैसे पूरा करेंगे। एक फासला है, जिसे वे कैसे भरेंगे। लेकिन विनिवेश से इस घाटे को कम किया जा सकता है। दूसरी बात यह है कि विकास दर फिर से बढऩे पर कर-संग्रह में भी बढ़ोतरी होगी। उन्होंने विकास पर ध्यान दिया है और उसके आधार पर अगर कर-वसूली बढ़ेगी तो इस फासले को कम किया जा सकेगा। अगर वे विनिवेश पर ज्यादा ध्यान देते हैं तो यह काफी अहम होगा।
विकास को बढ़ाने के लिए इसमें सबसे महत्वपूर्ण बात क्या है?
यह किसी बड़े धमाके से नहीं होने वाला था। उन्होंने बजट में सीसीआई की बात की है, परियोजनाओं को लागू करने की बात की है, उन्होंने निवेश बढ़ाने के लिए सीसीआई की सिफारिशों पर ध्यान दिया है। साथ ही उन्होंने विकास के अपने प्रयासों को काफी सारे क्षेत्रों में फैला दिया है, जिसमें छोटे-मँझोले उद्यमों पर भी ध्यान दिया गया है। छोटे-मँझोले उद्यम विकास दर और रोजगार, दोनों को बढ़ाने में मददगार हो सकते हैं। यह इस बजट की सबसे महत्वपूर्ण बातों में से एक है।
हाल में ओएफएस इश्युओं की सफलता को देखने हुए क्या आपको लगता है कि वित्त मंत्री ने अगले वित्तीय वर्ष में विनिवेश के जो लक्ष्य रखे हैं, उन्हें आसानी से हासिल किया जा सकेगा?
हाँ, बिल्कुल। मुझे लगता है कि उन्होंने तार्किक और व्यावहारिक लक्ष्य रखे हैं और इन लक्ष्यों को पर्याप्त रूप से पा लेंगे।
जीएसटी और डीटीसी के मुद्दे पर क्या आप संतुष्ट हैं?
हम तो चाहते थे कि जीएसटी जल्द-से-जल्द लागू हो। हम इसी साल से जीएसटी को लागू होते देखना चाहते थे। उन्होंने इस पर अमल की समय-सीमा की बात पहले भी की थी, लेकिन ऐसा हुआ नहीं। इसी माहौल में अगर उन्होंने राज्यों को राहत राशि देने के लिए अलग फंड रखा है, तो यह बहुत महत्वपूर्ण है। दूसरे, इस मुद्दे पर वित्त मंत्री ने सभी राज्यों से बात की है। इस पर जल्दी ही मसौदा लाने की भी तैयारी है। इसलिए अब जीएसटी को लेकर उम्मीदें बढ़ी हैं। कुछ महीनों पहले तो लगता था कि जीएसटी लागू ही नहीं होगा, लेकिन अब लगता है कि जीएसटी एक हकीकत बन सकेगा। हम इसे जल्दी लागू होते देखना चाहते थे। वैसा नहीं हो पाया है, लेकिन इस बजट से यह स्पष्ट हो रहा है कि हम जीएसटी लागू होते देखें।
बेशक अभी यह नहीं कहा जा सकता कि जीएसटी 1 अप्रैल 2014 से ही लागू हो पायेगा या इसमें कुछ और देरी लगेगी। आज नहीं तो कल जीएसटी लागू होगा। हम एक कदम आगे बढ़े हैं, भले ही इसकी तारीख अभी पक्के तौर पर नहीं कही जा सकती। इस बजट से जीएसटी को लेकर एक सकारात्मक धारणा बनी है।
क्या आपको ऐसा लगा कि वित्त मंत्री डीटीसी की ओर भी आगे बढ़े हैं?
हाँ, इस बारे में वे एक ईमानदार प्रयास कर रहे हैं। इससे जुड़े मुद्दों से वित्त मंत्री ने निपटने की कोशिश की है। अब इस बात को लेकर ज्यादा स्पष्टता है कि हम आने वाले समय में डीटीसी की ओर बढ़ेंगे।
लेकिन उस हिसाब से वित्त मंत्री को कर छूट की सीमा या कर छूट के लिए उपलब्ध निवेश सीमा को बढ़ा कर डीटीसी के प्रस्तावों के करीब ले जाना चाहिए था। उन्होंने ऐसा नहीं किया।
मुझे लगता है कि वे इस बारे में प्रावधानों को मिलाने का काम एक साथ ही करेंगे। उन्होंने ऐसा कुछ नहीं किया जो डीटीसी से अलग रास्ते पर जा रहा हो। उन्होंने जीएसटी के संदर्भ में भी ऐसा कुछ नहीं किया। उन्होंने ऐसा कुछ नहीं किया, जिससे डीटीसी और जीएसटी की ओर आगे बढऩे के रास्ते में अड़चनें आयें।
आशंका थी कि उत्पाद (एक्साइज) शुल्क की सामान्य दर में बढ़ोतरी होगी, पर उद्योग जगत पर उन्होंने ऐसा बोझ नहीं डाला। क्या यह एक बड़ी राहत है?
हमने बजट से पहले जो बहुत-सी सिफारिशें की थीं, उनमें से एक सुझाव यह था कि नकारात्मक धारणा पैदा मत कीजिए। ऐसा करने से विकास दर नहीं बढ़ेगी, नया निवेश नहीं आयेगा। इस बजट में वित्त मंत्री ने यही किया है। उन्होंने एक सकारात्मक धारणा को बढ़ाने की कोशिश की है। पिछले बजट में हमने देखा था कि पिछली तारीख से कर संबंधी प्रावधान बदले गये थे, गार के मसले पर उलझन पैदा हुई थी। इस बार उन्होंने उत्पाद शुल्क और सीमा (कस्टम) शुल्क को स्थिर रखने का जो फैसला किया है, यह सब बातें भी हमारी सिफारिशों में शामिल थीं। इससे जो सकारात्मक धारणा बनेगी, उससे विकास में तेजी आयेगी। साथ ही हमें लगता है कि सरकार का कर-संग्रह भी ज्यादा ही होगा, क्योंकि विकास बढऩे के चलते ज्यादा कर हासिल होगा।
ऐसा आम तौर पर माना जा रहा था कि इन दरों को 2% तक बढ़ाया जायेगा, लेकिन ऐसा नहीं हुआ। तो क्या इसे ही आप उद्योग जगत के लिए एक प्रोत्साहन मानेंगे?
बिल्कुल। उन्होंने इन दरों को स्थिर रखा है तो इससे निेवेश ज्यादा होगा, विकास का माहौल बनेगा, सरकार का कर-संग्रह भी बढ़ेगा। वित्त मंत्री ने इन सब बातों की गणना करके ही बजट तैयार किया है।
यह सभी मुद्दों पर नजर रखते हुए बहुत ही सोच-समझ कर बनाया गया संतुलित बजट है। इस समय के हिसाब से यह काफी परिपक्व बजट है। हम वित्त मंत्री को ऐसा बजट पेश करने के लिए धन्यवाद देना चाहते हैं। उन्होंने यह बजट ऐसे समय में पेश किया है, जब सारी दुनिया हमें देख रही थी। केवल उद्योग जगत ही इस बजट को नहीं देख रहा था, बल्कि क्रेडिट रेटिंग एजेंसियाँ भी हमें देख रही थीं। इस लिहाज से यह काफी शानदार बजट है।
(निवेश मंथन, मार्च 2013)