सुशांत शेखर :
बजट की उलटी गिनती शुरू हो चुकी है। हर साल की तरह इस बार भी वित्त मंत्री से उद्योग जगत से लेकर आम आदमी तक ने कई तरह की उम्मीदें लगा रखी हैं।
उद्योग संगठनों ने अपनी मांगों की सूची वित्त मंत्री के सामने रख दी है। सबके मन में यही सवाल है कि 28 फरवरी को वित्त मंत्री पी. चिदंबरम के पिटारे से क्या निकलेगा?
अगले साल 2014 में लोकसभा चुनाव होने हैं। इस लिहाज से फरवरी 2013 का बजट संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (यूपीए-2) सरकार का अंतिम पूर्ण बजट है। वित्त मंत्री के लिए लोकसभा चुनावों से पहले बजट पेश करने का यह आखिरी मौका है। ऐसे में यह सवाल स्वाभाविक है कि क्या पी. चिदंबरम लोक-लुभावन बजट पेश करेंगे?
विदेशी निवेशकों को लुभाने के लिए लंदन गये वित्त मंत्री पी चिदंबरम से भी यही सवाल घुमा-फिरा कर पूछा गया था। उन्होंने इस सवाल का जो जवाब दिया और वित्त मंत्रालय से जो खबरें छन-छन कर आ रही हैं, उनसे आगामी बजट के बारे में मोटा-मोटा अनुमान लगाया जा सकता है।
‘जिम्मेदार’ बजट का संकेत
पी. चिदंबरम ने साफ किया है कि लोकसभा चुनाव अभी 15 महीने दूर हैं। सरकार बजट में ऐसा कोई भी कदम नहीं उठायेगी जो गैर-जिम्मेदाराना हो। मतलब साफ है कि सरकार ऐसे कदमों का ऐलान नहीं करेगी, जिनसे रिकॉर्ड स्तर पर पहुँच चुके चालू खाते के घाटे में और बढ़ोतरी हो।
वित्त मंत्री पी चिदंबरम के सामने विदेशी निवेशकों के सामने देश की छवि सुधारने की बड़ी चुनौती है। पिछले बजट में जनरल एंटी एवॉयडेंस रूल यानी गार और पिछली तारीख से करों को लागू करने जैसे फैसलों से विदेशी निवेशकों के मन में डर बैठा। ऐसे में वित्त मंत्री विदेशी निवेश पर नकारात्मक प्रभाव डाल सकने वाले फैसले लेने से बचेंगे। जाहिर है कि वे विदेशी निवेशकों की नजर में ‘जिम्मेदार’ बने रहना चाहेंगे।
करों के मोर्चे पर क्या?
इस बार के बजट में आय कर के मोर्चे पर आम आदमी को कोई बड़ी राहत मिलने की उम्मीद नहीं है। फिर भी चर्चा है कि वित्त मंत्री कर-मुक्त आय की सीमा मौजूदा दो लाख रुपये से बढ़़ा कर ढाई लाख रुपये कर सकते हैं।
वित्त मंत्रालय के सूत्रों के मुताबिक सरकार बजट में 80सी के तहत आय कर छूट के नियमों में थोड़े-बहुत बदलाव कर सकती है। अभी 80सी के तहत दिये गये विकल्पों में निवेश से एक लाख रुपये तक की आय कर छूट मिलती है। माना जा रहा है कि सरकार 80सी के तहत आय कर छूट की सीमा कुछ बढ़ा सकती है।
यही नहीं, 80सी के तहत कई तरह के और निवेश विकल्प जोड़े जा सकते हैं। मसलन पेंशन से जुड़ी म्यूचुअल फंड योजनाओं को 80सी में लाया जा सकता है। पिछले बजट में घोषित हुई राजीव गाँधी इक्विटी सेविंग स्कीम को भी 80सी में शामिल किया जा सकता है। इस स्कीम के तहत शेयर बाजार में साल में 50,000 रुपये तक के निवेश पर आय कर में 50% छूट मिलती है।
राजीव गाँधी इक्विटी सेविंग स्कीम अभी शेयर बाजार में पहली बार निवेश करने वालों के लिए ही सीमित है। बजट में इसे सभी तरह के निवेशकों के लिए खोलने का फैसला किया जा सकता है। दरअसल सरकार सोने में निवेशकों की दिलचस्पी घटाने के लिए शेयर बाजार को और आकर्षक बनाना चाहती है। उद्योग जगत भी शेयर बाजार को आकर्षक बनाने की माँग लंबे समय से कर रहा है। पिछले बजट में राजीव गाँधी इक्विटी सेविंग स्कीम के जरिये इसकी कोशिश हुई थी। लेकिन इसे शेयर बाजार में पहली बार निवेश करने वालों तक सीमित रखने से आम निवेशकों को इसका फायदा नहीं मिल पाया है। ऐसे में अगर बजट में यह योजना सभी निवेशकों के लिए खोली गयी तो शेयर बाजार में निवेश को लेकर लोगों की दिलचस्पी बढ़ेगी।
सरकार बजट में कॉर्पोरेट और इन्फ्रास्ट्रक्चर बॉन्डों में निवेश पर लगने वाला लॉन्ग टर्म कैपिटल गेन टैक्स खत्म कर सकती है। उद्योग जगत कॉर्पोरेट और इन्फ्रास्ट्रक्चर बॉन्डों को आकर्षक बनाने के लिए लॉन्ग टर्म कैपिटल गेन टैक्स खत्म करने की माँग कर रहा है। लेकिन अगर कॉर्पोरेट और इन्फ्रास्ट्रक्चर बॉन्डों में निवेश पर लॉन्ग टर्म कैपिटल गेन टैक्स खत्म होता है तो सरकार टैक्स फ्री बॉन्ड भी खत्म कर सकती है। वैसे भी सरकार ने पिछले बजट में ही इन्फ्रास्ट्रक्चर बॉन्ड में निवेश पर 20,000 रुपये की अतिरिक्त छूट खत्म कर दी थी।
इस बार के बजट में अमीरों पर टैक्स बढ़ सकता है। खुद वित्त मंत्री पी चिदंबरम ने संकेत दिये हैं कि सरकार ‘बेहद’ अमीरों पर थोड़ा ज्यादा टैक्स लगाने पर विचार कर रही है। अमेरिका में अमीरों पर टैक्स बढऩे के बाद भारत में भी इसी तरह का कदम उठाने की माँग बढ़ रही है। विप्रो के चेयरमैन अजीम प्रेमजी जैसे उद्योगपतियों ने भी अमीरों पर टैक्स बढ़ाने की वकालत की है।
हालाँकि वित्त मंत्री ने यह भी साफ किया है कि वे टैक्स दरों को स्थिर बनाये रखने में भरोसा करते हैं। फिलहाल देश में व्यक्तिगत आयकर की अधिकतम दर 30% है। माना जा रहा है कि सरकार बजट में बेहद अमीरों के लिए आय कर की दर तो नहीं बढ़ायेगी, लेकिन सरचार्ज यानी उपकर के माध्यम से उनसे थोड़ा ज्यादा कर वसूल सकती है। अटकलें हैं कि इस बजट में सालाना एक करोड़ रुपये से ज्यादा कमाई वाले लोगों पर सरचार्ज लागू हो सकता है। हालाँकि एक चर्चा यह भी है कि इस सरचार्ज को 5 करोड़ रुपये से ज्यादा आमदनी वाले लोगों पर लगाया जायेगा।
वित्त मंत्रालय में इन दिनों एक खास कर की वापसी की खूब चर्चा चल रही है। यह है विरासत कर। चर्चा है कि सरकार विरासत में मिली संपत्ति पर फिर से कर लगा सकती है। अगर ऐसा होता है तो इसका व्यापक असर होगा। दिवंगत पूर्व प्रधानमंत्री वी. पी. सिंह ने वित्त मंत्री रहते हुए 1985 में एस्टेट ड्यूटी के नाम से प्रचलित विरासत कर को खत्म कर दिया था। तब 20 लाख रुपये से ज्यादा की विरासत में मिली संपत्ति पर 85% तक की ड्यूटी लगा करती थी। हालाँकि माना जा रहा है कि सरकार अगर अपनी कमाई बढ़ाने के लिए विरासत कर लगाती है तो यह 30% से ज्यादा नहीं होगी।
बढ़ेगा सर्विस टैक्स?
सरकार ने पिछले बजट में सेवा कर (सर्विस टैक्स) की दर 10% से बढ़ाकर 12% कर दी थी। इस बार भी सेवा कर बढ़ सकता है। माना जा रहा है इस बार सेवा कर बढ़ा कर 14% तक किया जा सकता है। दरअसल सरकार को प्रस्तावित गुड्स एंड सर्विसेस टैक्स यानी जीएसटी को देखते हुए वस्तुओं और सेवाओं पर लगने वाले कर को एक स्तर पर लाना है। माना जा रहा है कि जीएसटी 16% से 18% तक हो सकता है। ऐसे में सरकार एक झटके में सेवा कर की दर बढ़ाने के बदले इसे धीरे-धीरे बढ़ाना चाहती है।
बजट से ठीक पहले जीएसटी के मोर्चे पर राज्य और केंद्र सरकार के बीच बनती सहमति को देखते हुए यह अगले साल से लागू होने की उम्मीद बढ़ गयी है। केंद्रीय बिक्री कर खत्म होने से राज्यों को होने वाले घाटे की भरपाई के मसले पर राज्यों और केंद्र सरकार के बीच सहमति बन गयी है। साथ ही जीएसटी के ढाँचे पर भी तीन उपसमितियाँ बना दी गयी हैं। ऐसे में इस बजट में सेवा कर की दर बढऩी तय लग रही है। इससे आपके फोन बिल से लेकर सिनेमा देखने और रेस्टोरेंट में खाना खाने तक सब कुछ महँगा हो जायेगा।
डीजल कारों पर बढ़ेगा शुल्क?
वित्त मंत्रालय के सूत्रों के मुताबिक इस बजट में 2000 सीसी से ज्यादा इंजन क्षमता वाली डीजल गाडिय़ों पर उत्पाद (एक्साइज) शुल्क बढ़ सकता है। सरकार इन गाडिय़ों पर 27% उत्पाद शुल्क के अलावा 15,000 से 20,000 रुपये का अतिरिक्त शुल्क लगा सकती है। हालाँकि सरकार ने आंशिक तौर पर डीजल की कीमतों को बाजार के हवाले कर दिया है। लेकिन सरकार डीजल की खपत घटाने के लिए बड़ी डीजल गाडिय़ों पर शुल्क बढ़ा सकती है।
कमोडिटी कारोबार पर टैक्स?
इस बजट में वित्त मंत्री सिक्योरिटीज ट्रांजैक्शन टैक्स (एसटीटी) की तर्ज पर कमोटिडी कारोबार पर भी कमोडिटी ट्रांजैक्शन टैक्स (सीटीटी) लगा सकते हैं। इससे कमोडिटी कारोबार में लेन-देन महँगा हो जायेगा।
साथ ही सरकार शेयर बाजार में एसटीटी की दर भी बढ़ा सकती है। फिलहाल शेयरों के लेन-देन पर 0.125% से लेकर 0.017% की दर से एसटीटी है। साथ ही सरकार गार पर बनी शोम समिति की सिफारिशों को मानते हुए शॉर्ट टर्म कैपिटल गेन टैक्स खत्म कर सकती है। फिलहाल 15% की दर से शॉर्ट टर्म कैपिटल गेन टैक्स लगाया जाता है। शोम समिति का मानना है कि अगर शॉर्ट टर्म कैपिटल गेन टैक्स खत्म कर दिया जाये तो मॉरीशस जैसे देशों के रास्ते से महज कर बचाने के लिए भारत में निवेश करने की प्रवृति पर अंकुश लगेगा।
(निवेश मंथन, फरवरी 2013)