नैना लाल किदवई, अध्यक्षा, फिक्की, कंट्री हेड, एचएसबीसी इंडिया
सीएसओ ने 2012-13 में केवल 5% विकास दर रहने का जो अग्रिम अनुमान जताया है, यह लगभग एक दशक में सबसे कम विकास दर है।
आरबीआई की तीसरी तिमाही की मौद्रिक नीति की समीक्षा में साल 2012-13 के लिए अनुमानित 5.5% विकास दर की तुलना में भी यह काफी कम है। विकास दर घटने की आशंका तो पहले से थी, लेकिन आश्चर्यजनक तौर पर यह आँकड़ा काफी नीचे है। कई जोखिम अर्थव्यवस्था पर हावी हो चुके हैं। यह जरूरी है कि हम विकास दर में आ रहे इस धीमेपन से पार पाने के लिए मजबूत कदम उठायें।
कृषि की वृद्धि दर महज 1.8% और उत्पादन (मैन्युफैक्चरिंग) क्षेत्र की वृद्धि दर केवल 1.9% रहने का अनुमान है। इससे भी कहीं अधिक चिंता की बात यह है कि सेवा क्षेत्र (सर्विस सेक्टर) की विकास दर में काफी गिरावट आयी है। सेवा क्षेत्र अभी तक भारतीय अर्थव्यवस्था की विकास दर का वाहक रहा है। निवेश का माहौल बहाल करना अब बेहद जरूरी हो गया है।
हाल में उद्योग जगत के फिक्की के सर्वेक्षण के जो नतीजे आये थे, उनके आधार पर यह कहा जा सकता है कि पिछले कुछ महीनों में सुधार के मोर्चे पर सरकारी कदमों से उत्साह कुछ बढ़ा है। सुधारों की इस गति को जारी रखने की जरूरत है। आने वाला बजट सरकार के लिए एक ऐसा मौका है, जिसमें उसे विकास को प्रोत्साहन देने और निवेश में तेजी लाने वाले कदम उठाने चाहिए। राष्ट्रीय उत्पादन नीति (नेशनल मैन्युफैक्चरिंग पॉलिसी) पर तेजी के साथ अमल, निवेश मामलों की कैबिनेट समिति (सीसीआई) के अंतर्गत तेजी के साथ निर्णय, वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) प्रणाली की शुरुआत, संसद के आगामी सत्र में बीमा और पेंशन विधेयक को पारित किया जाना और कोयला खनन (माइनिंग) क्षेत्र में ज्यादा प्रतिस्पद्र्धा लाना कुछ ऐसे मसले हैं, जिन पर अब खास ध्यान देना होगा।
अभी विश्व अर्थव्यवस्था की स्थिति अनिश्चित है और हमारे निर्यात पर दबाव साफ तौर पर महसूस किया जा रहा है। इसलिए हमें घरेलू माँग बढ़ाने के हरसंभव उपाय करने चाहिए, ताकि आर्थिक मोर्चे पर हमारा प्रदर्शन और खराब न हो। यह इसलिए अहम है कि संपूर्ण विकास का सीधा असर रोजगार सृजन पर पड़ता है और यदि विकास दर घटने के इस रुझान को जल्द-से-जल्द नहीं रोका गया, तो रोजगार के मोर्चे पर हालात खराब हो सकते हैं। सरकार के अन्य सुधारों के साथ-साथ अब यह भी जरूरी है कि आरबीआई का अधिक-से-अधिक ध्यान विकास दर बढ़ाने की ओर हो।
अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) ने भी साल 2012-13 में भारत के विकास दर के लक्ष्य को घटा दिया है। इसके अनुमान में कमी भी काफी अधिक है। इससे समस्या की गंभीरता का पता चलता है। अब एक लक्ष्य बना कर नीतिगत कदम उठाने की जरूरत है। दुनिया की सबसे तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्थाओं की सूची में हम पिछड़ते जा रहे हैं। अगर ऐसी आशंकाओं को समाप्त करने के लिए सरकार ने तुरंत प्रयास नहीं किया तो यह बात वैश्विक निवेशकों के दिमाग पर हावी हो सकती है।
(निवेश मंथन, फरवरी 2013)