Nivesh Manthan
Menu
  • Home
  • About Us
  • ई-पत्रिका
  • Blog
  • Home/
  • 2013/
  • जुलाई 2013/
  • सठिया गया रुपैय्या
Follow @niveshmanthan

एक साधे सब सधे, सब साधे सब जाये

Details
Category: फरवरी 2013

राजेश रपरिया, सलाहकार संपादक :

बजट बनाना किसी भी वित्त मंत्री के लिए हमेशा एक दुष्कर कार्य होता है। भारत जैसे देश में यह कार्य और ज्यादा दुरूह है।

गठबंधन की राजनीति ने बजट निर्माण की मुश्किलों को चरम पर पहुँचा दिया है। पर मौजूदा वित्त मंत्री पी चिदंबरम की दिक्कतों का कोई अंत नहीं है। शायद वे भारत के अकेले वित्त मंत्री होंगे, जिन्हें एक साथ दो बजट से जूझना पड़ रहा है।
सच तो यह है कि वित्त मंत्री को 28 फरवरी 2013 को पेश होने वाले बजट से ज्यादा चालू वित्त वर्ष के लक्ष्यों की चिंता है। वैश्विक आर्थिक कारकों को लेकर उनका संशय में रहना लाजमी है। घरेलू आर्थिक कारकों की अंधेरी सुरंग से बाहर आने के लिए अभी वे जूझ रहे हैं। उनकी बिडंबना ये है कि राजनीति अनिश्चितता और समीकरणों से उनके हाथ बंधे हुए हैं। महँगाई, व्यापार घाटे, ऊँची ब्याज दरों, विकास दर आदि के मोर्चे पर तमाम प्रयासों के बावजूद वित्त मंत्रालय को तनिक भी सफलता नहीं मिल पायी है।
उन्होंने सितंबर 2012 में पुन: यूपीए सरकार के वित्त मंत्री का कार्यभार संभाला। तब से उनकी सारी ऊर्जा और शक्ति मूलत: चालू साल के घाटे को नियंत्रित करने में लगी हुई है। तृणमूल कांग्रेस से दामन छुड़ाने के बाद से सरकारी घाटे को नियंत्रित करने के लिए यूपीए सरकार ने अनेक कदम उठाये हैं। इनमें डीजल और घरेलू गैस की कीमत की वृद्धि जैसे अलोकप्रिय और महँगाई बढ़ाने वाले उपाय शामिल हैं। बजट 2012-13 के अनुमानों में सरकारी घाटे का लक्ष्य सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) के 5.1% पर रखा गया था।
इस लक्ष्य को ध्वस्त करने के बीज बजट दस्तावेज में ही मौजूद थे। मसलन वित्त वर्ष 2012-13 के लिए तेल सब्सिडी के मद में 43,580 करोड़ रुपये का प्रावधान किया गया था, जो बीते वित्त वर्ष (2011-12) के तेल सब्सिडी खर्च से 24,901 करोड़ रुपये कम था। यूपीए सरकार की मंशा साफ थी कि तेल उत्पादों की कीमतों में बेहताशा वृद्धि कर वह तेल सब्सिडी के लक्ष्य को हासिल कर लेगी। पर यह बेहद राजनीतिक अपरिपक्वता का निर्णय साबित हुआ। उत्तर प्रदेश में विधानसभा चुनाव के चलते इस कीमत वृद्धि के निर्णय में यूपीए ने खुद विलंब किया। वैसे भी तृणमूल कांग्रेस के रहते यूपीए सरकार के लिए ऐसा निर्णय करना असंभव था।
तेल सब्सिडी के इस प्रावधान की रही-सही कसर डॉलर की कीमत की भारी वृद्धि ने पूरी कर दी। ऐसा आकलन है कि डीजल और घरेलू गैस के दामों में हुई वृद्धि से सरकारी घाटे को काबू करने में मामूली लाभ ही मिलेगा। अब वित्त मंत्री ने सरकारी घाटे का नया लक्ष्य सकल घरेलू उत्पाद के 5.3% का रखा है। वित्त मंत्री की पूरी कोशिश है कि अब यह घाटा निर्धारित लक्ष्मण रेखा को नहीं लांघ पाये, वरना अर्थव्यवस्था के 'सीताहरण' का आसन्न खतरा गहरा जायेगा।
अंतरराष्ट्रीय क्रेडिट रेटिंग एजेंसियाँ लगातार देश को आगाह कर रही हैं कि यदि भारत ने सरकारी घाटे को काबू में नहीं किया तो उसकी क्रेडिट रेटिंग को घटाया जा सकता है। यूपीए सरकार यह खतरा कदापि नहीं ले सकती है, क्योंकि यूपीए सरकार की विकास गाथा डॉलर की आमद पर टिकी हुई है। वित्त मंत्री की दिक्कत यह है कि राजस्व भी बजट अनुमानों से कम-से-कम 50,000-60,000 करोड़ रुपये कम रहने वाला है। अब उनके सामने एक ही मुफीद विकल्प है कि वे मंत्रालयों के आवंटित धन में कटौती करें। अब यह साफ हो चुका है कि मंत्रालयों के खर्च में से 80,000-1,00,000 करोड़ रुपये की कटौती कर सरकारी घाटे के नये लक्ष्य को हासिल किया जाये। वित्त मंत्री यह अच्छी तरह समझ चुके हैं कि उनके आगामी बजट 2013-14 का मार्ग चालू वित्त वर्ष के प्रदर्शन से ही प्रशस्त होगा।
अब सबकी निगाहें 28 फरवरी पर टिकी हुई हैं कि सरकारी घाटे के घोषित लक्ष्य 4.8% को हासिल करने के लिए वे बजट में क्या उपाय करते हैं - सरकार के व्यय को नियंत्रित करने का रास्ता अख्तियार करते हैं या राजस्व का दुर्गम पथ?
पिछले तीन सालों से बेलगाम सरकारी घाटे ने महँगाई को बेकाबू कर दिया है। इससे महँगाई पर काबू पाने के आरबीआई के सारे प्रयास निष्फल हो गये और विकास दर की नियति तिमाही-दर-तिमाही गिरने की हो गयी है। यदि वित्त मंत्री सरकारी घाटे को साध लें तो महँगाई, व्यापार घाटे और विकास दर को अपेक्षित स्तर पर लाने के दरवाजे खुद-ब-खुद खुल जायेंगे। ठ्ठ
(निवेश मंथन, फरवरी 2013)

  • सातवाँ वेतन आयोग कहीं खुशी, कहीं रोष
  • एचडीएफसी लाइफ बनेगी सबसे बड़ी निजी बीमा कंपनी
  • सेंसेक्स साल भर में होगा 33,000 पर
  • सर्वेक्षण की कार्यविधि
  • भारतीय अर्थव्यवस्था ही पहला पैमाना
  • उभरते बाजारों में भारत पहली पसंद
  • विश्व नयी आर्थिक व्यवस्था की ओर
  • मौजूदा स्तरों से ज्यादा गिरावट नहीं
  • जीएसटी पारित कराना सरकार के लिए चुनौती
  • निफ्टी 6000 तक जाने की आशंका
  • बाजार मजबूत, सेंसेक्स 33,000 की ओर
  • ब्याज दरें घटने पर तेज होगा विकास
  • आंतरिक कारक ही ला सकेंगे तेजी
  • गिरावट में करें 2-3 साल के लिए निवेश
  • ब्रेक्सिट से एफपीआई निवेश पर असर संभव
  • अस्थिरताओं के बीच सकारात्मक रुझान
  • भारतीय बाजार काफी मजबूत स्थिति में
  • बीत गया भारतीय बाजार का सबसे बुरा दौर
  • निकट भविष्य में रहेगी अस्थिरता
  • साल भर में सेंसेक्स 30,000 पर
  • निफ्टी का 12 महीने में शिखर 9,400 पर
  • ब्रेक्सिट का असर दो सालों तक पड़ेगा
  • 2016-17 में सुधार आने के स्पष्ट संकेत
  • चुनिंदा क्षेत्रों में तेजी आने की उम्मीद
  • सुधारों पर अमल से आयेगी तेजी
  • तेजी के अगले दौर की तैयारी में बाजार
  • ब्रेक्सिट से भारत बनेगा ज्यादा आकर्षक
  • सावधानी से चुनें क्षेत्र और शेयर
  • छोटी अवधि में बाजार धारणा नकारात्मक
  • निफ्टी 8400 के ऊपर जाने पर तेजी
  • ब्रेक्सिट का तत्काल कोई प्रभाव नहीं
  • निफ्टी अभी 8500-7800 के दायरे में
  • पूँजी मुड़ेगी सोना या यूएस ट्रेजरी की ओर
  • निफ्टी छू सकता है ऐतिहासिक शिखर
  • विकास दर की अच्छी संभावनाओं का लाभ
  • बेहद लंबी अवधि की तेजी का चक्र
  • मुद्रा बाजार की हलचल से चिंता
  • ब्रेक्सिट से भारत को होगा फायदा
  • निफ्टी साल भर में 9,200 के ऊपर
  • घरेलू बाजार आधारित दिग्गजों में करें निवेश
  • गिरावट पर खरीदारी की रणनीति
  • साल भर में 15% बढ़त की उम्मीद
  • भारतीय बाजार का मूल्यांकन ऊँचा
  • सेंसेक्स साल भर में 32,000 की ओर
  • भारतीय बाजार बड़ी तेजी की ओर
  • बाजार सकारात्मक, जारी रहेगा विदेशी निवेश
  • ब्रेक्सिट का परोक्ष असर होगा भारत पर
  • 3-4 साल के नजरिये से जमा करें शेयरों को
  • रुपये में कमजोरी का अल्पकालिक असर
  • साल भर में नया शिखर
7 Empire

अर्थव्यवस्था

  • भारत की विकास दर (जीडीपी वृद्धि दर) : भविष्य के अनुमान
  • भारत की विकास दर (जीडीपी वृद्धि दर) बीती तिमाहियों में
  • भारत की विकास दर (जीडीपी वृद्धि दर) बीते वर्षों में

बाजार के जानकारों से पूछें अपने सवाल

सोशल मीडिया पर

Additionaly, you are welcome to connect with us on the following Social Media sites.

  • Like us on Facebook
  • Follow us on Twitter
  • YouTube Channel
  • Connect on Linkedin

Download Magzine

    Overview
  • 2023
  • 2016
    • July 2016
    • February 2016
  • 2014
    • January

बातचीत

© 2025 Nivesh Manthan

  • About Us
  • Blog
  • Contact Us
Go Top