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लोगों की क्षमता से बाहर हैं कीमतें घटाने होंगे दाम

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Category: जनवरी 2013

अनुज पुरी, चेयरमैन और कंट्री हेड, जेएलएल इंडिया :

भारत की जीडीपी विकास दर में साल 2012 की पिछली तीन तिमाहियों में लगातार गिरावट आयी है।

साल 2013 में भी यह रुझान जारी रहेगा, हालाँकि विकास दर में कमी पहले जैसी तीखी नहीं रहेगी। इस साल देश के आर्थिक माहौल में निश्चित रूप से सुधार आयेगा, जिसका सीधा असर (भले ही कुछ देर से) रियल एस्टेट क्षेत्र की स्थिति सँभलने के रूप में दिखेगा। आर्थिक दशा सुधरने से रियल एस्टेट क्षेत्र को मिलने वाला लाभ साल 2013 की दूसरी छमाही में ज्यादा स्पष्ट रूप से देखने को मिलेगा।
साल 2012 की तीसरी तिमाही में महँगाई दर (थोक मूल्य सूचकांक पर आधारित) कुछ नरम हो कर 7.4% पर आ गयी। अगर 10.2% औसत सीपीआई यानी उपभोक्ता मूल्य सूचकांक पर आधारित महँगाई से तुलना करें तो यह काफी कम है।
थोक मूल्य सूचकांक में हल्के सुधार की वजह से भारतीय रिजर्व बैंक ने नकद आरक्षित अनुपात (सीआरआर) में कटौती की है, ताकि बैंकों को कर्ज देने में आसानी हो। उम्मीद है कि साल 2013 की पहली छमाही में बैंकिंग व्यवस्था में नकदी और बढ़ाने के लिए ढील दी जायेगी, जिससे विकास दर बढ़ाने में मदद मिले। साल 2012 की तीसरी तिमाही में बेस दरें अपने चरम पर रहीं, लेकिन संभावना है कि आरबीआई की ओर से मौद्रिक नीति में ढील दिये जाने से चौथी तिमाही में इसमें कमी आने की शुरुआत होगी।
2013 में रिहायशी रियल एस्टेट
मुंबई जैसे शहरों में आवासीय संपत्ति की कीमतें लोगों के चुकाने की क्षमता से ज्यादा बढ़ गयी हैं। हालाँकि निर्माता कंपनियों को 2013 में बिक्री बढ़ाने के लिए कीमतों में गिरावट के मुद्दे पर जमीनी वास्तविकताओं को ध्यान में रखना होगा। किसी परियोजना में निर्माण शुरू करने के लिए जरूरी 57 अनुमतियाँ प्राप्त करने के लिए दो वर्ष तक का समय भी लग सकता है। इस दौरान अधिग्रहण की लागत या परियोजना की जमीन हाथ में रखे रहने की लागत ही काफी हो जाती है। भवन-निर्माता पहले से ही लाइसेंस और निर्माण की बढ़ी हुई लागत से व्याकुल हैं।
साल 2012 में यह स्पष्ट हो गया कि मुंबई और दिल्ली-एनसीआर में मौजूदा कीमतों पर घर नहीं बिक पा रहे हैं, लिहाजा भवन-निर्माताओं को व्यावहारिक तरीके से कारोबार चलाते हुए भी अपने मुनाफे की समीक्षा करने की जरूरत है। अब तक वे बिक्री बढ़ाने के लिए मुफ्त उपहार और ऐसे अन्य प्रोत्साहन देते रहे हैं, लेकिन यह बात तो पूरी तरह संदेहजनक लगती है कि मौजूदा माहौल में भवन-निर्माताओं के ऐसे तरीके आवासीय संपत्तियों की बिक्री बढ़ाने में सफल होंगे।
इस समय बिक्री को अच्छी तरह बढ़ाने का एकमात्र उपाय यह है कि खरीदारों को वास्तविक अर्थों में वित्तीय राहत दी जाये। इसलिए हम इस बात की संभावना देख रहे हैं कि इस साल परियोजनाओं में मिलने वाली अतिरिक्त सुविधाओं की जबरदस्त काट-छाँट हो, जिससे कीमत घटे और उन्हें बेचने में आसानी हो। साथ ही भुगतान की नयी तरह की योजनाएँ भी लायी जा सकती हैं।
कोई परियोजना शुरू करते समय भवन-निर्माता शुरुआती महीनों में बिक्री को बढ़ाने के मकसद से खरीदारों को लुभाने के लिए आकर्षक प्री-लांच लाभ भी मुहैया करायेंगे। जिन भवन-निर्माताओं की परियोजनाएँ छोटी हैं और अनबिके घरों की संख्या सीमित है, उनके मुकाबले बड़ी परियोजनाओं वाले ऐसे भवन निर्माता कीमत में छूट देने के दबाव में होंगे, जिनके पास अनबिके घरों की संख्या काफी हो।
साल 2013 में भारत के अधिकतर शहरों में 2012 से ज्यादा आवासीय योजनाएँ शुरू होंगी। लेकिन दक्षिण भारत में बेंगलूरु और चेन्नई में इसमें कमी आने की संभावना दिखती है। गौरतलब है कि 2012 के दौरान इन दोनों शहरों में नयी परियोजनाएँ शुरू होने की संख्या में ऐतिहासिक वृद्धि दर्ज हुई है।
इसी तरह पिछले तीन वर्षों में (2010 से 2012 के दौरान) पुणे में प्रति तिमाही औसतन नयी 6000 इकाइयाँ दर्ज की गयीं। यह संख्या 2007-2009 की अवधि में तिमाही औसत के दोगुने से ज्यादा है। इतने कम समय में यह बाजार इतनी तेजी से बढ़ा है, लिहाजा निकट भविष्य में पुणे में नयी आवासीय योजनाओं के शुरू होने की गति धीमी रहेगी।
2013 में व्यावसायिक रियल एस्टेट
साल 2012 में कुल व्यावसायिक रियल एस्टेट खपत में मुंबई, दिल्ली-एनसीआर, बेंगलूरु और चेन्नई का योगदान 72.5% रहा। यह बात अपने-आप में महत्वपूर्ण है और इससे आगे के रुझान का इशारा मिलता है। यही गिने-चुने शहर 2013 में भी कुल व्यावसायिक संपत्ति की खपत में सबसे बड़ा योगदान करेंगे, जो निश्चित रूप से 74-76% के दायरे में होगा।
रियल एस्टेट के बड़े निवेशक 2013 में व्यावसायिक रियल एस्टेट में निवेश की संभावनाओं के संदर्भ में खास तौर पर मुंबई, बेंगलूरु और दिल्ली-एनसीआर में ही सबसे ज्यादा दिलचस्पी रखेंगे। साथ ही हम उम्मीद रखते हैं कि चेन्नई, हैदराबाद और पुणे में भी निवेशकों की ओर से माँग बनी रहेगी। मुंबई में व्यावसायिक कॉर्पोरेट संपत्तियों के सौदों में सबसे ज्यादा योगदान खुद अपनी जरूरत वाली कंपनियों का होगा। वहीं बड़े व्यक्तिगत निवेशकों और संस्थागत निवेशकों के बीच दिल्ली-एनसीआर क्षेत्र अधिक लोकप्रिय होगा।
मेरा अनुमान है कि 2013 में सामान्य से अधिक एनआरआई निवेशक व्यावसायिक संपत्तियों में पैसा लगायेंगे। ऐसा इसलिए होगा कि अभी एनआरआई मौजूदा विनिमय दर के लाभ से, यानी एक डॉलर की रुपये में ज्यादा कीमत मिलने से उत्साहित हैं। साथ ही, व्यावसायिक रियल एस्टेट की कीमतें अब भी 2007-2008 के शीर्ष स्तरों से 15-25% नीचे हैं।
2013 में खुदरा रियल एस्टेट
साल 2013 में पूरी होने वाली नयी संगठित खुदरा परियोजनाओं की संख्या पिछले साल से 109% बढऩे वाली है। इस बढ़ोतरी में मुख्य योगदान चेन्नई, हैदराबाद, कोलकाता और पुणे का होगा। साल 2013 में देश में कुल मॉल परिसंपत्तियों की आपूर्ति में इनकी हिस्सेदारी 53% होगी। इस साल यह तेज बढ़ोतरी होने का बड़ा कारण यह है कि जिन मॉल परिसंपत्तियों का निर्माण 2012 में पूरा होने वाला था, उनका समय खिसक कर 2013 हो गया।
कुल मिलाकर 2013 में मुंबई, दिल्ली-एनसीआर, बेंगलूरु, चेन्नई, पुणे, हैदराबाद और कोलकाता जैसे भारत के प्रमुख शहरों में संगठित खुदरा क्षेत्र के लिए लगभग 95 लाख वर्ग फुट रियल एस्टेट का विकास होगा। खुदरा क्षेत्र में रियल एस्टेट की कुल खपत में मुंबई, दिल्ली-एनसीआर, बेंगलूरु और चेन्नई का लगभग 70% योगदान होगा, जबकि पुणे, हैदराबाद और कोलकाता जैसे अन्य शहर 30% खपत करेंगे।
सरकारी नीतियों का असर
मल्टीब्रांड रिटेल में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआई) को सरकारी मंजूरी मिल चुकी है। साल 2013 में इस क्षेत्र की गतिविधियों को आगे बढ़ाने में इससे सबसे ज्यादा मदद मिलेगी। इस नीति से प्रमुख बहुराष्ट्रीय खुदरा कंपनियों के लिए भारत में रास्ता खुला है। मध्यम अवधि में इससे व्यावसायिक रियल एस्टेट में संगठित खुदरा क्षेत्र के योगदान में बड़ा बदलाव देखने को मिलेगा। इस नीति से अगले 12 से 24 महीनों में खुदरा क्षेत्र की ओर से रियल एस्टेट की खपत पर काफी सकारात्मक प्रभाव होगा। खुदरा क्षेत्र की ओर से यह खपत 2013 में 68 लाख वर्ग फुट और 2014 में 71 लाख वर्ग फुट का स्तर छू लेगी।
फिर भी, खुदरा क्षेत्र में एफडीआई पर इस बहुप्रतिक्षित निर्णय का फायदा 2013 में पूरी तरह से नहीं दिखेगा। दरअसल मॉल निर्माताओं को अपना डिजाइन वैश्विक मानकों के मुताबिक ढालने में कम-से-कम दो वर्षों का समय लगेगा।
मॉल निर्माता 2013 में अपनी परियोजनाओं के लिए माँग में भारी वृद्धि की उम्मीद कर रहे हैं। लेकिन जिनके शॉपिंग सेंटर अपने स्थान, कुल आकार, डिजाइन, पेशेवर संचालन वगैरह के संदर्भ में अंतरराष्ट्रीय ब्रांडों की जरूरतों को पूरा नहीं करते, उन्हें कोई लाभ नहीं मिलेगा।
मल्टीब्रांड खुदरा कारोबार में एफडीआई की नीति से खुदरा कारोबार के बैकएंड बुनियादी ढाँचे, जैसे लॉजिस्टिक्स और भंडारण गृह (वेयरहाउस) को काफी बढ़ावा मिलेगा। खुदरा एफडीआई नीति के तहत खुदरा क्षेत्र में कुल एफडीआई निवेश का 50% हिस्सा बैकएंड बुनियादी ढाँचे पर खर्च किये जाने की शर्त रखी गयी है।
इस बीच डीटीसी लागू होने में देरी से आईटी एसईजेड में दफ्तरों के स्थान की माँग साल 2013 से खिसक कर 2014 में चली जायेगी। अगले 12 से 18 महीनों में आईटी एसईजेड के स्थान की अच्छी माँग बनी रहेगी।
(निवेश मंथन, जनवरी 2013)

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