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इस साल शुरुआत में बिकवाली, बाद में तेजी

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Category: जनवरी 2013

अजितेश मल्लिक, एवीपी - रिटेल रिसर्च, रेलिगेयर कमोडिटीज :

वर्ष 2012 में खास कर पहली तिमाही में अधिकांश कृषि जिंसों में बेहद अच्छा लाभ मिला।

इसकी मुख्य वजह यह थी कि कमजोर मानसून के कारण फसल की बुवाई में देरी होने के साथ-साथ इन जिंसों के रकबे में भी कमी आयी थी। हालाँकि दूसरी तिमाही में मुनाफावसूली के कारण कीमतों में गिरावट दर्ज की गयी।
सितंबर-अक्टूबर के महीनों में मानसून की स्थिति सुधरने के कारण इन महीनों में बुवाई बेहतर रहने की संभावनाओं ने जोर पकड़ा, जिससे कीमतों में आयी शुरुआती तेजी और आगे नहीं बढ़ सकी। इस प्रकार काफी उतार-चढ़ाव के बीच अगस्त महीने तक तो कीमतों में तेजी बनी रही, लेकिन उसके बाद बाजार में गिरावट देखने को मिली।
वर्ष 2013 भी काफी उतार-चढ़ाव भरा रहने की संभावना है। भारत के साथ-साथ अन्य देशों में भी अनेक फसलों के उत्पादन में बढ़ोतरी की संभावना है, जिसके चलते अभी तक अधिकांश कृषि जिंसों के भाव कमजोर चल रहे हैं। अगले 2-3 महीनों में कुछ फसलों की नयी आवक शुरू हो जायेगी।
इसलिए निकट भविष्य में इस संभावना से इन्कार नहीं किया जा सकता है कि बाजार में कुछ और बिकवाली का दबाव देखने को मिलेगा। हालाँकि, मई महीने से कम वर्षा के कारण अधिकांश रबी फसलों के बिजाई रकबे में कमी आने और अनिश्चित मानसून से संबंधित खबरों को देखते हुए वर्ष 2013 की दूसरी या तीसरी तिमाही तक कीमतों में तेजी देखने को मिल सकती है।
इलायची
वर्ष 2012 की शुरुआत में इलायची अपने न्यूनतम भावों पर थी। जून 2011 में इलायची 2000 रुपये से भी ऊपर चल रही थी। लेकिन ऊँचे भावों पर माँग घटने और उत्पादन बढऩे के कारण यह जनवरी 2012 आते-आते टूट कर 550-600 रुपये के स्तर पर आ गयी।
हालाँकि इसके बाद वर्ष 2012 इलायची के लिए बेहतर साबित हुआ, क्योंकि जुलाई 2012 तक इसकी कीमतों में करीब-करीब तीन गुना बढ़ोतरी देखने को मिली। इस वर्ष अनुमान है कि प्रतिकूल मौसम के कारण केरल में इलायची का उत्पादन घट कर दो-तिहाई रह जायेगा।
इस कारण वर्ष 2013 के पूर्वाद्र्ध में इलायची की कीमतों में तेजी बनी रह सकती है, क्योंकि उत्तर-भारतीय माँग और निर्यात माँग के कारण इसकी कीमतों को मजबूती मिलेगी। इसके अलावा ग्वाटेमाला में भी उत्पादन प्रभावित होने की खबरें मिल रही हैं। कुछ राज्यों में गुटका पर प्रतिबंध लगने के कारण इसकी तेजी कुछ हद तक सीमित रह सकती है, लेकिन इस बात का असर बीते 4-5 महीनों में कीमतों में गिरावट के रूप में देखने को मिल चुका है।
वर्ष 2013 में एक ओर जहाँ 750-800 रुपये के स्तर पर बेहद मजबूत सहारा मिलने की उम्मीद रहेगी, वहीं दूसरी ओर इसका भाव 1500 रुपये के स्तर को पार करने का अर्थ यह होगा कि उसके आगे कीमत बढ़ कर 1900 रुपये के स्तर तक जा सकती है।
हल्दी
अत्यधिक उत्पादन के कारण वर्ष 2011 में हल्दी में भारी गिरावट देखने को मिली थी। स्टॉक में अच्छी-खासी मात्रा में माल पड़े होने और मंडियों में नयी फसल की आवक निकलने के कारण वर्ष 2012 के पहले तीन महीनों के दौरान बाजार भाव और टूटे। लेकिन आन्ध् प्रदेश में मानसून देरी से पहुँचने और उस दौरान मंडियों में हल्दी सस्ती दरों पर उपलब्ध होने के कारण बाजार को फिर से समर्थन मिला, जिसके बलबूते भाव 3500 रुपये प्रति क्विंटल से बढ़ते हुए जुलाई तक दोगुने होकर 7000 रुपये प्रति क्विंटल के स्तर तक जा पहुँचे।
पिछले एक महीने के दौरान बाजार में उल्लेखनीय तेजी देखने को मिली है। नयी फसल की बढ़ती आवक के दबाव के कारण वर्ष 2013 के पहले 2-3 महीनों के दौरान कीमतों की तेजी पर कुछ लगाम कस सकती है। लेकिन इसे 4500-5000 रुपये प्रति क्विंटल के स्तर पर एक बेहद मजबूत सहारा मिलने की संभावना है। एक तो बाजार इन निचले स्तरों पर लंबे समय तक टिक नहीं पायेगा और दूसरे, व्यापारी भी इन भावों से नीचे के स्तरों पर अपना माल नहीं बेचेंगे।
पिछले डेढ़-दो वर्षों के दौरान हल्दी में भारी गिरावट देखने को मिल चुकी है, लेकिन वर्ष 2013 में इसमें तेजी रह सकती है। इस वर्ष के मध्य तक तो भाव दो साल पहले देखे गये 10,000 रुपये प्रति क्विंटल के मनोवैज्ञानिक स्तर को भी पार करने की क्षमता रखते हैं, बशर्ते बेहतर निर्यात माँग के साथ मानसून की खबरों का भी बाजार को साथ मिले। इसके विपरीत यदि उत्पादन बेहतर हुआ और स्टॉक में भी माल अच्छी-खासी मात्रा में पड़ा रहा तो इस वजह से तेजी सीमित रह सकती है। हालाँकि ध्यान रखना होगा कि इसमें निचले भावों पर लंबे समय तक टिक नहीं पाने की प्रवृति है। लिहाजा हल्दी में मजबूत बाजार धारणा की संभावना व्यक्त की जा सकती है।
चना
उत्पादन में गिरावट के बीच चना सस्ती दरों पर उपलब्ध होने और इसके साथ-साथ मध्य और उत्तरी-पश्चिमी भारत में अगस्त महीने तक मानसून के आगमन में देरी जैसे अनेक कारकों ने पिछले साल चना को मजबूती दी। इन कारकों के चलते चना 3,300 रुपये प्रति क्विंटलके स्तर से ऊपर उठते हुए अभी तक के अपने सर्वोच्च मूल्य स्तर करीब 5,000 रुपये प्रति क्विंटल तक गया। हालाँकि वर्ष के अंत तक बाजार एक बार फिर टूटते हुए 4,000 रुपये प्रति क्विंटल तक आ गया।
राजस्थान, मध्य प्रदेश और गुजरात में चना का बुवाई-रकबा बढऩे की खबरों के मद्देनजर बाजार धारणा कमजोर बनी हुई है, क्योंकि अगले 2-3 महीनों में चना की नयी फसल की आवक शुरू हो जाने से बाजार कीमतों पर दबाव की स्थिति बनेगी। सस्ती पीली मटर के बढ़ते आयात के कारण भी भारतीय उपमहाद्वीप में दालों के आयात की लागत घटी है। वर्तमान में, वायदा बाजार में चना 3900 रुपये प्रति क्विंटल पर उपलब्ध है। निकट भविष्य में इसकी कीमतों में और गिरावट आ सकती है, क्योंकि सरकार दालों के आयात के जरिये कीमतों पर नियंत्रण का प्रयास कर रही है। इसे 3400-3500 रुपये प्रति क्विंटल पर अच्छा समर्थन मिल रहा है।
मार्च-अपै्रल से चना में सुधार की गुंजाइश नजर आ रही है क्योंकि तब चना में त्योहारी माँग निकलने लगेगी। खरीफ और रबी सीजन के कुल उत्पादन में कमी आने से कीमतों को मध्यम से लंबी अवधि के दौरान समर्थन मिल सकता है।
कृषि मंत्रालय की ओर से जारी पहले अग्रिम अनुमान में दालों का उत्पादन 52.6 लाख टन रहने की संभावना व्यक्त की गयी थी, जबकि पिछला पूर्वानुमान 61.6 लाख टन का था। देश के मध्य और उत्तर-पश्चिमी क्षेत्रों में मई-सितंबर के दौरान होने वाली बारिश भी बाजार को दिशा प्रदान करने में महत्वपूर्ण कारक का काम करेगी, क्योंकि इन क्षेत्रों में ही उड़द, मूंग और चना का प्रमुखता से उत्पादन किया जाता है। जैसा कि हाल के अधिकांश वर्षों में देखने को मिला है, यदि मानसून के आगमन में अनिश्चितता का रुख बनता है तो चना के भाव माँग और आपूर्ति के बीच अंतर बढ़ जाने के कारण बढ़कर 5000 रुपये प्रति क्विंटल के स्तर तक जा सकते हैं। इसके कारण देश में चना का आयात बढ़ सकता है।
मेंथा तेल
अच्छी निर्यात माँग के बलबूते वर्ष 2012 के पहले तीन महीने के दौरान मेंथा तेल के भाव बढ़ कर लगभग दोगुने हो गये। लेकिन मैंथा तेल के अच्छे भाव मिलने से इसके रकबे में भी बढ़ोतरी दर्ज की गयी। इसके परिणामस्वरूप मई-जून में फसल की आवक का जोर बढऩे के कारण कीमतों में भारी गिरावट दर्ज की गयी।
इस वर्ष मेंथा तेल के उत्पादन में बढ़ोतरी के बीच कुछ राज्यों में गुटखा पर प्रतिबंध लगने के कारण वर्ष की दूसरी तिमाही में कीमतों की तेजी पर लगाम कसी रही। चूँकि इन कारकों का असर बाजार धारणा पर पहले ही पड़ चुका है, इसलिए आने वाले महीनों में इसकी कीमत को 1100-1150 रुपये प्रति किलो के स्तर पर मजबूत सहारा मिल सकता है। वर्ष के मध्य तक बाजार में एक बार फिर उछाल आयेगी। इसमें यह 1900-2000 रुपये किलो के स्तर को छू सकता है, क्योंकि चीन से निर्यात माँग अच्छी रहने और घरेलू बाजारों से भी मेंथा तेल की माँग बेहतर रहने का अनुमान है।
जीरा
नयी फसल की आवक का श्रीगणेश होने के साथ ही वर्ष 2012 में मार्च-अपै्रल तक जीरा के भाव टूटते हुए 11,000 रुपये प्रति क्विंटल तक आ गये थे। हालाँकि इसके बाद बाजार को बढ़ती निर्यात माँग के साथ-साथ घरेलू माँग का भी समर्थन मिलने के कारण भाव बढ़ कर अब तक के सर्वोच्च स्तर 17,000 रुपये प्रति क्विंटल तक जा पहुँचे थे।
गुजरात और राजस्थान के जीरा उत्पादक क्षेत्रों में अगस्त-सितंबर महीने के दौरान वर्षा की स्थिति में सुधार आने का बाजार धारणा पर विपरीत असर पड़ा। इसके परिणामस्वरूप बाजार भाव वर्ष के शुरुआती मूल्य के करीब ही बंद हुए।
अभी बेहतर बिजाई अनुमानों के मद्देनजर बाजार धारणा कमजोर बनी हुई है। फरवरी-मार्च में नयी फसल की आवक के मद्देनजर निकट भविष्य में कीमत में कुछ और गिरावट आने का अनुमान है। हालाँकि इसके बाद आवक में कमी आने और माँग के एक बार फिर से जोर पकडऩे के कारण भाव बढ़ सकते हैं।
जहाँ एक ओर बाजार में जीरा का स्टॉक कम बताया जा रहा है, वहीं दूसरी ओर तुर्की और सीरिया जैसे अन्य जीरा उत्पादक देशों में जीरा का उत्पादन घटने और राजनीतिक उथल-पुथल के कारण वहाँ से जीरा के निर्यात पर असर पड़ रहा है।
इसके कारण बेहतरीन गुणवत्ता वाले भारतीय जीरा की निर्यात माँग बढऩे के कारण इसकी कीमत में उछाल की संभावना है। इसके अतिरिक्त रुपये की तुलना में डॉलर मजबूत होने से भी निर्यात माँग को अतिरिक्त बल मिल सकता है।
हालाँकि बाजार धारणा के निर्धारण में सबसे ज्यादा दारोमदार जीरा के उत्पादन से संबंधित आँकड़ों का ही होगा। इसका मार्च वायदा 15,000 रुपये प्रति क्विंटल के स्तर पर बना हुआ है, जिसे 13,600-13,800 रुपये प्रति क्विंटल के स्तर पर एक अच्छा समर्थन मिलने का अनुमान है।
जहाँ एक ओर घटे भावों पर माँग जोर पकड़ सकती है, वहीं दूसरी ओर मानसून प्रतिकूल रहने और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर तनाव की स्थिति बढऩे जैसे कारकों के कारण इसकी कीमत एक बार फिर से बढ़ कर अगस्त तक 17,000 रुपये प्रति क्विंटल तक जा सकती है। हालाँकि इस अवधि के बाद दिसंबर तक बाजार धारणा के निर्धारण में गुजरात और राजस्थान में मानसून के मिजाज से संबंधित समाचारों का विशेष असर रहेगा।
(निवेश मंथन, जनवरी 2013)

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