धर्मकीर्ति जोशी, निदेशक और मुख्य अर्थशास्त्री, क्रिसिल :
आरबीआई 29 जनवरी की समीक्षा बैठक में अपनी ब्याज दरों में कुछ कटौती कर सकता है, क्योंकि पिछली समीक्षा बैठकों में उसने ऐसे संकेत दिये थे।
अभी तक महँगाई दर अनुमानित स्तर से कुछ कम ही रही है। कोर इन्फ्लेशन भी नीचे आ गयी। अगर यही रुझान जारी रहता है तो जनवरी में ब्याज दरों में कमी आ सकती है। लोग रेपो दर में 0.25% अंक यानी 25 बीपीएस की कटौती की उम्मीद कर रहे हैं और हमारा अनुमान भी यही है। आगे भी यह सिलसिला बना रह सकता है।
उन्हें आगे-आगे बढ़ कर कदम उठाने होंगे। उन्हें जो भी कटौती करनी है, वह अगले पाँच-छह महीनों में कर लें। ऐसा नहीं करने पर कोई फायदा नहीं मिलेगा। यहाँ रुक जाना ठीक नहीं होगा। मुझे लगता है कि इस कैलेंडर वर्ष की पहली छमाही में 0.50% अंक तक की कटौती तो हो ही जायेगी। उसके बाद और भी 0.25% से 0.50% अंक तक काट सकते हैं। यानी कुल मिला कर साल भर में 0.75% से 1.00% अंक की कटौती हो सकती है। इससे ज्यादा कटौती की उम्मीद नहीं बनती है। जिस तरह वाई वी रेड्डी ने कटौती की थी, उस तरह की कटौती होती नहीं लग रही है। सुब्बाराव रेड्डी नहीं हैं और वे दरों में ज्यादा कटौती के लिए रेडी नहीं हैं। महँगाई का खतरा वाकई बना हुआ है और काफी सालों से लगातार टिका हुआ है। इसलिए महँगाई को लेकर सावधान रहना जरूरी है।
ब्याज दरों में कटौती से निवेश को थोड़ा सहारा जरूर मिलेगा, लेकिन निवेश का चक्र वापस सँभलना कई चीजों पर निर्भर करता है। नेशनल इन्वेस्टमेंट बोर्ड और भूमि अधिग्रहण जैसी बातों पर आगे बढऩा बहुत जरूरी है। अगर यह सब बातें हों और ब्याज दरों से भी थोड़ा सहारा मिले तो जाहिर है कि निवेश चक्र को बढ़ावा मिलेगा। लेकिन यह सब बहुत जल्दी नहीं होगा।
विकास दर अपने सबसे निचले स्तर से सँभलना शुरू कर देगी। लेकिन यह प्रक्रिया दूसरी तिमाही में हो गयी, ऐसा सोचने के बजाय मुझे लगता है कि अगले साल 2013-14 में विकास दर अपनी तलहटी से उबरेगी। हमारा मानना है कि 2012-13 में विकास दर 5.5% रहेगी। इस साल की दूसरी छमाही पहली छमाही से कोई बहुत अच्छी होगी, ऐसा नहीं लगता। दूसरी छमाही के दौरान 5.5-5.7% जैसी विकास दर ही मिलेगी। कारोबारी साल 2012-13 भावी विकास के लिए एक मंच का काम करेगा, बशर्ते बाकी स्थितियाँ भी सहारा दें।
सरकारी नीतियों में दो चीजें महत्वपूर्ण लगती हैं। पहला, नेशनल इन्वेस्टमेंट बोर्ड को सक्रिय करना और भूमि अधिग्रहण कानून को मंजूर करना। इस बार बजट सबसे महत्वपूर्ण रहेगा। इसके लोक-लुभावन बजट होने की संभावनाएँ तो हैं, लेकिन यह देखना होगा कि इसमें किस हद तक संतुलन बनाया जाता है। उचित यह होगा कि इसमें सब्सिडी घटाने के कदम उठाये जायें और निवेश की तरफ ध्यान देना शुरू करें। ज्यादा खर्च बढ़ाने वाला बजट न लेकर आयें।
सीधे नकद सब्सिडी देने की योजना शुरू की गयी है, लेकिन यह एक प्रक्रिया है और इसका फायदा दिखने में समय लगेगा। पहले तो यह तय करना होगा कि सब्सिडी को घटा कर कितना किया जाये। उसका वितरण कैसे हो, यह दूसरी चीज है। सब्सिडी को वास्तव में जरूरतमंदों तक पहुँचाने में नयी व्यवस्था मदद करेगी। लेकिन अभी इसमें कुछ ठोस होना बाकी है।
अभी डीजल की कीमत को लेकर भी देखना है कि वे क्या करते हैं। इसीलिए बजट काफी महत्वपूर्ण रहेगा। डीजल और पेट्रोल की कीमत के अंतर को घटाना जरूरी है। डीजल को जितनी जल्दी हो सके, उसे बाजार मूल्य पर लाना चाहिए। चुनावी दौर में सरकार के लिए इस दिशा में बढऩा चुनौती भरा तो होगा। बजट आने के बाद इस बारे में ज्यादा स्पष्ट स्थिति बनेगी। खाद्य सुरक्षा विधेयक लाया जाना अभी मुश्किल लग रहा है, क्योंकि इसमें खर्च काफी आयेगा। सरकार अभी इसके लिए तैयार नहीं लगती।
जुलाई-सितंबर तिमाही में चालू खाते का घाटा 5.4% रहा है, जो उम्मीद से ज्यादा है। लेकिन अगले साल यह थोड़ा कम होगा। अगले साल यदि तेल के दाम नहीं बढ़ें तो आयात बिल कम होगा। वैश्विक स्थिति सुधरने पर निर्यात में कुछ बढ़ोतरी होगी। फिर भी सरकारी घाटा और चालू खाते का घाटा भारत के लिए बड़ी चुनौतियाँ हैं। रुपया में थोड़ी मजबूती आ सकती है, वैसे तो इसमें अस्थिरता बनी रहेगी।
(निवेश मंथन, जनवरी 2013)