कारोबारी साल 2012-13 की दूसरी तिमाही में देश की आर्थिक विकास दर यानी जीडीपी बढऩे की रफ्तार 5.3% रहने पर जानकार ज्यादा मायूस नहीं हुए।
इन कमजोर आँकड़ों के बावजूद शुक्रवार 30 नवंबर को बॉम्बे स्टॉक एक्सचेंज का सेंसेक्स 169 अंक या 0.9% ऊपर चढ़ कर बंद हुआ। इसका कारण यह था कि लोगों को पहले से ही इस धीमेपन का आभास था और उन्होंने ज्यादा उम्मीदें लगायी ही नहीं थी। आम तौर पर जानकारों ने इस विकास दर को अनुमानों के अनुरूप ही माना। विकास दर इस कारोबारी साल की पहली तिमाही में 5.5% और साल 2011-12 की दूसरी तिमाही में 6.7% रही थी। इसके अलावा, विकास दर के कमजोर आँकड़ों से बाजार में यह धारणा भी बनी कि भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) 18 दिसंबर को अपनी समीक्षा बैठक में या जनवरी में अपनी नयी तिमाही नीति में ब्याज दरों में कटौती का फैसला कर सकता है।
फिलहाल 5.3% विकास दर के आँकड़े को लेकर अर्थशास्त्रियों में मोटे तौर पर दो तरह के विचार बन रहे हैं। कुछ अर्थशास्त्री इसे अर्थव्यवस्था पर दबाव बढऩे के संकेत के रूप में देख रहे हैं। दूसरी ओर कुछ जानकारों का यह मानना है कि पहली तिमाही की 5.5% विकास दर के आसपास ही दूसरी तिमाही में भी विकास दर रहने से लगता है कि गिरावट थम रही है और आने वाली तिमाहियों में स्थिति सुधर सकती है।
हालाँकि दूसरी तिमाही की विकास दर को केंद्रीय वित्त मंत्री पी चिदंबरम ने अनुमानों से कमजोर माना। उन्होंने इसके लिए कमजोर मानसून और उत्पादन (मैन्युफैक्चरिंग) क्षेत्र के धीमे प्रदर्शन को जिम्मेदार माना। लेकिन कई अर्थशाी कमजोर मानसून की वजह से कृषि क्षेत्र में धीमापन दूसरी तिमाही में कमजोर विकास दर का मुख्य कारण मानने से सहमत नहीं हैं। वे ध्यान दिलाते हैं कि मानसून की स्थिति बाद में सँभल गयी थी और इसी वजह से दूसरी तिमाही में कृषि क्षेत्र के उत्पादन में कमी दर्ज नहीं की गयी। कृषि उत्पादन धीमा जरूर पड़ा, लेकिन इसमें 1.2% की वृद्धि दर्ज की गयी।
उद्योग संगठनों ने इस आँकड़े का इस्तेमाल आर्थिक सुधारों को लेकर सरकार पर दबाव बढ़ाने के लिए किया। फिक्की के अध्यक्ष आर वी कनोरिया ने एक बयान में कहा कि अगर दूसरी छमाही में प्रदर्शन काफी ज्यादा न सुधरे तो पूरे साल की विकास दर 6% के नीचे ही रहेगी। उन्होंने कहा कि सुधारों के कार्यक्रम को उत्साह के साथ आगे बढ़ाना और हाल में घोषित उपायों को पूरे मन से लागू करना जरूरी हो गया है। कनोरिया ने ध्यान दिलाया कि अचल पूँजी (फिक्स्ड कैपिटल) निर्माण में पहली तिमाही के 0.7% के मुकाबले दूसरी तिमाही में 4.1% की वृद्धि से निवेश गतिविधियों में सुधार होने का संकेत मिलता है।
एंजेल ब्रोकिंग ने अपनी रिपोर्ट में जिक्र किया है कि ‘इस कारोबारी साल में विकास दर संभवत: अपने सबसे निचले स्तर को छू चुकी है। हमारा मानना है कि इस वित्त वर्ष में औद्योगिक विकास निचले स्तरों पर ही टिका रहेगा, क्योंकि उत्पादन (मैन्युफैक्चरिंग) गतिविधियों में पिछले वित्त वर्ष की दूसरी छमाही के ऊँचे आधार (हाई बेस) की वजह से कोई महत्वपूर्ण बढ़त नहीं दिखेगी।' एंजेल का अनुमान है कि 2012-13 में विकास दर 5.7% ही रहेगी। इस बीच प्रधानमंत्री की आर्थिक सलाहकार परिषद के अध्यक्ष सी रंगराजन ने 2012-13 में विकास दर 5.5% और 6% के बीच रहने की उम्मीद जतायी है। इस कारोबारी साल की पहली छमाही की विकास दर 5.4% रही है। लिहाजा पूरे साल में 6% विकास दर पाने के लिए दूसरी छमाही में काफी अच्छी विकास दर की जरूरत होगी। रंगराजन ने उम्मीद जतायी है कि भारत की विकास दर अगले कारोबारी साल में 7% और 2014-15 में 8% हो जायेगी। साल 2011-12 में विकास दर 6.5% थी, जो नौ सालों में सबसे कम थी।
ओईसीडी ने 2012-13 के लिए 4.4% और आईएमएफ ने 4.9% विकास दर का, जबकि क्रेडिट सुइस ने 5.9% का अनुमान लगाया है। गोल्डमैन सैक्स ने कैलेंडर वर्ष 2012 में विकास दर 5.4% रहने, 2013 में सुधर कर 6.5% हो जाने और 2014 में 7.2% पर पहुँचने का अनुमान जताया है। रेटिंग एजेंसी मूडीज ने भी भारत के लिए अगला साल बेहतर होने की उम्मीद जतायी है।
(निवेश मंथन, दिसबंर 2012)