अरुण केजरीवाल निदेशक, क्रिस:
सरकार ने हिंदुस्तान कॉपर के शेयरों के विनिवेश से 810 करोड़ रुपये जुटाये हैं और इस विनिवेश में ओएफएस आने के एक दिन पहले की तुलना में 41% निचले भाव पर सरकार ने अपने शेयर बेचे।
इस विनिवेश के बाद आश्चर्य इस बात पर है कि क्या ऐसी शुरुआत के बाद सरकार इस वित्त वर्ष के बाकी बचे चार महीनों में 30,000 करोड़ रुपये के महत्वाकांक्षी विनिवेश कार्यक्रम के लक्ष्य को पा सकेगी? महत्वपूर्ण सवाल यह है कि उसके विनिवेश कार्यक्रम में खरीदार कौन है? एचसीएल के विनिवेश को एलआईसी और सरकारी बैंकों - एसबीआई और पीएनबी ने उबारा। बेशक कुछ खुदरा और एचएनआई निवेशकों ने भी इसमें हिस्सेदारी की, लेकिन उनकी भागीदारी बेहद सीमित रही।
महत्वपूर्ण यह है कि पिछले दिन के बंद भाव से 41% छूट पर होने के बावजूद ओएफएस का भाव 78 के पीई अनुपात पर था, जबकि इसी क्षेत्र की दूसरी कंपनियों के पीई अनुपात इकाई अंक में ही होते हैं। एचसीएल के विनिवेश में इतनी छूट को इस बात का उदाहरण मान कर नहीं चलना चाहिए कि आगे के विनिवेश भी इसी तरह होंगे। इसे एक बार का विचलन मान लेना ही बेहतर होगा। सरकारी कंपनियों में भविष्य में होने वाले विनिवेश बाजार भाव के ही आसपास होंगे।
कागजी तौर पर भले ही एचसीएल में विनिवेश किया गया, लेकिन उम्मीद करनी चाहिए कि आगे होने वाले विनिवेश में भी महज ऊपरी बदलाव नहीं होगा। यहाँ तो बस शेयरधारक के रूप में भारत सरकार का नाम लिखा होने के बदले एक नया नाम आ गया - कखग, भारत सरकार का एक उद्यम।
(निवेश मंथन, दिसबंर 2012)