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बहुरूपिया निकला गुरुघंटाल स्टॉक गुरु

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Category: दिसंबर 2012

सुशांत शेखर, बृजेश श्रीवास्तव :

जल्द से जल्द अमीर बनने की दौड़ में आज हर आदमी शामिल होता नजर आ रहा है। ऐसे ही लोगों को ही जालसाज अपने पिंजरे में फंसाने में कामयाब हो जाते हैं।

दिल्ली पुलिस की आर्थिक अपराध शाखा ने लाखों निवेशकों को 1100 करोड़ रुपये का चूना लगाने वाले दंपति उल्हास प्रभाकर खरे और रक्षा जे उर्स को 12 नवंबर को महाराष्ट्र के रत्नागिरी से गिरफ्तार किया। ये दोनों पति-पत्नी ‘स्टॉक गुरु इंडिया’ नाम से अपनी कंपनी चलाते थे। इस गुरुघंटाल ने शेयर बाजार से मोटा मुनाफा कमाने का लालच देकर करीब दो लाख लोगों को ठगा था। पुलिस को शुरुआती जाँच में 20 बैंकों में इनके 94 बैंक खाते मिले, जिनमें लेनदेन रोक दिया गया है। पुलिस को इनकी 13 कोठियाँ होने की भी जानकारी मिली। इन सबको जब्त कर लिया गया है।
शेयर बाजार से रातों रात अमीर बनने का सपना काफी लोग देखते हैं। बाजार ऐसे ठगों से भरा है जो इन सपनों को आसानी से पूरा करने का झाँसा देते हैं। ऐसा कई तरह से होता है। कहीं बाजार में निवेश करा कर कुछ ही महीनों में पैसे दोगुने करने का लालच देकर, कहीं एसएसएम टिप्स से मोटे मुनाफे का झाँसा देकर और कहीं डब्बा ट्रेडिंग के जाल में फँसा कर।
कैसे होती थी ठगी
स्टॉक गुरु की ठगी का तरीका भी अनगिनत बार आजमाये जा चुके मल्टी लेवल मार्केटिंग या पिरामिड योजना जैसा ही था, जिसे पहली बार ऐसी योजना चलाने वाले चालबाज चाल्र्स पोंजी के नाम पर पोंजी योजना भी कहा जाता है। इस तरह की योजना चलाने वाली कंपनियाँ या व्यक्ति चोला भले अलग-अलग ओढ़ें, लेकिन मूल तरीका एक ही होता है। यह तरीका है मोटे मुनाफे का झाँसा और साथ में नये सदस्य बनाने पर कमीशन का लालच। कारोबार का तरीका कभी झूठा-सच्चा ऑनलाइन सर्वे होता है, कभी शेयर बाज़ार में निवेश तो कभी कोई सामान बेचने का झांसा। कई एमएलएम कंपनियाँ सोने और प्लॉट में निवेश का झाँसा भी देती हैं। दक्षिण भारत में एक कंपनी ने तो ऑस्ट्रेलिया के एमू पक्षी पालन के नाम पर एमएलएम योजना चलायी।
उल्हास खरे और रक्षा खरे ने 2009 में स्टॉक गुरु इंडिया के नाम से एक कंपनी बनायी। दिल्ली के रामा रोड पर कंपनी का दफ्तर खोला गया। दिल्ली पुलिस के मुताबिक ये लोग अपने निवेशकों से कम-से-कम 10,000 रुपये लगाने को कहते थे। वे हर महीने 20% मुनाफे के हिसाब से इस 10,000 रुपये पर वे छह महीने तक हर महीने 2.000 रुपये देने का वादा करते थे। वे सातवें महीने में मूलधन भी लौटा देने का वादा करते थे। मतलब 10,000 रुपये लगाओ और सात महीने में 22,000 रुपये पाओ। जाहिर है कि लोग केवल सात महीनों में पैसा दोगुना होने के वादे से लालच में पड़ जाते थे।
यही नहीं, उनसे कहा जाता था कि अगर आप अपने साथ कुछ और निवेशकों को जोड़ें तो कमीशन और बोनस अलग से मिलेगा। उल्हास खरे दावा करता था कि उसकी शेयर बाजार में गहरी पैठ है। लोगों को बताया जाता था कि वो उनके पैसे शेयर बाजार में लगा कर उन पर जबरदस्त मुनाफा कमाते हैं और इसीलिए वे अपने निवेशकों को ऊँचा लाभ दे पाते हैं। हालाँकि जब वह निवेशकों के पैसे नहीं लौटा पाया तो उसने यह भी दावा किया कि निवेशक अपने डीमैट खाते से ही उसके बताये शेयरों में निवेश करें।
हकीकत में यह गुरुघंटाल कंपनी शेयर बाजार में रकम न लगा कर निवेशकों के पैसे अपने पास ही रखे रहती थी और निवेशकों के मिलने वाले पैसे में से ही हर माह दो-दो हजार रुपये लौटाती जाती थी। कुछ महीनों तक पैसा मिलते रहने पर लोगों को भरोसा हो जाता था और वे लालच में आकर पहले से भी ज्यादा रकम उनके पास लगा देते थे। लेकिन जब लोगों की संख्या और रकम काफी हो जाने पर वे अचानक सारी रकम लेकर चंपत हो जाते थे।
कंपनी का प्रचार करने वाले एक वीडियो में दिखता है कि उल्हास प्रभाकर किस तरह लोकेश्वर देव जैन के नाम से अपनी बड़ी-बड़ी बातों के जाल में उलझाता था। उसने खुद को जरूरतमंदों का शहंशाह घोषित कर दिया! स्टॉक गुरु इंडिया के लुभावने वादों के चक्कर में तमाम लोगों ने तो अपनी सारी जमापूँजी लुटा दी। कुछ लोगों ने संपत्ति बेच कर भी इसमें पैसे लगा दिये।
स्टॉक गुरु के घनचक्कर में ऐसे लोग भी फँस गये, जिन्हें शेयर बाजार का ककहरा भी नहीं पता। स्टॉक गुरु के चेन्नई के एक टीम लीडर के मुताबिक उसने मछली पकडऩे वाली बेहद गरीब लगभग 4,000 महिलाओं के 10-10 हजार रुपये स्टॉक गुरु में लगवाये।
बहुरूपिया है 11वीं पास खरे
पुलिस के मुताबिक 33 साल का उल्हास खरे 11वीं तक पढ़ा है। उसकी 30 साल की पत्नी ठगी के कारनामों में लगातार साथ देती रही। नाम और चेहरा बदलने में माहिर यह दंपति कभी देहरादून तो कभी लखनऊ में दफ्तर खोल कर लोगों को स्टॉक गुरु वेबसाइट के जरिये कंपनी में निवेश करने पर मोटी रकम लौटाने का वादा करता और बाद में फरार हो जाता। इस दंपति ने उत्तराखंड, हिमाचल प्रदेश, राजस्थान, मध्यप्रदेश और सिक्किम समेत कई राज्यों में लोगों से ठगी की। स्टॉक गुरु के खिलाफ दिल्ली के मोतीनगर थाने में ठगी के दो मामले दर्ज किये गये। मामला ज्यादा गंभीर होने के कारण इसकी जाँच आर्थिक अपराध शाखा के सुपुर्द कर दी गयी। पुलिस ने पाया कि 2,05,062 लोगों ने स्टॉक गुरु इंडिया कंपनी में निवेश किया था।
पुलिस की छानबीन में सामने आया कि खरे दंपति ने लोकेश्वर देव और प्रियंका सारस्वत के नाम से पासपोर्ट बनवाने के लिए आवेदन कर रखा था। इस आवेदन के साथ लोकेश्वर के ही नाम से संपत्ति के दस्तावेज और बारहवीं के प्रमाण-पत्र भी जमा किये गये थे। पता चला कि वह प्रमाण पत्र वास्तव में देहरादून निवासी लोकेश्वर का है। असली लोकेश्वर ने बताया कि उसने तो इस दंपति को बारहवीं के अपने प्रमाण-पत्र के साथ 35,000 रुपये डिप्लोमा इन साइकोथेरेपी की डिग्री पाने के लिए देहरादून में दिये थे।
दरअसल देहरादून में खरे दंपति ने छात्रों को साइकोथेरेपी में डिप्लोमा देने का अलग गोरखधंधा चला रखा था। इस ठगी के लिए खरे दंपति ने एक संस्थान खोल रखा था। वहाँ दोनों अपना नाम डॉक्टर आर के माहेश्वरी और प्राची माहेश्वरी बताया करते थे।
दरअसल उल्हास ने लोकेश्वर देव, लोकेश्वर देव जैन, डॉक्टर राजकुमार माहेश्वरी, डॉक्टर रोहित खत्री, डॉक्टर राज जावेरी, सिद्धार्थ जय मराठे जैसे अलग-अलग नामों से जगह-जगह ठगी की। पत्नी रक्षा जे उर्स भी प्रियंका सारस्वत, प्रियंका देव जैन, डॉक्टर प्राची माहेश्वरी, कंचन खत्री, डॉक्टर प्रिया जावेरी और माया मराठे के नाम बदल-बदल कर ठगी में शामिल होती रही। वेश बदलने में रक्षा का हुनर काम आता था, क्योंकि उसने फोटोग्राफी सीखी थी। वह अलग-अलग कोणों से दोनों की तस्वीरें कुछ इस तरह खींचती थी कि उन्हें मिलाना और पहचानना मुश्किल हो।
उल्हास ने पुलिस को बताया है कि रक्षा से उसकी पहली मुलाकात बेंगलूरु में हुई थी। दोनों ने शादी की और उसके बाद वे रोहित खत्री और कंचन खत्री के नाम से लखनऊ पहुँचे। इसके बाद उन्होंने देहरादून में डेरा जमाया और डिप्लोमा दिलाने के नाम पर छात्रों को चूना लगाया। इसके बाद 2007 दिसंबर में दोनों ने दिल्ली के पश्चिमी पटेल नगर में अड्डा जमाया। यहीं इन्होंने किराये का मकान लेकर स्टॉक गुरु इंडिया नाम से कंपनी खोली।
स्टॉकगुरु की इस ठगी का मामला डेढ़ साल पुराना है। पिछले साल अप्रैल में ही उल्हास खरे और रक्षा खरे स्टॉकगुरु इंडिया को बंद करके फरार हो चुके थे। हजारों निवेशकों ने पुलिस में उसी समय रिपोर्ट भी दर्ज करायी थी, लेकिन दोनों ठग दंपति फरार होकर छिपते रहे। पकड़े जाने के समय दोनों रत्नागिरी में एक और ठगी की योजना बना रहे थे, लेकिन इस बार किस्मत उनके साथ नहीं थी।
किस्सा शेयर बाजार के कुछ और ठगों का
शेयर बाजार में निवेश से मोटे मुनाफे का लालच देकर स्टॉकगुरु जैसी ही ठगी जयपुर की कॉमो एसेल और अहमदाबाद में अभय गाँधी की एआईएसई कैपिटल ने भी की थी। जयपुर की कॉमो एसेल की ठगी का तरीका बेहद नायाब था। यह कंपनी लोगों को उनके निवेश पर बतौर सिक्योरिटी दो कंपनियों, अभिषेक पेपर मिल और इंडोकेयर फार्मा के शेयर देती थी। वादा किया जाता था कि बाद में खुद कॉमो एसेल इन्हें कई गुना भावों पर खरीद लेगी। इनमें से अभिषेक पेपर मिल बॉम्बे स्टॉक एक्सचेंज और इंडोकेयर अहमदाबाद स्टॉक एक्सचेंज में सूचीबद्ध थीं। दोनों कंपनियों का अब नामोनिशान नहीं है। कॉमो एसेल पर निवेशकों से 1000 करोड़ रुपये ठगने के आरोप हैं।
इसी तरह अभय गाँधी की अभय इंट्राडे स्ट्रेटजी एक्सपर्ट (एआईएसई) कैपिटल मैनेजमेंट ने सिर्फ 4-5 महीनों में ही करीब एक हजार करोड़ रुपये की ठगी की। अभय गाँधी को भारत का बर्नी मेडॉफ भी कहा गया जो आलीशान बंगले में रहने के साथ लग्जरी गाडिय़ों में चला करता था। अभय गाँधी भी नौ महीने में पैसे दोगुने करने का लालच दिया करता था। अभय गाँधी अपने एजेंटों को 5% कमीशन देता था। इसने एजेंटों को प्रशिक्षण देने के लिए बाकायदा एक संस्थान खोल रखा था। मीडिया में आयी खबरों के मुताबिक अभय गाँधी की स्कीम में गुजरात के करीब 10,000 लोगों ने निवेश किया, जिनमें से ज्यादातर निम्न मध्य आय वर्ग के लोग थे। अभय गाँधी ने अपनी पोंजी स्कीम के जरिये करीब 1000 करोड़ रुपये की ठगी की।
एसएमएस टिप्स का जाल
शेयर बाजार में निवेशकों के साथ ठगी का एक और तरीका है एसएमएस टिप्स। दर्जनों ऐसी वेबसाइटें हैं जो पैसे लेकर शेयर और कमोडिटी बाजार में सौदे की सलाह (टिप्स) देती हैं। ये वेबसाइटें भी मोटा मुनाफा दिलाने का दावा करती हैं। निवेशकों को फाँसने के लिए एक-दो दिन मुफ्त सलाह के नाम पर कई एसएमएस भेजे जाते हैं। लेकिन उनका पैकेज लेने वाले निवेशक अंत में ठगे हुए महसूस करते हैं। अक्सर इनकी सलाह बेकार साबित होती है और निवेशकों का पैसा डूब जाता है।
एसएमएस सलाह देने वाली कंपनियाँ अपनी निवेशकों को लुभाने के लिए अपनी वेबसाइटों पर पिछले कुछ महीनों के प्रदर्शन के ऐसे आँकड़े भी देती हैं, जिनमें मोटा मुनाफा होता दिखे। आँकड़े असली लगें, इसके लिए बीच-बीच में घाटे वाले सौदे भी डाल दिये जाते हैं। लेकिन ऐसी सेवाएँ ले चुके कुछ निवेशक बताते हैं कि ये आँकड़े आम तौर पर फर्जी ही होते हैं। इंटरनेट पर चल रहे कुछ फोरम में निवेशकों ने ऐसी शिकायतें दर्ज करायी हैं कि टिप्स वाली वेबसाइटें घाटे वाली सलाह का जिक्र ही नहीं करती हैं, या फिर उनमें भी फायदा दिखाया जाता है।
एसएमस के जरिये टिप्स देने वाली वेबसाइटें हजारों-लाखों लोगों को एसएमएस भेजने के लिए बल्क एसएमस का प्रयोग करती हैं। कई बार ये वेबसाइटें ऐसे बल्क एसएमएस में आधे लोगों को निफ्टी गिरने और आधे लोगों को निफ्टी चढऩे का एसएमएस भेजती हैं। जाहिर है कि आधे लोगों के लिए तो उनकी सलाह सही साबित हो ही जाती है। फिर इन वेबसाइटों के प्रतिनिधि इन आधे लोगों को अपने पैकेज लेने के लिए ललचाते हैं।
निवेशकों का पैसा डूबने पर ये उनके फोन का कोई जवाब भी नहीं देती हैं। इनकी वेबसाइटों पर आम तौर पर कुछ नंबर और बैंक खाते के अलावा कोई अन्य जानकारी नहीं होती। कई बार इनकी वेबसाइटों पर फर्जी पते मिलते हैं। बाजार नियामक सेबी ने अपनी ओर से निवेशकों को एसएमएस सलाह वाली कंपनियों के बारे में जागरूक करने की कोशिश की है। लेकिन सेबी की ओर से इनके खिलाफ अब तक कोई कड़ी कार्रवाई नहीं हुई है।
दरअसल इन फर्जी वेबसाइटों की कार्यशैली से बाजार में वाजिब ढंग से सक्रिय उन विश्लेषकों को भी परेशानी होती है, जो वास्तव में अपनी जानकारी के आधार पर निवेशकों को सलाहकार सेवाएँ देते हैं। ये फर्जी वेबसाइटें उन सभी विश्लेषकों के लिए विश्वसनीयता का संकट खड़ा कर देती हैं, जो अपने ग्राहकों तक पहुँचने के लिए एसएमएस, ईमेल, मैसेंजर वगैरह का इस्तेमाल करते हैं। आखिर लोगों तक पहुँचने के साधन तो सबके लिए एक जैसे हैं। ऐसे में एक आम निवेशक के लिए बेहतर यही है कि कोई सलाह सेवा लेते समय सलाहकार या विश्लेषक की पूरी पृष्ठभूमि की पड़ताल कर लें।
ठगी का मकडज़ाल : डब्बा ट्रेडिंग
शेयर और कमोडिटी बाजार में निवेश के नाम पर ठगी का एक बहुत ही प्रचलित तरीका है डब्बा ट्रेडिंग। मुंबई, अहमदाबाद, राजकोट से लेकर दिल्ली, पटियाला, लखनऊ जैसे तमाम शहरों में डब्बा कारोबारी मिल जायेंगे। अगर कभी आपको किसी डब्बा ट्रेडर के दफ्तर जाने का मौका मिले तो आप उनके दफ्तरों में भी शेयर और कमोडिटी बाजार के तमाम ट्रेडिंग टर्मिनल देखेंगे। इन ट्रेडिंग टर्मिनल के भावों को ही आधार मान कर उनके यहाँ भी खऱीद-बिक्री होती है, लेकिन डब्बा ट्रेडर के सौदे एक्सचेंज के जरिये नहीं होते, बल्कि हिसाब-किताब उसके अपने बही-खाते में होता है। ये सारे सौदे अवैध होते हैं।
कमोडिटी कारोबार में डब्बा ट्रेडर ज्यादा सक्रिय हैं। फॉरवर्ड मार्केट कमीशन और सेबी डब्बा ट्रेडरों पर लगाम कसने की कोशिशें कर रहे हैं। कई डब्बा ट्रेडरों पर छापे भी पड़े हैं। लेकिन कुछ ही दिनों में दूसरे नाम से डब्बा ट्रेडर सक्रिय हो जाता है। एक अनुमान के मुताबिक वित्त वर्ष 2010-11 में कुल डब्बा कारोबार 119.48 लाख करोड़ रुपये का हुआ।
शेयर बाजार में स्टॉकगुरु की ताजा ठगी के मामले में भी बाजार नियामक सेबी पर कई तरह के सवाल उठ रहे हैं। आखिर सेबी की नाक के नीचे उल्हास खरे और रक्षा खरे जैसे ठग कैसे हर महीने 20% मुनाफे का झाँसा देते रहे। लेकिन केवल सेबी पर दोष मढऩा ठीक नहीं। यहाँ लोगों का अपना लालच भी बराबर का जिम्मेदार है। सवाल तो यह भी है कि स्टॉकगुरु के जाल में फँसने वाले कितने लोगों ने उससे पूछा कि आपने सेबी से पंजीकरण लिया है या नहीं? ऐसे कितने निवेशकों को खटका हुआ कि महीने में 20% का लाभ देना किसी के लिए संभव नहीं? अपना पैसा डूब जाने से पहले ऐसे कितने लोगों ने स्टॉकगुरु की गतिविधियों की जानकारी सेबी को देने की जिम्मेदारी उठायी?
(निवेश मंथन, दिसबंर 2012)

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