देवांग मेहता, इक्विटी सेल्स प्रमुख, आनंद राठी सिक्योरिटीज :
हाल में ऑटो क्षेत्र और खास कर मारुति सुजुकी के लिए अच्छा समय नहीं बीता है।
बिक्री के मौजूदा आँकड़े और मार्जिन कोई अच्छी तस्वीर सामने नहीं रखते। लेकिन मेरा मानना है कि इसका बुरा दौर अब अपने अंतिम चरण में है। ब्याज दरों में कटौती से मारुति को अच्छा फायदा मिलेगा, क्योंकि दरें घटने से आर्थिक माहौल सुधरता है और इसके चलते उपभोक्ताओं का भरोसा बढऩे से विवेकाधीन खर्चों में तुरंत बढ़ोतरी होती है। अटकी पड़ी माँग आगे चल कर मारुति की बिक्री बढ़ाने में सहायक होगी। त्योहारी मौसम की वजह से अक्टूबर-नवंबर में कंपनी की बिक्री अच्छी रहने वाली है।
कंपनी ने अपने मौजूदा मॉडलों को सुधारने और उन्नत बनाने की दिशा में उम्मीद से बेहतर काम किया है। इसके नये मॉडल ऑल्टो 800 को ग्राहकों की काफी अच्छी प्रतिक्रिया मिली है। इससे मारुति की बाजार हिस्सेदारी घटने का जोखिम कम हुआ है। दूसरी ओर प्रतिस्पर्धी कंपनियों के अलग-अलग मॉडलों पर ग्राहकों की प्रतिक्रिया मिली-जुली रही है। साथ ही उनका जोर एसयूवी की ओर बढ़ रहा है।
मारुति ने एर्टिगा के जरिये ऐसी श्रेणियों में भी कदम रखा है, जिनमें यह पहले मौजूद नहीं थी। इससे भी कार बाजार में इसकी हिस्सेदारी घटने का अंदेशा कम हुआ है। मार्जिन के मोर्चे पर भी इसने लगातार सुधार दिखाया है, क्योंकि इसकी कुल बिक्री में बिना किसी छूट वाली डीजल कारों और स्विफ्ट के विभिन्न मॉडलों का योगदान बढ़ रहा है।
इस तरह एक तो कंपनी की बिक्री की मात्रा बढऩे का अनुमान है और साथ ही इसके मार्जिन में सुधार की भी उम्मीद है। अभी यह शेयर सस्ता लग रहा है। साल 2013-14 की अनुमानित ईपीएस पर 17.5 पीई के लिहाज से इसका लक्ष्य भाव 1619 रुपये बनता है।
करुर वैश्य बैंक : कम लागत का मिल रहा है फायदा
करुर वैश्य बैंक (केवीबी) ने लगातार सभी मोर्चों पर अच्छा प्रदर्शन किया है। इसने बीते तीन साल, पाँच साल और सात साल की अवधि, तीनों आधार पर लगातार निवेशकों को फायदा दिया है। केवीबी ने बीते 95 सालों से लगातार अपनी बैंकिंग गतिविधियों में फायदा कमाया है। इसने अपनी स्थापना के बाद से लगातार ही लाभांश (डिविडेंड) भी दिया है। इसकी 81% शाखाएँ दक्षिण भारत में हैं और खास कर तमिलनाडु में इसकी 44% शाखाएँ हैं। केवीबी को कम लागत वाली जमा राशियों का फायदा मिलने के चलते इसका शुद्ध ब्याज मार्जिन (एनआईएम) भी अच्छा रहता है।
दूसरे, ब्याज दरों का चक्र उल्टा होने पर भी इसे कम ब्याज दरों वाली अपनी जमाओं को बनाये रखने में दिक्कत नहीं होती। इससे केवीबी की ब्रांड की शक्ति और ग्राहकों के लगाव का पता चलता है। आम तौर पर छोटे बैंकों के साथ ऐसी खासियत नहीं दिखती, जो काफी महत्वपूर्ण है।
केवीबी का बीते 10 सालों का रिटर्न ऑन एसेट्स (आरओए) 1.64% है जो एचडीएफसी बैंक के 10 सालों के औसत 1.46% से भी ज्यादा है। हाल में इसने अपनी शाखाओं की संख्या बढ़ायी, लेकिन इसके बावजूद इसकी लागत-संपत्ति का अनुपात थोड़ा सुधरा ही और 1.6% रहा, जो समकक्ष बैंकों में सबसे निचले स्तरों के पास है।
अपने मौजूदा भाव पर यह शेयर 2012-13 के अनुमानित आँकड़ों के अनुसार 1.5 गुना पीएवीबी (मूल्य और समायोजित बुक वैल्यू का अनुपात) और 2013-14 के अनुसार 1.3 पीएवीबी पर है। बीते छह सालों के मीडियन को देखते हुए 2013-14 का 1.6 पीएवीबी रखने पर इसका लक्ष्य भाव 534 रुपये बनता है। यह लक्ष्य भाव इसके मौजूदा शेयर भाव की तुलना में १३% से अधिक की बढ़ोतरी की संभावना दिखाता है।
गौरांग शाह, एवीपी, जिओजित बीएनपी पारिबा फाइनेंशियल सर्विसेज :
कैडिला हेल्थकेयर : अमेरिकी बाजार में जम रहे हैं पाँव
कैडिला हेल्थकेयर में हमने खरीदारी की अपनी सलाह को दोहराया है और हाल में इसका एक साल का लक्ष्य भाव बढ़ा कर 1053 रुपये कर दिया है। पहले हमने इसका लक्ष्य भाव 976 रुपये रखा था। इस तरह मौजूदा भाव से यह शेयर करीब 22% लाभ की संभावना रखता है। कैडिला ने बीते दो सालों में प्राइवेट इक्विटी में विस्तार किया है। इससे कंपनी को ट्रांसडर्मल की तरह ऊँची प्रवेश बाधा (एंट्री बैरियर) वाले उत्पादों को विकसित करने की क्षमता पाने में मदद मिली है।
ट्रांसडर्मल उत्पादों के सहारे कैडिला अमेरिका में 2015-16 तक एक अरब डॉलर की बिक्री हासिल कर सकेगी। ट्रांसडर्मल उत्पादों के लिए ज्यादा बड़े स्तर पर शोध की जरूरत होती है। यह अध्ययन अलग-अलग रंगों की त्वचा और अलग-अलग तापमान वाले क्षेत्रों में करना पड़ता है। ऐसे अध्ययन में 4-6 महीने का समय लग सकता है और हर उत्पाद पर औसतन 30-40 लाख डॉलर की लागत आती है। इसकी वजह से ट्रांसडर्मल उत्पादों की श्रेणी में कम ही कंपनियाँ हैं और खाने वाली दवाओं की तुलना में इनकी कीमतें ज्यादा आकर्षक हैं।
कैडिला ने अमेरिका में दो उत्पादों के लिए आवेदन दाखिल किया है और यह पाँच उत्पादों को विकसित कर रही है। साल 2013-14 के अंत तक यह ऐसा पहला उत्पाद बाजार में ला सकती है। हमारा अनुमान है कि 2012-15 के दौरान कंपनी के लाभ में सालाना औसतन 23% की वृद्धि होगी।
भारतीय बाजार के मँझोले शेयरों में यह मुझे काफी पसंद है। हालाँकि जॉखिम वाले पहलुओं को देखें तो अमेरिकी एफडीए से मंजूरी मिलने में देरी होने पर या भारत में दवाओं की कीमत निर्धारण की नीति से होने वाला नकारात्मक असर अनुमान से ज्यादा होने पर हमारा लक्ष्य भाव मिलने में देरी हो सकती है।
टाटा स्टील : दूसरी छमाही अच्छी रहेगी कंपनी के लिए
हमने टाटा स्टील के शेयर के लिए खरीदारी की सलाह दी है और इसका लक्ष्य भाव 489 रुपये से बढ़ा कर 498 रुपये किया है। इस तरह करीब 400 रुपये के मौजूदा भाव से साल भर में करीब 25% बढ़त की संभावना बनती है। कंपनी ने प्रबंधन ने यह अनुमान जताया है कि कोरस के लिए मात्रा और मार्जिन के लिहाज से 2012-13 की दूसरी तिमाही सबसे कमजोर थी, क्योंकि इस्पात की कीमतों में तीखी गिरावट आयी है। कंपनी ने कहा है कि दूसरी तिमाही में कोरस का एबिटा मार्जिन नकारात्मक हो जाने की आशंका को भी नकारा नहीं जा सकता है। कंपनी के जमशेदपुर संयंत्र में विस्तार के कार्यक्रम में कुछ देरी हुई है, क्योंकि कोक ओवन के चालू होने में दो महीने का विलंब हो गया है। इस कारोबारी साल की दूसरी छमाही में कंपनी के मुनाफे में सुधार होने से शेयर भाव अच्छा होने की उम्मीद है। दूसरी छमाही की संभावनाएँ बेहतर लग रही हैं, क्योंकि इस्पात की माँग अब स्थिर हो रही है और कच्चे माल की कीमतें घटी हैं। यूरोप में इस्पात की कीमतें और ज्यादा घटने की संभावना अब कम ही है, क्योंकि यूरोपियन सेंट्रल बैंक (ईसीबी) के ताजा कदमों के बाद वहाँ बाजार की धारणा में स्थिरता आयी है। साथ ही इस्पात कंपनियों ने उत्पादन में आक्रामक ढंग से कटौती कर दी है। हमने कोरस की कमजोरी के कारण साल 2012-13 में कंपनी की प्रति शेयर आय (ईपीएस) का अनुमान 13% घटाया है। इसका 498 रुपये का नया लक्ष्य भाव 2013-14 की अनुमानित आय के आधार पर है।
मुझे लगता है कि 2012-13 की दूसरी छमाही में टाटा स्टील का मार्जिन बेहतर होने से शेयर भाव में मजबूती आयेगी। लेकिन अगर इसकी परियोजनाओं में और देरी हो या यूरोप में औद्योगिक गतिविधियाँ और घटें तो यह लक्ष्य भाव पाने में मुश्किल आ सकती है।
पंकज पांडेय, रिसर्च प्रमुख, आईसीआईसीआई सिक्योरिटीज :
ग्लेनमार्क फार्मा : अगले साल डेढ़ साल में मिलेंगे शोध के नतीजे
यह कंपनी उन चुनिंदा जेनेरिक दवा कंपनियों में से एक है, जो त्वचा और गर्भनिरोधक दवाओं के अमेरिकी बाजार में अच्छी पैठ रखती हैं। अमेरिका में इसने 2008-12 के दौरान 21% की मजबूत सालाना औसत (सीएजीआर) वृद्धि हासिल की है। अमेरिका में इसके 81 एएनडीए (एब्रिविएटेड न्यू ड्रग ऐप्लिकेशन) आवेदन अभी कतार में हैं और 43 एएनडीए आवेदनों पर यूएसएफडीए से मंजूरी का इंतजार है। लिहाजा मुझे लगता है कि इस कंपनी की वृद्धि दर आगे और बेहतर ही होगी।
एआईओसीडी के ताजा आँकड़ों के मुताबिक ग्लेनमार्क त्वचा संबंधी दवाओं के घरेलू बाजार में जीएसके फार्मा के बाद दूसरी सबसे बड़ी कंपनी है और 11% बाजार हिस्सेदारी रखती है। श्वास और हृदय रोग की दवाओं के बाजार में भी इसकी अच्छी हिस्सेदारी है।
कंपनी ने घरेलू बाजार में अपनी पैठ मजबूत करने के लिए कम-से-कम 20 नये उत्पाद बाजार में उतारने का क्रम बना रखा है। साल 2008-12 के दौरान घरेलू बाजार में इसकी बिक्री 18% की सालाना औसत दर से बढ़ी। कंपनी जिन दवाओं पर शोध कर रही है, उनसे भी अगले 12-18 महीनों में अच्छे नतीजे मिलने की उम्मीद रखी जा सकती है। इसके दो एनबीई मॉलिक्यूल अभी क्लीनिकल परीक्षण के स्तर पर हैं।
हमारा आकलन है कि साल 2012-14 के दौरान ग्लेनमार्क फार्मा की बिक्री में 19%, एबिटा में 18% और मुनाफे में 28% की सालाना औसत वृद्धि हो सकती है। यह शेयर अभी 2012-13 की अनुमानित ईपीएस 20.7 रुपये के लगभग 21 गुना पीई अनुपात पर चल रहा है। वहीं 2013-14 में 27.9 रुपये की अनुमानित ईपीएस के आधार पर इसका पीई अनुपात लगभग 15 है।
पैंटालून रिटेल : कर्ज का बोझ घटने से बढ़ेगा मुनाफा
पैंटालून रिटेल इंडिया (पीआरआईएल) भारत की सबसे बड़ी खुदरा कंपनी है। पिछले कुछ महीनों में कंपनी ने प्रबंधन ने अपने बढ़ते कर्ज पर नियंत्रण पाने के लिए कई कदम उठाये हैं। इसने पैंटालून स्टोर की श्रृंखला को अलग किया है और फ्यूचर कैपिटल में भी हिस्सेदारी बेची है। इस तरह हिस्सेदारियाँ बेच कर कंपनी कुल 2500 करोड़ रुपये जुटाने वाली है। इस रकम का इस्तेमाल कर्ज को घटाने में होगा। कर्ज घटने से कंपनी को 120 करोड़ रुपये के ब्याज की बचत होगी और 2013-14 में इसकी लाभदायकता 30% बढ़ जायेगी।
पीआरआईएल अभी लागत कम करने के लिए घाटे वाले स्टोर बंद करने की प्रक्रिया से गुजर रही है। आगे चल कर कंपनी नये स्टोर खोलने के मामले में ज्यादा सावधानी बरतना चाहती है।
इन सब प्रयासों से कंपनी ऊँचे मार्जिन वाले कारोबार पैंटालून को अलग करने के बावजूद अपना ऑपरेटिंग मार्जिन 8.5-9.5% के दायरे में ला सकेगी। साथ ही कुल बिक्री में खाने-पीने की चीजों की हिस्सेदारी बढऩे से कंपनी के लिए कामकाजी पूँजी की जरूरतें घटेंगी।
मेरा मानना है कि पीआरआईएल मल्टीब्रांड रिटेल में एफडीआई की अनुमति का सबसे ज्यादा फायदा उठा सकने वाली कंपनियों में से एक होगी, हालाँकि यह फायदा लंबी अवधि में होगा। साथ ही, संभवत: दिसंबर 2012 यह बीमा कारोबार में हिस्सेदारी बेच सकती है। आगे चल कर कमजोर प्रदर्शन करने वाले ईजोन और होमटाउन को बेचने और जीएसटी लागू होने से भी कंपनी की स्थिति बेहतर होगी।
हमारा आकलन है कि पीआरआईएल की आमदनी 2011-14 के दौरान 7.8% की सालाना औसत दर से बढ़ेगी, जबकि इस अवधि में मुनाफा सालाना औसतन 41.5% बढ़ेगा। ब्याज लागत में कमी मुनाफे में इस तेज वृद्धि का प्रमुख कारण रहेगी। साल 2013-14 के अनुमानित आँकड़ों के आधार पर 0.7 ईवी/सेल्स के आधार पर इसका लक्ष्य भाव 248 रुपये बनता है।
मयूरेश जोशी, वीपी - इंस्टीट्यूशन, एंजेल ब्रोकिंग :
एलआईसी हाउसिंग फाइनेंस : साल भर में भाव 300-310 तक जाने की आशा
हाउसिंग फाइनेंस कंपनियाँ, जैसे एलआईसी हाउसिंग फाइनेंस, एचडीएफसी वगैरह मेरे विचार से रियल एस्टेट की कहानी पर अप्रत्यक्ष ढंग से दाँव लगाने का सबसे अच्छा जरिया हैं। बीते पाँच सालों के दौरान पहली और दूसरी श्रेणी के शहरों में जबरदस्त माँग के चलते हाउसिंग फाइनेंस कंपनियों ने 22-23% की सालाना औसत (सीएजीआर) दर से बढ़ोतरी दर्ज की है।
बैंकों की तुलना में हाउसिंग फाइनेंस कंपनियाँ कई बातों के लिहाज से बेहतर हैं। हाउसिंग फाइनेंस कंपनियों की तुलना में बैंकों को बेहतर स्प्रेड जरूर मिलता है, जैसे कि एचडीएफसी की पूँजी लागत मार्च 2012 में 9.5% थी, जबकि बैंकों की केवल 5.9% ही। लेकिन हाउसिंग फाइनेंस कंपनियों का रिटर्न ऑन एसेट्स 2.7% है, जो बैंकों के लिए 1.08% है। हाउसिंग फाइनेंस कंपनियों की बाजार हिस्सेदारी भी बढ़ रही है।
एलआईसी हाउसिंग की ओर से जारी ऋणों (लोन बुक) में बीते पाँच सालों के दौरान 25-32% की वृद्धि हुई है। इसकी तुलना में बैंकों के ऋणों में 16.3% बढ़त दिखी है। एलआईसी हाउसिंग रियल एस्टेट डेवलपरों को सबसे कम कर्ज देने वाली कंपनियों में शामिल है। लिहाजा इसके कर्ज नहीं लौटने का जोखिम घट जाता है। हाउसिंग फाइनेंस कंपनियों का सकल एनपीए अमूमन 0.42% से 0.77% के दायरे में है।
इसके अलावा, आरबीआई अगर आगे चल कर ब्याज दरों में कमी करे तो बैंकों के पास अपनी ब्याज दरें घटाने की गुंजाइश सीमित है। इसके विपरीत एलआईसी हाउसिंग जैसी कंपनियाँ बेहतर स्थिति में हैं।
अगले 6-12 महीनों में एलआईसी हाउसिंग फाइनेंस के शेयर का प्रदर्शन अच्छा रह सकता है। यह शेयर अभी 2013-14 की अनुमानित आय के आधार पर 8.5 पीई और 1.5 पी/बी (मूल्य/बुक वैल्यू) पर चल रहा है। अगले साल भर में इसमें 15-20% की वृद्धि की संभावना नकारी नहीं जा सकती और इसका भाव 300-310 रुपये तक जा सकता है।
अपोलो हॉस्पिटल्स : नॉन-कोर व्यवसायों के अलग होने पर नजर
अपोलो हॉस्पिटल्स देश भर में कई अस्पताल चलाती है और दक्षिण भारत में इसकी मौजूदगी ज्यादा है। इसकी दवा दुकानों की श्रृंखला भी है, जिसके तहत करीब 1400 दवा दुकानें चल रही हैं। इसकी दवा दुकानों की श्रृंखला एबिटा लाभ कमाने लगी है। हाल में खुदरा क्षेत्र में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआई) की अनुमति इसके लिए एक सकारात्मक संकेत हो सकती है, अगर प्रबंधन इस कारोबार को अलग कर शेयरधारकों के लिए मूल्यांकन खोलने के बारे में सोचे।
प्रबंधन ने ऐसे संकेत दिये हैं कि वे अपनी केपीओ शाखा अपोलो हेल्थ स्ट्रीट जैसे नॉन-कोर व्यवसायों को अलग करने का इरादा रखते हैं। इससे न केवल इस व्यवसाय का मूल्य खुलेगा, बल्कि कंपनी पूँजीगत विस्तार करके अपने अस्पतालों में बिस्तरों की क्षमता बढ़ा कर मार्जिन सुधार सकेगी।
अपोलो हॉस्पिटल के अभी कुल 50 अस्पताल हैं। अगले तीन सालों में यह 2,900 बिस्तरों की क्षमता बढ़ाने जा रही है, जिससे 2014-15 तक कुल संख्या 11,000 से ज्यादा हो जायेगी।
अपोलो हॉस्पिटल के पास अपोलो म्युनिख हेल्थ इन्श्योरेंस में भी 10% हिस्सेदारी है, जिसके कारोबार में आने वाले वर्षों में सालाना औसतन 10-15% की दर से बढ़ोतरी की उम्मीद है।
यह शेयर अपने मौजूदा भावों पर उचित मूल्यांकन पर है, लेकिन मुझे भरोसा है कि यह आगे चल कर मजबूती दिखा सकता है। इस उद्योग में संगठित क्षेत्र में सीमित प्रतिस्पर्धा है, जो फोर्टिस हेल्थकेयर जैसी कंपनियों से है। मेरी सलाह है कि इस शेयर को गिरावट पर जमा करते रहना चाहिए। अगले एक साल में यह शेयर मौजूदा स्तरों से 18-20% चढ़ कर 925 रुपये के भाव को छू सकता है।
विनय खट्टर, रिसर्च प्रमुख (कैपिटल मार्केट्स - इंडिविजुअल), इडेलवाइज फाइनेंशियल सर्विसेज :
जी इंटरटेनमेंट लिमिटेड : डिजिटाइजेशन से मिलेगा दोहरा फायदा
जी इंटरटेनमेंट भारत की सबसे बड़ी मीडिया कंपनियों में से एक है। यह मनोरंजन, सिनेमा, संगीत, खेल और जीवनशैली के 30 विभिन्न चैनलों को चलाती है। इसके पास क्षेत्रीय भाषा के चैनलों का भी एक मजबूत संग्रह है। हमारा मानना है कि जी इंटरटेनमेंट सरकार की डिजिटाइजेशन योजना का सबसे बड़ा फायदा पाने वाली कंपनियों में से भी एक रहेगी।
इससे कंपनी की सब्सक्रिप्शन आय बढ़ेगी, जबकि कैरेज और प्लेसमेंट शुल्क के भुगतान में कमी आयेगी। इससे कंपनी की एबिटा आय में मजबूत वृद्धि होने की उम्मीद है। साथ ही वितरण के क्षेत्र में इसकी साझा कंपनी मीडियाप्रो के कारण यह एमएसओ और डीटीएच कंपनियों के साथ अच्छा मोलभाव करने की स्थिति में है। डिजिटाइजेशन की वजह से अगले दो सालों तक कंपनी अच्छी बढ़त हासिल कर सकेगी।
कंपनी के पास 10 अरब रुपये की शुद्ध नकदी मौजूद है। कंपनी ने पिछले दिनों दो बार अपने शेयरों की वापस खरीद (बायबैक) का ऐलान किया। यह नियमित रूप से लाभांश देने की नीति पर भी चलती है।
हमारा आकलंन है कि 2012-16 के दौरान इसकी ईपीएस में लगभग 32% सालाना औसत (सीएजीआर) वृद्धि होगी। यह वृद्धि दर कमजोर स्थितियाँ रहने पर भी कम-से-कम 28% रहेगी, जबकि अच्छी स्थितियों में यह 35% तक हो सकती है। अभी यह शेयर 2013-14 के अनुमानित ईपीएस के आधार पर 21 के पीई पर है, जो मुझे खरीदारी के लिए आकर्षक लग रहा है। इस शेयर को 250 रुपये के लक्ष्य के साथ खरीदा जा सकता है।
आईसीआईसीआई बैंक : कम है पूँजीकी लागत, सुधरी है कर्ज गुणवत्ता
आईसीआईसीआई बैंक संपत्ति के लिहाज से भारत का सबसे बड़ा निजी बैंक है। मार्च 2012 तक बैंक की कुल संपत्तियाँ 47 खरब रुपये की हैं। अगले कुछ सालों के दौरान बैंक के लोन बुक में 20% सालाना औसत (सीएजीआर) वृद्धि होने की उम्मीद है। यह बढ़ोतरी मुख्य रूप से खुदरा ऋणों और कॉर्पोरेट क्षेत्र में कामकाजी पूँजी संबंधी ऋणों से होगी।
आईसीआईसीआई बैंक का चालू और बचत खातों (कासा) की जमा का अनुपात ऋणों की तुलना में औसतन 38-40% रहता है, जिससे इसके लिए पूँजी की लागत कम बैठती है। नतीजतन इसका शुद्ध ब्याज मार्जिन (एनआईएम) अच्छा रहता है। कुछ समय से इसके कर्जों की गुणवत्ता में सुधार आ रहा है। अभी इसका सकल एनपीए 3.5% और शुद्ध एनपीए 0.7% पर है। इसके पुनर्गठित कर्जों की मात्रा भी घट रही है और भविष्य में बड़े स्तर पर ऋण पुनर्गठन की आशंका भी नहीं लग रही।
अपने कारोबार के लगभग सभी क्षेत्रों में यह बैंक अग्रणी स्थिति में है, जैसे गिरवी चीजों पर ऋण, वाहन ऋण, वाणिज्यिक वाहन ऋण, जीवन बीमा, सामान्य बीमा और संपदा प्रबंधन। भविष्य में बीमा और संपदा प्रबंधन कारोबार की लिस्टिंग होने पर इन व्यवसायों का मूल्यांकन खुलेगा और शेयरधारकों को इसका फायदा मिलेगा।
इसकी सहायक (सब्सीडियरी) कंपनियों का मूल्यांकन अभी 223 रुपये बैठता है। इसे समायोजित करके देखें तो यह शेयर अभी एक साल आगे की समायोजित बुक वैल्यू के 1.6 गुना अनुपात पर चल रहा है। मेरी सलाह है कि निवेशकों को यह शेयर खरीदना चाहिए और इसके लिए 1250 रुपये का लक्ष्य भाव रखना चाहिए।
(निवेश मंथन, नवंबर 2012)