राजीव कपूर, कमोडिटी प्रमुख, ट्रस्टलाइन सिक्योरिटीज :
निवेशकों को बीते आठ सालों से सोने में साल-दर-साल काफी अच्छा लाभ मिला है और सोने की चमक पर यकीन करने वालों को इसने लगातार खुशी दी है। भारतीयों के बीच तो सोने के प्रति पारपंरिक रूप से जबरदस्त झुकाव और इस पर गहरा विश्वास है। अगस्त के तीसरे हफ्ते में भारतीय बाजार में सोने का भाव 31,000 रुपये प्रति 10 ग्राम से भी ऊपर के नये उच्चतम भाव को छू गया।
हालाँकि इसका श्रेय कुछ हद तक डॉलर और अन्य विदेशी मुद्राओं के मुकाबले रुपये की कमजोरी को भी दिया जाना चाहिए।
लेकिन सोने की कीमत में हाल में आयी उछाल दरअसल अमेरिका, यूरोप और चीन के केंद्रीय बैंकों की उन घोषणाओं का नतीजा है, जिनमें उन्होंने स्पष्ट किया कि वे अपनी वापस तेज विकास के रास्ते पर लौटने के लिए अपनी अर्थव्यवस्थाओं में ज्यादा नकदी डालने से नहीं हिचकेंगे। इन घोषणाओं के बाद इनकी मुद्राओं (करंसी) में कमजोरी आयी और सोने के भाव बढ़े, क्योंकि मुद्रा और सोने के भावों में उल्टा संबंध होता है।
इस समय सोने की कीमत का चार्ट देखें तो यह पिछले साल से ही अपने 100 दिनों के एक्सपोनेंशियल मूविंग एवरेज (ईएमए) पर सहारा लेता रहा है। इस आधार पर सोने को 29,600 रुपये और 29,200 रुपये पर बड़ा सहारा मिलने की उम्मीद रहेगी।
मोटे तौर पर जब तक सोना 29,000 रुपये के ऊपर चलता रहेगा, तब तक हम यह मान सकते हैं कि मध्यम अवधि के लिए इसका रुझान ऊपर की ओर ही है। लेकिन जब भी यह अपने 200 ईएमए (अभी 28,800 रुपये) के नीचे लगातार तीन दिन बंद होगा, तो यह इसकी दिशा पलट जाने का संकेत होगा। मेरी सलाह होगी कि जब भी सोने की कीमत कुछ नरम हो कर 29800-29500 की ओर आये, तो वहाँ खरीद कर ऊपर बिकवाली करते रहने की रणनीति अपनायें। वहीं 29000 के नीचे बंद भाव आने पर घाटा काट लें।
अभी सोने के चार्ट पर ज्यादातर ऑसिलेटर हद से ज्यादा खरीदारी (ओवरबॉट) के क्षेत्र में हैं। ऐसे संकेत मिल रहे हैं कि इसकी चाल थोड़ी रुक सकती है या पलट भी सकती है। लेकिन जब तक यह 29,000 रुपये के ऊपर चल रहा है, तब तक यह भरोसा किया जा सकता है कि इसमें तेजी बरकरार है।
इसके चार्ट में यह भी दिख रहा है कि इसके शिखर और तलहटियों के बीच का दायरा घटता जा रहा है। यह ऊपरी दिशा में जाती कील (राइजिंग वेज) जैसी संरचना है। इसका मतलब यह है कि 29,000 के नीचे बंद होना तेजी का रुझान पलट जाने का स्पष्ट संकेत होगा। इस कील जैसी संरचना की निचली रेखा अभी 200 ईएमए के पास ही है। इससे भी यह राय पुख्ता होती है।
कुछ समय पहले तक सर्राफा बाजार थोड़ा ठंडा चल रहा था, क्योंकि इसमें उतार-चढ़ाव के लिए कोई नया संकेत नहीं था। इसे एक मुश्किल दौर से गुजरना पड़ा, क्योंकि चीन में विकास दर निराशाजनक रहने के साथ-साथ भारत में आयात शुल्क बढऩे के चलते सोने की कीमतों पर बुरा असर पड़ा। सोने के भारतीय आयात के आँकड़ों में भी चालू कारोबारी साल में अब तक काफी कमी आयी है, क्योंकि आयात की लागत काफी बढ़ गयी है। बेशक, इससे भारत सरकार का यह लक्ष्य जरूर पूरा हो रहा है कि सोने के आयात की वजह से बढ़ते व्यापार घाटे पर अंकुश लगाया जाये।
वल्र्ड गोल्ड काउंसिल ने सोने की माँग के ताजा रुझान पर हाल में 16 अगस्त 2012 को जो रिपोर्ट जारी की है, उसके मुताबिक साल 2012 की दूसरी तिमाही (अप्रैल-जून) के दौरान विश्व में सोने की कुल माँग पिछले साल की समान तिमाही से 7% घट कर 990 टन रह गयी। मूल्य के लिहाज से देखें तो यह माँग 1% घट कर 51.2 अरब डॉलर की रही।
भारत में 2012 की दूसरी तिमाही में निवेश और आभूषण संबंधी माँग 181.3 टन की रही। पिछले साल की दूसरी तिमाही के 294.5 टन की तुलना में यह 38.4% कम है। वहीं निवेश की मांग तो 2011 की दूसरी तिमाही के मुकाबले आधी से ज्यादा घट कर केवल 56.5 टन रह गयी।
अगर केवल आभूषण संबंधी माँग को देखें तो यह 179.5 टन से 30.5% गिरावट के साथ केवल 124.8 टन रह गयी। एक तो वैसे ही 2011 की दूसरी तिमाही में सोने की माँग ज्यादा रही थी। साथ ही इस साल दूसरी तिमाही में डॉलर के मुकाबले रुपये की कमजोरी का असर पड़ा। जून में सोने की कीमत 30,000 रुपये प्रति 10 ग्राम को पार कर गयी। घरेलू महँगाई और कमजोर मानसून की चिंताओं का भी असर माँग पर दिख रहा था।
दूसरी तरफ अगर चीन में सोने की माँग को देखें तो वहाँ निवेश और आभूषण संबंधी मांग इस दौरान 156.6 टन से घट कर 144.9 टन पर रही, यानी 7.5% गिरावट। चीन में निवेश की माँग भी 4% घट कर 51.1 टन रही। चीन में घरेलू विकास दर घटने और साथ ही सोने की कीमतों में बढ़त की रफ्तार धीमी पडऩे के चलते निवेश संबंधी माँग में कमी आयी। चीन में सोने के आभूषणों की माँग भी 9% घट कर 93.8 टन रह गयी।
लेकिन दूसरी ओर यूरो क्षेत्र में सोने के प्रति निवेशकों का भरोसा बढ़ता दिखा। अपनी पूँजी को सुरक्षित रखने के मकसद से यूरोपीय निवेशकों ने सोने की खरीदारी पर ज्यादा ध्यान दिया। वहाँ खुदरा निवेशकों की ओर से सोने की छड़ों और सिक्कों की माँग 15% बढ़ कर 77.6 टन हो गयी। पिछले पाँच सालों के तिमाही औसत से भी यह माँग 19% ज्यादा रही।
इस अवधि में नेशनल बैंक ऑफ कजाकस्तान के अलावा फिलीपींस, रूस और यूक्रेन के केंद्रीय बैंकों ने अपने स्वर्ण भंडार को बढ़ाने में ज्यादा रुचि दिखायी। विश्व में आर्थिक पृष्ठभूमि मुश्किल रहने के बावजूद सोने के ईटीएफ की स्थिति ठीक-ठाक बनी रही। इनके कुल भंडार में साल-दर-साल के आधार पर केवल 0.8 टन की शुद्ध निकासी देखी गयी।
(निवेश मंथन, सितंबर 2012)