राजीव रंजन झा :
अपने भारतीय बाजार में निवेशकों का मिजाज बड़ा नाजुक है। हाल में बाजार का जो हाल दिखा है, उससे लग रहा है कि लोग बाजार में तेजी की चाहत तो रखते हैं, मगर अंदर कुछ ऐसा डर बसा है जो उन्हें लाल रंग की पहली झलक दिखते ही घबरा देता है। निफ्टी 4 जून की तलहटी 4770 से अभी 23 अगस्त को 5449 तक चला आया, मतलब 679 अंक की उछाल मिल गयी। लेकिन अगले 2-3 कारोबारी दिनों में इस ऊपरी स्तर से सवा सौ डेढ़ सौ अंक नीचे फिसलते ही बाजार में एकदम मायूसी छायी दिख रही है। जनाब, शेयर बाजार क्या हमेशा एक सीधी रेखा पर चलता है?
बाजार की आगे की चाल को समझने के लिए हमें इसकी कुछ बड़ी संरचनाओं को ध्यान में रखना होगा। शेयर मंथन पर अपने नियमित स्तंभ में मैंने 23 अगस्त की ही सुबह लिखा था कि बाजार की बड़ी संरचना ‘नवंबर 2010 के शिखर 6339 से दिसंबर 2011 की तलहटी 4531 तक की गिरावट की है। इसमें बिल्कुल आधे रास्ते का मील का पत्थर 5435 पर लगा है - 50% वापसी का स्तर। इसलिए यहाँ सावधान रहना जरूरी है।' इस सलाह ने एकदम छोटी अवधि के कारोबारियों के लिए ठीक समय पर चेतावनी का काम किया होगा। लेकिन ध्यान रखें कि इस संरचना में ज्यादा चिंता तभी होगी, जब निफ्टी 38.2% वापसी के स्तर 5222 को भी तोड़ दे। यह ठीक है कि 5435 के पास बाधा मिलने के बाद नीचे फिसलने पर 5222 तक गिरना स्वाभाविक होगा। लेकिन 5222 के कटने के बाद ही यह चिंता होगी कि इस बड़ी संरचना में 23.6% का स्तर यानी 4958 अगला निचला लक्ष्य बन रहा है। लेकिन जब पुल आये, तभी उसे पार करें। जब 5222 का स्तर टूट जाये, तभी इस बारे में चिंता करें।
निफ्टी के चार्ट पर अगली महत्वपूर्ण संरचना वह बड़ी पट्टी है, जिसका जिक्र मैंने निवेश मंथन के पिछले दोनों अंकों में किया है। इस पट्टी के बनने की शुरुआत अगस्त 2011 में ही हो गयी थी। इसकी ऊपरी रेखा अगस्त 2011 में एक निचले अंतराल (गैप डाउन) के निचले छोर, अक्टूबर 2011 के शिखर 5400 और फरवरी 2012 के शिखर 5630 को मिलाती है। वहीं इस पट्टी की निचली रेखा दिसंबर 2011 की तलहटी 4531 और मई-जून 2012 के निचले स्तरों को छूती है। निफ्टी ने दिसंबर 2011 से फरवरी 2012 के बीच इस पट्टी की निचली रेखा से ऊपरी रेखा तक 4531 से 5630 तक की जो उछाल भरी थी, उसी प्रदर्शन को फिर दोहराने की उम्मीद के आधार पर मैंने पिछली बार यह प्रश्न रखा था कि क्या निफ्टी की अगली उछाल भी 1100 अंक की होगी?
निफ्टी अब तक इस बड़ी पट्टी के अंदर ही चल रहा है। इसकी निचली रेखा से ऊपरी रेखा तक जाने की जो उम्मीद मैंने पहले जतायी थी, वह अब तक कायम है। लेकिन इस चाल की रफ्तार पहले से थोड़ी अलग होती दिख रही है। इसके चार्ट की ताजा तस्वीर में स्पष्ट दिखता है कि दिसंबर 2011 से फरवरी 2012 की उछाल जैसी रफ्तार इस बार की चाल में नहीं बन पायी है। लेकिन अब तक इसने ऊपरी शिखर और ऊपरी तलहटी का एक सिलसिला जरूर बना लिया है। हाल के शिखरों को देखें तो पहले 29 मई को 5020, फिर 18 जून को 5190, उसके बाद 10 जुलाई को 5349 और अभी 23 अगस्त को 5449 के ऊपरी शिखर बनते गये। साथ ही इसने 4 जून को 4770 की तलहटी बनायी, उसके बाद 26 जुलाई को 5032 की ऊपरी तलहटी बनी। इस लिहाज से हम कह सकते हैं कि जब तक 5032 का स्तर न टूटे, तब तक यह मानना ठीक नहीं होगा कि निफ्टी की मध्यम अवधि की ऊपरी चाल टूट गयी है। वहीं 5449 का स्तर पार होते ही फिर से एक नया ऊपरी शिखर बनना तय हो जायेगा, जो शायद 5630-5650 के आसपास कहीं हो।
एक संभावना यह भी हो सकती है कि सितंबर का महीना एकदम ठंडा साबित हो, जिसमें निफ्टी केवल एक सीमित दायरे में समय काटता रहे और थोड़ा-थोड़ा नीचे फिसलता रहे। ऐसे में यह न तो ऊपर 5449 को पार करके अपनी चाल को आगे बढ़ायेगा, न ही 5032 को तोड़ कर अपनी दिशा बदलेगा। लेकिन इस बीच निफ्टी की इस बड़ी पट्टी की निचली रेखा भी 5050-5100 के आसपास तक कहीं आ जायेगी।
ध्यान दें कि इस पट्टी के शुरुआती चरण में निफ्टी सीधे ऊपरी रेखा से निचली रेखा तक नहीं आया था, यह इस पट्टी की ऊपरी रेखा से गिर कर इसके मध्य तक आने के बाद वापस ऊपरी रेखा को छूने के लिए पलटा। इसके बाद 5400 के स्तर से इसने दोबारा नीचे की यात्रा शुरू की और 4531 तक आया। संभव है कि इस बार निफ्टी निचली रेखा से ऊपरी रेखा की ओर जाने के लिए दोबारा कुछ ऐसा ही करे। पहले प्रयास में यह पूरा दमखम नहीं जुटा पाया। ऐसे में हो सकता है कि यह वापस निचली रेखा तक लौटे और वहाँ से फिर नया जोश लेकर ऊपरी रेखा को छूने के लिए आगे बढ़े। मोटे तौर पर यह जब भी इस पट्टी की निचली रेखा से ऊपरी रेखा तक का सफर तय करेगा, इसे 2-3 महीनों की अवधि में 1100-1200 अंकों की उछाल मिलेगी। अगले कुछ महीनों के लिए यह माना जा सकता है कि जब तक निफ्टी 4958 को पक्के तौर पर न काटे, तब तक यह पट्टी हमारे लिए महत्वपूर्ण बनी रहेगी।
गौर करने वाली बात यह भी है कि निफ्टी का 50 दिनों का सिंपल मूविंग एवरेज (एसएमए) एक बार फिर 200 एसएमए के ऊपर आ गया है, यानी दोनों का एक सकारात्मक कटान (क्रॉसओवर) बना है। यह बाजार के लिए एक सकारात्मक संरचना है और आम तौर पर एक बड़ी उछाल का संकेत देती है। बेशक, मार्च में ऐसा सकारात्मक कटान नाकाम हो गया था, लेकिन केवल इस वजह से हम एक महत्वपूर्ण संरचना को नजरअंदाज नहीं कर सकते।
अगर थोड़ी छोटी अवधि के लिहाज से देखें तो स्थिति यह है कि निफ्टी ने 10 दिनों का एसएमए (अभी 5378) तोड़ दिया है, लेकिन 20 दिनों के एसएमए 5325 के ठीक ऊपर 5335 पर कल का बंद स्तर है। अभी यह देखना महत्वपूर्ण है कि 20 दिनों के एसएमए को निफ्टी तोड़ता है या इसे बचा कर सुरक्षित रखता है। यह भी ध्यान रखें कि 5630 से 4770 तक की गिरावट की 61.8% वापसी 5302 पर है। लिहाजा यह भी एक बड़ा सहारा बन सकता है। इसी के नीचे 5294 पर हाल में निफ्टी ने एक छोटी तलहटी भी बनायी थी। इसके नीचे 5261-5220 का दायरा दिखता है, जहाँ 6 अगस्त को एक ऊपरी अंतराल (राइजिंग गैप) बना था। इसी दायरे के अंदर अभी 5247 पर 50 दिनों का एसएमए है।
कहने का मतलब यह है कि अभी मौजूदा स्तर से थोड़ा-थोड़ा नीचे कई महत्वपूर्ण समर्थन स्तर हैं, जहाँ से निफ्टी के वापस पलट कर ऊपर की ओर चलने की काफी गुंजाइश है। एक अच्छी-खासी उछाल के बाद थोड़ी-सी नरमी आने से मायूस हो जाना आपको गलत फैसलों की ओर ले जा सकता है। बेशक, अगर निफ्टी 5220 के भी नीचे फिसलने लगे तो बाजार में ज्यादा गहरी गिरावट की चिंता बन सकती है, क्योंकि तब 6339-4531 की गिरावट में 38.2% वापसी का स्तर टूटने के बाद 23.6% वापसी का अगला स्तर काफी नीचे 4958 पर होगा।
तबीयत सुधरने की खुशी नहीं, दवा नहीं मिलने का अंदेशा
यह किस्सा केवल भारत का नहीं है, बल्कि दुनिया भर के बाजारों में दिखता है कि निवेशक समस्या घटने पर खुश होने के बदले इस बात की आशंका में परेशान हो जाते हैं कि दवा की खुराक घट तो नहीं जायेगी।
अगर अमेरिकी अर्थव्यवस्था सुधरने के संकेत मिलते हैं तो निवेशक परेशान होते हैं कि फेडरल रिजर्व अर्थव्यवस्था में नकदी उड़ेलने के लिए क्यूई 3 यानी मौद्रिक ढील का तीसरा दौर शुरू नहीं करेगा। आज अपने यहाँ भी कुछ हद तक वैसा दिख रहा है। बाजार का एक बड़ा तबका मान कर चल रहा था कि 2012-13 की पहली तिमाही में भारतीय अर्थव्यवस्था की विकास दर पिछली तिमाही के 5.3% के बराबर ही, या शायद उससे कुछ कम ही आये। लेकिन वास्तव में यह आँकड़ा 5.5% का रहा। कह सकते हैं कि यह उम्मीद से बेहतर है। लेकिन इसके बावजूद हमें शेयर बाजार में इस बात की कोई खुशी नहीं दिख रही है।
बेशक, जब जीडीपी दर में सुधार की यह खबर आज करीब 11 बजे आयी तो बाजार अपने निचले स्तरों से थोड़ा ऊपर आया। लेकिन निफ्टी करीब 5275 से सँभल कर 5300 तक आ सका, और वहाँ से यह फिर झटके खाने लगा है। अर्थव्यवस्था की रफ्तार सुधरने की खबर निफ्टी को इतना भी सहारा नहीं दे सकी कि यह हरे निशान में लौट सके।
दरअसल बाजार को इन बेहतर आँकड़ों के चलते यह डर सतायेगा कि भारतीय रिजर्व बैंक अपनी अगली समीक्षा बैठक में भी अपनी ब्याज दरों में, रेपो दर और रिवर्स रेपो दर में कटौती नहीं करेगा। ब्याज दरें घटाने की जरूरत के बारे में वित्त मंत्री पी चिदंबरम के मुखर बयानों के बाद जिस तरह से आरबीआई ने पहले महँगाई दर में कमी आने की जरूरत पर जोर दिया है, उससे बाजार पहले ही मान कर चल रहा है कि आरबीआई वित्त मंत्री के संकेतों और सुझावों की अनदेखी कर सकता है।
मगर महँगाई और ब्याज दरों के मुद्दे पर वित्त मंत्री का नजरिया सच के ज्यादा करीब है। इस शिकायत में दम है कि आरबीआई ने पहले तो लगातार ब्याज दरें बढ़ा कर और अब चौतरफा माँग के बावजूद ब्याज दरें नहीं घटा कर विकास की गाड़ी में फच्चर फंसा दिया है। ठीक है कि महँगाई को नियंत्रण में रखना आरबीआई की प्राथमिकता है, लेकिन अपने यहाँ जिस तरह की महँगाई है उसे आप ब्याज दरें ऊँची रख कर कैसे काबू में लायेंगे, यह मेरी सरल बुद्धि से बाहर है। मैं अर्थशास्त्र का जानकार नहीं, लेकिन आरबीआई गवर्नर साहब से एक सीधा-सा सौदा करने में मुझे कोई गुरेज नहीं होगा। बस वे दूध, फल, सब्जी, मसाले वगैरह के दाम 3 साल पहले के स्तरों पर ले आयें और ब्याज दरें यहाँ से 4% और बढ़ा दें। मैं तो दसियों जानकारों से पूछ चुका कि ब्याज दरें ऊँची रखने से इन चीजों की कीमतें घटने की उम्मीद है क्या? इतना वक्त तो गुजर गया पहले ब्याज दरें बढ़ाते-बढ़ाते और अब ऊपर टिकाये रख कर - लेकिन इन चीजों की कीमतें हमेशा ऊपर जाती क्यों दिखती हैं?
मेरे मन में एक और सवाल है। प्रणव मुखर्जी तो वित्त मंत्री के रूप में आरबीआई से एक विनम्र उम्मीद जताते नजर आते थे। कर्ज नीति की समीक्षा से पहले उनका कुछ इस तरह का बयान आता था कि आरबीआई कुछ अच्छी खबर देगा ऐसी उम्मीद है। लेकिन चिदंबरम ज्यादा स्पष्ट और दो टूक हैं। अगर आरबीआई ने उनकी इस स्पष्ट राय के दबाव में ब्याज दरें घटाने का फैसला किया तो बैंकिंग नियामक के रूप में आरबीआई की स्वतंत्र छवि को एक धक्का लगेगा। आरबीआई ने खुद इस स्थिति को न्यौता दिया है। पहले फैसला कर लेना चाहिए था ना!
आरबीआई एक स्वायत्त नियामक है और मुझे भी लगता है कि अगर वित्त मंत्री का %आदेशÓ मान कर वह ब्याज दरों में कटौती करे तो इससे आरबीआई की साख कम होगी। लेकिन ब्याज दरें घटाने की जरूरत के बारे में वित्त मंत्री से असहमत होना भी मेरे लिए मुश्किल है। मैं पहले भी कई बार लिखा है कि पहले लगातार ब्याज दरें बढ़ा कर और अब काफी समय से इन्हें ऊपरी स्तरों पर टिकाये रख कर आरबीआई ने अर्थव्यवस्था के चक्के के सामने रोड़ा रख दिया है। महँगाई का जो मर्ज हमारे सामने सामने है, उसकी दवा ब्याज दरें ऊँची रखना नहीं है। अगर है, तो अब तक हमें असर क्यों नहीं दिखा?
फिलहाल बाजार भले ही खुश हो या नहीं हो, लेकिन मुझे खुशी है कि विकास दर में पिछली 6 तिमाहियों से लगातार आ रही फिसलन थमी है। यह इस बात का संकेत है कि भारतीय अर्थव्यवस्था अब सँभलने की तैयारी कर रही है। कुछ लोग कह सकते हैं कि ऐसा कोई नतीजा निकाल लेना जल्दबाजी होगी। लेकिन गौर करें कि शेयर बाजार ने एक बार फिर आर्थिक संकेतों को पढऩे में समय से आगे रहने की अपनी कला दिखायी। निफ्टी की 4531 की तलहटी दिसंबर 2011 में बनी, जबकि विकास दर की तलहटी बनी मई में, जब 2011-12 की चौथी तिमाही की विकास दर 5.3% रहने की खबर मिली। किसी ने ठीक ही कहा है कि शेयर बाजार अर्थव्यवस्था से 6 महीने आगे चलता है।
सरकार राजनीति में व्यस्त, बाजार नाउम्मीदी में पस्त
पहले लग रहा था कि केंद्र सरकार राष्ट्रपति चुनाव निपट जाने का इंतजार कर रही है, फिर लगा कि प्रधानमंत्री ने वित्त मंत्रालय भी सँभाला है तो उन्हें कुछ वक्त दिया जाये, और उसके बाद लगा कि चिदंबरम साहब फिर से वित्त मंत्रालय में लौटे हैं तो कुछ करिश्मा जरूर होगा।
बाजार की उम्मीदें एक-एक घटना के साथ आगे खिसकती जा रही हैं, लेकिन इसके साथ ही 2014 करीब आता जा रहा है। भारतीय राजनीति की नब्ज पहचानने वाले कुछ लोगों ने अगर हाल में कहा कि 2014 उतनी दूर नहीं है जितना लगता है, तो उनकी इस बात में निश्चित रूप से गहरे मतलब छिपे थे।
केंद्र सरकार शायद इस बात पर मुदित हो कि उन्होंने अण्णा को निपटा दिया। सरकार और कांग्रेस के रणनीतिकारों को शायद लगा कि पिछली बार इन आंदोलनों को ज्यादा भाव देना गलती थी और इससे बेवजह इनका भाव बढ़ गया। लिहाजा इस बार इन्हें एकदम नजरअंदाज करने की रणनीति अपनायी गयी। इस रणनीति ने जंतर-मंतर से टीम अण्णा का बोरिया-बिस्तर उठा दिया।
लेकिन निवेशक समुदाय की चिंता यह है कि सरकार उन मसलों को नजरअंदाज कर रही है जिनके चलते अर्थव्यवस्था का पहिया अटक रहा है। उन मसलों की ओर सरकार की शक्ति नहीं लग पाने की एक वजह शायद यह भी हो कि उसका ध्यान राजनीतिक गतिविधियों पर ज्यादा केंद्रित हो गया है।
इस समय आर्थिक सुधारों को लेकर राजनीतिक आम सहमति बनाने की जरूरत थी। लेकिन सरकार इस समय राजनीतिक टकराव की स्थिति का सामना कर रही है। इस टकराव को टाल कर सामंजस्य और सहमति की ओर बढऩे की इच्छा या पहल बिल्कुल नहीं दिख रही।
हाल में वित्त मंत्री पी चिदंबरम ने अपने एक संबोधन में वे सारी बातें कह डाली थीं, जो इस समय बाजार उनसे सुनना चाहता था। लेकिन उन सारे लक्ष्यों की ओर बढऩे की एक ठोस और स्पष्ट रणनीति क्या होगी, इसका कोई संकेत उस बयान में नहीं मिला था।
पहले बाजार ने राष्ट्रपति चुनाव बीतने का इंतजार किया। फिर पी चिदंबरम के वित्त मंत्रालय में लौटने की अटकलों के चलते ऐसा हो जाने का इंतजार चालू हो गया। अब शायद संसद का यह सत्र बीतने का इंतजार होगा। क्या संसद का सत्र चलते रहने के दौरान सरकार डीजल के दाम बढ़ा पायेगी?
अगर संसद का सत्र पूरा होने बाद सरकार ने ऐसा कदम उठा भी लिया तो डीजल के दाम बढऩे का महँगाई पर होने वाला सीधा असर वह कैसे रोकेगी? सबको पहले से ही महँगाई ऊँचे स्तरों पर होने की चिंता है। डीजल के दाम बढ़े तो क्या हाल होगा?
वित्त मंत्री ने कहा कि उन्हें ब्याज दरें ऊँची लग रही हैं। उन्होंने माना कि ऊँची ब्याज दरें भी विकास दर घटने का एक कारण हैं। लेकिन अभी कुछ समय पहले ही रिजर्व बैंक ने जोर-शोर से दलीलें रखीं थी कि ऊँची ब्याज दरें को विकास धीमा करने की जिम्मेदार नहीं हैं! क्या वित्त मंत्री बदलने से आरबीआई का अर्थव्यवस्था के बारे में नजरिया भी बदल जायेगा?
विकास के रथ को फिर से तेज करने के लिए जरूरी है कि निवेश का इंजन फिर से चालू किया जाये। निवेश का चक्र अभी अपनी तलहटी पर है। केवल निजी निवेश ही नहीं, सरकारी निवेश भी ठंडा पड़ा है। अगर सरकारी निवेश तेज होगा और अर्थव्यवस्था को लेकर सकारात्मक उम्मीदें बनेंगी तो निजी निवेश अपने-आप तेज हो जायेगा। लेकिन क्या सरकार इस बारे में कुछ कर पा रही है?
कुछ बाजार विश्लेषक शायद अब भी सरकार को कुछ वक्त देना चाहें। गणित के लिहाज से 2014 अब भी डेढ़ साल दूर है। लेकिन व्यावहारिक रूप में कुछ ठोस कदम उठाने के लिए शायद इस सरकार के पास अब गिने-चुने महीने बाकी हैं। अगर अगले कुछ हफ्तों में सरकार ऐसे संकेत दे सकी कि वह वाकई इस समय की कीमत पहचानती है और इसका अच्छा उपयोग करने की नीयत रखती है तो जरूर थोड़ी उम्मीदें बनेंगी।
ऐसा नहीं हो पाया तो बाजार मान लेगा कि 2014 से पहले अब कुछ नहीं होने वाला, और 2014 शायद डेढ़ साल दूर भी नहीं है। लेकिन 2014 के बाद की तस्वीर भी बड़ी धुँधली है। इसका मोटा मतलब यह निकलेगा कि बाजार किसी सरकारी पहल से बिल्कुल नाउम्मीद हो जायेगा - बस रामभरोसे!
डीजल पर राहत के लिए धन्यवाद वित्त मंत्री जी
बाजार के कोरसगान से विपरीत मुझे तो खुशी है कि वित्त मंत्री पी चिदंबरम ने डीजल के दाम नहीं बढ़ाने की बात कही है। मैंने इस बारे में अपनी चिंता आपको पहले भी बतायी थी। मेरे मन में सवाल था कि ‘सरकार ने ऐसा कदम उठा भी लिया तो डीजल के दाम बढऩे का महँगाई पर होने वाला सीधा असर वह कैसे रोकेगी? सबको पहले से ही महँगाई ऊँचे स्तरों पर होने की चिंता है। डीजल के दाम बढ़े तो क्या हाल होगा?’
दूसरा पहलू यह है कि पूरे पेट्रोलियम क्षेत्र का संकट सरकार के गलत कर ढाँचे का नतीजा है। क्या आज पेट्रोल, डीजल, रसोई गैस सीएनजी वगैरह विलासिता की चीजें हैं? आप जीएसटी के तहत हर वस्तु या सेवा को 12-16% कर के दायरे में लाने की बात कर रहे हैं। लेकिन पेट्रोल की कीमत पर रिफाइनरी के दरवाजे से बाहर निकल कर आपकी कार और मोटरसाइकल की टंकी में भरने तक कितने करों का बोझ लद जाता है, यह भी तो देखें। मोटे तौर पर पेट्रोल की कीमत रिफाइनरी से निकल कर आपके पास आते-आते दोगुनी हो जाती है, केवल केंद्र और राज्य सरकारों के कर-शुल्क वगैरह की मेहरबानी से।
इस समय सरकारी तेल कंपनियाँ डीजल पर नुकसान का काफी रोना रो रही हैं। उनका रोना-धोना अपनी जगह सही है। लेकिन वे उपभोक्ताओं को ये भी तो बतायें न कि अगर डीजल पर शून्य कर हो और खुदरा कीमत आज के बराबर ही रखी जाये तो उन्हें कितना नफा-नुकसान होगा? पेट्रोल-डीजल पर सरकारी सहायता (सब्सिडी) की बात एकदम झूठी है। आपकी जेब से 10 रुपये निकाल कर 2-4 रुपये लौटा देने को सब्सिडी नहीं कहा जा सकता।
लेकिन क्या वित्त मंत्री पेट्रोलियम क्षेत्र पर लगने वाले ऊँचे करों-शुल्कों का ढाँचा हिलाने का साहस दिखा पायेंगे? उम्मीद कम है। बात केवल केंद्र सरकार की भी नहीं है। राज्य सरकारों ने भी इसी क्षेत्र को दुधारू गाय मान रखा है। अगर पेट्रोल-डीजल पर वैट खत्म कर दिया जाये तो कई राज्य सरकारें शायद कंगाल ही हो जायें। कुछ समय पहले वित्त मंत्री के रूप में प्रणव मुखर्जी ने संसद में बयान देकर इस मुद्दे पर राज्य सरकारों की भूमिका की बात उठायी थी। गोवा जैसे इक्का-दुक्का राज्यों को छोड़ दें तो किसी राज्य में इस मुद्दे पर एक पत्ता भी नहीं हिला।
(निवेश मंथन, सितंबर 2012)