राजीव रंजन झा :
नोएडा में रहने वाले पंकज गोयल की आयु 45 वर्ष और व्यक्तिगत सालाना आमदनी 2.20 लाख रुपये है। इनके पिता ने जब इनसे कहा तो इन्होंने भारतीय जीवन बीमा निगम (एलआईसी) से एक बीमा करवा लिया। लेकिन इस योजना के नफा-नुकसान के बारे में उन्हें कुछ नहीं पता। उन्हें यह भी मालूम नहीं है कि उनकी इस योजना में कुल बीमा राशि कितनी है। उन्हें बस इतना पता है कि सालाना 18,889 रुपये की दो किस्तें जाती हैं।
पेशे से अध्यापक 42 वर्षीय ओमवीर सिंह की सालाना आय 1.80 लाख रुपये है। इन्हें अपनी योजना की कुल बीमा राशि पता है, जो 4 लाख रुपये है। इन्होंने भी बीमा किसी के कहने पर ले लिया था। उनके पास कौन-सी पॉलिसी है और कुल बीमा राशि के अलावा इसके फायदे क्या-क्या हैं, इन सबके बारे में उन्हें कुछ नहीं पता।
उमेश कुमार 47 वर्ष की हैं। इन्होंने मनी बैक पॉलिसी ली है, जिसकी कुल बीमा राशि 50,000 रुपये है। इन्होंने भी यह पॉलिसी किसी के कहने पर ही ली थी। उमेश कुछ ज्यादा जागरूक हैं और उन्हें अपनी पॉलिसी के फायदे काफी हद तक पता हैं। वे चाहते हैं कि बीमा के प्रीमियम की जो राशि वे चुका रहे हैं, कम-से-कम वह तो इन्हें बीमा अवधि पूरी होने पर मिल जानी चाहिए। इसीलिए इन्होंने मनी बैक पॉलिसी ली। लेकिन क्या 50,000 रुपये का बीमा उनके लिए पर्याप्त है?
तीनों ने किसी के कहने पर एजेंट के माध्यम से बीमा लिया। इनकी एक और साझा बात यह है कि बीमा एजेंटों ने उन्हें सावधि बीमा योजना या टर्म प्लान लेने की न तो सलाह दी, न इसके बारे में कुछ बताया। अगर उन्हें सावधि बीमा का पता होता तो शायद वे अपने परिवार को 20 लाख, 50 लाख या एक करोड़ रुपये की बीमा सुरक्षा की छतरी के नीचे लाने की सोचते।
एगॉन रेलिगेयर के एमडी और सीईओ राजीव जामखेडकर के मुताबिक ऐसा इसलिए होता है क्योंकि ग्राहकों को पता ही नहीं होता कि वे किन कारणों से बीमा कराना चाहते हैं। वे गलत कारणों से बीमा पॉलिसी लेते हैं। उनके लिए पहला कारण होता है आयकर (टैक्स) बचाना। इसलिए 31 मार्च से पहले वे कोई भी बीमा करा लेते हैं ताकि एक लाख रुपये तक की छूट की सीमा के अंदर उन्हें लाभ हो जाये। दूसरे, काफी लोग बचत के लिए बीमा कराते हैं। उसके बाद जाकर लोग कहीं सुरक्षा के लिए बीमा की बात सोचते हैं, जबकि बीमा का असली उद्देश्य सुरक्षा होना चाहिए। जामखेडककर मानते हैं कि बीमा के लिए ये तीनों ही जरूरी पहलू होते हैं, लेकिन ग्राहक इनमें सबसे जरूरी पहलू यानी सुरक्षा को ही भूल जाते हैं।
पॉलिसी बाजार के सीईओ यशीश दहिया का भी कहना है, ‘लोगों को पता ही नहीं होता है कि उन्होंने क्या खरीदा है। इसका मतलब यही है कि जिस एजेंट ने उन्हें पॉलिसी बेची, उसने उन्हें इसके बारे में पूरी जानकारी नहीं दी। इससे बचने का उपाय यही है कि ग्राहक खुद जाकर खोजबीन करें और अपनी बीमा योजना खुद खरीदें। तभी उन्हें समझ में आयेगा कि वे क्या खरीद रहे हैं।‘
अगर आपने सावधि बीमा कराया और अच्छी किस्मत से आप पूरी बीमा अवधि तक जीवित रहे, तो बीमा अवधि के अंत में आपको कोई पैसा नहीं मिलता। रिलायंस लाइफ इंश्योरेंस के प्रेसिडेंट और ईडी मलय घोष बताते हैं कि भारतीय समाज में सावधि बीमा की लोकप्रियता बहुत कम है। वे कहते है, ‘लोग सोचते ही नहीं है कि उनकी मृत्यु भी हो सकती है। उन्हें लगता है कि जो पैसा हम सावधि बीमा में देंगे, वह वापस नहीं होगा और इससे उनको नुकसान ही होगा।‘
यशीश भी मानते हैं कि अक्सर ग्राहक बीमा सुरक्षा के बदले केवल निवेश के लिए पॉलिसी लेते हैं। वे कहते हैं, ‘ज्यादातर लोग निवेश वाला उत्पाद लेते हैं। वे देखते हैं कि कहाँ पैसा सुरक्षित रहेगा, यह नहीं देखते कि बीमा सुरक्षा कितनी मिल रही है। यह भावना 90% ग्राहकों में नहीं है।‘
सावधि बीमा की जरूरत के बारे में जामखेडकर कहते हैं, ‘बीमा इसलिए कराया जाता है कि अगर किसी के साथ कोई दुर्घटना हो जाये, वह शारीरिक विकलांगता का शिकार हो जाये या फिर किसी की मृत्यु ही हो जाये तो ऐसी स्थिति में उस व्यक्ति के परिवार वालों को आर्थिक रूप से मदद मिल सके। ग्राहक को सबसे पहले इस सुरक्षा के बारे में सोचना चाहिए।‘
सच तो यह है कि ज्यादातर लोग खुद अपना बीमा उत्पाद नहीं चुनते, बीमा एजेंट के कहने पर बीमा कराते हैं। लेकिन एजेंट सावधि बीमा या टर्म प्लान में सबसे कम दिलचस्पी लेते हैं। सावधि बीमा सबसे सस्ता होता है और इसमें एजेंटों के कमीशन का प्रतिशत भी कम होता है।
यशीश बताते हैं कि ‘सावधि बीमाधारक की मृत्यु हो जाने पर उसके परिवार या नामांकित व्यक्ति को पहले से तय एक निश्चित रकम मिलती है। इससे बीमाधारक की मृत्यु के बाद उसके परिवार को आर्थिक सहारा मिलता है।’ यदि बीमा सुरक्षा के लिहाज से देखें तो यह सबसे कम प्रीमियम में बीमाधारक और उसके परिवार को अधिकतम सुरक्षा देता है। अगर किसी को बीमा कराना हो तो उसे सबसे पहले सावधि योजनाओं के जरिये पर्याप्त बीमा सुरक्षा पक्की कर लेने के बाद ही निवेश या कर बचत जैसे पहलुओं के बारे में सोचना चाहिए।
सावधि बीमा सबसे सस्ता होने के चलते ही एक मध्यमवर्गीय व्यक्ति भी काफी हल्का प्रीमियम चुका कर अपने परिवार को 50 लाख या एक करोड़ रुपये की बीमा सुरक्षा दे सकता है। अगर 60 वर्ष की उम्र तक बीमा सुरक्षा पाने के उद्देश्य से एक करोड़ रुपये के सावधि बीमा का प्रीमियम देखें तो यह कोई बड़ी रकम नहीं है। भारती एक्सा की ईप्रोटेक्ट योजना में 30 वर्ष के पुरुष के लिए 30 वर्ष की अवधि के एक करोड़ रुपये के बीमा के लिए सालाना प्रीमियम 8,202 रुपये बैठता है। इसे मासिक खर्च के रूप में देखा जाये तो केवल 684 रुपये प्रति माह बैठता है।
अगर व्यक्ति की उम्र 35 साल और योजना अवधि 25 साल रखें तो प्रीमियम की राशि 10,675 रुपये हो जाती है। वहीं 40 वर्ष के व्यक्ति के लिए 20 वर्ष की योजना अवधि होने पर 14,270 रुपये का सालाना प्रीमियम बनता है। ये उदाहरण धूम्रपान न करने वाले व्यक्ति के लिए हैं। धूम्रपान करने वाले व्यक्ति के लिए प्रीमियम ज्यादा हो सकता है। एगॉन रेलिगेयर, अवीवा लाइफ जैसी दूसरी कंपनियों की सावधि योजनाओं के प्रीमियम में भी ज्यादा फर्क नहीं है।
लेकिन ग्राहकों का झुकाव निवेश वाली बीमा योजनाओं की ओर ही ज्यादा है। यशीश बताते हैं, ‘जितनी भी जीवन बीमा योजनाएँ हैं, उनमें ज्यादातर में सावधि बीमा का एक हिस्सा शामिल होता है, लेकिन वह बहुत कम होता है। अगर आप निवेश के लिहाज से किसी बीमा पॉलिसी में पैसा लगाते हैं तो उसमें आम तौर पर निवेश की 10 गुना बीमा सुरक्षा मिलती है। मसलन, 1 लाख रुपये का निवेश करने पर आपको अक्सर 10 लाख रुपये की बीमा सुरक्षा मिलेगी, जो 1 लाख रुपये के प्रीमियम के लिहाज से बहुत कम है। वहीं आपको 10 लाख रुपये का सावधि बीमा केवल डेढ़-दो हजार रुपये के प्रीमियम में मिल जायेगा। इस तरह बाकी योजनाओं में आप जो पैसा लगाते हैं, उसका 98-99% हिस्सा निवेश में जाता है।’
एक बीमाधारक ने, जो अपना नाम जाहिर नहीं करना चाहते, मासिक 4000 रुपये के प्रीमियम की बीमा योजना ले रखी है। उनके एजेंट ने उन्हें भरोसा दिलाया है कि योजना अवधि पूरी होने पर उन्हें 28 लाख रुपये वापस मिलेंगे। एजेंट ने बाकायदा एक छपी हुई टेबल दिखा कर उन्हें यह भरोसा दिया। लेकिन ये सज्जन उस वक्त चौंक गये, जब पॉलिसी के दस्तावेज हाथ में आने पर उसमें उन्हें केवल आठ लाख रुपये की बीमा राशि होने की बात दिखी। दरअसल पॉलिसी के दस्तावेज में वह रकम लिखी है, जो पक्के तौर पर उन्हें मिलनी है, या बीमा लाभ के रूप में उनके परिवार को मिलनी है। वहीं एजेंट ने उन्हें जो टेबल दिखायी, वह अनुमानित लाभ की है, जो इस धारणा पर आधारित है कि बीमा कंपनी उनके निवेश पर सालाना औसतन एक खास दर से लाभ कमा सकेगी और उस हिसाब से बीमाधारक को भी रकम मिलेगी।
यह सब जानने के बाद इस बीमाधारक ने कहा कि अगर उन्हें 28 लाख रुपये के बदले केवल 25 लाख रुपये भी मिल जायें तो उन्हें अफसोस नहीं होगा। उनकी चिंता केवल यह है कि कहीं लाभ की यह राशि वास्तव में घट कर केवल आठ लाख रुपये न रह जाये। अगर हम मान भी लें कि उन्हें इस बीमा योजना में पिछले प्रदर्शन के आधार पर लगाये गये अनुमानों के मुताबिक ही लाभ मिल जायेगा, तो यहाँ उन्हें मासिक 4,000 रुपये का प्रीमियम देने पर योजना अवधि के अंत में 28 लाख रुपये की राशि मिलेगी।
दूसरी ओर सावधि बीमा या टर्म प्लान में महीने में केवल करीब 700 रुपये का प्रीमियम दे कर वे अपने परिवार को एक करोड़ रुपये की सुरक्षा दे सकते हैं। बेशक इस विकल्प में अगर योजना अवधि पूरी होने तक वे जीवित रहे तो उन्हें अंत में कोई राशि नहीं मिलेगी। जब हमने उनसे पूछा कि इन दोनों में से कौन-सा विकल्प उन्हें बेहतर लगता है, तो उनका कहना था कि पहला विकल्प ही ठीक है, क्योंकि उसमें अंत में अपने हाथ में कुछ पैसे आयेंगे। दूसरे विकल्प में तो प्रीमियम का पैसा पूरा चला जायेगा, अंत में कुछ नहीं मिलेगा।
मगर इस बारे में राजीव जामखेडकर का सवाल है कि ‘आप कार बीमा क्यों कराते हैं? यही सोच कर कि कभी कार के साथ कोई दुर्घटना हो गयी तो आपको वित्तीय सुरक्षा मिलेगी। लेकिन अगर कोई दुर्घटना नहीं हुई तो ये अच्छी बात ही है। अगर आपने स्वास्थ्य बीमा (हेल्थ इंश्योरेंस) कराया और आपको अस्पताल जाने की जरूरत नहीं पड़ी तो आपको इसका दुख थोड़े ही होगा कि मेडिक्लेम लेने का मौका नहीं मिला! इसलिए बीमा का पैसा कभी बर्बाद नहीं होता है।’
क्या सावधि बीमा है सर्वश्रेष्ठ?
क्या हम यह मान सकते हैं कि सावधि बीमा सबसे अच्छी बीमा योजना है? इस बारे में कोई एक राय बनाना मुश्किल है। मगर इतना जरूर कहा जा सकता है कि सबसे पहले सावधि बीमा योजना के जरिये अपने परिवार को पर्याप्त वित्तीय सुरक्षा देने के बाद बीमा के अन्य विकल्पों को देखना बेहतर रहेगा। यशीश कहते हैं, ‘किसी भी योजना के लिए ऐसा नहीं कहा जा सकता है कि वह हर व्यक्ति के लिए सबसे अच्छी है। अगर मैं कुँवारा हूँ और मेरी आय पर कोई निर्भर नहीं है तो मुझे सावधि बीमा की जरूरत नहीं है। बीमा केवल परिवार को सुरक्षा देने के लिए नहीं कराया जाता। बीमा आपके स्वास्थ्य का भी होता है, शारीरिक विकलांगता के लिए भी होता है। अलग-अलग उद्देश्यों के लिए बीमा योजनाएँ होती हैं।’
तो किन लोगों के लिए सावधि बीमा जरूरी है और किन लोगों के लिए बाकी विकल्प बेहतर हैं? मलय घोष कहते हैं, ‘जो लोग समझदार और जागरूक हैं, नियमित बचत करते हैं, उनके लिए सावधि बीमा ठीक है। जिन्हें जानकारी कम है या वित्तीय अनुशासन नहीं है, उन्हें हम सुझाव देंगे कि ऐसी योजना लें जिसमें जीवन बीमा और लंबी अवधि की बचत दोनों हो।’ घोष आगे कहते हैं, ‘सावधि बीमा उनके लिए ठीक है, जो अपना प्रीमियम हर साल याद कर खुद जमा कर सकेंगे। अगर आप भूल गये और पॉलिसी रद्द हो गयी तो दोबारा मिलने में मुश्किलें आ सकती हैं।’
आप अगर सावधि बीमा का प्रीमियम नियमित रूप से समय पर नहीं भरें तो आपको वह पॉलिसी दोबारा चालू कराने में दिक्कतें आ सकती हैं। सबसे पहले तो आपको प्रीमियम जमा कराने में कोई देरी करनी ही नहीं चाहिए। लेकिन अगर किसी वजह से लगे कि देरी होने वाली है, तो पहले ही बीमा कंपनी से संपर्क करके यह पता कर लेना चाहिए कि प्रीमियम जमा करने के लिए कितने समय की रियायत मिल सकती है। यह भी स्पष्ट रूप से जान लेना चाहिए कि कितने समय तक प्रीमियम जमा नहीं होने पर पॉलिसी हमेशा के लिए रद्द हो जाती है। अगर पॉलिसी रद्द हो गयी तो आपका पिछला पूरा निवेश बेकार चला जायेगा। अगर आप उस समय नये सिरे से सावधि बीमा लेने जायेंगे तो पिछली योजना के बराबर उम्र तक और उतनी ही बीमा राशि के लिए आपको काफी ज्यादा प्रीयिमम देना पड़ सकता है।
भूलने की बीमारी से बचने के लिए सीधे अपने बैंक खाते से इलेक्ट्रॉनिक क्लीयरिंग का रास्ता चुना जा सकता है। घोष कहते हैं, ‘अगर हर महीने आपके बैंक खाते से पैसा कट जाता है तो यह बेहतर है।
कम-से-कम प्रीमियम तो लौटे!
जो लोग सोचते हैं कि सालों तक प्रीमियम चुकाने के बाद अंत में मेरे हाथ तो कुछ आये, उनके लिए बीमा कंपनियाँ सावधि बीमा में भी प्रीमियम वापसी या रिटर्न ऑफ प्रीमियम (आरओपी) का विकल्प देती हैं। लेकिन घोष स्पष्ट करते हैं कि प्रीमियम वापसी का विकल्प चुनने पर थोड़ी-सी बचत का हिस्सा इसमें आ ही जाता है। वह शुद्ध सावधि बीमा नहीं है। सामान्य रूप से सावधि बीमा का जो प्रीमियम होता है, उसमें कंपनी कुछ और राशि जोड़ कर आपसे आरओपी का अतिरिक्त प्रीमियम लेती है। पॉलिसी बाजार के चीफ मार्केटिंग ऑफिसर (सीएमओ) अक्षय मेहरोत्रा कहते हैं कि प्रीमियम वापसी की सुविधा अतिरिक्त प्रीमियम देने पर मिलती है। अगर सामान्य सावधि बीमा का प्रीमियम 100 रुपये है तो आरओपी राइडर के साथ उसका प्रीमियम 125 रुपये होगा। मेहरोत्रा मानते हैं कि आप जो 25 रुपये अतिरिक्त देंगे, उसे किसी बेहतर विकल्प में निवेश करने पर आपको कहीं ज्यादा अच्छा लाभ मिल सकता है।
कैसे चुनें कंपनी और बीमा योजना
आम धारणा है कि बीमा उत्पादों को समझना आसान नहीं होता। हालाँकि सावधि बीमा को समझना तुलनात्मक रूप से सरल कहा जा सकता है। इसमें आपको केवल यह देखना है कि एक खास अवधि और एक खास बीमा राशि के लिए कितना प्रीमियम चुकाना पड़ रहा है। लेकिन पॉलिसी बाजार के दहिया बताते हैं, ‘वित्तीय सेवाओं में उत्पादों को पेंचीदा कर दिया जाता है ताकि उनकी तुलना न हो सके। अगर ऐसा हो गया तो वे मुनाफा नहीं कमा पायेंगी और ग्राहक सबसे सस्ती चीज ले लेगा।’
सावधि बीमा के बारे में दहिया की स्पष्ट राय है कि जो सबसे सस्ता है वही सबसे अच्छा है। सावधि बीमा की कहानी बहुत सरल है। अगर मृत्यु हो जाती है तो बीमा के पैसे मिल जायेंगे, अगर जिंदा हैं तो पैसे नहीं मिलेंगे। यह एक तय अवधि के लिए बीमा सुरक्षा है और उसके लिए आप एक निश्चित प्रीमियम का भुगतान करते हैं। वह प्रीमियम जितना कम होगा, उतना अच्छा है।
हालाँकि उनका कहना है, ‘इसमें कुछ खासियतें अलग से जोड़ी जा सकती हैं, जो राइडर के रूप में होती हैं। यह देखना चाहिए कि क्रिटिकल इलनेस यानी गंभीर बीमारी की सुरक्षा मिल रही है या नहीं? देखें कि स्थायी विकलांगता या पर्मानेंट डिसेबिलिटी के लिए सुरक्षा है या नहीं? यह देखें कि गंभीर बीमारी की स्थिति में आपको कुछ साल पहले ही पैसे मिल जायेंगे या नहीं।’
मेहरोत्रा कहते हैं, ‘आप यह भी देखें कि मृत्यु की स्थिति में बीमा लाभ का दावा करने के लिए क्या-क्या विकल्प हैं? पूरी बीमा राशि एक बार में मिलेगी या किसी और तरह से। दूसरे, यह देखें कि दुघर्टना में हुई मौत को बीमा सुरक्षा में जोड़ा गया है या नहीं।’ सावधि बीमा में दुर्घटना से मृत्यु के अतिरिक्त बीमा का विकल्प चुना जा सकता है। मेहरोत्रा कहते हैं कि इसके लिए आप अपनी बीमा राशि दोगुनी कर सकते हैं। मसलन, अगर आपने 50 लाख रुपये की सामान्य सावधि बीमा योजना ली, तो उसके साथ 50 लाख रुपये का दुर्घटना बीमा भी करा लें। इस तरह दुर्घटना से मृत्यु की स्थिति में कुल एक करोड़ रुपये की बीमा राशि मिलेगी। यहाँ बीमा राशि दोगुनी हो जाने के बावजूद प्रीमियम उतना नहीं बढ़ता। उदाहरण के लिए 1 करोड़ रुपये के सावधि बीमा का प्रीमियम अगर 10,000 रुपये है, तो एक करोड़ रुपये के दुर्घटना बीमा का प्रीमियम केवल 2,500 रुपये होगा। एक-चौथाई प्रीमियम पर ही दुर्घटना बीमा मिल जाता है। कम उम्र में दुर्घटना से मृत्यु की घटनाएँ अधिक होती हैं, जबकि अधिक उम्र में बीमारी से ज्यादा लोगों की मृत्यु होती है।
राइडर यानी अतिरिक्त खासियतें या सुरक्षा जुडऩे पर प्रीमियम की तुलना करना थोड़ा जटिल हो जाता है, क्योंकि हर अतिरिक्त राइडर के साथ प्रीमियम भी बढ़ता है। लेकिन दहिया बताते हैं कि बिना किसी राइडर के जो प्रीमियम बैठ रहा है, राइडर जोडऩे के बाद कुल प्रीमियम 20-25% से ज्यादा नहीं बढऩा चाहिए।
घोष ध्यान दिलाते हैं कि ऐसी कंपनियों के ही प्लान लें जिनकी शाखाएँ आसानी से उपलब्ध हों, कंपनी की रेटिंग बढिय़ा हो, ब्रांड अच्छा हो और कंपनी का ग्राहकों से व्यवहार अच्छा हो। ऐसी कंपनी में अगर आप कभी प्रीमियम भरना भूल जायें तो शायद उतनी दिक्कत नहीं आयेगी।
मेहरोत्रा कहते हैं, ‘आप जिस किसी कंपनी से बीमा करा रहे हैं, उसका दफ्तर आपके शहर में होना चाहिए, वरना पॉलिसी खरीदने, चलाने और उसका फायदा लेने में दिक्कतें आयेंगी। बीमा का दावा भी आपको फोन से ही करना होगा, जो मुश्किल भरा होगा। जो 50 बड़े शहर हैं, वहाँ तो तकरीबन सारी बीमा कंपनियाँ मौजूद हैं, लेकिन उसके बाद मुश्किल होती है।’
क्यों होता है प्रीमियम में फर्क
सबसे सस्ती चुन लेने की बात एक ग्राहक के नजरिये से ठीक है, लेकिन यह सवाल तो उठता ही है कि एक जैसी बीमा योजना में अलग-अलग बीमा कंपनियों के प्रीमियम में काफी अंतर क्यों दिखता है। जामखेडकर कहते हैं कि अलग-अलग कंपनियाँ अलग-अलग तरह से अपने बीमा उत्पादों की रूपरेखा बनाती हैं और उनकी कीमतें अलग-अलग होती हैं। इसलिए बीमा योजना की खासियतों के हिसाब से उनके प्रीमियम में अंतर हो सकता है। ग्राहक की श्रेणी और कंपनी की नीति के हिसाब से भी प्रीमियम तय होता है। यह दरअसल बीमा कंपनी दावों (क्लेम) के बारे अपने अनुभव के हिसाब से तय करती है। उनकी सलाह है कि कीमत की तुलना करते समय यह देखना चाहिए कि दो योजनाओं की अवधि में कितना फर्क है और अलग से मिलने वाली सुविधाएँ (राइडर) क्या-क्या हैं? लेकिन अगर दो योजनाएँ बिल्कुल एक जैसी हों, तो जामखेडकर भी मानते हैं कि जिसमें आपको कम प्रीमियम देना पड़े उसे लिया जा सकता है।
लेकिन एक ही जैसी योजना में एक कंपनी का प्रीमियम 13,000 रुपये और दूसरी कंपनी का प्रीमियम 24,000 रुपये, ऐसा क्यों? दहिया इस बारे में समझाते हैं, ‘हर बीमा कंपनी यह दाँव लगा रही है कि बीमा कराने वाले इंसान के मरने की कितनी संभावना है और उसके आधार पर प्रीमियम तय कर रही है। कंपनी उसमें कामकाजी खर्च और वितरण लागत भी डालती है। एक कंपनी अगर सस्ती योजना दे रही है तो इसके तीन कारण हो सकते हैं - या तो उसकी वितरण लागत कम है या उसका कामकाजी खर्च कम है या फिर वह बहुत ज्यादा आक्रामक दाँव लगा रही है।’
एक और भी पहलू है। दहिया के मुताबिक यह भी हो सकता है सस्ती योजना दे रही कंपनी आपसे कुछ ऐसी जानकारियाँ ले रही हो, जो दूसरी कंपनी ने ली ही नहीं और इन अतिरिक्त जानकारियों की वजह से वह कंपनी जोखिम का ज्यादा अच्छा अनुमान लगा पा रही हो। उदाहरण के लिए, एक कंपनी ने आपसे केवल इतना पूछा कि आपकी उम्र क्या है और आपको प्रीमियम बता दिया। एक कंपनी ने आपकी उम्र के अलावा यह भी पूछा कि आपका वजन कितना है, लंबाई कितनी है और उसके बाद प्रीमियम बताया। इसका मतलब यह है कि एक कंपनी के पास आपका बॉडी मास इंडेक्स (बीएमआई) है, लेकिन दूसरी के पास नहीं है। जिसके पास आपका बीएमआई इंडेक्स है, शायद वह आपके बारे में थोड़ा अच्छा दाँव लगा सकती है।
ई-प्लान लेना कितना बेहतर?
आजकल सामान्य बीमा योजना की तुलना में इंटरनेट पर ऑनलाइन या ई-प्लान उपलब्ध हैं। आम तौर पर ऐसी बीमा योजना के नाम के आगे ई या आई जुड़ा दिखता है। इनमें प्रीमियम की राशि बिल्कुल वैसी ही सुविधाओं वाली सामान्य बीमा योजना के मुकाबले कुछ कम, और कभी-कभी काफी कम होती है। ऐसे में क्या यह बेहतर होगा कि ऐसे ई-प्लान को ही चुना जाये?
मलय घोष के मुताबिक सामान्य और ऑनलाइन प्लान में मुख्य अंतर यही है कि ऑनलाइन में अभी कोई एजेंसी कमीशन जुड़ा हुआ नहीं होता। आम तौर पर दोनों के प्रीमियम में अंतर 25% से ज्यादा का हो सकता है।
ई-प्लान के बारे में भी घोष इस पर जोर देते हैं कि ग्राहक खुद फैसले लेने में कितना सक्षम है और उसका वित्तीय अनुशासन कैसा है। वे कहते हैं, ‘अगर आप किसी एजेंट की मदद के बिना सही तरीके से योजना चुन पाने में सक्षम हैं, अपने सभी कागजातों को सही समय पर सही तरीके से ऑनलाइन जमा करा सकते हैं या फिर क्रेडिट कार्ड से भुगतान कर सकते हैं और आप वित्तीय रूप से अनुशासित हैं तो इसमें कोई हर्ज नहीं है।’
दहिया कहते हैं कि ई-प्लान में ज्यादातर सुविधाएँ एक जैसी होती हैं, लिहाजा कोई परेशानी नहीं हैं। ऑनलाइन के बारे में माना जाता है कि इससे वितरण का खर्च बचता है। लेकिन दहिया के मुताबिक इसमें ग्राहक की ओर से खुद दी जाने वाली जानकारियों या सेल्फ-डेक्लेरेशन की कीमत को अभी समझा नहीं गया है।
उनका कहना है, ‘इक्का-दुक्का कंपनियों ने इसे समझ लिया है। मान लीजिए कि 100 लोगों ने ऑफलाइन यानी एजेंट से सावधि बीमा कराया। उनमें से 20 मधुमेह के मरीज थे, लेकिन 10 के एजेंट ने बोल दिया कि मधुमेह नहीं हैं। ऐसे लोगों को बीमा मिल भी गया। अब आपको 100 लोगों का एक ऐसा पोर्टफोलिओ मिला, जिसमें मधुमेह वालों की संख्या ज्यादा है और उनकी मृत्यु की संभावना भी थोड़ी ज्यादा है। अगर यही 100 लोग ऑनलाइन आये होते तो मधुमेह वाले सभी 20 लोगों ने इस बारे में बता दिया होता। पहली स्थिति में आपको गलत जानकारी की वजह से मधुमेह वाले 10 ज्यादा लोग मिले, जो दूसरी स्थिति में नहीं मिल रहे हैं। आप सिर्फ 80 लोगों को बीमा सुरक्षा दे रहे हैं। आप इन 80 लोगों को कम कीमत पर बीमा दे सकते हैं।’
घोष इस बात की ओर ध्यान दिलाते हैं कि ऑनलाइन सावधि बीमा में बीमा राशि की न्यूनतम सीमा ऊँची होती है, क्योंकि यह जागरूक लोगों के लिए है। उनके मुताबिक ऑनलाइन योजना में कम-से-कम 25 लाख रुपये की बीमा राशि रखी जाती है। उन्हीं लोगों को 25 लाख की बीमा दिया जाता है, जिनकी वार्षिक आय कम-से-कम 3-4 लाख से अधिक हो।
सही जानकारियाँ देना जरूरी
दहिया मानते हैं कि आम तौर पर लोग जब खुद फॉर्म भरते हैं तो गलत जानकारियाँ नहीं देते। उन्हें अहसास होता है कि इसकी जाँच हो सकती है और गलत जानकारियाँ देने से दावा खारिज किया जा सकता है। वे कहते हैं, ‘आमतौर पर ग्राहक झूठ नहीं बोलते। ज्यादातर मौकों पर वितरक ही ग्राहक के बारे में गलत बताते हैं। एजेंट ग्राहक की ओर से गलत जानकारी मुहैया कराते हैं। एजेंट जब हमारे पास आते हैं तो हम खुद फॉर्म भरना नहीं चाहते हैं, क्योंकि उसमें समय लगता है। अक्सर एजेंट खुद बोल देता है कि आप बस हस्ताक्षर कर दीजिए, बाकी मैं खुद भर दूँगा। ये अच्छा भी हो सकता है और गलत भी। क्या पता ऐसा वह अच्छी सेवा देने के लिए कर रहा है या झूठ बोलने के लिए? लेकिन आपको उससे नुकसान हो सकता है। आपका बीमा कराने पर उसे फायदा होगा और अगर किसी कारण से आपको बीमा नहीं मिलने वाला तो उस बात पर झूठी बात फॉर्म में भरने का उसके पास एक कारण है। उसके सामने एक लालच है झूठ बोल कर आपको पॉलिसी दिलाने का।’
कभी-कभी ग्राहक भी सोचते हैं कि एक-दो बातें छिपा कर बीमा करा लेने पर प्रीमियम कम लगेगा। कई बार ग्राहक ध्यान न देने के चलते या मामूली बातें समझ कर कुछ जानकारियाँ फॉर्म में नहीं भरते। लेकिन ऐसा सोचना बिल्कुल गलत है। ऐसा करने वाले ग्राहक बीमा कराने के असली मकसद को ही खतरे में डाल देते हैं। ध्यान रखें कि बीमा कंपनी आपको बीमा देते समय शायद उतनी बारीकी से पड़ताल नहीं करे, लेकिन दावे के भुगतान के वक्त तो वह हर बात परखती है। अगर उसे एक भी ऐसा मुद्दा मिल गया, जहाँ आप गलत हों तो वह दावे के भुगतान में कटौती कर सकती है या पूरा दावा ही रद्द कर सकती है। किसी अवांछित घटना की स्थिति में आप अपने परिवार को सुरक्षा की जो छतरी देना चाहते हैं, उसमें कोई छेद छोडऩा ठीक नहीं है।
दावे निपटाने में कैसा है प्रदर्शन
बीमा करते समय तो हर कंपनी ग्राहकों के हितों का पूरा ध्यान रखने के दावे करती है, लेकिन दावों के निपटारे का प्रतिशत या क्लेम सेट्लमेंट रेश्यो (सीएसआर) देख कर उसके दावों की विश्वसनीयता का अंदाजा लगाया जा सकता है। घोष बताते हैं कि बीमा कंपनी दावों को दो श्रेणियों में बाँटती है, शीघ्र दावा (अर्ली क्लेम) और सामान्य दावा (नॉन अर्ली क्लेम)। बीमा कराने की तारीख से दो साल के भीतर दुर्घटना के अलावा किसी दूसरी वजह से व्यक्ति की मृत्यु होने पर कंपनी को कानूनन यह छानबीन करनी पड़ती है कि कहीं उसने अपनी बीमारी या कोई और बात छिपा कर तो बीमा नहीं लिया। पहले दो साल में यह कानूनी रूप से जरूरी है, दो साल के बाद इसकी जरूरत नहीं होती है। शीघ्र दावों की श्रेणी में यह देखना चाहिए है कि कोई कंपनी 120 दिनों के भीतर कितने दावों का निपटारा कर रही है, हालाँकि इस श्रेणी में इरडा के दिशानिर्देशों के मुताबिक 180 दिनों का समय तय है। वहीं सामान्य या नॉन अर्ली दावों में यह देखना चाहिए कि कंपनी 7, 15 और 30 दिनों के अंदर कितने दावों का भुगतान करती है।
बीमा किस उम्र में, कब तक का?
कौन-सी उम्र बीमा कराने के लिए ठीक है, यह पूछने पर घोष उल्टे यह पूछते हैं कि किस उम्र में आपको लगता है जीवन बहुमूल्य है! आप जब मोटरसाइकल चलाते हैं तो जिस दिन से सीखना शुरू करते हैं, उसी दिन से हेलमेट पहनना जरूरी हो जाता है। उसी तरह जब आप कमाते हैं (कम उम्र में भी), तो आप किसी-न-किसी के लिए कमाते हैं। इसलिए तब से ही यह उचित समय हो जाता है कि व्यक्ति जीवन बीमा कराने के बारे में सोचे। अगर आप एकदम युवा हैं तो आपको अपने माता-पिता के बारे में सोचना पड़ता है। अगर आपकी उम्र थोड़ी आगे बढ़ गयी है और आपका अपना परिवार है तो आपको उसकी चिंता करनी है। लिहाजा घोष कहते हैं कि कमाने वाले सभी लोगों के लिए बीमा जरूरी है। वे यह भी ध्यान दिलाते हैं कि कम उम्र में बीमा पॉलिसी शुरू करने पर आपका प्रीमियम भी कम होगा और उसका लाभ आपको लेना चाहिए।
अब सवाल है कि बीमा योजना की अवधि कितनी होनी चाहिए, या दूसरे शब्दों में किस उम्र तक के लिए होनी चाहिए? जामखेडकर कहते हैं कि आप सावधि बीमा कितनी अवधि के लिए करायें, यह आपकी उम्र पर निर्भर करता है। उनकी सलाह है कि ‘आप उस उम्र तक के लिए बीमा करायें, जब तक आपकी वित्तीय जिम्मेदारियाँ रहेंगी और आपके परिवार के लोग आप पर निर्भर रहेंगे। इसलिए यह उम्र सीमा हर व्यक्ति के लिए अलग-अलग हो सकती है, लेकिन मेरा मानना है कि लोगों को 60 या 70 साल तक की उम्र के लिए बीमा योजना लेनी चाहिए। कम-से-कम 60 वर्ष की उम्र तक के लिए तो बीमा होना ही चाहिए। कुछ लोगों के लिए इसकी जरूरत 60 साल के बाद भी हो सकती है, पर ज्यादातर लोग 60 साल तक अपनी वित्तीय जिम्मेदारियाँ निभा लेते हैं और सेवानिवृत हो जाते हैं। अगर उनका कोई घर कर्ज (होम लोन) या ऐसी कोई और देनदारी बाकी न हो तो उन्हें 60 साल के बाद का बीमा लेने की जरूरत नहीं होगी। इस तरह 60-65 साल की उम्र तक का बीमा तो कराना ही चाहिए।’
घोष भी इससे सहमत हैं। उनका भी सीधा कहना है कि बीमा तब तक के लिए होना चाहिए, जब तक आप सोचते हैं कि आप कमाते रहेंगे और आपकी कमाई में आपके अलावा परिवार के दूसरे लोगों का भी अधिकार (या निर्भरता) रहेगा। उनकी सलाह है कि ‘जितनी ज्यादा अवधि का सावधि बीमा मिल रहा हो उतना ले लेना चाहिए। आगे उस अवधि तक उस योजना को चलाना या नहीं चलाना तो आप पर निर्भर करता है। लेकिन जैसे-जैसे उम्र बढ़ती जायेगी, सावधि बीमा लेने में उतनी ही दिक्कतें आयेंगी। ज्यादा उम्र में बीमा नहीं मिलता है। इसलिए बेहतर है कि जितनी अधिक अवधि की योजना मिल रही है, वह ले लें। जब लगे कि अब जरूरत खत्म उसके बाद नहीं चाहिए तो मत दीजिये।’
अगर आप अधिक अवधि का बीमा कराते हैं तो उससे प्रीमियम थोड़ा बढ़ जाता है। लेकिन अगर आप अधिक उम्र में नये सिरे से बीमा कराने जायेंगे तो प्रीमियम पहले की तुलना में कई गुना ज्यादा हो सकता है, या फिर कंपनी आपको बीमा देने से मना भी कर सकती है।
मसलन, 30 साल की उम्र में कोई सोचे कि अभी से 30-40 साल तक का सावधि बीमा क्यों करायें? पहले 10 साल का कराते हैं और 10 साल बाद फिर से नयी पॉलिसी ले लेंगे। लेकिन 30 साल की उम्र में आपको अगले 30-40 वर्षों के लिए जिस प्रीमियम पर बीमा मिलेगा, उसके मुकाबले 40 वर्ष की आयु में काफी ज्यादा प्रीमियम देना पड़ सकता है। हमने देखा कि आज अगर आप 30 वर्ष के हैं और 60 साल की आयु तक के लिए, यानी 30 वर्ष की अवधि के लिए एक करोड़ रुपये का सावधि बीमा कराना चाहें, तो आपको भारती एक्सा के ईप्रोटेक्ट प्लान में 8,202 रुपये का सालाना प्रीमियम देना होगा। लेकिन अगर उम्र 40 वर्ष है और 60 वर्ष की आयु तक के लिए, यानी 20 वर्ष की अवधि का एक करोड़ रुपये का ही बीमा लें तो सालाना 14,270 रुपये का प्रीमियम चुकाना होगा।
अब कल्पना करें कि आज किसी 30 वर्ष के व्यक्ति ने केवल 10 साल तक की अवधि के लिए बीमा कराया तो अगले 10 वर्षों तक उसे एक करोड़ की बीमा सुरक्षा केवल 8,202 रुपये के सालाना प्रीमियम में मिली रहेगी। लेकिन अगर 10 साल बाद वह 40 वर्ष की आयु में फिर से एक करोड़ रुपये का बीमा कराने जायेगा तो उसे 14,270 रुपये नहीं, बल्कि इसी तरह की योजना की उस समय लागू कीमत देनी होगी। आखिर इस पर महँगाई दर का असर तो पड़ेगा ही। साथ ही संभव है कि उस समय तक व्यक्ति की स्वास्थ्य संबंधी दशाएँ आज की तरह न रह जायें। वैसे में मधुमेह या किसी अन्य स्वास्थ्य संबंधी कारण से उसे वह बीमा और महँगा मिले।
इसी वजह से मेहरोत्रा कहते हैं कि ‘सावधि बीमा आपकी जिंदगी की पहली बीमा योजना होनी चाहिए। जितनी जल्दी हो सके और जितनी लंबी अवधि की योजना आप ले सकते हैं, वह ले लीजिए। जैसे, 75 साल तक की अधिकतम आयु के लिए सावधि बीमा उपलब्ध है। आप वह ले लीजिए। प्रीमियम का अंतर देखिए, अगर 21 साल पर 500 रुपये प्रीमियम है तो 40 साल पर 5000 रुपये प्रीमियम है। आप किस उम्र में बीमा लेना पसंद करेंगे?’
मेहरोत्रा इस ओर भी ध्यान दिलाते हैं कि योजना शुरू करने के बाद प्रीमियम की राशि भले ही हर साल एक जैसी रहती है, लेकिन समय के साथ उसकी कीमत कम होती रहती है। अगर आज 500 रुपये ज्यादा लगता है, तो आज से पाँच साल बाद 500 रुपये की कीमत आज के 250 रुपये के बराबर और 10 साल बाद 125 रुपये के बराबर रह जायेगी।
यह बात केवल प्रीमियम के बारे में नहीं, बीमा राशि के बारे में भी सच है। इसीलिए बीमा की जरूरत को आज के पैमाने पर नहीं, भविष्य के पैमाने पर आँकना चाहिए। इसीलिए मेहरोत्रा यह सलाह भी देते हैं कि जैसे-जैसे आपकी आय बढ़ती जाये, उसके मुताबिक आप समय-समय पर अपनी बीमा संबंधी जरूरत की समीक्षा करते रहें। अमूमन हर पाँच साल में आपको परख लेना चाहिए कि आपकी आय के मुताबिक आपने बीमा सुरक्षा ले रखी है या नहीं। आय जिस हिसाब से बढ़ रही है, उसी अनुपात में बीमा राशि बढ़ाते रहें। उनका कहना है कि अपनी वार्षिक आय की 8-10 गुना राशि का बीमा होना चाहिए।
आज किसी व्यक्ति को लग सकता है उसके न रहने पर उसके परिवार की वित्तीय सुरक्षा के लिए 10 लाख रुपये पर्याप्त होंगे। लेकिन क्या पाँच साल बाद भी उनके परिवार की वित्तीय जरूरतें 10 लाख रुपये में पूरी हो सकेंगी? बदलते वक्त के साथ वित्तीय जरूरतें किस तरह बदलती है, इसे समझने के लिए किसी 40 वर्ष के इंजीनियर से पूछें कि उनकी इंजीनियरिंग की पढ़ाई का खर्च क्या था और उसकी तुलना आज होने वाले खर्च से कर लें। किसी 50-60 वर्ष की आयु के व्यक्ति से पूछें कि उनकी शादी के मौके पर कितना खर्च किया गया था और उस खर्च की तुलना आज होने वाले खर्च से करके देख लें। जरूरतें हमेशा हमारी सोच से भी ज्यादा तेज रफ्तार से बढ़ती हैं।
– साथ में बृजेश श्रीवास्तव और रितू तोमर
मलय घोष, प्रेसिडेंट और ईडी, रिलायंस लाइफ इंश्योरेंस :
जब चाहें राइडर जोड़ें या हटायें
सबकी आर्थिक स्थितियाँ अलग होती हैं। एक वित्तीय योजना का लक्ष्य आर्थिक स्वतंत्रता है। लंबी अवधि की बचत और जीवन बीमा दोनों ही बीमा के आधार होते हैं। अलग-अलग लोगों के लिए अलग-अलग योजनाएँ हैं। मेरी सलाह है कि आप अपनी आमदनी में से बचत का हिस्सा घटाने के बाद बाकी पैसा खर्च करें। आम तौर पर लोग सोचते हैं कि आय में से खर्च को काट कर जो बचा, वह उनकी बचत है। लेकिन आपकी बचत तभी हो पायेगी, जब अनुशासन के तहत आय में से बचत को काटने के बाद बाकी बचे पैसे को खर्च करें। लंबी अवधि की बचत के लिए जीवन बीमा पर सबसे ज्यादा निर्भर किया जा सकता है।
रिलायंस लाइफ में बहुत-से ऐसे राइडर हैं, जो वास्तव में सावधि बीमा हैं और उन्हें किसी भी जीवन बीमा योजना (लाइफ इंश्योरेंस पॉलिसी) के साथ जोड़ा जा सकता है। मान लें कि आपने एक एण्डॉवमेंट पॉलिसी ली है और आप बीमा राशि उतनी नहीं रख पाये, जितनी आपको रखनी चाहिए था। बाद में आप सोचते हैं कि बीमा राशि को बढ़ाना चाहिए। रिलायंस लाइफ में हम ये सुविधा देते हैं कि आपकी उस पॉलिसी के साथ ही सावधि बीमा जोड़ देंगे। इसे टर्म राइडर कहते हैं। हमारे पास गंभीर बीमारी, सर्जिकल बेनिफिट, और फेमिली इन्कम बेनिफिट जैसे राइडर भी हैं। फेमिली इन्कम बेनिफिट राइडर एक अनोखा ऐसा राइडर है, जिसमें व्यक्ति का देहांत हो जाने पर उसके परिवार को न केवल बीमा राशि और बोनस की राशि मिलेगी, बल्कि योजना अवधि के अंत तक या दस साल पूरे होने तक बीमा राशि के 1% के बराबर मासिक भुगतान भी आता रहेगा। रिलायंस लाइफ की बीमा योजनाओं में राइडर की खूबी यह है कि पॉलिसी चालू रहने के दौरान किसी भी समय आप राइडर जोड़ सकते हैं। आम तौर पर दूसरी कंपनियों में राइडर को पॉलिसी खरीदने के समय ही लेना पड़ता है, बाद में नहीं मिलता है। लेकिन हमारे यहाँ पॉलिसी लेने के 10 या 15 साल बाद भी या किसी भी समय राइडर ले सकते हैं या अलग कर सकते हैं।
वित्तीय लक्ष्यों की भी सुरक्षा करता है बीमा
बीमा का उद्देश्य आपके वित्तीय लक्ष्यों की सुरक्षा करना भी होता है, जैसे सेवानिवृति (रिटायर) होना या बच्चों के लिए कोई बड़ा खर्च। यदि वह लंबी अवधि का लक्ष्य हो, यानी 10-15 सालों का, तो बीमा ही एक ऐसा वित्तीय औजार है जो आपके उस लक्ष्य की सुरक्षा करता है। जैसे, अगर किसी बच्चे के लिए आप चाहते हैं कि 20 साल की उम्र होने पर उसे एक निश्चित रकम मिले तो इसके लिए शिशु योजना (चाइल्ड प्लान) है। उस दौरान माता-पिता की मृत्यु हो जाने पर भी उस बच्चे को वह रकम मिलती है। बीमा के जरिये एक तो जल्दी मृत्यु हो जाने की स्थिति में वित्तीय सुरक्षा मिलती है, लेकिन दूसरा जोखिम यह भी होता है कि अगर सेवानिवृति के बाद आपका जीवन लंबे समय तक चले तो आय का स्रोत क्या होगा? इस बात की गारंटी आपको बीमा योजना से मिल पाती है।
बीमा में दो तरह के लाभ मिलते हैं। एक होता है मृत्यु की स्थिति में परिवार को मिलने वाली राशि, जिसे मृत्यु लाभ (डेथ बेनिफिट) कहते हैं। दूसरा लाभ होता है जीवन लाभ (सर्वाइवल बेनिफेट)। अगर उस निश्चित अवधि में बीमाधारक की मृत्यु नहीं हो तो उसे जीवन लाभ मिलता है। सावधि बीमा (टर्म प्लान) में जीवन लाभ शून्य होता है, लेकिन मृत्यु लाभ ज्यादा होता है। कुछ योजनाओं में मृत्यु लाभ ज्यादा होने के साथ-साथ जीवन लाभ भी थोड़ा-बहुत होता है। मेरे हिसाब से दोनों तरह के लाभ देखने चाहिए। बेशक, आप सावधि बीमा लें या कोई और योजना, यह व्यक्तिगत तौर पर निर्भर करता है।
सावधि योजना और प्रीमियम वापसी (रिटर्न ऑफ प्रीमियम या आरओपी) दोनों ही योजनाएँ ठीक हैं। कई लोगों के मन में यह बात रहती है कि कम-से-कम मेरा प्रीमियम वापस मिल जाये। ऐसे लोग आरओपी वाला विकल्प चुन सकते हैं। जो बिल्कुल युवा हैं और जिन्हें सबसे सस्ती योजना चाहिए, उन्हें शायद आरओपी की जरूरत नहीं है। जैसे, मान लें कि 25 साल का कोई युवक जो अभी अपनी नौकरी शुरू कर रहा है और उसके ऊपर कोई खास जिम्मेदारी नहीं है, शायद वह अविवाहित ही हो, अगर वह 20-25 साल की सावधि योजना ले तो उसे काफी सस्ता मिलेगा। लेकिन उम्र थोड़ी बढऩे पर प्रीमियम वापसी एक अच्छा विकल्प है, क्योंकि तब प्रीमियम ज्यादा होता है। इसलिए दोनों ही अच्छे प्लान हैं।
राजीव जामखेडकर, एमडी और सीईओ, एगॉन रेलिगेयर :
वित्तीय लक्ष्यों की भी सुरक्षा करता है बीमा
बीमा का उद्देश्य आपके वित्तीय लक्ष्यों की सुरक्षा करना भी होता है, जैसे सेवानिवृति (रिटायर) होना या बच्चों के लिए कोई बड़ा खर्च। यदि वह लंबी अवधि का लक्ष्य हो, यानी 10-15 सालों का, तो बीमा ही एक ऐसा वित्तीय औजार है जो आपके उस लक्ष्य की सुरक्षा करता है। जैसे, अगर किसी बच्चे के लिए आप चाहते हैं कि 20 साल की उम्र होने पर उसे एक निश्चित रकम मिले तो इसके लिए शिशु योजना (चाइल्ड प्लान) है। उस दौरान माता-पिता की मृत्यु हो जाने पर भी उस बच्चे को वह रकम मिलती है। बीमा के जरिये एक तो जल्दी मृत्यु हो जाने की स्थिति में वित्तीय सुरक्षा मिलती है, लेकिन दूसरा जोखिम यह भी होता है कि अगर सेवानिवृति के बाद आपका जीवन लंबे समय तक चले तो आय का स्रोत क्या होगा? इस बात की गारंटी आपको बीमा योजना से मिल पाती है।
बीमा में दो तरह के लाभ मिलते हैं। एक होता है मृत्यु की स्थिति में परिवार को मिलने वाली राशि, जिसे मृत्यु लाभ (डेथ बेनिफिट) कहते हैं। दूसरा लाभ होता है जीवन लाभ (सर्वाइवल बेनिफेट)। अगर उस निश्चित अवधि में बीमाधारक की मृत्यु नहीं हो तो उसे जीवन लाभ मिलता है। सावधि बीमा (टर्म प्लान) में जीवन लाभ शून्य होता है, लेकिन मृत्यु लाभ ज्यादा होता है। कुछ योजनाओं में मृत्यु लाभ ज्यादा होने के साथ-साथ जीवन लाभ भी थोड़ा-बहुत होता है। मेरे हिसाब से दोनों तरह के लाभ देखने चाहिए। बेशक, आप सावधि बीमा लें या कोई और योजना, यह व्यक्तिगत तौर पर निर्भर करता है।
सावधि योजना और प्रीमियम वापसी (रिटर्न ऑफ प्रीमियम या आरओपी) दोनों ही योजनाएँ ठीक हैं। कई लोगों के मन में यह बात रहती है कि कम-से-कम मेरा प्रीमियम वापस मिल जाये। ऐसे लोग आरओपी वाला विकल्प चुन सकते हैं। जो बिल्कुल युवा हैं और जिन्हें सबसे सस्ती योजना चाहिए, उन्हें शायद आरओपी की जरूरत नहीं है। जैसे, मान लें कि 25 साल का कोई युवक जो अभी अपनी नौकरी शुरू कर रहा है और उसके ऊपर कोई खास जिम्मेदारी नहीं है, शायद वह अविवाहित ही हो, अगर वह 20-25 साल की सावधि योजना ले तो उसे काफी सस्ता मिलेगा। लेकिन उम्र थोड़ी बढऩे पर प्रीमियम वापसी एक अच्छा विकल्प है, क्योंकि तब प्रीमियम ज्यादा होता है। इसलिए दोनों ही अच्छे प्लान हैं।
यशीश दहिया, सीईओ, पॉलिसी बाजार :
लोगों को पता ही नहीं होता है कि उन्होंने क्या खरीदा है। जिस एजेंट ने उन्हें पॉलिसी बेची, उसने उन्हें इसके बारे में पूरी जानकारी नहीं दी। उपाय यही है कि ग्राहक खुद जाकर खोजबीन करें और अपनी बीमा योजना खुद खरीदें। तभी उन्हें समझ में आयेगा कि वे क्या खरीद रहे हैं।
अक्षय मेहरोत्रा, सीएमओ, पॉलिसी बाजार :
सावधि बीमा आपकी जिंदगी की पहली बीमा योजना होनी चाहिए। जितनी जल्दी हो सके और जितनी लंबी अवधि की योजना आप ले सकते हैं, वह ले लीजिए। अगर 21 साल पर 500 रुपये प्रीमियम है तो 40 साल पर 5000 रुपये प्रीमियम है। आप किस उम्र में बीमा लेना पसंद करेंगे?
(निवेश मंथन, सितंबर 2012)