राजेश रपरिया, सलाहकार संपादक :
पिछले वित्त वर्ष (2011-12) में विकास दर में गिरावट आयी। यह गिरावट क्यों आयी, क्योंकि ब्याज दरें काफी ऊँची थीं। ब्याज दरें क्यों ज्यादा थीं, क्योंकि सरकारी घाटा (फिस्कल डेफिसिट) बहुत अधिक था। सरकारी घाटा क्यों बेलगाम हो गया, क्योंकि तेल, उर्वरक और खाद्य सब्सिडी में भारी बढ़ोतरी हुई और सरकार की आमदनी लक्ष्य से काफी कम रह गयी। सरकारी घाटे का इस बार लक्ष्य जीडीपी का 5.1% (5.13 लाख करोड़ रुपये) रखा गया है, जो पिछले संशोधित अनुमान 5.9% से कम, लेकिन उसके मूल अनुमान 4.6% से ज्यादा है।वित्तमंत्रीकीअवधारणाहैकि वित्त वर्ष 2012-13 में विकास दर 7.6% रहेगी और महँगाई भी इस स्तर से नीचे रहेगी।
सरकारी घाटे को कम करने के लिए वित्त मंत्री ने बेरहमी से करों में वृद्धि की है। बजट में राहत के नाम पर उन्होंने आय कर छूट सीमा को 20,000 रुपये बढ़ा कर दो लाख रुपये सालाना कर दिया है, जो बेहद मामूली छूट है। अगर प्रत्यक्ष करों में 4,500 करोड़ रुपये की छूट वित्त मंत्री ने दी है, तो अप्रत्यक्ष करों के माध्यम से उन्होंने 45,000 करोड़ रुपये आम आदमी की जेब से झटक लिये हैं। यानी एक रुपये की छूट पर 10 रुपये की वसूली। वित्त मंत्री का कहना है कि देश की अर्थव्यवस्था बेहद कठिन दौर से गुजर रही है। उसे कड़वी दवा की जरूरत है।
लेकिन इसके बाद भी अनेक अर्थशशात्रियोंकोआशंकाहैकिपिछलेबजटअनुमानोंकीतरहप्रस्तुतबजटकेअनुमानभीरेतकीनींवपरखड़ेहैं।सबसेज्यादाआशंकासरकारीघाटेकोलेकरव्यक्तकी गयी है।पिछलेबजटमेंमुख्यसब्सिडी (उर्वरक, खाद और पेट्रोलियम सब्सिडी) जीडीपी के 1.6% (1.34 लाखकरोड़रुपये) रहनेकाआकलनथा।संशोधितअनुमानमेंयेसब्सिडीबढ़कर 2.4% (2.08 लाखकरोड़रुपये) होगयी, जबकि तेल और उर्वरक कंपनियों को होने वाले अनेक भुगतान इसमें शामिल नहीं हैं। वित्त मंत्री प्रणव मुखर्जी ने इस साल इन सब्सिडियों को जीडीपी के 1.9% तक सीमित रखना चाहते हैं। इसमें पेट्रोलियम सब्सिडी के लिए 43,480 करोड़ रुपये का प्रावधान किया गया है, जो २०११-१२ के संशोधित अनुमान से भी 24,901 करोड़ रुपये कम है। इसी तरह उर्वरक सब्सिडी के लिए 60,9७4 करोड़ रुपये का प्रावधान किया गया है, जो 2011-12 के संशोधित अनुमान से 6,225 करोड़ रुपये कम है।जाहिरहैकिइनकमप्रावधानोंकेपीछेयूरियाऔरडीजलकीकीमतोंकोनियंत्रण-मुक्तकरनेकीमंशाहै।केरोसिनऔरएलपीजीकेदामोंमेंबढ़ोतरी की मंशा भी साफ झलकती है। लेकिन ममता बनर्जी के रहते क्या यूपीए सरकार यह सब निर्णय ले पायेगी? उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनावों में कांग्रेस को मिली करारी पराजय से यूपीए सरकार पहले से अधिक कमजोर हो गयी है। कोयला घोटाले पर कैग की रिपोर्ट और थल सेना के विवादों के चलते यह एक दिहाड़ी सरकार बन कर रह गयी है।
पिछले बजट की भाँति राजस्व प्राप्तियों को काफी बढ़-चढ़ कर आँका गया है। सकल कर राजस्व का लक्ष्य जीडीपी का 10.6% है, जो 2011-12 के लिए 10.1% आँका गया है। यदि साल 2012-13 में लक्षित विकास दर 7.6% हासिल नहीं हो पायी तो कर राजस्व संग्रह का लक्ष्य पाना भी मुश्किल हो जायेगा।प्रसिद्धअर्थशास्त्रीडीएचपईपनंदीकरकेमुताबिकपिछलेबजटकीप्रवृत्तियोंसेजाहिरहैकि 1% जीडीपी विकास से 2% कर राजस्व बढ़ता है।इसबजटमेंकरराजस्वप्राप्तियोंमें 20% की वृद्धि दिखायी गयी है। यानी 10% विकास दर हो, तभी यह लक्ष्य हासिल हो पायेगा।
मार्च महीने में महँगाई दर 6.9% रही है।खाद्यान्नोंकीमहँगाईनेफिरसिरउठालियाहै।उद्योगसंगठनोंकाअनुमानहैकिनयेकरोंकेबोझसे 20% लागत बढ़ जायेगी। पेट्रोल और डीजल की कीमत वृद्धि से महँगाई को और बल मिलेगा।जानकारोंकाअनुमानहैकिइससालमहँगाईदर 7-9% के बीच रहेगी, जो सरकार के वांछित स्तर से ज्यादा है।
इन तमाम दबावों के बीच रिजर्व बैंक ब्याज दरों को कैसे नीचे ला पायेगा? बजट से भी बड़ा सवाल आज यही है। शेयर बाजार की चमक, विकास दर का भविष्य और बजट अनुमानों की विश्वसनीयता इसी यक्ष प्रश्न और विदेशी बाजारों की दशा-दिशा पर टिकी हुई है। ठ्ठ
(निवेश मंथन, अप्रैल 2012)