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सरकारी घाटे पर काबू पाना सबसे जरूरी

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Category: मार्च 2012

ललित ठक्कर, एमडी, एंजेल ब्रोकिंग :

बजट में मेरे हिसाब से इस साल देखने वाली सबसे महत्वपूर्ण बात यह होगी कि खनन और भूमि अधिग्रहण विधेयक पर किस तरह के कदम उठाये जाते हैं। अब प्रधानमंत्री कार्यालय में इस बारे में कुछ सकारात्मक चर्चा होती दिख रही है और इस पर उठ रहे मुद्दों को सुलझाने के लिए उद्योग समूहों से बातचीत हुई है।

मुझे उम्मीद है कि इस बारे में और सुधार होगा। साथ ही आशा है कि सरकारी संस्थाएँ बुनियादी ढाँचे (इन्फ्रास्ट्रक्चर) यानी सड़क, बंदरगाह, बिजली संचरण (पावर ट्रांसमिशन) वगैरह से जुड़े ठेके देने की गति बढ़ायेंगी। एनएचएआई और पावर ग्रिड ने ठेके देने की अच्छी रफ्तार बना रखी है, लेकिन अगर विभिन्न दूसरे क्षेत्रों में भी सक्रियता बढ़े तो यह ज्यादा सकारात्मक बात होगी। 
जहाँ तक सरकारी खर्चों की बात है, सरकार भी यह मान रही है कि उसका राजकोषीय घाटा (फिस्कल डेफिसिट) काफी ऊँचा है इसलिए सरकार इस बजट में शायद कोई बड़ा खर्च अपने सिर पर नहीं लेगी। जब महँगाई दर काफी ऊँची हो तो सरकार के लिए बेहतर है कि वह कम खर्च करे और वह रकम निजी क्षेत्र के लिए उपलब्ध रहने दे, जो अपने संसाधनों का ज्यादा प्रभावी ढंग से इस्तेमाल कर सकेगा। 
मेरे हिसाब से बजट देखने वाली सबसे महत्वपूर्ण बात यही होगी कि सरकार अपने घाटे को नियंत्रित करने के बारे में कितने विश्वसनीय ढंग से प्रतिबद्ध रहती है। ऐसा होने पर ही अर्थव्यवस्था में निवेश के लिए निजी क्षेत्र के हाथों में अधिक पूँजी उपलब्ध रहेगी।
क्षेत्रवार अपेक्षाएँ
पूँजीगत सामान (कैपिटल गुड्स)
भारत में बॉयलर, टर्बाइन और जेनरेटर उत्पादन की क्षमता बीते साल भर में काफी बढ़ी है। यह बीएचईएल और लार्सन एंड टुब्रो (एलएंडटी) की विस्तार योजनाओं के चलते हुआ है। इसके अलावा बीजीआर एनर्जी, थर्मैक्स और भारत फोर्ज भी बिजली उपकरणों के उत्पादन की नयी इकाइयाँ लगा रही हैं। इसलिए बिजली उपकरण कंपनियाँ यह माँग कर रही हैं कि इन उपकरणों पर आयात शुल्क लगाया जाये, ताकि उनके और विदेशी बिजली उपकरण कंपनियों के बीच बराबर की प्रतिस्पर्धा हो सके। दूसरी ओर बिजली उत्पादन करने वाली कंपनियाँ माँग कर रही हैं कि आयात को और सस्ता किया जाये। बहरहाल, संकेत ऐसे हैं कि सरकार घरेलू उत्पादन को बढ़ावा देना चाहती है। इसलिए संभावना है कि वह आगामी बजट में इस क्षेत्र की माँग को मान ले। 
इसके अतिरिक्त, विभिन्न योजनाओं में फंड की व्यवस्था करना। इन योजनाओं में एपीडीआरपी और आरजीजीवीवाई शामिल हैं।
बुनियादी ढाँचा
आर्थिक विकास को ऊँचा रखने में बुनियादी ढाँचा क्षेत्र महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। लिहाजा हमें उम्मीद है कि इस क्षेत्र के लिए कुछ अच्छी घोषणाएँ बजट में होंगी। मसलन भारत निर्माण, जेएनएनयूआरएम, एपीडीआरपी, एआईबीपी और एनएचडीपी वगैरह के लिए दी जाने वाली रकम बढ़ायी जा सकती है। 
भूमि अधिग्रहण और पर्यावरण संबंधी मंजूरी इन परियोजनाओं के समय पर पूरा होने में सबसे बड़ी बाधा हैं। अगर ये मंजूरी जल्दी देने की नयी नीति बने तो इस क्षेत्र को काफी फायदा मिलेगा।
बैकिंग
इस बार बैंकिंग क्षेत्र के लिए सबसे महत्वपूर्ण यही होगा कि सरकार राजकोषीय घाटे पर नियंत्रण रखने के लिए कैसे कदम उठाती है। अगर सरकारी खर्चों और घाटे पर नियंत्रण रखा गया तो आरबीआई को ब्याज दरें घटाने की गुंजाइश मिलेगी और यह बात बैंक क्षेत्र के लिए काफी सकारात्मक होगी। 
बैंक यह भी चाहेंगे कि कर बचत के लिए मियादी जमा (एफडी) की लॉक इन अवधि घटा कर तीन साल कर दी जाये, ताकि यह कर बचत वाली म्यूचुअल फंड योजनाओं के बराबर आ सके। 
पीएसयू बैंक उन्हें अतिरिक्त इक्विटी पूँजी मुहैया कराने के लिए और बजट प्रावधान रखे जाने की उम्मीद कर रहे हैं। 
ऑटोमोबाइल
इस क्षेत्र की माँग है कि उत्पाद शुल्क को मौजूदा स्तरों पर ही रखा जाये। अभी छोटी कारों, दोपहिया, तिपहिया, मँझोले और भारी व्यावसायिक वाहनों पर 10% का शुल्क है। वहीं पेट्रोल से चलने वाली बड़ी कारों और यूटिलिटी वाहनों पर 22% उत्पाद शुल्क के साथ 15,000 रुपये का अतिरिक्त शुल्क लगता है।
संभावना है कि छोटी कारों को छोड़ कर बाकी डीजल यात्री वाहनों पर अतिरिक्त उत्पाद शुल्क लगाया जा सकता है। किरीट पारिख समिति ने सलाह दी है कि डीजल से चलने वाले वाहनों पर 80,000 रुपये का अतिरिक्त शुल्क लगाया जाये। 
पर्यावरण के अनुकूल और हाइब्रिड कारों पर कर प्रोत्साहन दिया जा सकता है।
रियल एस्टेट
इस क्षेत्र की यह माँग है कि घर खरीदने वाले व्यक्तियों को घर कर्ज के ब्याज पर मिलने वाली आय कर छूट की सीमा बढ़ायी जाये।
साथ ही देश भर में स्टांप ड्यूटी को घटाने और एक समान करने की माँग की जा रही है।
पर्यावरण के अनुकूल हरित परियोजनाओं पर कर प्रोत्साहन या सरकारी सहायता मिले।
सस्ते घरों के लिए धारा 80आईबी(10) के तहत कर अवकाश (टैक्स हॉलिडे) और कर रियायतों को जारी रखने की माँग की जा रही है। इससे शहरों के बाहर बुनियादी ढाँचा विकसित करने और सस्ते घरों की माँग-आपूर्ति के अंतर घटाने में मदद मिलेगी।
(निवेश मंथन, मार्च 2012)

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