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  • साल 2014 : 10-12% बढ़ सकती हैं आवासीय संपत्तियों की कीमतें
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मध्यम और सस्ते घरों के दाम बढ़ेंगे

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Category: दिसंबर 2011

बीत रहे साल 2011 में जमीन जायदाद का कारोबार कैसा चला, इस पर नजर डालने के साथ-साथ जरूरी है कि नये साल की संभावनाओं को टटोला जाये। जमीन-जायदाद क्षेत्र की सलाहकार कंपनी जेएलएल इंडिया के रिसर्च प्रमुख आशुतोष लिमये बता रहे हैं कि नये साल में व्यावसायिक रियल एस्टेट की माँग स्थिर ही रहेगी।

वहीं आवासीय बाजार में सस्ते और मध्यम श्रेणी के घरों की कीमतें बढऩे की संभावना है। पेश है जेएलएल इंडिया की ताजा रिपोर्ट की मुख्य बातें।

नजर साल 2011 परव्यावसायिक रियल एस्टेट

बड़े शहरों में 2011 के दौरान दफ्तरों के लिए लीजिंग गतिविधियों की रफ्तार अच्छी रही। इन शहरों में निर्माणाधीन इमारतों में लीजिंग पूर्व बुकिंग भी काफी अच्छी रही। खरीदारों ने ज्यादा जगह उपलब्ध होने की वजह से शहर के मुख्य कारोबारी केंद्र के बजाय दूरदराज के इलाकों में अपनी लीज गतिविधियाँ बढ़ायीं।

विशेष आर्थिक क्षेत्र (एसईजेड) में दफ्तरों के लिए जगह की माँग गैर-एसईजेड के मुकाबले काफी ज्यादा रही। वैश्विक अर्थव्यवस्था में अनिश्चितता को देखते हुए तीसरी तिमाही में लीजिंग गतिविधियों में हल्की सुस्ती दिखी। जगह की उपलब्धता एक दायरे में रहने से इस साल कुछ छोटे बाजारों में दफ्तरों के किरायों और पूँजीगत मूल्य में भी मामूली बढ़ोतरी हुई।  

खुदरा रियल एस्टेट

खुदरा (रिटेल) क्षेत्र में माहौल काफी अच्छा रहा, क्योंकि खुदरा कंपनियों ने मॉल और मुख्य सड़कों, दोनों तरह की जगहों पर लगातार विस्तार किया। हालाँकि भारत के बड़े शहरों में मुख्य सड़कों पर लीजिंग गतिविधियाँ कहीं ज्यादा मजबूत रहीं। बड़ी खुदरा कंपनियों ने न केवल बड़े शहरों, बल्कि छोटे शहरों और कस्बों तक में विस्तार किया। मॉलों में भी लीजिंग की रफ्तार स्वस्थ रही। निर्माणाधीन मॉल में किये गये सौदों की रफ्तार भी अच्छी रही। हालाँकि माँग चुनिंदा अच्छे मॉलों में ही केंद्रित रही।

दिल्ली एनसीआर क्षेत्र में सबसे ज्यादा माँग रही। वहीं बेंगलूरु में मुख्य सड़कों पर लीजिंग की माँग मजबूत रही।बड़े शहरों के कुछ उप-बाजारों में दफ्तरों के किराये और पूँजीगत मूल्य में हल्की बढ़ोतरी होती दिखी। दिल्ली और मुंबई के प्रमुख उप-बाजारों में पूँजीगत मूल्य में बढ़ोतरी हुई है। खुदरा कंपनियों की ओर से माँग बढऩे से बेंगलूरु और मुंबई के उपनगरीय उप-बाजारों में भी किराये में बढ़ोतरी हुई है।

आवासीय रियल एस्टेट

आवासीय रियल एस्टेट बाजार 2011 में सुस्त ही रहा। बेंगलूरु को छोड़ कर देश के अन्य बड़े शहरों में बिक्री घटी है। दिल्ली एनसीआर में पिछली 11 तिमाहियों से बिक्री में नोएडा क्षेत्र आगे रहा था, लेकिन 2011 में यहाँ भी बिक्री घटी है। ब्याज दरों और महँगाई दर में बढ़ोतरी से ग्राहक थोड़ी सतर्कता से फैसले कर रहे हैं, जिसका असर माँग पर दिखा है। भारतीय रिजर्व बैंक ने पिछले 18 महीनों में 12 बार ब्याज दरें बढ़ायी हैं, जिससे गृह कर्ज लेने वालों की मासिक किस्तें (ईएमआई) बहुत बढ़ गयी हैं। जहाँ गृह कर्ज महँगा होने से खरीदारों पर दबाव बढ़ा है, वहीं बढ़ती निर्माण लागत और कर्ज से रियल एस्टेट कंपनियों की हालत खस्ता हुई है। हम ऐसे हालात देख रहे हैं, जहाँ खरीदार और कंपनियों, दोनों पर प्रतिकूल आर्थिक हालात का असर पड़ा है। निर्माण की बढ़ती लागत से कंपनियों को निर्माण और नयी परियोजनाएँ शुरू करने की रफ्तार धीमी करनी पड़ी है। साल 2011 में ज्यादातर मध्यम आय या सस्ते घरों की परियोजनाओं का ऐलान हुआ। पूँजीगत मूल्य में सीमित बढ़ोतरी दिखी। हालाँकि लिखित दाम स्थिर रहे या चुनिंदा परियोजनाओं में कुछ बढ़े भी, लेकिन कंपनियों ने त्योहारी मौसम में बिक्री बढ़ाने के लिए दाम में छूट या मुफ्त में सामान देने की पेशकश की।

2012 के लिए अनुमान व्यावसायिक रियल एस्टेट

2012 में कई आईटी कंपनियाँ व्यावसायिक दफ्तर क्षेत्र के डेवलपरों की मौजूदा फायदेमंद व्यावसायिक शर्तों का लाभ उठाने के लिए दफ्तरों की पहले ही लीज-बुकिंग कराना चाहती हैं। व्यावसायिक रियल एस्टेट की माँग स्थिर रहने की ही संभावना है। हालाँकि भारत के ज्यादातर बड़े शहरों में दफ्तरों की आपूर्ति माँग से ज्यादा रहेगी।वैश्विक आर्थिक हालात में अनिश्चितता की वजह से कंपनियों के विस्तार में कमी आने की आशंका है, जिसका अगले साल कारोबारी बजट पर असर पड़ेगा।

बड़ी आईटी कंपनियों की ओर से माँग रहेगी जो लागत घटाने और करों में छूट हासिल करने के लिए विशेष आर्थिक क्षेत्रों (एसईजेड) में जा सकती हैं। सभी शहरों में दफ्तरों के किराये और पूँजीगत मूल्य में होने की संभावना है, लेकिन यह बढ़ोतरी हल्की ही होगी।

अगले साल व्यावसायिक दफ्तरों के क्षेत्र में निवेशकों का नजरिया सावधानी बरतने वाला रहेगा। लागत में कमी और पर्याप्त आपूर्ति की वजह से खास कर आईटी क्षेत्र की कंपनियाँ उपनगरीय छोटे बाजारों में जाना पसंद करेंगी।

खुदरा रियल एस्टेट

अच्छी खुदरा जगह के लिए 2012 में बढिय़ा माँग रहने की उम्मीद है, क्योंकि खुदरा क्षेत्र की ज्यादातर बड़ी भारतीय कंपनियाँ बड़े शहरों के साथ दूसरी और तीसरी श्रेणी के चुनिंदा शहरों में अपनी विस्तार योजनाएँ लागू करना चाहती हैं। मल्टी ब्रांड रिटेल में जब भी एफडीआई की अंतिम मंजूरी मिलेगी, तो उससे अंतरराष्ट्रीय खुदरा कंपनियों की ओर माँग आने की उम्मीद रहेगी। हालाँकि अंतरराष्ट्रीय लक्जरी ब्रांडों की विस्तार योजनाएँ दिल्ली, मुंबई और बेंगलूरु तक ही सीमित रहेंगी। 

खुदरा कंपनियाँ ऐसी निर्माणाधीन परियोजनाओं में सौदे करना चाहेंगी, जिनमें उन्हें ब्रांडिंग और कारोबार के अच्छे मौके मिलें। सीधे लीज करार के बजाय आय में हिस्सेदारी के आधार पर ज्यादा सौदे होंगे।  मुख्य सड़कें अगले साल भी मॉलों को जोरदार टक्कर देंगी और वहाँ माँग अच्छी रहने की संभावना है। मॉलों में ज्यादातर माँग केवल चुनिंदा मॉलों तक सीमित रहेगी, जिससे मॉल में खाली जगह का अनुपात ऊँचा रहेगा। खराब डिजाइन और कम फायदेमंद स्थानों पर बने कई मॉल 2012 में ज्यादातर खाली दुकानों के साथशुरू हो सकते हैं।

आवासीय रियल एस्टेट

वैश्विक बाजारों की अनिश्चिताओं और 2012 की शुरुआत में भी आरबीआई की ओर से ब्याज दरें बढ़ाये जाने की संभावना से छोटी अवधि में आवासीय बाजार में माहौल सतर्कता भरा रहेगा। आपूर्ति के मुकाबले बिक्री कम रहने की संभावना है। नयी परियोजनाओं में भी कमी आयेगी। बिक्री में कमी की वजह से पूँजीगत मूल्य में बढ़ोतरी बहुत कम होगी।

हालाँकि तमाम उप-बाजारों में चुनिंदा आवासीय परियोजनाओं के दाम बढ़ सकते हैं, खास कर ऐसी परियोजनाओं में जो पूरी हो चुकी हैं या पूरी बनने के करीब हैं। छोटी अवधि में मध्यम कीमत और सस्ते मकानों के पूँजीगत मूल्य में अच्छी बढ़त दिखेगी। यह रुझान 2012 की पहली छमाही तक जारी रह सकता है।

अर्थव्यवस्था की मौजूदा हालत की वजह से

एफडीआई और एफआईआई दोनों ही लिहाज से निवेश का माहौल सतर्कता भरा रहेगा। आर्थिक विकास दर में सुस्ती आने की वजह से अभी एफडीआई निवेश में धीमापन है, जो संभवत: छोटी अवधि में जारी रहेगा। हालाँकि भारतीय अर्थव्यवस्था के लगातार मजबूती दिखाने से 2012 में विदेशी निवेशकों का भरोसा बढ़ेगा और भारत निवेश के दूसरे स्थानों के मुकाबले ज्यादा आकर्षक लगने लगेगा। 

ऊँची ब्याज दरों और कम बिक्री की वजह से कंपनियों की नकदी की दिक्कत बनी रहेगी। थोड़े समय के लिए निर्माण गतिविधियों में धीमापन भी दिखेगा। हालाँकि माँग और बिक्री बढऩे के बाद समय पर परियोजनाएँ पूरी करने वाली कंपनियों को फायदा होगा।   

(निवेश मंथन, दिसंबर 2011)

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