मोहम्मद असलम, सीओओ (आवासीय सेवाएँ), जोंस लैंग लसाले इंडिया :
किसी भी आवासीय संपत्ति में निवेश का बुनियादी लक्ष्य कैपिटल गेन के साथ-साथ निवेश पर लाभ रिटर्न (यील्ड) को अधिकतम करते हुए जोखिम को न्यूनतम स्तर पर लाना होना चाहिए। उदाहरण के लिए, किसी संपत्ति को सजा-सँवार कर और बेहतर बना कर उसका किराया बढ़ाया जा सकता है, जिसका मतलब होगा लाभ में और बढ़ोतरी करना।
कैपिटल गेन के उद्देश्य से संपत्ति में किये गये निवेश का मूल सिद्धांत होता है जमीन-जायदाद (रियल एस्टेट) को सस्ती दरों पर खरीदना और ऊँची कीमत पर बेचना, ताकि निवेशक का अपने निवेश पर लाभ या रिटर्न ऑन इनवेस्टमेंट (आरओआई) अधिकतम हो सके। एक समझदार निवेशक किसी संपत्ति के लिए ज्यादा कीमत देने को भी तैयार हो सकता है, बशर्ते वह संपत्ति शानदार जगह पर हो और किरायों में तेजी का रुझान हो। ऐसी संपत्ति कीमतों में अगली तेजी आने तक लगातार ऊँची दरों पर किराया देती रहेगी।
आवासीय संपत्तियों में निवेश में सबसे बड़ा जोखिम यह होता है कि कहीं खरीद भाव ज्यादा हो जाने पर निवेशक को मंदी के बाजार में नुकसान सह कर संपत्ति न बेचनी पड़ जाये। लेकिन बिलकुल सही समय का इंतजार करते हुए निवेश का स्वर्णिम मौका गँवा देने का जोखिम भी उतना ही है।
शेयर बाजार की ही तरह जमीन-जायदाद के बाजार में भी यह समझ पाना लगभग असंभव है कि कब बाजार अपनी तलहटी या सबसे निचले स्तर पर आ गया है और कब यह अपने शिखर या सबसे ऊपरी स्तर पर है। निवेश को लंबे समय तक टालते रहने में दो तरह के जोखिम सामने आते हैं - पहला यह कि निवेशक सर्वश्रेष्ठ संपत्तियों से हाथ धो सकता है, और दूसरा यह बाजार में निवेशक के अनुमान से पहले तेजी का रुझान शुरू हो सकता है जिससे निचले स्तरों की कीमतें हाथ से निकल सकती हैं। आवासीय संपत्ति में निवेश करने वाले खांटी निवेशक कैपिटल गेन पर नजर रखते हुए सस्ते सौदों की ताक में रहते हैं। ऐसे सौदे कई बार तेजी के दौर में भी मिल सकते हैं, क्योंकि बाजार में अक्सर ऐसी संपत्तियों के भी मालिक होते हैं, जो वित्तीय या अन्य कारणों से अपनी संपत्ति जल्द बेचना चाहते हैं।
कोई सौदा सस्ता है या नहीं, इसे समझने के लिए कीमतों में उतार-चढ़ाव का एक दौर पूरा होने यानी संपत्ति-चक्र की प्रकृति और मौजूदा हालात की कुछ मूलभूत बातों की समझ होना बहुत जरूरी है। जमीन-जायदाद का एक चक्र पूरा होने में मोटे तौर पर सात साल का समय लगता है।
आप जिस स्थान पर निवेश की योजना बना रहे हैं, वहाँ की संपत्तियों के स्थानीय बाजार के बारे में अच्छी जानकारियाँ जुटाना भी बहुत महत्वपूर्ण है। लेकिन इतना पर्याप्त नहीं है। वैश्विक और राष्ट्रीय बाजार के उन रुझानों पर भी बखूबी नजर रखनी चाहिए, जिनका स्थानीय बाजार पर गहरा असर पड़ सकता है।
मौजूदा परिदृश्य में भारतीय आवासीय संपत्ति बाजार सुस्ती दिखा रहा है। मुंबई जैसे शहरों में तो जमीन-जायदाद की कीमतें आसमान छू रही हैं, लेकिन दिल्ली-एनसीआर और पुणे जैसे शहरों में बिक्री में कमी आने के कारण प्रॉपर्टी डेवलपरों के पास तैयार संपत्तियों का भंडार बढ़ता जा रहा है। बिक्री घटने का एक अन्य कारण यह है कि हाल में ब्याज दरों में लगातार बढ़ोतरी हुई है। इसने घर खरीदने के इच्छुक लोगों के लिए कर्ज लेना और भी मुश्किल बना दिया है। लेकिन दूसरी ओर इसी वजह से इस समय किराये का बाजार बुलंदी छू रहा है।
आवासीय संपत्तियों की खरीदारी में तेजी तभी आती है, जब ब्याज दरें कम होती हैं या फिर संपत्तियों की कीमतें निचले स्तरों पर होती हैं। ऐसी स्थिति में लोग किराये पर खर्च करने के बदले अपना घर खरीदने के लिए निवेश करना बेहतर विकल्प मानते हैं।
व्यक्तिगत निवेशकों के लिए, रियल एस्टेट लंबी अवधि के निवेश में जोखिम डाइवर्सिफाय करने का हमेशा से एक बेहतरीन जरिया रहा है और इसमें रिस्क एडजस्टेड रिटर्न के लिहाज से भी बहुत संतोषप्रद प्रदर्शन करने की कुव्वत है। रियल एस्टेट की कीमतों में उतार-चढ़ाव की दर (वोलैटिलिटी कोशिएंट) काफी कम होती है और शेयर एवं डेट बाजार से इनका कोई खास संबंध भी नहीं होता है। लंबी अवधि के नजरिए वाले निवेशकों को अपने इनवेस्टमेंट पोर्टफोलियो में प्रॉपर्टी को शामिल करने पर लगातार विचार करते रहना चाहिए।
(निवेश मंथन, अक्तूबर 2011)