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बोनस शेयर बचा सकते हैं कैपिटल गेन टैक्स से

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Category: जुलाई 2011

महेश गुप्ता,चार्टर्ड एकाउंटेंट

पूँजीगत लाभ पर कर देनदारी बचाने का एक खास तरीका बता रहे हैं चार्टर्ड एकाउंटेंट महेश गुप्ता।
जब भी आप कोई संपत्ति, जैसे जमीन-जायदाद, सोना-चांदी, पेंटिंग जैसी कला-सामग्री वगैरह बेचते हैं, तो उस पर आपको पूँजीगत लाभ का कर (कैपिटल गेन टैक्स) चुकाना पड़ सकता है। इसी तरह से शेयरों पर 1 साल से कम अवधि में फायदा होने पर छोटी अवधि का पूँजीगत लाभ कर (शॉर्ट टर्म कैपिटल गेन टैक्स) देना पड़ता है। लेकिन ऐसे पूँजीगत लाभ की देनदारी से बचा जा सकता है। पर हाँ, उसके लिए आपको शेयर बाजार का सहारा लेना होगा, और यह ध्यान रहे कि शेयर बाजार में किसी भी निवेश पर एक जोखिम तो रहता ही है।

पूँजीगत लाभ के कर से बचने के लिए आप बोनस शेयर का रास्ता चुन सकते हैं। बोनस शेयर किसी कंपनी के मौजूदा शेयरधारकों को मुफ्त मिलता है। अक्सर कंपनियाँ अपने मौजूदा शेयरधारकों को लाभ पहुँचाने और उन्हें खुश करने के लिए बोनस शेयर जारी करती हैं। यह शेयरधारकों को उनके पास पहले से मौजूद शेयरों की संख्या के एक तय अनुपात में दिया जाता है। अगर कोई कंपनी 1:1 का अनुपात तय करती है, तो उसका मतलब है कि मौजूदा शेयरधारकों को हर 1 पुराने शेयर पर 1 नया बोनस शेयर मुफ्त मिलेगा। बोनस शेयर जारी करने के लिए एक बुक ब्लोजर या रिकॉर्ड तिथि तय की जाती है। मतलब यह कि उस तिथि को जिन शेयरधारकों के पास जितने शेयर होंगे, उसके मुताबिक ही बोनस शेयर दिये जायेंगे।

क्या है बोनस शेयर से कर बचत का रास्ता?
- ऐसे शेयर खरीदें, जिन पर बोनस शेयर जारी होने की घोषणा कर दी गयी है, लेकिन बोनस शेयर देने की रिकॉर्ड तिथि अभी बाकी है।
- बोनस शेयर की रिकॉर्ड तिथि बीत जाने पर आपके पास मौजूद शेयरों की संख्या बढ़ जायेगी।
- आपको जो नये बोनस शेयर मिले हैं, उनकी लागत शून्य मानी जायेगी।
- जो पुराने शेयर हैं, उनकी लागत वही रहेगी, जिस पर आपने उन शेयरों को खरीदा था।
- लेकिन बोनस शेयर जारी होने के बाद उस शेयर का बाजार भाव आम तौर पर घट जाता है। यह कमी लगभग उसी अनुपात में होती है, जिस अनुपात में बोनस शेयर जारी होते हैं। मतलब अगर किसी शेयर बाजार भाव बोनस से पहले 100 रुपये था और 1:1 के अनुपात में बोनस जारी किये गये, तो उसका बाजार भाव बोनस के बाद घट कर लगभग 50 रुपये पर आ जायेगा।
- इस कमी के चलते आप अपने पुराने शेयरों को बेच कर उन पर घाटा दिखा सकते हैं।
- इस घाटे को छोटी अवधि का पूँजीगत घाटा (शॉर्ट टर्म कैपिटल लॉस) माना जायेगा।
- इस घाटे से आप दूसरी संपत्ति में हुए पूँजीगत लाभ को काट सकते हैं।
- अब आपको जो बोनस शेयर मिले हैं, उन्हें आप कम-से-कम 1 साल तक रखे रहें। इन्हें 1 साल के बाद बेचने पर जो भी रकम मिलेगी, वह आपके लिए लंबी अवधि का पूँजीगत लाभ (लॉन्ग टर्म कैपिटल गेन) होगा, जो पूरी तरह करमुक्त है।

पंकज शर्मा के बच गये 3 लाख रुपये
पंकज शर्मा ने 2 साल पहले 20 लाख रुपये का घर खरीदा और हाल में उसे 30 लाख रुपये में बेचा।
घर बेचने से मिले : 30 लाख रु.
घर की लागत : 20 लाख रु.
पूँजीगत लाभ : 10 लाख रु.
30% कर देनदारी : 3 लाख रु.
देखते हैं कि पंकज ने किस तरह बचाये पूँजीगत लाभ कर के ये 3 लाख रुपये। क ख ग नाम की कंपनी ने 1:1 अनुपात से बोनस शेयर देने का फैसला किया, जिसकी रिकॉर्ड तिथि 20 अप्रैल थी। पंकज ने इसके शेयर रिकॉर्ड तिथि से कुछ पहले ही 15 अप्रैल को खरीद लिये। इसकी खरीद-बिक्री का हिसाब-किताब इस तरह रहा:

बोनस से पहले
खरीदे शेयरों की संख्या : 10,000
बाजार भाव : 200 रु.
कुल लागत : 20 लाख रु.

बोनस के बाद
पुराने शेयरों की संख्या : 10,000
पुराने शेयरों का बाजार भाव : 100 रु.
बेचने पर मिली राशि : 10 लाख रु.
पुराने शेयरों पर घाटा : 10 लाख रु.

घर बेचने से हुए पूँजीगत लाभ और पुराने शेयरों पर पूँजीगत घाटे का अंतर शून्य है। इसलिए कोई कर देनदारी नहीं बनेगी। बोनस के रूप में जो 10,000 शेयर मिले, उन्हें पंकज कम-से-कम 1 साल तक अपने पास रखेंगे। उसके बाद बेचने पर उस समय के बाजार भाव के हिसाब से उन्हें चाहे जितनी भी रकम मिलेगी, वह लंबी अवधि का पूँजीगत लाभ मानी जायेगी, जिस पर कोई कर देनदारी नहीं बनेगी। लेकिन इन बोनस शेयरों पर उन्हें शेयर बाजार का जोखिम जरूर उठाना पड़ेगा, क्योंकि शेयर बाजार में भाव आगे चल कर बढ़ भी सकते हैं और घट भी सकते हैं।
(निवेश मंथन, जुलाई 2011)

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