करेंसी डेरिवेटिव कारोबार के मामले में केंद्रीय प्रतिस्पर्धा आयोग (सीसीआई) और नेशनल स्टॉक एक्सचेंज (एनएसई) की कानूनी दांवपेंच जारी है।
एमसीएक्स स्टॉक एक्सचेंज की ओर दायर शिकायत पर सीसीआई ने अपने आदेश में यह निष्कर्ष निकाला कि एनएसई ने शेयर बाजार, शेयर वायदा (एफएंडओ) बाजार और थोक कर्ज बाजार (होलसेल डेट मार्केट) में अपने दबदबे का गलत फायदा करेंसी डेरिवेटिव बाजार में उठाया। मामला 2008 की दूसरी छमाही का है, जब एनएसई, बीएसई और एमसीएक्स एसएक्स तीनों ने मुद्रा (करेंसी) का वायदा कारोबार शुरू किया। एनएसई ने करेंसी डेरिवेटिव के सौदों पर शुरू से ही कोई शुल्क (ट्रांजैक्शन चार्ज) नहीं रखा।
इस कारोबार में भी एनएसई की पैठ जम गयी, जबकि बीएसई इस कारोबार से हट गया। बाद में इसने यूनाइटेड स्टॉक एक्सचेंज (यूएसई) शुरू कर फिर से इस कारोबार में कदम रखा। एनएसई में करंसी डेरिवेटिव सौदों पर शुल्क नहीं होने से यूएसई और एमसीएक्स एसएक्स भी शुल्क नहीं लगा सके। मुद्दा यह है कि एनएसई की तो बड़ी कमाई शेयरों के नकद और वायदा सौदों से हो जाती है, लेकिन केवल करेंसी डेरिवेटिव के कारोबार में मौजूद बाकी दोनों एक्सचेंज अपना धंधा कैसे चलायें। लेकिन एनएसई के खिलाफ सीसीआई का आदेश दो सदस्यों की असहमत टिप्पणी (डिसेंट नोट) के साथ बहुमत का आदेश था। अब मामला दिल्ली उच्च न्यायालय में है और एनएसई यहाँ इसी असहमत टिप्पणी को अपना मुख्य हथियार बनाने वाला है।
(निवेश मंथन, जुलाई 2011)