विमुद्रीकरण पर ध्यान रखना चाहिए कि काली नकदी और काली अर्थव्यवस्था दो बाते हैं। इसका उद्देश्य था काली नकदी बाहर निकालना। यह काली अर्थव्यवस्था पर अंकुश लगाने का पहला कदम होता है। लोग मानते हैं कि किसी भी समय काली अर्थव्यवस्था का 12-16% अंश करंसी यानी नोटों के रूप में रहता है। इसके भी 2 हिस्से हैं। एक तो स्टॉक, जो जमा किया हुआ है। दूसरा आगे क्या प्रवाह रहेगा और कितना काला धन पैदा होगा। काला धन तो हर दिन पैदा होता रहता है। लोग जब कहीं घूस देते हैं, तो उतना काला धन पैदा हो जाता है। यह मुहिम पहले से जमा काली नकदी या ब्लैक करंसी के भंडार पर हमला करने के लिए है।
अनुमान है कि काली नकदी का यह भंडार 5-6 लाख करोड़ रुपये के करीब है। कुछ लोगों के हिसाब से काली नकदी 3-4 लाख करोड़ रुपये के आसपास है। पर मेरा आकलन है कि काली नकदी हमारी अर्थव्यवस्था की तुलना में कम-से-कम 5% तो होगी। उसके बिना हमारी लगभग 30% की काली अर्थव्यवस्था चल नहीं सकती। हमारी जीडीपी लगभग 150 लाख करोड़ रुपये की है, जिसका लगभग एक तिहाई यानी लगभग 50 लाख करोड़ रुपये की समानांतर अर्थव्यवस्था हो गयी। अगर हम रुपये की गतिशीलता 10 गुणा भी मानें, यानी एक रुपया अर्थव्यवस्था में 10 बार घूमता है, तो कम-से-कम पाँच लाख करोड़ रुपये तो जरूरी होंगे इस काली अर्थव्यवस्था को चलाने के लिए। मुद्रा की गतिशीलता (वेलोसिटी) इस बात को कहते हैं कि एक रुपया अगर आपके पास आता है, तो एक साल में वह कितने हाथों से गुजरता है। रुपया अर्थव्यवस्था को चलाने के लिए स्नेहक (लुब्रिकैंट) की तरह होता है।
मेरा अंदाजा है कि करीब 5-6 लाख करोड़ रुपये की जो काली नकदी है, उसमें से कम-से-कम आधी तो बैंकिंग प्रणाली में वापस नहीं लौटेगी। यानी करीब 2-2.5 लाख करोड़ रुपये का काला धन खुद खत्म हो जायेगा। यदि वह वापस आयेगा भी तो माफी योजना के तहत आयेगा जिसमें से 50% सरकार के पास आ जायेगा। यह तो बाद में हिसाब लगेगा कि बैंकिंग प्रणाली में कितने नोट वापस आये, कितने पैसे माफी योजना में जमा हुए। उसके बाद यह पता चल पायेगा कि काली नकदी कितनी थी।
लगभग 14.5-15 लाख करोड़ रुपये के जो 1,000 और 500 रुपये के पुराने नोट हैं, उनमें लगभग एक तिहाई समानांतर अर्थव्यवस्था में चलते हैं। बैंकों में 10-11 लाख करोड़ रुपये अधिक वापस नहीं आयेगा। इससे अधिक आयेगा भी तो 50% वाली योजना के चक्कर में आयेगा। मुझे ऐसा लगता है कि सरकार के इस फैसले का उद्देश्य काफी हद तक पूरा होगा।
सबसे बड़ी चीज यह है कि काली नकदी, काले धन और काली अर्थव्यवस्था की वजह से हमारे पूरे समाज में व्यापक बेईमानी का जो माहौल बना गया था, और यह धारणा बन गयी थी कि जो लोग बेईमान और पैसे वाले हैं, वे ही देश के आदर्श लोग हैं, इस धारणा पर बहुत जबरदस्त असर पड़ेगा। इसका तीसरा उद्देश्य, जो पहले उतना समझ में नहीं आया था जो अब सामने निकल कर आ रहा है, वह यह है कि इससे भारत को कम नकदी के उपयोग वाली अर्थव्यवस्था और डिजिटल अर्थव्यवस्था बनाने को बहुत बड़ा प्रोत्साहन मिल रहा है।
इसका आखिरी पहलू यह है कि हमारी पक्की और कच्ची अर्थव्यवस्था के बीच जो बहुत बड़ी खाई थी, वह खत्म होगी और हमारा देश दो अलग-अलग अर्थव्यवस्था के बदले एक अर्थव्यवस्था पर चलेगा। इस मायने में यह एक ऐतिहासिक कदम है और इसको एक संकीर्ण नजरिये से नहीं देखना चाहिए।
काली कमाई पैदा होने से रोकने की जहाँ तक बात है, उसके लिए अलग कदम उठाने होंगे। उसके लिए राजनीतिक और नौकरशाही के भ्रष्टाचार पर रोक लगानी होगी क्योंकि काले धन के स्रोत यही हैं। इसमें राजनीतिक भ्रष्टाचार चुनावी खर्च से जुड़ा हुआ है। नौकरशाही के भ्रष्टाचार को रोकने के लिए बाबूगिरी को कम करना पड़ेगा। इसके लिए कुछ कदम उठाये जा चुके हैं और कुछ उठाने होंगे।
(निवेश मंथन, दिसंबर 2016)
नष्ट होगा दो ढाई लाख करोड़ का काला धन
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- सावधानी से चुनें क्षेत्र और शेयर
- छोटी अवधि में बाजार धारणा नकारात्मक
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- निफ्टी अभी 8500-7800 के दायरे में
- पूँजी मुड़ेगी सोना या यूएस ट्रेजरी की ओर
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- बेहद लंबी अवधि की तेजी का चक्र
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- साल भर में 15% बढ़त की उम्मीद
- भारतीय बाजार का मूल्यांकन ऊँचा
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- ब्रेक्सिट का परोक्ष असर होगा भारत पर
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- रुपये में कमजोरी का अल्पकालिक असर
- साल भर में नया शिखर
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about 11 years ago