इस रिपोर्ट से पहले विश्व की तीन प्रमुख रेटिंग एजेंसियों ने भी भारत की साख के उन्नयन से साफ इन्कार कर दिया था। विश्व बैंक की कारोबारी सुगमता की यह रिपोर्ट 10 मानकों - कारोबार प्रारंभ, निर्माण (कंस्ट्रक्शन) परमिट, विद्युत कनेक्शन, संपत्ति की रजिस्ट्री, कर्ज प्राप्ति, अल्पमत शेयरधारकों का संरक्षण, टैक्स भुगतान, सीमा पार व्यापार, संविदा लागू करने और दिवालिया समाधान के मुद्दों पर तैयार है। इन मानकों में 4 को छोड़ कर बाकी मानकों पर भारत का स्थान पहले से पिछड़ गया है।
सरकारी नुमाइंदों का कहना है कि तिथि की सीमा (1 जून 2016) के कारण कई सुधारों को इस रिपोर्ट मे शामिल नहीं किया जा सका है और इसका फायदा अगले साल की रिपोर्ट में मिलेगा। उत्पाद एवं सेवा शुल्क, दिवाला सहनता, कारोबारी स्वीकृतियों के लिए एकल खिड़की योजना, ऑनलाइन ईएसआईसी और ईपीएसओ जैसे बड़े सुधार इस रिपोर्ट में शामिल नहीं हो पाये हैं। इस रिपोर्ट से मोदी सरकार का विचलित होना लाजमी है। मोदी ने दुनिया भर में घूम-घूम कर कारोबारी सुगमता का भारी प्रचार किया, पर इस रिपोर्ट से उनकी मेहनत पर पानी फिर गया है। 2018 में कारोबारी सुगमता सूची में शीर्ष 50 देशों में स्थान दिलाने का उनका सपना फिलहाल दूर की कौड़ी लगता है। अब सरकारी महकमा खुद इस लक्ष्य को पाने के लिए कोई समय-सीमा बताने से मुँह छिपा रहा है।
मोदी सरकार जब 2014 में केंद्रीय सत्ता पर काबिज हुई, तब से सुधारों और घोषणाओँ का ताँता लगा हुआ है। कई नये कार्यक्रम शुरू किये गये हैं। मेक-इन इंडिया, स्टैंड-अप इंडिया, स्टार्ट-अप इंडिया, स्किल इंडिया, डिजिटल इंडिया, मुद्रा योजना आदि आदि। ऑनलाइन सुविधाओं और समाधानों के लिए भी कई दावे किये गये हैं, पर आर्थिक संकेतक और विश्व बैंक की रिपोर्ट इन दावों की तसदीक नहीं करती है। हकीकत यह है कि व्यापार सुगमता की सूची में कई मानकों पर भारत की स्थिति पहले से बदतर हुई है। स्टार्ट-अप इंडिया और स्टैंड-अप इडिया की घोषणा पिछले साल 15 अगस्त को लाल किले की प्राचीर से मोदी ने बड़े दम-खम से की थी।
पर विश्व बैंक की इस रिपोर्ट में नये कारोबार शुरू करने के मानक पर भारत का स्थान 4 अंक लुढ़क कर 155वाँ हो गया है। 190 देशों की सूची में निर्माण मानक पर भारत का स्थान 185वाँ है। पिछले एक साल में ही टैक्स प्रणाली अधिकाधिक मित्रवत बनाने के अनगिनत सरकारी बयान आये हैं। इस मानक पर भारत का स्थान 172वाँ है। टैक्स भुगतान मानक में एक पोस्ट-फाइल सूचकांक होता है। इस मानक पर भारत केवल अफगानिस्तान, तिमूर और तुर्की से ही आगे है। इससे ही कर प्रशासन में हुए सुधार का अंदाजा लगाया जा सकता है। इस मसले पर खुद मोदी और अरुण जेटली कर अधिकारियों के साथ कई बैठकें कर चुके हैं, पर नतीजा ज्यादा सुकून देने वाला नहीं है।
अब रियल स्टेट (नियामक और विकास) अधिनियम को ही लीजिए। इसे पारित हुए छह महीने से ऊपर हो गये हैं। इससे संबंधित नियमों की घोषणा 31 अक्तूबर तक होनी थी। राज्यों की बात छोड़ें, खुद केंद्र सरकार दिल्ली के लिए इन नियमों की घोषणा नहीं कर पायी है। नौकरशाही की बेरुखी की वजह से ताइवान की महाकाय कंपनी फॉक्सकॉन कंपनी की 5 अरब डॉलर की परियोजना खटाई में पड़ गयी है। यह परियोजना मेक-इन इंडिया की बड़ी उपलब्धि मानी जा रही थी।
मोदी सरकार के कार्यकाल का आधा समय बीत चुका है पर विनिर्माण (मैन्युफैक्चरिंग) और औद्योगिक क्षेत्र अपेक्षित गति नहीं पकड़ पा रहे हैं। निर्यात से किसी देश की प्रतिस्पद्र्धी क्षमता का पता चलता है। इस बार कुल निर्यात 2014 की तुलना में कम रहने वाले हैं। अन्य आर्थिक संकेतक भी उत्साहवर्धक नहीं हैं। निजी क्षेत्र का निवेश गिर रहा है। रोजगार में सन्नाटा पसरा हुआ है। बैंकों के फँसे कर्ज (एनपीए) काबू से बाहर हैं। अंतरराष्ट्रीय रेटिंग एजेंसियाँ भी अब तक मोदी सरकार के काम-काज से ज्यादा उत्साहित नहीं हैं। कोढ़ में खाज यह है कि निकट भविष्य में इन एजेंसियों ने भारत की रेटिंग बढऩे की संभावना से इन्कार कर दिया है। कुल मिला कर मोदी सरकार का हल्ला ज्यादा, गल्ला कम है। मोदी सरकार की पहली प्राथमिकता अब आर्थिक निर्णयों, घोषणाओं और कार्यक्रमों को जमीन पर उतारने की होना चाहिए, तभी कारोबारी गति और विश्वास में अपेक्षित इजाफा हो पायेगा।
(निवेश मंथन, नवंबर 2016)
मोदी सरकार नौ दिन चली ढाई कोस
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- Category: नवंबर 2016
- सातवाँ वेतन आयोग कहीं खुशी, कहीं रोष
- एचडीएफसी लाइफ बनेगी सबसे बड़ी निजी बीमा कंपनी
- सेंसेक्स साल भर में होगा 33,000 पर
- सर्वेक्षण की कार्यविधि
- भारतीय अर्थव्यवस्था ही पहला पैमाना
- उभरते बाजारों में भारत पहली पसंद
- विश्व नयी आर्थिक व्यवस्था की ओर
- मौजूदा स्तरों से ज्यादा गिरावट नहीं
- जीएसटी पारित कराना सरकार के लिए चुनौती
- निफ्टी 6000 तक जाने की आशंका
- बाजार मजबूत, सेंसेक्स 33,000 की ओर
- ब्याज दरें घटने पर तेज होगा विकास
- आंतरिक कारक ही ला सकेंगे तेजी
- गिरावट में करें 2-3 साल के लिए निवेश
- ब्रेक्सिट से एफपीआई निवेश पर असर संभव
- अस्थिरताओं के बीच सकारात्मक रुझान
- भारतीय बाजार काफी मजबूत स्थिति में
- बीत गया भारतीय बाजार का सबसे बुरा दौर
- निकट भविष्य में रहेगी अस्थिरता
- साल भर में सेंसेक्स 30,000 पर
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- ब्रेक्सिट का असर दो सालों तक पड़ेगा
- 2016-17 में सुधार आने के स्पष्ट संकेत
- चुनिंदा क्षेत्रों में तेजी आने की उम्मीद
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- ब्रेक्सिट से भारत बनेगा ज्यादा आकर्षक
- सावधानी से चुनें क्षेत्र और शेयर
- छोटी अवधि में बाजार धारणा नकारात्मक
- निफ्टी 8400 के ऊपर जाने पर तेजी
- ब्रेक्सिट का तत्काल कोई प्रभाव नहीं
- निफ्टी अभी 8500-7800 के दायरे में
- पूँजी मुड़ेगी सोना या यूएस ट्रेजरी की ओर
- निफ्टी छू सकता है ऐतिहासिक शिखर
- विकास दर की अच्छी संभावनाओं का लाभ
- बेहद लंबी अवधि की तेजी का चक्र
- मुद्रा बाजार की हलचल से चिंता
- ब्रेक्सिट से भारत को होगा फायदा
- निफ्टी साल भर में 9,200 के ऊपर
- घरेलू बाजार आधारित दिग्गजों में करें निवेश
- गिरावट पर खरीदारी की रणनीति
- साल भर में 15% बढ़त की उम्मीद
- भारतीय बाजार का मूल्यांकन ऊँचा
- सेंसेक्स साल भर में 32,000 की ओर
- भारतीय बाजार बड़ी तेजी की ओर
- बाजार सकारात्मक, जारी रहेगा विदेशी निवेश
- ब्रेक्सिट का परोक्ष असर होगा भारत पर
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- रुपये में कमजोरी का अल्पकालिक असर
- साल भर में नया शिखर
अर्थव्यवस्था
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about 11 years ago