अनुज पुरी, चेयरमैन, जेएलएल इंडिया :
साल 2013 रियल एस्टेट क्षेत्र में प्रमुख सुधारों की शुरुआत का साल रहा।
रियल एस्टेट (नियमन एवं विकास) अधिनियम और भूमि अधिग्रहण पुनर्वास एवं पुनस्र्थापन अधिनियम आने से क्षेत्र के लिए बेहतर नियामक माहौल विकसित होने की उम्मीदें बढ़ीं। बीते साल रियल एस्टेट में प्री-लॉन्च और 80:20 योजनाओं पर भी सवाल खड़े किये गये ताकि क्षेत्र में बेहतर कार्यप्रणाली सुनिश्चित की जा सके।
वाणिज्यिक श्रेणी
हालाँकि साल 2012 की शुरुआत से आर्थिक गतिविधियों में गिरावट आ गयी थी, लेकिन साल 2013 की दूसरी छमाही के आँकड़े औद्योगिक गतिविधियों और निर्यात में सुधार के आरंभिक संकेत दे रहे हैं। साल 2012 की ही तरह साल 2013 में भी दफ्तरों की जगह के लिए माँग ढीली ही रही। साल 2013 में किरायों में वृद्धि दर सभी शहरों में साल 2012 के मुकाबले कम रही (मुंबई छोड़ कर)।
बीते साल कंपनियों ने अपने बैक-एंड कामकाज को सस्ते उपनगरों में ले जाने को तरजीह दी। इसके अलावा पूरे देश में खाली जगहों के प्रतिशत में बढ़ोतरी हुई है। यह 2012 के अंत के 17.4% से बढ़ कर 2013 के अंत में 18.2% हो गयी। पूरे देश में आपूर्ति 10.4% की दर से बढ़ी, जबकि खपत में 1.1% की मामूली कमी आयी। हैदराबाद और दिल्ली-एनसीआर में खाली जगहों का प्रतिशत सबसे अधिक बढ़ा, जबकि मुंबई और बेंगलूरु में इसमें हल्की गिरावट आयी। पिछले चार सालों में निर्माण लागत में 25-30% की वृद्धि हुई है, जबकि कर्ज मुहैया कराने में बैंकों की बढ़ती अनिच्छा के कारण पँूजी की लागत भी बढ़ी है।
साल 2014 में भी दफ्तरों के स्थान की ढीली-ढाली खपत का क्रम जारी रहने की संभावना है। हालाँकि उम्मीद है कि साल 2014 की दूसरी छमाही में कंपनियाँ अपनी विस्तार योजनाओं को आगे बढ़ा सकती हैं, जिसकी वजह से खपत बढ़ सकती है। दूसरी ओर नयी योजनाएँ पूरी होने के कारण खाली जगहों के प्रतिशतत स्तर में हल्की बढ़ोतरी हो सकती है।
खुदरा श्रेणी
साल 2013 की पहली तीन तिमाहियों में खुदरा (रिटेल) व्यवसाय के स्थान की खपत सबसे अधिक चेन्नई में दर्ज की गयी। लेकिन चेन्नई में ही किराये और मूल्य में भी सबसे अधिक कमी भी देखी गयी। खुदरा स्थानों की खपत के मामले में कोलकाता दूसरे और मुंबई तीसरे स्थान पर रहे। इन बाजारों में आपूर्ति अधिक नहीं थी। लिहाजा इन शहरों में किराये और मूल्य में 5% से 10% तक की वृद्धि हुई। प्रथम श्रेणी (टियर-1) शहरों में सबसे कम खपत दिल्ली-एनसीआर और बेंगलूरु में रही।
साल 2014 में डेवलपरों की योजना नौ लाख वर्ग मीटर अतिरिक्त खुदरा स्थान की आपूर्ति करने की है। दूसरी ओर खुदरा क्षेत्र में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआई) के लिहाज से साल 2014 महत्वपूर्ण नहीं रहने वाला। इसलिए अधिकांश शहरों में किराया और मूल्य स्थिर रहने की संभावना है।
आवासीय श्रेणी
आवासीय श्रेणी में खपत की तिमाही-दर-तिमाही वृद्धि दर साल २०१३ के आरंभ में सकारात्मक थी, पर तीसरी तिमाही आते-आते यह नकारात्मक हो गयी। इसके बावजूद आवासीय संपत्तियों की कीमतों में तेजी का क्रम जारी रहा। पिछले चार सालों के दौरान देश में फ्लैटों की कीमतें औसतन 50% से अधिक बढ़ी हैं। इसी वजह से इस श्रेणी में 2013 में (तीसरी तिमाही तक) खपत ढीली-ढाली रही। हालाँकि कोलकाता और प्रमुख शहरों के करीबी स्थानों में खपत की दर बेहतर रही। साल 2013 में मोलभाव की ताकत खरीदारों के पक्ष में झुकती नजर आयी। दूसरी ओर कीमतों को 10-15% घटाने की डेवलपरों की इच्छा ने गंभीर स्थानीय खरीदारों को संपत्ति की खरीद पर अच्छी छूट पाने का मौका दिया। साल 2013 की पहली तीन तिमाहियों में देश भर में कीमतों में औसतन 10% की वृद्धि हुई।
इस अवधि में पूरे भारत में किराये औसतन 8% की दर से बढ़े। साल 2014 की दूसरी छमाही में खपत में धीरे-धीरे सुधार देखने को मिलेगा। ऐसे में आवासीय संपत्तियों की कीमतों में साल-दर-साल 10-12% की वृद्धि हो सकती है। आवासीय इकाइयों की खपत में वृद्धि से डेवलपरों को अनबिके घरों की संख्या घटाने में मदद मिलेगी, जो अभी काफी ज्यादा है।
किसी उभरती अर्थव्यवस्था में अवसरों की कमी नहीं होती। भारतीय आवासीय रियल एस्टेट क्षेत्र को सही अवसरों की पहचान करनी होगी। शहरों में जमीन की उपलब्धता कम है, इसलिए पुनर्विकास (रीडेवलपमेंट) भी उनकी वृद्धि के नये कारक के तौर पर उभर सकता है।
(निवेश मंथन, जनवरी 2014)