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अमेरिका-ईरान समझौते से भारत के लिए राहत

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Category: दिसंबर 2013

नरेंद्र तनेजा, ऊर्जा विशेषज्ञ :

अमेरिका और ईरान के बीच अभी जो समझौता हुआ है, वह केवल शादी के कार्ड छपने जैसा है।

असली शादी तो बाद में होगी। लेकिन यह जरूर एक बड़ी सकारात्मक घटना है। अभी समझौता इस बात का हुआ है कि वे आगे एक पक्का समझौता करेंगे। अभी समझौते की सारी बातें तय नहीं हुई हैं। अंतिम समझौते की शर्तें तय होनी अभी बाकी हैं। पर आगे की बातचीत के लिए विषय-वस्तु तय हो गयी है।
अभी यह सहमति बन गयी है कि ईरान परमाणु हथियार नहीं बनायेगा और साथ ही उस पर लगी बंदिशें ढीली की जायेंगीं। लेकिन इसकी व्यापक रूपरेखा बननी अभी बाकी है। लेकिन आम तौर पर जब बड़े देशों और दुनिया की बड़ी ताकतों के बीच इस तरह के समझौते होते हैं तो वह समझौता आगे परवान चढ़ता है। इससे पीछे हटना आसान नहीं होगा, क्योंकि इसमें रूस भी शामिल है। अब केवल यह देखना है कि कहीं ईरान के अंदर से इसका विरोध तो नहीं होता, और अगर विरोध हो तो ईरान कहीं उसके चलते अपना रास्ता कुछ बदलता तो नहीं।
इस खबर के आने पर ब्रेंट क्रूड के भाव में करीब ढाई डॉलर की कमी आयी है, मगर इसमें ठीक-ठाक कमी तब आयेगी जब इस समझौते का वास्तविक असर पडऩा शुरू होगा। अभी अचानक से उत्पादन तो नहीं बढ़ जायेगा और बाजार में वह अतिरिक्त उत्पादन आ जायेगा। इसमें तो अभी और समय लगेगा। ईरान में तेल उत्पादन का जो बुनियादी ढाँचा है, वह बहुत पुराना है। उसे आधुनिक बनाने में बहुत खर्च होगा।
इस घटना के असर से कच्चे तेल का भाव और नीचे जा सकता है। लेकिन अभी तो इस समझौते से केवल एक शुरुआत हुई है। ईरान बड़ा कठिन देश है। इस समझौते का एक बड़ा संबंध उसकी आंतरिक स्थितियों से है। ईरान के नये राष्ट्रपति इसके जरिये एक संदेश देकर देश के मध्य वर्ग का समर्थन जीतना चाहते हैं।
अभी यह जरूर है कि अमेरिका और ईरान के बीच तनाव के चलते जो विस्फोटक स्थिति बनी हुई थी, वह शांत हो गयी है। यह एक अच्छी शुरुआत है। लेकिन इन सबमें समय लगेगा। असली बातचीत तो अब शुरू होगी। अमेरिका भी चाहता है कि बाजार में ईरान का तेल आये। वहीं ईरान का बाजार खुल जाये, यह अमेरिकी कंपनियों की इच्छा है।
भारत के लिए इसका चौतरफा फायदा है। एक तरफ तो इससे कच्चे तेल का भाव घटेगा, जिससे जाहिर तौर पर भारतीय अर्थव्यवस्था को राहत मिलेगी। वहीं भारत ईरान को दोबारा पेट्रोलियम उत्पादों का निर्यात भी शुरू कर सकेगा, क्योंकि ईरान में रिफाइनिंग (शोधन) क्षमता कम है। साथ ही भारत के ईरान में जो निवेश पहले हो चुके थे, लेकिन ठंडे बस्ते में पड़े थे, उनकी गाड़ी फिर से आगे बढ़ सकेगी। भारत की कंपनियाँ नये सिरे से भी ईरान में निवेश के अवसरों की तलाश कर सकेंगी। गैस पाइपलाइन का मुद्दा ठंडा हो गया था, उसे फिर से उठाया जा सकेगा। इसके अलावा प्रतिबंधों के हटने से ईरान मजबूत होगा और इससे अफगानिस्तान में तालिबान के लिए वापस आना आसान नहीं होगा।
इसलिए भारत के लिए भी यह घटना अच्छी है। मगर आगे भारत को कुछ बातें देखनी होंगी। ईरान पर प्रतिबंधों के लिए भारत पर जितना दबाव डाला गया, हमने उससे कुछ ज्यादा ही कदम उठा लिये थे। इसलिए ईरान कहीं-न-कहीं नाराज भी है भारत से। उसके मन में इन बातों का मलाल रहेगा कि 3,000 साल पुराने संबंधों के बावजूद भारत ने उसके साथ ऐसा किया। यह मलाल जाते-जाते चला जायेगा। मगर कुल मिला कर यह अच्छी घटना है।
अमेरिका और ईरान का तनाव केवल मध्य-पूर्व की भू-राजनयिक स्थिति के लिए नहीं, बल्कि विश्व अर्थव्यवस्था के लिए एक बड़ा संघर्ष-बिंदु था। मध्य-पूर्व में अभी सबसे मुख्य संघर्ष-बिंदु ईरान का ही मसला था। ईरान में स्थिरता लौटना और उसका अंतरराष्ट्रीय समुदाय में वापस लौटना अच्छी खबर है। ईरान और अमेरिका के झगड़े से कई देशों को नुकसान हो रहा था और भारत के लिए भी बड़ा नुकसान था। इसलिए भारत सरकार के लिए यह एक राहत है।
(निवेश मंथन, दिसंबर 2013)

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