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सातवाँ वेतन आयोग कहीं खुशी, कहीं रोष

सातवें वेतन आयोग की सिफारिशें लागू करने पर कैबिनेट ने अपनी मुहर लगा दी लगा दी है। इससे उद्योग जगत खुश है कि माँग बढ़ेगी तो केंद्रीय कनिष्ठ कर्मचारियों में रोष है कि वेतन कम बढ़ा। केंद्रीय कैबिनेट ने 29 जून को सातवें वेतन आयोग की सिफारिशों को लागू करने के फैसले पर अपनी मुहर लगा दी। इसके जरिये मूल वेतन में 14.27%, और भत्तों आदि को मिला कर कुल 23.6% बढ़ोतरी को मंजूरी दी गयी है।

इस निर्णय का फायदा केंद्र सरकार के 50 लाख मौजूदा कर्मचारियों और 58 लाख पेंशनधारियों को होगा। वेतन आयोग की इन सिफारिशों को एक जनवरी 2016 से लागू माना जायेगा। केंद्रीय कर्मचारियों को साल 2016 की शुरुआत से ही इस निर्णय का इंतजार था। जस्टिस अशोक कुमार माथुर की अध्यक्षता वाले सातवें वेतन आयोग ने बीते साल नवंबर में ही अपनी रिपोर्ट वित्त मंत्रालय को सौंप दी थी। इसके बाद जून के आखिरी सप्ताह में अधिकार प्राप्त सचिवों की समिति ने इस आयोग की रिपोर्ट पर अपनी संस्तुति वित्त मंत्रालय को दे दी। वेतन आयोग की रिपोर्ट आने के बाद जनवरी 2016 में इस समिति का गठन किया गया था और सरकार ने स्पष्ट कर दिया था कि वह इस समिति की रिपोर्ट को पूरी तरह लागू करेगी।

निचले स्तर पर किसी नये कर्मचारी का शुरुआती वेतन अब 18,000 रुपये प्रति माह होगा, जो अभी तक 7,000 रुपये था। अधिकतम वेतन मौजूदा 90,000 रुपये से बढ़ा कर 2.5 लाख रुपये प्रति माह कर दिया गया है, जो आयोग की सिफारिशों के ही अनुरूप है। सरकार ने पे बैंड और ग्रेड पे की मौजूदा व्यवस्था को खत्म करने का फैसला किया है और एक नयी व्यवस्था शुरू की है। कर्मचारियों की ग्रेच्युटी की सीमा को दोगुना कर 20 लाख रुपये कर दिया गया है। सरकार ने कर्मचारियों के लिए चार को छोड़ कर बाकी सभी ब्याज मुक्त कर्जों को खत्म कर दिया है। कुल 196 भत्तों के परीक्षण के बाद 51 को खत्म कर दिया गया है और 37 को दूसरों में मिला दिया गया है।

सरकार ने यह भी फैसला किया है कि वेतन और पेंशन का पिछला बकाया (एरियर) मौजूदा वित्तीय वर्ष में ही दे दिया जायेगा, जबकि पहले ऐसे एरियर अगले वित्तीय वर्ष में दिये जाते थे। एक अनुमान के मुताबिक, सातवें वेतन आयोग की सिफारिशों को लागू करने से केंद्र सरकार पर हर साल 1.02 लाख करोड़ रुपये का अतिरिक्त बोझ पड़ेगा।

लेकिन केंद्रीय कर्मचारी इससे खुश नहीं हैं। सरकार के फैसले के कुछ ही घंटों के भीतर कनिष्ठ कर्मचारियों ने इसके खिलाफ हड़ताल पर जाने की घोषणा कर दी। नेशनल ज्वाइंट काउंसिल ऑफ ऐक्शन के संयोजक शिव गोपाल मिश्र ने कहा, 'हमने सरकार से आयोग की सिफारिशों को और बेहतर करने के लिए कहा था। लेकिन सरकार ने आयोग की सिफारिशों से अधिक बढ़ोतरी नहीं की। यह काफी निराशाजनक है।' काउंसिल ने 11 जुलाई से अनिश्चितकालीन हड़ताल पर जाने की घोषणा की है।

मुख्य विपक्षी दल कांग्रेस ने इस पर राजनीतिक बिसात बिछानी शुरू कर दी है। पार्टी ने विभिन्न कर्मचारी संगठनों के हड़ताल के आह्वान को अपना समर्थन देने की घोषणा की है। इसने एनडीए सरकार पर पिछली परंपराओं से भटकने का आरोप लगाया है। पार्टी के मुताबिक अब तक यह परंपरा रही है कि कर्मचारियों के फायदे के लिए वेतन आयोग की सिफारिशों को और बेहतर कर दिया जाता है।

कांग्रेस के प्रवक्ता अजय माकन ने कहा कि 70 साल के वेतन आयोग के इतिहास में यह सबसे घटिया सिफारिश है। कांग्रेस ने याद दिलाया है कि पाँचवें और छठे वेतन आयोग की सिफारिशों में कर्मचारियों के वेतन 20% बढ़ाने की बात कही गयी थी, लेकिन इसमें 20 से 40% की बढ़ोतरी की गयी थी। माकन का कहना है कि एनडीए सरकार ने रिपोर्ट को जस का तस स्वीकार कर लिया है।

दूसरी ओर सरकार ने यह कहते हुए अपनी पीठ थपथपाई है कि कर्मचारियों को पाँचवें वेतन आयोग की सिफारिशें लागू होने के लिए 19 महीने और छठे वेतन आयोग के लिए 32 महीने तक इंतजार करना पड़ा था, जबकि सातवें की सिफारिशों को देय तिथि से छह महीने के भीतर ही लागू कर दिया गया है। एक ओर इन सिफारिशों को लागू करने से जुड़े विरोध हैं, तो दूसरी ओर इस बढ़ोतरी से महँगाई बढऩे की आशंका भी प्रबल हो गयी है। वित्त मंत्री अरुण जेटली ने भी इस बात को स्वीकार किया है कि इससे महँगाई बढ़ सकती है। भारतीय रिजर्व बैंक ने अनुमान लगाया है कि इसके प्रत्यक्ष प्रभाव के तौर पर महँगाई में 1.50% अंक और अप्रत्यक्ष प्रभाव के तौर पर 0.40% अंक की वृद्धि हो सकती है।

हालाँकि उद्योग जगत और शेयर बाजार ने वेतन आयोग की सिफारिशों का स्वागत किया है। माना जा रहा है कि लोगों के हाथों में अधिक पैसे आने से दोपहिया वाहनों, कारों, इलेक्ट्रॉनिक सामानों सहित विभिन्न उपभोक्ता वस्तुओं की माँग बढ़ेगी, जिसका अर्थव्यवस्था पर सकारात्मक असर पड़ेगा। (निवेश मंथन, जुलाई 2016)

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