डी आलोक :
नवरात्रि के साथ हिन्दू त्योहारों और उत्सवों का सिलसिला एक बार फिर शुरू हो गया है, जो तीन महीनों तक जारी रहेगा।
अक्टूबर में नवरात्रि, विजयादशमी, बकरीद और करवा चौथ के बाद नवंबर में धनतेरस, दीपावली, भैया दूज और छठ। दिसंबर में क्रिसमस और उसके बाद नये साल के जश्न। जहाँ ग्राहकों के लिए ये तीन महीने ढेर सारी खरीदारी के नाम होते हैं, वहीं कंपनियों और विक्रेताओं के लिए भी यह अपने उत्पाद बेचने का सुनहरा मौका होता है।
ग्राहक अपनी बहुत सारी खरीदारी इन्हीं महीनों के लिए टालते रहते हैं, क्योंकि विभिन्न कंपनियाँ इस त्योहारी मौसम में उनको लुभाने के लिए तरह-तरह की आकर्षक छूट और उपहार लेकर बाजार में उतरती हैं। चूंकि विक्रेताओं को यह पता होता है कि ग्राहक इन महीनों में अपने बटुए का मुँह खोल देते हैं, ऐसे में वे तरह-तरह के उपायों जैसे नकद छूट, एक के साथ दो मुफ्त, ब्याज मुक्त किस्त आदि के जरिए अपने संभावित ग्राहकों को आकर्षित करने की कोशिश करते हैं। लेकिन इस बार हालात कुछ अलग हैं।
अप्रैल-जून तिमाही में उपभोक्ता व्यय में वृद्धि साल-दर-साल महज 1.6% रही है। इसकी वजह से इस तिमाही में देश के जीडीपी विकास की दर केवल 4.4% रही। गौरतलब है कि पिछले साल इसी अवधि में उपभोक्ता व्यय में साल-दर-साल 4.3% की दर से बढ़ोतरी हुई थी। जहाँ तक कंज्यूमर ड्यूरेबल क्षेत्र का सवाल है, जुलाई 2013 में इसने साल-दर-साल 9.3% की गिरावट दर्ज की है, जबकि साल 2012 में इसने 0.8% की वृद्धि हासिल की थी। अगर तिमाही आँकड़ों की बात करें तो कंज्यूमर ड्यूरेबल क्षेत्र में अप्रैल-जुलाई 2012 की 6.1% वृद्धि के मुकाबले इस साल अप्रैल-जुलाई में 12% की गिरावट आयी है।
इस स्थिति के मद्देनजर विभिन्न उत्पाद कंपनियों ने अपनी बिक्री बढ़ाने और अधिक-से-अधिक ग्राहकों को अपनी ओर आकर्षित करने के लिए विशिष्ट रणनीतियाँ बनायी हैं। लेकिन भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) की ओर से पिछले दिनों उठाये गये कुछ कदमों से इन कंपनियों को निश्चित तौर पर झटका लगा है। इन्हें अपनी रणनीतियों में बदलाव करना पड़ रहा है।
आरबीआई के नवनियुक्त गवर्नर रघुराम राजन ने अपनी पहली मध्य तिमाही मौद्रिक नीति समीक्षा में 20 सितंबर को रेपो दर में 0.25% अंक की बढ़ोतरी कर इसे 7.5% कर दिया, जो तत्काल प्रभाव से लागू कर दिया गया। आरबीआई ने इस समीक्षा में कहा कि महँगाई ऊँचे स्तरों पर बनी हुई है और परिवारों की वित्तीय बचत उतनी नहीं हो पा रही है, जितनी होनी चाहिए।
लेकिन ऐसा नहीं लगता कि इन परिवारों को वित्तीय मोर्चे पर वाकई कोई राहत मिलने वाली है। इसकी वजह यह है कि बड़ी खरीदारियों के लिए ये परिवार अक्सर बैंकों से ऋण लेते हैं और आरबीआई के इस कदम के बाद कार ऋण और आवास ऋण (होम लोन) पर ब्याज दर में बढ़ोतरी तय मानी जा रही है। इसके अलावा, बैंकों की ओर से क्रेडिट कार्ड ग्राहकों के लिए चलायी जाने वाली शून्य ब्याज (जीरो इंट्रेस्ट) योजनाओं पर भी आरबीआई ने रोक लगा दी है।
इसके अलावा केंद्रीय बैंक ने उन योजनाओं पर भी रोक लगा दी, जहाँ विभिन्न बैंक कुछ प्रोसेसिंग शुल्क ले कर बड़ी खरीदारी को कई छोटी-छोटी किस्तों में बदलने का विकल्प अपने स्तर से अपने ग्राहकों को देते थे। शून्य ब्याज ईएमआई योजनाएँ ग्राहकों के बीच लोकप्रिय हो गयी थीं।
लेकिन भारतीय रिजर्व बैंक ने अपनी अधिसूचना में कहा, ‘शून्य ब्याज की अवधारणा का कोई अस्तित्व ही नहीं है और किसी कारोबार के उचित तरीकों के तहत यह आवश्यक है कि (बैंकों द्वारा) प्रोसेसिंग शुल्क और ब्याज दरें एकसमान रखी जायें। ऐसी योजनाओं का उद्देश्य ग्राहकों को लुभाना और उनका दोहन करना है।’
हालाँकि इन योजनाओं में बैंकों की ओर से कोई ब्याज तो नहीं लिया जाता था, लेकिन आम तौर पर इस कर्ज के साथ एक प्रोसेसिंग शुल्क जरूर जुड़ा रहता था। ऐसे में इन योजनाओं के तहत सामान लेने वाले ग्राहकों को नकदी देकर सामान लेने वालों के मुकाबले दोतरफा नुकसान होता था। एक ओर उसे विक्रेता से नकद खरीदारी पर मिलने वाली छूट से हाथ धोना पड़ता था, दूसरी ओर उसे प्रोसेसिंग शुल्क भी अदा करना पड़ता था।
बैंक बाजार डॉट कॉम के सीईओ आदिल शेट्टी का कहना है कि आरबीआई हमेशा से शून्य ब्याज योजनाओं के खिलाफ रहा है और उसने पिछले दिनों अपनी इस घोषणा के जरिए अपने इरादों को गंभीरता से व्यक्त किया है। शेट्टी आगे कहते हैं कि आरबीआई की इस घोषणा का समय गौर करने लायक है, क्योंकि त्योहारी मौसम सिर पर है और इन्हीं दिनों ऐसी बिक्री तेजी पकड़ती है।
लेकिन इस कहानी का एक व्यावहारिक पहलू भी है। कुछ जानकार बताते हैं कि ऐसी योजनाओं का ग्राहकों के ऊपर मनोवैज्ञानिक प्रभाव पड़ता है। इनका मानना है कि ग्राहकों दो वजहों से ऐसी योजनाओं को प्राथमिकता देते हैं। एक तो उन्हें शुरुआत में कम अदायगी करना पड़ती है और दूसरे, मनोवैज्ञानिक तौर पर ब्याज में राहत उन्हें नकदी में छूट से कहीं अधिक पसंद आती है।
दरअसल क्रेडिट कार्ड पर ऐसी खरीदारी करते समय ग्राहक इस बात से अनभिज्ञ नहीं होते कि उनसे अतिरिक्त राशि वसूली जा रही है। लेकिन ग्राहक इन बातों को जानते हुए भी शून्य ब्याज वाली योजनाओं को प्राथमिकता देते हैं।
कंज्यूमर ड्यूरेबल पर असर
इन योजनाओं पर लगायी गयी रोक का इलेक्ट्रॉनिक्स वस्तुओं और कंज्यूमर ड्यूरेबल कंपनियों की बिक्री पर प्रभाव पडऩा तय है, क्योंकि इन्होंने ऐसी योजनाओं को वापस लेना आरंभ कर दिया है। इसका असर खरीदारी के रुझान पर पडऩा स्वाभाविक है। रुपये की कमजोरी और मोटे तौर पर महँगाई बढऩे की वजह से इनके उत्पाद पहले के मुकाबले कुछ महँगे भी हो चुके हैं। ऐसे में इन योजनाओं का अभाव इस त्योहारी मौसम में खरीदारी के उत्साह पर पानी डालने का काम कर सकता है।
हालाँकि इसके बावजूद कंपनियाँ उम्मीद कर रही हैं कि अक्टूबर-दिसंबर के दौरान माँग बढ़ सकती है। चूँकि मौसम त्यौहारों का है और सवाल बड़ी बिक्री का है, ऐसे में जानकार इस बात का अंदेशा जता रहे हैं कि विक्रेता अलग-अलग तरीकों की रणनीतियाँ अपना सकते हैं।
शेट्टी के अनुसार, एक ग्राहक के तौर पर अगर आप आकर्षक दाम पर कंज्यूमर ड्यूरेबल की खरीद करने वाले हैं और ऐसी कोई योजना आपके सामने रखी जाती है, तो विक्रेता से कुछ बुनियादी सवाल पूछने जरूरी हैं। ये सवाल पूछ कर आपको यह जानने की कोशिश करनी चाहिए कि वह विक्रेता इस योजना के नाम पर आपको क्या बेचना चाहता है। सबसे पहले यह पूछना चाहिए कि पूरी राशि तुरंत देने पर क्या मुझे कोई छूट मिलेगी? दूसरा सवाल यह कि अगर इस योजना के जरिए सामान खरीदा जाये तो प्रोसेसिंग शुल्क या अन्य शुल्क कितना लगेगा?
अगर इन दोनों का जवाब मिलता है - कुछ नहीं, तो ऐसी योजना के तहत खरीदारी की जा सकती है। लेकिन ऐसी योजना मिलना व्यावहारिक तौर पर लगभग नामुमकिन है। इसलिए शेट्टी का कहना है कि जब तक आप पूरी तरह सुनिश्चित नहीं कर लेते कि आपको वाकई कोई अतिरिक्त शुल्क नहीं देना होगा, तब तक ऐसी योजनाओं से दूर रहना ही बेहतर है।
गाडिय़ों की धीमी बिक्री
एक ग्राहक के तौर पर असुविधाओं का सिलसिला यहीं खत्म नहीं हो रहा। देश का सबसे बड़ा बैंक भारतीय स्टेट बैंक (एसबीआई) अब उन लोगों को कार के लिए कर्ज नहीं देगा, जिनकी वार्षिक आय छह लाख रुपये से कम है। यही नहीं, एसबीआई ने कार के मूल्य का 0.51% बतौर प्रोसेसिंग शुल्क लेना भी शुरू कर दिया है। हालाँकि एसबीआई का दावा है कि ऐसा करने के बावजूद उसके ग्राहकों की संख्या में कमी नहीं आयेगी, लेकिन कार ऋण के संभावित ग्राहकों पर इसका असर पडऩा तय है।
हालाँकि इन ग्राहकों के लिए यह राहत जरूर है कि अभी अन्य बैंकों ने ऐसे कदम नहीं उठाये हैं। अन्य बैंकों से कार लोन लेने के लिए वेतनभोगी व्यक्ति की न्यूनतम सालाना आमदनी 2.50 लाख रुपये होनी चाहिए। एसबीआई ने यह कदम तब उठाया है, जब पिछले कई महीनों से कारों की बिक्री पर दबाव बना हुआ है और कार ऋण पर ऊँची ब्याज दरों को भी इसकी प्रमुख वजहों में से एक माना जा रहा है।
अगर हम सितंबर में कार बिक्री के आँकड़ों को देखें तो केवल फोर्ड और होंडा की बिक्री में साल-दर-साल के आधार पर बढ़ोतरी दो अंकों में रही है। टाटा मोटर्स, महिंद्रा ऐंड महिंद्रा, ह्यूंदै, टोयोटा जैसी कंपनियों की बिक्री सितंबर 2012 के मुकाबले कम रही है। बाजार में सबसे अधिक कारें बेचने वाली मारुति सुजुकी साल-दर-साल केवल 2% की बढ़ोतरी दर्ज करने में कामयाब रही है।
त्योहारी मौसम को देखते हुए विभिन्न कार कंपनियाँ ग्राहकों के लिए आकर्षक ऑफर लाती हैं और यह साल भी अपवाद नहीं है। बाजार से जुटायी जानकारियों के मुताबिक स्विफ्ट पर 25,000 रुपये, डिजायर पर 15,000 रुपये, इंडिका पर 40,000 रुपये, ए-स्टार पर 40,000 रुपये, स्कॉर्पियो पर 30,000-40,000 रुपये, सूमो गोल्ड पर 60,000 रुपये और आर्टिगा पर 40,000 रुपये तक की छूट दी जा रही है।
इस बीच खबर यह भी है कि केंद्र सरकार ने बैंकों को दी जाने वाली पूँजीगत सहायता का बजट 14,000 करोड़ रुपये से अधिक करने का फैसला किया है। ऐसा इसलिए किया जा रहा है ताकि चुनिंदा श्रेणी के उत्पादों, जैसे दोपहिया वाहनों, टेलीविजन, वाशिंग मशीन और रेफ्रिजरेटर आदि पर बैंक ब्याज दरें कम कर सकें।
लेकिन आरबीआई की ओर से रेपो दर की बढ़ोतरी के बाद उल्टे बैंकों ने वाहन ऋण और आवास ऋण पर ब्याज दरें बढ़ा दी हैं। अब देखने वाली बात यह होगी कि सरकार की नयी पहल से उपभोक्ताओं को कितना फायदा होता है।
गहनों की चमक भी फीकी
आभूषण बाजार में भी कुछ खास उत्साह नहीं दिख रहा है और जौहरी ग्राहकों की बाट जोह रहे हैं। गौरतलब है कि सितंबर के तीसरे हफ्ते में सरकार ने सोने और चाँदी के आभूषणों पर आयात शुल्क 10% से बढ़ा कर 15% कर दिया था। सरकार ने इस कदम के पीछे मकसद यह बताया था कि इससे घरेलू आभूषण उद्योग को संरक्षण मिलेगा।
लेकिन इस निर्णय से सोने और चाँदी के आभूषण और महँगे हो गये हैं। इससे एक महीने पहले यानी अगस्त के दूसरे हफ्ते में सरकार ने सोने पर आयात शुल्क बढ़ा कर 10% कर दिया था। इस तरह एक महीने के भीतर पहले सोने पर और उसके बाद सोने और चाँदी के आभूषणों पर आयात शुल्क बढ़ा दिया गया। पहले से ही महँगाई की मार से बेजार आम आदमी आभूषणों को खरीदने की हिम्मत नहीं जुटा पा रहा।
हालाँकि जौहरी यह उम्मीद लगाये बैठे हैं कि त्योहारी मौसम जोर पकडऩे के कारण अक्टूबर के दूसरे हफ्ते से ज्वैलरी की माँग में एक बार फिर से तेजी आ सकती है। जे पी ज्वेलर्स, पटना के मालिक ज्वाला ठाकुर का कहना है कि बड़े ज्वेलरों के साथ-साथ छोटे ज्वेलरों ने भी नवरात्रि के पहले दिन से त्योहारी छूट की पेशकश की है, लेकिन पटना के आभूषण बाजार में ग्राहकों का टोटा है।
बी सी सेन ज्वेलर्स, गुडग़ांव के शोरूम मैनेजर का कहना है कि अभी उनके यहाँ कोई फेस्टिवल ऑफर नहीं चल रहा है। हालाँकि त्योहारी मौसम को भुनाने के लिए भोलासंस ज्वेलर्स, करोलबाग में पाँच अक्टूबर से हीरे के सभी आभूषणों पर उनके अंकित मूल्य पर सीधे 20% की छूट दी जा रही है।
पीसी ज्वेलर 30,000 रुपये या इससे अधिक के हीरे के आभूषण खरीदने पर एक ग्राम सोने का सिक्का मुफ्त दे रहा है। इसके अलावा पीसी ज्वेलर ने त्यौहारों के दौरान 25,000 रुपये से अधिक की खरीदारी करने वालों के लिए बंपर उपहार देने की भी घोषणा की है, जिसमें 36 स्कोडा गाडिय़ों के अलावा अन्य कई उपहार दिये जायेंगे। पीसी ज्वेलर के अनुसार यह योजना पाँच अक्टूबर से पाँच नवंबर 2013 तक लागू है।
उभर रहे हैं नये विकल्प
यातायात की दिक्कतों, ईंधन की कीमत में बढ़ोतरी, सुरक्षा कारणों और ऑनलाइन खरीदारी पर मिलने वाली छूट की वजह से बहुत-से लोग अब दुकानों में जा कर खरीदारी करने से परहेज करने लगे हैं। ऐसे में ऑनलाइन खरीदारी में लगातार तेजी देखने को मिल रही है। इन त्योहारों के अवसर पर की जाने वाली खरीदारी में भी ऑनलाइन खरीदारी भी इस बार एक प्रमुख भूमिका अदा कर सकती है।
उद्योग संगठन एसोचैम की एक रिपोर्ट के अनुसार इस समय ऑनलाइन खरीदारी का बाजार तकरीबन 52,000 करोड़ रुपये का है और इसमें हर साल 100% की दर से वृद्धि दर्ज की जा रही है। उद्योग संगठन ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि भारत में 10 करोड़ इंटरनेट उपभोक्ता हैं और इनमें से 50% लोग ऑनलाइन खरीदारी का विकल्प आजमाने लगे हैं। दिल्ली में रहने वाले लोगों में ऑनलाइन खरीदारी का यह चलन सबसे अधिक दिख रहा है। इसके बाद के पायदानों पर मुंबई और अहमदाबाद के लोग हैं।
(निवेश मंथन, अक्तूबर 2013)