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निवेश बढ़ा रहा है बाजार को

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Category: अप्रैल 2017

एक तरफ वैश्विक अर्थव्यवस्था पर नजर रखने की जरूरत है, तो दूसरी तरफ भारतीय अर्थव्यवस्था की नब्ज को टटोलना भी आवश्यक है।

एक तरफ बाजार की नयी ऊँचाइयों से पैदा उत्साह है, तो दूसरी तरफ ऊँचे मूल्यांकन को लेकर थोड़ी चिंता भी। और इस सारी माथापच्ची के बीच चुनना है कि बाजार में पैसा कहाँ लगाया जाये। इन गुत्थियों पर एक विस्तृत बातचीत ओपीसी एसेट सॉल्यूशन के कार्यकारी चेयरमैन अजय बग्गा से, जो अर्थशास्त्री की नजर से देश और विश्व की अर्थव्यवस्था को आँकते हैं और विश्लेषक की नजर से निवेश के मौकों को पहचानते हैं।
हाल में बाजार में जो तेजी आयी है, उसमें पाँच राज्यों के चुनावों में भाजपा को मिलने वाली सफलता का कितना योगदान मानेंगे और अमेरिकी बाजार से आने वाले संकेतों का कितना?
ज्यादातर पैसा बाहर से आ रहा है और घरेलू वित्तीय संस्थाओं (डीआईआई) की तो बिकवाली चल रही है। बाहर से आने वाला निवेश अधिकतर मैक्रो टॉप-डाउन रणनीति (पहले निवेश के लायक अर्थव्यवस्था का चुनाव) के तहत होता है, जो देश की विकास दर और यहाँ हो रहे सुधारों को देख कर आ रहा है। इस निवेश को प्रोत्साहन इस बात से है कि निवेशकों को अगले सात साल तक यही सरकार बनी रहने की संभावना दिखती है।
उन्हें लगता है कि इस सरकार के लिए 2019 का चुनाव जीतने की भी अच्छी संभावना है। दूसरे, जीएसटी का लागू होना एक बहुत अहम सुधार है। नीतियों में एक निरंतरता है। वैश्विक अर्थव्यवस्था के संकेत भी बहुत सकारात्मक हैं। अमेरिका में वृद्धि हो रही है, चीन खुद को सँभाल रहा है और यूरोप की अर्थव्यवस्था सँभलने लगी है। इन बातों के मद्देनजर वैश्विक निवेशक इक्विटी को पसंद कर रहे हैं और भारत को उस निवेश का एक हिस्सा मिल रहा है।
यहाँ से भारतीय बाजार की दिशा और चाल कैसी रहेगी?
अभी तो विदेशी पैसे से ही मजबूत चाल बनी हुई है। अभी यह समझ में नहीं आ रहा है कि डीआईआई की बिकवाली कहाँ से आ रही है। म्यूचुअल फंडों में अच्छा निवेश हो रहा है और वे अच्छी-खासी नकदी भी लेकर बैठे हुए हैं। इसलिए ऐसा लग रहा है कि बीमा कंपनियों की यूलिप योजनाओं की अवधि पूरी होने से उनका पैसा निकाला जा रहा है। यह हमारा अनुमान है, क्योंकि इसके आँकड़े अलग से नहीं मिलते हैं। पर जब हम बीमा और म्यूचुअल फंड कंपनियों के लोगों से बात करते हैं, तो उनका ऐसा कहना है।
आगे चल कर बाजार के लिए एक महत्वपूर्ण कारक यह होगा कि सरकार किस तरह से सुधारों की नयी श्रृंखला लाती है और इसका मुख्य ध्यान किन बातों पर रहता है। अभी तक अच्छी बात यह है कि सरकारी घाटा (फिस्कल डेफिसिट) और सरकारी खर्च नियंत्रण में रखा गया है। सब्सिडी सीधे जरूरतमंदों को देने पर ध्यान दिया जा रहा है, जिसका काफी असर ग्रामीण अर्थव्यवस्था पर होता हुआ दिख रहा है और खपत में सुधार की उम्मीद है। कर सुधार, बुनियादी ढाँचे पर खर्च और विनियमों में थोड़ी ढील देने का काम अगर अगस्त-सितंबर तक किया जाये तो बाजार में पहले ही उसकी प्रतिक्रिया आ जायेगी।
अगर यह सब होता है तो हमारे देश में बाहर से निवेश आना जारी रहेगा। अमेरिका में वृद्धि हो रही है। अगर वहाँ बुनियादी ढाँचे पर खर्च बढ़ता है तो वह धातु (मेटल) और विभिन्न सामग्रियों (मैटेरियल) के लिए सकारात्मक होगा। ऐसे में पूरे विश्व में एक सकारात्मक चक्र हो जाता है। पहले ही दिख रहा है कि व्यापार में एक उछाल है।
पिछले 2 महीनों के दौरान बाल्टिक इंडेक्स बढ़ा है। आशंका तो यह थी कि डोनाल्ड ट्रंप के अमेरिकी राष्ट्रपति बनने पर वैश्विक व्यापार नीचे जायेगा, पर ऐसा हुआ नहीं है। इसके विपरीत वैश्विक व्यापार में बढ़ोतरी हो रही है। दरअसल बाल्टिक इंडेक्स एक ऐसा संकेतक है, जो थोड़ा पहले से ही विश्व अर्थव्यवस्था के बारे में संकेत दे देता है। इससे भविष्य में वैश्विक जीडीपी के और भी बढऩे का अनुमान लगाया जा सकता है। जब जीडीपी बढ़ती है तो निवेशक ज्यादा जोखिम भी उठाना शुरू करते हैं। यानी तब उभरते हुए बाजारों और खास कर भारत में और ज्यादा निवेश आयेगा।
एफआईआई अक्टूबर 2016 से जनवरी 2017 तक बिकवाल रहे। अब दो महीने से फिर उनकी खरीदारी तेज हो गयी है। उनके रुख में इस बदलाव के पीछे क्या कारण रहा है?
पहले यह आशंका थी कि ट्रंप के राष्ट्रपति बनने से डॉलर बहुत मजबूत हो जायेगा और वैश्विक व्यापार पर नकारात्मक असर पड़ेगा। कमोडिटी कीमतें भी बहुत तेजी से बढ़ीं। इन सबके चलते उभरते बाजारों से पैसा निकल रहा था। अब देखा जा रहा है कि ट्रंप के आने का नकारात्मक प्रभाव इतना नहीं है और डॉलर में वैसी मजबूती भी नहीं है। फेडरल रिजर्व ने दरें बढ़ायी भी, पर डॉलर उल्टे कमजोर हो रहा है। अब हम देख रहे हैं कि निवेशक फिर से वृद्धि के पीछे भाग रहे हैं।
इस समय ताइवान, कोरिया सहित एशिया में हर हफ्ते लगभग 3-4 अरब डॉलर आ रहे हैं, जिसमें से एक अरब डॉलर तक का भारत में निवेश आ रहा है। भारत में नोटबंदी का बड़ा कदम उठाया गया और उससे महँगाई दर पर भी काफी नियंत्रण हुआ। कुल मिला कर बैंकिंग प्रणाली में काफी नकदी आ गयी। जो 15 लाख करोड़ रुपये आये, वे अब बैंकिंग प्रणाली में ही रुक गये हैं। इससे ब्याज दरों में भी कमी आयी और माहौल बेहतर हो गया। इन सबके चलते हमें लगता है कि एफआईआई का रुझान सकारात्मक ही रहना चाहिए।
अब बाजार के मूल्यांकन को लेकर कुछ चिंताएँ होने लगी हैं बाजार में। आपकी राय क्या है?
भारतीय बाजार में 1993-94 में जब पहली बार एफआईआई बुलाये गये, तब से हमारा मूल्यांकन हर समय ऊँचा रहता है। हमें प्रीमियम मिलता है क्योंकि हमारा आरओई अच्छा है और हमारी विकास दर ऊँची रहती है। हाँ, ऐतिहासिक तौर से देखें तो अभी थोड़ा ज्यादा है, मगर इतना भी ज्यादा नहीं है। अगर 2-3 तिमाहियों में वृद्धि दर तेज हो जाती है तो उसकी भरपायी हो जायेगी। बाजार भविष्य की संभावनाओं को देख कर चलता है और अगले साल की आय के अनुमानों को देखता है। इसलिए मूल्यांकन इतना अधिक भी नहीं है भारत के लिए, और जो निवेश आ रहा है वह इस बात को समझ कर आ रहा है कि यहाँ वृद्धि भी है। पीई अनुपात ऊँचा है, लेकिन पीई और वृद्धि दर का अनुपात बहुत अच्छा है, क्योंकि वृद्धि दर भी ऊँची है।
चौथी तिमाही के नतीजों को लेकर आपके अनुमान क्या हैं?
चौथी तिमाही के नतीजे न तो बहुत निराशाजनक होंगे, न ही इनसे बहुत आशाएँ हैं। बाजार का भी ज्यादा ध्यान चौथी तिमाही के नतीजों के बजाय प्रबंधन के भविष्य के अनुमानों पर होगा। उसमें बाजार यह देखेगा कि आय वृद्धि वापस लौटने के संकेत मिल रहे हैं या नहीं। नोटबंदी के बाद तीसरी तिमाही में इसका असर लगभग 50 दिनों का ही असर दिखा था, जबकि चौथी तिमाही में इसका पूरे 90 दिनों का असर दिख जायेगा। थोड़ा-बहुत धीमापन है, पर बाजार ने उसको अपने भावों में शामिल कर रखा है।
बाजार देखेगा कि सितंबर 2017 के बाद स्थितियों में कितना सुधार होने की उम्मीद बनती है। चौथी तिमाही की आय के बारे में बाजार कमोबेश मान चुका है कि यह कमजोर रहेगी। अगर कहीं यह आय अच्छी रही तो बाजार बहुत तेजी से ऊपर दौड़ेगा। आय बहुत कमजोर रहने की आशंका नहीं लगती है, क्योंकि बिक्री के आँकड़े आते रहे हैं और बाजार के सामने एक ठीक-ठाक आकलन है कि नतीजे कैसे रहेंगे।
वित्त वर्ष 2017-18 की आय वृद्धि के बारे में आपका अनुमान क्या है?
वित्त वर्ष 2016-17 के मुकाबले नये वित्त वर्ष की आय वृद्धि अच्छी रहेगी। अनुमान है कि निफ्टी 100 में 15-20% के बीच आय वृद्धि दर रह सकती है।
ऐसी उम्मीद तो पिछले 3-4 सालों से हर बार बनती है और टूट जाती है। इस बार भी हम एक बार फिर से सपाट साल की तरफ जा रहे हैं।
इस बार कुछ अंतर है। हालाँकि इस साल 2017-18 में भी निजी पूँजीगत व्यय (कैपेक्स) में सुधार नहीं होगा। मगर निजी खपत, सरकारी पूँजीगत व्यय और तीसरे निर्यात में वृद्धि होगी। दरअसल अर्थव्यवस्था के चार स्तंभ रहते हैं - निजी पूँजीगत व्यय, सरकारी पूँजीगत व्यय, निजी खपत और निर्यात। इस साल अर्थव्यवस्था को तीन सिलिंडरों से ऊर्जा मिलेगी।
निजी खपत ग्रामीण क्षेत्र में बहुत तेजी से बढ़ेगा। अच्छी फसल है और अब मानसून सामान्य से थोड़ा नीचे भी रहे तो भी सरकार स्थिति पर नियंत्रण रख सकती है। दोपहिया वाहनों की खपत नवंबर-दिसंबर में 20% तक गिर गयी। आगे नवंबर-दिसंबर 2017 में आधार प्रभाव (बेस इफेक्ट) दिखने लगेगा। तेज वृद्धि आने के कारण दोपहिया वाहन कंपनियाँ पसंद की जाने लगेंगी। दूसरे वैश्विक अर्थव्यवस्था में सुधार जारी है और निर्यात में बढ़ोतरी शुरू हो गयी है। सरकार अपने खर्चों में बढ़ायेगी। सरकार के लिए बहुत तेज गति से विनिवेश की भी संभावना है। सरकार की 13 कंपनियाँ तो रेलवे क्षेत्र से जुड़ी हुई ही आ रही हैं, और 4 साधारण बीमा कंपनियाँ बाजार में आ रही हैं। इस माहौल में अधिग्रहण और विलय बहुत होंगे। टेलीकॉम के बाद बैंकिंग और एनबीएफसी में भी विलय प्रक्रिया की बातचीत चल रही है। विलय-अधिग्रहण से भी शेयरधारकों को लाभ मिलेगा।
पर स्काईमेट ने इस बार मॉनसून के कमजोर रहने की ही बात कही है।
बाजार इसी अनुमान के साथ चलेगा कि मॉनसून कमजोर रह सकता है। पर इस खबर का इतना असर नहीं आया बाजार पर। वैसे, स्काईमैट हाल में इतना सटीक नहीं रहा है। दो साल पहले तक स्काईमैट ज्यादा सटीक रहता था, मगर दो सालों से उसके अनुमान सटीक नहीं रहे। हाल में भारतीय मौसम विभाग (आईएमडी) ज्यादा सटीक साबित हुआ है।
जमीनी स्तर पर सब्सिडी पहुँचाने में सरकार की दक्षता बढ़ी है, उससे कृषि उत्पादन और ग्रामीण अर्थव्यवस्था की सह-संबंधता घटी है। यह जरूर है कि 58% कृषि क्षेत्र मानसून पर निर्भर है, मगर ऐसा नहीं है कि मॉनसून सामान्य से कम रहने पर अकाल आ जायेगा या ग्रामीण अर्थव्यवस्था तबाह हो जायेगी।
उम्मीद है कि सरकार भी और कदम उठायेगी। महाराष्ट्र वगैरह कुछ क्षेत्रों में, जहाँ सूखे जैसी स्थिति बन सकती है, वहाँ के लिए लगता है कि सरकार काफी योजनाएँ लायेगी। इसलिए कुल मिला कर हमारा अनुमान है कि ग्रामीण अर्थव्यवस्था इस साल वापस सँभलेगी और इससे निजी खपत में वृद्धि होगी।
रुपया हाल में काफी मजबूत हुआ है। पिछले साल लोग कह रहे थे कि डॉलर की कीमत 72 रुपये तक जा सकती है, जबकि अभी यह 65 के आसपास है। आगे रुपये की चाल कैसी रहेगी?
अब यह एक सीमा से ज्यादा मजबूत हो गया है। आरबीआई पहले ही रुपये को नीचे रखने के लिए दखल दे रहा है। सभी उभरते हुए बाजारों की मुद्राएँ डॉलर के मुकाबले मजबूत हो रही हैं और अमेरिका भी डॉलर को कमजोर रखना चाहता है, क्योंकि मजबूत होने पर उन्हें अपने निर्यात में दिक्कत हो सकती है। यह एक अनकहा मुद्रा युद्ध (करंसी वार) है।
भारत रुपये को एक नपे-तुले ढंग से नीचे रखना चाहता है। एकदम तेजी से न गिरे, यह 4-6% वार्षिक रूप से घटता रहे, ताकि हमारी प्रतिस्पर्धी क्षमता बढ़ी हुई रहे। इसलिए इसमें आरबीआई का हस्तक्षेप जारी रहेगा। रुपये में यहाँ से और बड़ी मजबूती के लिए काफी ज्यादा मात्रा में विदेश से निवेश प्रवाह की जरूरत होगी, पर वैसा होने की संभावना नहीं लगती है। हालाँकि अभी ऋण (डेब्ट) में भी काफी निवेश आया है, क्योंकि आरबीआई ने दरों में कटौती की नहीं और इस साल इसकी संभावना भी कम है। वैश्विक निवेशक तो एक बार घाटे के साथ अपना पैसा लेकर बाहर निकल गये थे, और अब बढ़ी हुई यील्ड पर नया पैसा आ रहा है। साथ में जब रुपया भी और मजबूत हो जाये तो उनको दोहरा फायदा हो जाता है। अभी रुपया 4% मजबूत हो गया है, और 7% कूपन दर पर मिल रहा है, यानी उनके पास 10-11% कमाने का मौका है। इसलिए जब तक ऋण में निवेश का अवसर बाकी बचा रहेगा, तब तक ऐसा चलता रहेगा। एक बार कोटा खत्म हो जायेगा तो यह स्थिर हो जायेगा।
रुपये की मजबूती से हमारी अर्थव्यवस्था और शेयर बाजार पर कैसा असर होगा?
सकारात्मक असर ही है। हमारा 350 अरब डॉलर का निर्यात है और अर्थव्यवस्था 1600-1700 अरब डॉलर की है। यानी रुपये की मजबूती से 20% अर्थव्यवस्था पर नकारात्मक और 80% अर्थव्यवस्था पर सकारात्मक असर होता है। जैसे, तेल सस्ता हो जाता है और निर्यात महँगे हो जाते हैं। पर निर्यात के मामले में सरकार लक्ष्य आधारित सब्सिडी दे सकती है। छोटी अवधि में रुपये में मजबूती बेहतर है, हालाँकि आरबीआई का जोर इसमें स्थिरता पर रहेगा।
आपकी बिकवाली सूची में अभी क्या है?
टेलीकॉम पसंद नहीं आ रहा है, क्योंकि इसके वित्तीय हालात खराब हैं। टेलीकॉम का उपभोक्ता बनना अच्छा है, मगर इसका निवेशक बनना बेकार है। इस क्षेत्र की कंपनियों का टिकना मुश्किल हो रहा है, और कमजोर हाथ इससे बाहर निकलेंगे ही। बुनियादी ढाँचा क्षेत्र में ऐसी कंपनियाँ पसंद नहीं हैं, जिन पर ऋण अधिक है। ऑर्डर बुक दिखा कर घाटे से लाभ में आने की जो कहानियाँ बतायी जाती हैं, वे बहुत जोखिम वाली लगती हैं। उनसे बचा जाये। जिन पर कम ऋण है और 2008 से 2013 के बीच भी जिन कंपनियों ने काम अच्छा किया है, वे हमें बेहतर लगती हैं। इस क्षेत्र की सरकारी कंपनियाँ काफी सकारात्मक हैं। उर्जा क्षेत्र की सरकारी कंपनियाँ भी ठीक लगती हैं, बिजली उत्पादन वाली भी और वित्तीय कंपनियाँ भी।
पीएसयू बैंकों के बारे में आपकी राय क्या है? उनकी समस्या तो जैसे अंतहीन लग रही है।
इनकी समस्याओं की बातें जितनी भी कर लें, पर पिछले एक साल में इनका प्रतिफल 40% है, जबकि निजी बैंकों ने 32% प्रतिफल दिया। इसलिए बाजार इनसे उम्मीद रख कर चल रहा है। हमने पीएसयू बैंकों में निवेश नहीं किया, पर इसका हमें घाटा ही हुआ है, क्योंकि बाजार तो उनको खरीद रहा है।
पिछले एक साल में तो बिल्कुल घबराहट वाले निचले स्तरों से इनके भाव ऊपर आये हैं।
हाँ, लेकिन पीएसयू बैंकों ने 2-3 साल के लिहाज से भी अच्छा प्रतिफल दिया है। खराब आँकड़े देखने के लिए पाँच साल पीछे जाना पड़ेगा। कुल मिला कर मैं पीएसयू बैंकों में निवेश के लिए नहीं कहूँगा, पर इनमें मजबूती के कुछ कारक आने वाले समय में रहेंगे। इनमें और विनिवेश हो सकता है। दूसरे, एसेट रीकंस्ट्रक्शन कंपनियाँ (एआरसी) इनके ऋणों का कुछ पुनर्गठन कर सकती हैं। तीसरा कारक हो सकता है विलय। अभी एसबीआई के साथ उसके सहायक बैंकों का विलय हुआ। लगता है कि 17-18 बैंकों को मिला कर 5-6 बड़े पीएसयू बैंक बना दिये जायेंगे। ऐसे में इनका मूल्यांकन खुलेगा। लेकिन इन बातों का लाभ उठाना स्मार्ट और जानकार निवेशकों के हाथ में होता है। इसलिए अच्छा है कि निजी बैंक और एनबीएफसी को चुनें, जहाँ वृद्धि दिख रही है। उनमें निवेश बेहतर रहेगा।
अगर पीएसयू बैंकों में निवेश करना है तो दो तरीकों से करें। एक तो छोटे पीएसयू बैंकों में करें, क्योंकि उनका विलय हो सकता है। यह ऊँचे जोखिम वाली रणनीति है कि इन्हें ले कर रख लें। इनकी 0.8-0.9 गुणा प्राइस बुक वैल्यू अनुपात चल रहा है, जो विलय होने पर 1.5-2 गुना हो जायेगा। जैसे, एसबीआई के सहायक बैंकों में उछाल आयी। मगर उसका अनुमान लगाना बहुत ही मुश्किल चीज है। जानकार लोग पहले ही उसमें कदम रख देंगे।
इस समय किन क्षेत्रों के शेयरों से आपको ज्यादा सकारात्मक उम्मीदें हैं?
अभी तो सभी क्षेत्र अच्छे हैं। टॉप डाउन निवेश आ रहा है। एफआईआई का जो निवेश आता है, वह भारतीय बाजार के लिए उनके आवंटन के मुताबिक आता है। मेरे हिसाब से अभी वित्तीय क्षेत्र में 25-30% निवेश रखना चाहिए। अभी बाजार में आईटी क्षेत्र में निवेश कम है। इसमें बाजार से विपरीत दाँव लगाया जा सकता है। वीसा की दिक्कतों पर लोग चिंतित हैं। पर इसमें शेयरों की वापस खरीद (बायबैक) के कार्यक्रम शुरू हुए हैं। लगता है कि आईटी क्षेत्र में 12-14% तक प्रतिफल मिल सकता है। इसमें 8% मूल वृद्धि होगी, बाकी प्रतिफल डिविडेंड (लाभांश) और शेयरों की वापस खरीद वगैरह से आ सकता है। पर आईटी को लेकर अंडरवेट ही हैं, यानी इसमें निवेश कम रखना चाहिए। दवा क्षेत्र भी अंडरवेट है। ऑटो, कैपिटल गुड्स, बुनियादी ढाँचा (इन्फ्रा) और एफएमसीजी में निवेश बढ़ाना चाहिए। एफएमसीजी और कंज्यूमर ड्यूरेबल्स में उछाल आती दिख रही है। सीमेंट भी ओवर रेट है, क्योंकि क्षमता उपयोग अभी 70% के नीचे है और सस्ते आवासों के निर्माण और पूँजीगत खर्च से सीमेंट की खपत बढ़ेगी। क्षमता उपयोग में 3-4% वृद्धि भी हो गयी तो उसका फायदा सीधे कंपनियों के मुनाफे में दिखेगा। दोपहिया वाहनों का क्षेत्र भी अच्छा लग रहा है।
अभी डॉलर और रुपये की विनिमय दर का एक मोटा दायरा क्या लग रहा है?
यहाँ से आरबीआई ज्यादा नहीं छोड़ेगा। इस साल डॉलर की कीमत 65-68 रुपये के दायरे में रह सकती है। कुल मिला कर रुपया मजबूत रहेगा, क्योंकि दरों में कटौती नहीं की गयी है और एफडीआई उदारीकरण की बहुत उम्मीद है। इसलिए एफडीआई और आना चाहिए। इस साल पहले ही आया है और आगे भी तेजी से आयेगा। एफआईआई निवेश तो आ ही रहा है। डेब्ट में रास्ते जब चाहे खोले जा सकते हैं। साथ ही निर्यात में भी सुधार दिखा है। वहीं कच्चे तेल की कीमतें ज्यादा नहीं बढ़ रही है। अभी 50-51 डॉलर प्रति बैरल पर है और लगता नहीं है कि यह 55 डॉलर से आगे जा पायेगा। ये सब बातें रुपये के लिए सकारात्मक हैं।
(निवेश मंथन, अप्रैल 2017)

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