कारोबारी साल 2017-18 की शुरुआत में भारतीय शेयर बाजार जबरदस्त उत्साह में नजर आ रहा है।
बाजार के मुख्य सूचकांकों में से एनएसई के निफ्टी-50 ने अपने पिछले उच्चतम स्तर को पार कर लिया है, जबकि बीएसई का सेंसेक्स किसी भी समय 30,000 के निशान को पार करने और 4 मार्च 2015 के ऐतिहासिक स्तर 30,025 से आगे बढऩे के लिए उतावला दिख रहा है। बाजार की भावी चाल पर राजीव रंजन झा का विश्लेषण
अगर पूरे वित्त वर्ष 2016-17 में बाजार के प्रदर्शन को देखें, तो सेंसेक्स मार्च 2016 के अंत में 25,342 पर था। यह 31 मार्च 2017 को 29,621 पर बंद हुआ है, यानी वित्त वर्ष 2016-17 के दौरान इसने 16.9% की बढ़त दर्ज की है। वहीं निफ्टी-50 इस दौरान 7,738 से चढ़ कर 9,174 पर पहुँचा है, यानी इसने साल भर में 18.5% की तेजी हासिल की है।
निफ्टी के कुछ बड़े नामों के लिए तो यह साल बेहतरीन से भी बेहतर साबित हुआ है। जैसे, हिंडाल्को इस दौरान लगभग सवा दो गुणा हो गया। यस बैंक ने लगभग 79% की और मारुति सुजुकी ने 62% की लंबी छलाँग लगा ली। भारतीय स्टेट बैंक और टाटा स्टील भी अपने शेयरधारकों की पूँजी 50% से ज्यादा बढ़ाने में सफल रहे। हालाँकि टेलीकॉम क्षेत्र के लिए यह साल अच्छा नहीं रहा, जिसके चलते आइडिया सेलुलर निफ्टी में 22% नुकसान के साथ साल का सबसे कमजोर शेयर रहा। इस क्षेत्र से भारती इन्फ्राटेल ने भी 14.7% गिरावट दर्ज की। कमजोर वैश्विक माँग के साथ-साथ अमेरिका में डोनाल्ड ट्रंप की संरक्षणवादी नीतियों से आईटी क्षेत्र में भी दबाव रहा। इसके चलते इन्फोसिस में 2016-17 के दौरान 16.1% गिरावट आयी। टीसीएस भी कमजोर रहा, हालाँकि इसका नुकसान केवल 3.5% का रहा।
छोटे शेयरों की बड़ी उछाल
सेंसेक्स और निफ्टी-50 जैसे दिग्गज सूचकांकों से ज्यादा तेज चाल तो छोटे-मँझोले शेयरों ने दिखायी है। बीएसई मिडकैप सूचकांक ने बीते साल भर में 10,619 से 14,097 तक की दौड़ लगायी और इसकी वृद्धि दर 32.7% की रही। इसी तरह बीएसई स्मॉलकैप सूचकांक भी 31 मार्च 2016 के 10,542 से बढ़ कर 31 मार्च 2017 को 14,434 पर पहुँचा, और इस तरह साल भर में 36.9% उछल गया।
बीएसई-500 सूचकांक के शेयरों पर नजर डालें, तो इनमें 2016-17 के दौरान 100% से ज्यादा बढ़त दर्ज करने वाले शेयरों की संख्या 49 रही। जिंदल स्टेनलेस का भाव चौगुने से ज्यादा हो गया। ऐप्टेक और एस्कॉट्र्स भी लगभग चौगुने हो गये। रेन इंडस्ट्रीज, गुजरात नर्मदा वैली और वेदांत के भाव तिगुने से ज्यादा हो गये।
खतरे की घंटी?
हालाँकि जब बाजार में छोटे शेयरों में बड़ी तेजी दिखने लगे तो समझदारी कहती है कि ज्यादा सावधान हो जाना चाहिए। यह इस बात का संकेत होता है कि बाजार में निवेश के ऐसे अच्छे विकल्पों की कमी होने लगी है, जहाँ लंबी अवधि के निवेशकों के सामने मूल्यांकन के लिहाज से ठीक-ठाक गुंजाइश बाकी बची हो। बाजार हमेशा उन कहानियों की तलाश में होता है, जिनके सहारे किसी खास क्षेत्र के शेयरों पर दाँव लगाया जा सके। जब वास्तविक कहानियों का भंडार खत्म होने लगता है तो कहीं का ईंट कहीं का रोड़ा जोड़ कर कहानियाँ बनायी भी जाने लगती हैं। ये कहानियाँ कुछ समय अपना असर भी दिखाती हैं। लेकिन जिन कहानियों में दम नहीं होता है, उनका दम कुछ समय बाद निकल जाता है। दूसरे, यह इस बात का भी संकेत होता है कि बाजार के उत्साह का फायदा उठा कर ऐसे खिलाड़ी ज्यादा सक्रिय होने लगे हैं, जिन्हें बाजार की भाषा में ऑपरेटर कहा जाता है।
मौजूदा माहौल में कोई आश्चर्य नहीं कि बीते 12 महीनों में कागज उद्योग के करीब 15 शेयरों ने 100% से ज्यादा बढ़त दिखा दी है। दरअसल छोटे शेयरों की दुनिया ज्यादा दिलचस्प और लुभावनी है, लेकिन उतनी ही ज्यादा अनिश्चित भी है। छोटी कंपनियों का अपना कारोबार शायद उतनी तेजी से नहीं बदलता है, जितनी तेजी से उन्हीं कंपनियों के शेयरों की किस्मत बदलती है। इसलिए साल 2016-17 में छोटे शेयरों के भाव तिगुने-चौगुने होने की कहानियाँ देख कर उनकी ओर टूट पडऩे की कोशिश निवेशकों को भारी पड़ सकती है। ये शेयर चंद दिनों में फर्श से अर्श तक जा सकते हैं, मगर उससे भी कहीं ज्यादा तेज रफ्तार से लुढ़क भी सकते हैं।
छोटे शेयरों की तेजी पर खास नजर इसलिए भी रखनी चाहिए कि ये अक्सर बाजार में बुलबुले का साफ संकेत देते हैं। आज ऐसी स्थिति बन गयी है, यह नहीं कहा जा सकता। लेकिन आने वाले समय में बाजार की चाल को लेकर ज्यादा सावधान रहने की जरूरत अवश्य लगती है।
नोटबंदी से चुनावी नतीजों तक
बाजार में पिछले साल अक्टूबर से दबाव का दौर बना था। खास कर 8 नवंबर को नोटबंदी की घोषणा के बाद एक तीखी गिरावट आयी थी। मगर नवंबर 2016 में सेंसेक्स 25,700 के ऊपर सहारा लेने में सफल रहा। इसके बाद यह थोड़ा वापस सँभला। दिसंबर में गिरावट के दौरान इसने फिर से 25,718 की पिछली तलहटी के ऊपर ही 25,754 पर सहारा लिया और एक दोहरी तलहटी जैसी संरचना बनाने के बाद इसने तेजी की नयी चाल पकड़ ली।
इस दौरान वैश्विक बाजारों में भी तेजी रही है, जिससे भारतीय बाजार को भावनात्मक सहारा मिला है। दरअसल अमेरिका में दो बड़ी घटनाओं पर बाजार की प्रतिक्रिया अप्रत्याशित रही। अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव में डोनाल्ड ट्रंप के जीतने की संभावना कम आँकी जा रही थी और यह भी कहा जा रहा था कि अगर कहीं वे जीत गये तो बाजार में भारी गिरावट आ सकती है। मगर इसके विपरीत डोनाल्ड ट्रंप के जीतने के बाद भी अमेरिकी और वैश्विक शेयर बाजारों में मजबूती का रुझान दिखा।
इसके बाद अमेरिकी फेडरल रिजर्व की ओर से ब्याज दरों में वृद्धि होने से बाजार पर नकारात्मक असर होने की आशंकाएँ थीं। मगर इस दर वृद्धि के बाद भी अमेरिकी बाजार मजबूत बना रहा। गौरतलब है कि अमेरिकी बाजार का प्रमुख सूचकांक डॉव जोंस इंडस्ट्रियल एवरेज 4 नवंबर 2016 के निचले स्तर 17,884 से 1 मार्च 2017 के ऊपरी स्तर 21,169 तक गया। यानी इसने केवल लगभग चार महीनों में 18.4% उछाल दर्ज की।
दिसंबर 2016 से अब तक भारतीय बाजार की उछाल लगभग इसी तरह की रही है। 26 दिसंबर 2016 को सेंसेक्स 25,754 के निचले स्तर पर था। 5 अप्रैल को इसने 30,007 का ऊपरी स्तर छुआ है, यानी इसने भी लगभग चार महीनों में 16.5% की मजबूती हासिल की है।
पिछले साल अमेरिकी बाजार में अनिश्चितता के बीच विदेशी संस्थागत निवेशकों (एफआईआई) ने भारतीय बाजार में बिकवाली शुरू कर दी थी। एफआईआई ने पिछले साल अक्टूबर में 5,770 करोड़ रुपये, नवंबर में लगभग 20,000 करोड़ रुपये और दिसंबर में 11,325 करोड़ रुपये की शुद्ध बिकवाली की। जनवरी 2017 में उनकी बिकवाली हल्की पड़ कर 1,900 करोड़ रुपये की रही। मगर फरवरी से उन्होंने वापस खरीदारी का रास्ता पकड़ लिया, जिससे बाजार को तेजी पकडऩे में मदद मिली।
एफआईआई के वापस खरीदार होने के पीछे वैश्विक अनिश्चितता में कमी एक मुख्य कारण रहा, जिसके चलते उन्होंने फिर से उभरते बाजारों (इमर्जिंग मार्केट्स) के लिए अपना आवंटन बढ़ाया। साथ ही, 1 फरवरी को पेश हुए आम बजट ने भारतीय बाजार के बारे में उनका भरोसा बढ़ाया। इस बजट में सरकार ने राजकोषीय घाटे पर अंकुश रखा और बुनियादी ढाँचे पर खर्च बढ़ाने का प्रस्ताव रखा। साथ ही इस बजट में कोई ऐसा नकारात्मक पहलू उभर कर नहीं आया, जो बाजार को परेशान करे।
जब पिछले साल एफआईआई बिकवाली कर रहे थे, उस समय भी बाजार को ज्यादा डगमगाने से बचाया घरेलू वित्तीय संस्थाओं (डीआईआई) ने। भारतीय बाजार में एफआईआई की ताकत उभरने के बाद संभवत: पहली बार ऐसा महसूस हो रहा है कि घरेलू संस्थाएँ ज्यादा बड़ी ताकत बन गयी हैं और एफआईआई बिकवाली के बावजूद डीआईआई खरीदारी बाजार को सँभालने का काम कर सकती है। ध्यान दें कि पिछले साल की आखिरी तिमाही में जब एफआईआई काफी बिकवाली कर रहे थे, उसी समय डीआईआई ने लगभग बराबर की शुद्ध खरीदारी की। डीआईआई ने अक्टूबर में 7,900 करोड़ रुपये, नवंबर में 18,280 करोड़ रुपये और दिसंबर में 9,135 करोड़ रुपये की शुद्ध खरीदारी की।
मार्च में पाँच राज्यों के विधान सभा चुनावों में तमाम राजनीतिक विश्लेषकों की तरह ही बाजार की भी नजर खास तौर पर उत्तर प्रदेश के नतीजों पर लगी थीं। उत्तर प्रदेश में भाजपा की विस्मयकारी जीत ने बाजार को यह भरोसा दिलाया कि मोदी की लोकप्रियता में कमी नहीं आयी है। बाजार अब यह भी मान रहा है कि इस जीत ने 2019 में भाजपा की वापसी की संभावना को मजबूत कर दिया है। बाजार के लिए मोदी की लोकप्रियता कायम रहने और 2019 में भाजपा की वापसी की संभावना का मतलब यह है कि केंद्र सरकार की आर्थिक नीतियों में स्थिरता रहेगी और भविष्य में किसी राजनीतिक अस्थिरता का जोखिम कम रहेगा।
कहानी शिखर से शिखर की
दरअसल, पिछले एक साल में तो बाजार के दिग्गज सूचकांकों ने भी अच्छी चाल दिखायी है, लेकिन दिग्गजों और छोटे-मँझोले शेयरों की चाल का फर्क बीते दो सालों का विश्लेषण करने पर ज्यादा साफ दिखता है। मार्च 2015 में सेंसेक्स और निफ्टी-50 अपने रिकॉर्ड उच्चतम स्तरों तक पहुँचे थे। दो साल बाद अब ये फिर से उन्हीं स्तरों को छू रहे हैं। यानी इन दो वर्षों में इनकी वृद्धि तो लगभग शून्य रही है। ये जहाँ से चले थे, वापस वहीं तक बस लौट सके हैं। मगर दूसरी ओर, इस अवधि में छोटे-मँझोले शेयरों के सूचकांक कहीं ज्यादा मजबूत वृद्धि दर्ज करने में सफल रहे हैं। बीएसई मिडकैप और बीएसई स्मॉलकैप ने 31 मार्च 2015 से 31 मार्च 2017 तक के दो वर्षों में लगभग 33% की बढ़त दिखायी है।
ऊँचे मूल्यांकन की चिंता
मोतीलाल ओसवाल सिक्योरिटीज ने अपनी एक रिपोर्ट में कहा है कि मार्च 2015 में जब निफ्टी ने 9,000 का स्तर पार किया था, तब 12 महीने आगे (फॉरवर्ड) का पीई मूल्यांकन (यानी मार्च 2016 की अनुमानित ईपीएस के आधार पर) 17.4 गुणा पर था। इस समय भी 12 महीने आगे (मार्च 2018 की अनुमानित ईपीएस पर) का पीई मूल्यांकन 18.1 गुणा बैठता है। मगर बाद में 2015-16 के जो वास्तविक आँकड़े आये, उनके आधार पर यह दिखता है कि मार्च 2015 में निफ्टी 21.6 पीई पर था। दरअसल मार्च 2015 में अनुमान था कि 2015-16 की निफ्टी ईपीएस 501 रुपये रहेगी, मगर बाद में वास्तविक ईपीएस 393 रुपये ही रही, जो अनुमानित ईपीएस से करीब 21% कम थी।
अब इन आँकड़ों के दो मतलब निकाले जा सकते हैं। एक तो यह 12 महीने आगे की अनुमानित ईपीएस पर जिस मूल्यांकन से बाजार पिछली बार पलट गया था, एक बार फिर बाजार उसी मूल्यांकन पर पहुँच चुका है। यानी मूल्यांकन के दम पर और आगे जाने की गुंजाइश सीमित हो सकती है। वहीं पिछले 12 महीनों (ट्रेलिंग) के वास्तविक आँकड़ों के आधार पर निफ्टी मार्च 2015 के 20.5 पीई की तुलना में अभी 22.3 पीई पर चल रहा है, यानी इस हिसाब से इसका मूल्यांकन अभी मार्च 2015 से भी ज्यादा है।
लेकिन दूसरा मतलब यह निकाला जा सकता है कि बाजार भविष्य की उम्मीदों के आधार पर लगभग 18 के पीई मूल्यांकन को बनाये रखते हुए आगे बढऩा जारी रख सकता है। पर ऐसा तभी होगा, जब आने वाली तिमाहियों में कंपनियों की आय वृद्धि ठीक-ठाक रहती है, जिससे हर तिमाही के बाद अगले 12 महीनों के अनुमानित ईपीएस का आँकड़ा बढ़ता रहे। मोतीलाल ओसवाल सिक्योरिटीज का अनुमान है कि 2017-18 के दौरान निफ्टी ईपीएस में लगभग 23% की वृद्धि होगी। अगर आने वाली तिमाहियों में यह अनुमान सही साबित होने की ओर बढ़ता है तो मूल्यांकन से जुड़ी बाजार की चिंताएँ हल्की पड़ जायेंगी और नये रिकॉर्ड ऊपरी स्तरों की ओर जाना बाजार के लिए आसान होगा।
तिमाही नतीजों पर ही नजर
अप्रैल में बाजार मुख्यत: तिमाही नतीजों पर ही निगाहें रखेगा। हालाँकि 2016-17 की चौथी तिमाही में कैसे आँकड़े आते हैं, इससे ज्यादा महत्वपूर्ण यह रहेगा कि नये वित्त वर्ष में कंपनियों के प्रदर्शन के बारे में कैसे संकेत मिलते हैं। ओपीसी एसेट सॉल्यूशन के कार्यकारी चेयरमैन अजय बग्गा ने कहा है (विस्तृत बातचीत पृष्ठ 14 पर), ‘बाजार यह देखेगा कि सितंबर 2017 के बाद स्थितियों में कितना सुधार होने की उम्मीद बनती है। ...चौथी तिमाही की आय के बारे में तो बाजार कमोबेश मान चुका है कि यह कमजोर रहेगी। अगर कहीं यह आय अच्छी रही तो बाजार बहुत तेजी से ऊपर दौड़ेगा।’
बाजार के लिए मुख्य जोखिम आय वृद्धि को लेकर ही है। मोतीलाल ओसवाल सिक्योरिटीज ने कहा है कि पिछले तीन वर्षों से हर वित्त वर्ष की शुरुआत में आय (ईपीएस) वृद्धि के जो अनुमान लगाये जाते हैं, वर्ष के अंत में वे निराश करते हैं। लिहाजा मूल्यांकन का जो मौजूदा आँकड़ा है, उसके लिए सबसे प्रमुख जोखिम यही है कि आय के आँकड़े सही साबित होते हैं या नहीं।
इसके अलावा, भारतीय अर्थव्यवस्था और बाजार के लिए मॉनसून एक सतत जोखिम है ही। स्काईमेट के आरंभिक अनुमानों ने खटका पैदा कर दिया है। हालाँकि अभी बाजार इसे बहुत गंभीरता से लेकर नहीं चल रहा है और मौसम विभाग के अनुमानों का इंतजार कर रहा है।
(निवेश मंथन, अप्रैल 2017)