जब कर बचत की बात आती है, तो म्यूचुअल फंड कर बचाने में सबसे सक्षम निवेश विकल्पों में से एक साबित होते हैं।
खास कर अगर कर बचत के साथ ऊँचे प्रतिफल और जल्दी पैसे वापस निकालने का लचीलापन भी देखें, तो अन्य निवेश विकल्प म्यूचुअल फंडों की बराबरी नहीं कर पाते। लेकिन यह ध्यान रखना चाहिए कि अलग-अलग तरह के म्यूचुअल फंड में कर देनदारी के नियम अलग-अलग हैं। इसलिए म्यूचुअल फंड में निवेश करते समय जहाँ निवेश के उद्देश्य और लक्ष्य, जोखिम उठाने की क्षमता आदि पहलुओं पर ध्यान देना चाहिए, वहीं संभावित कर देनदारी जान लेनी चाहिए, ताकि आपकी निवेश योजना और कर योजना के बीच सही तालमेल रहे।
निवेश करते समय छूट
जब आप निवेश करते समय ही अपनी कर योग्य आमदनी में कटौती का लाभ पाना चाहते हैं, तो आपके सामने ईएलएसएस यानी इक्विटी लिंक्ड सेविंग्स स्कीम का विकल्प होता है। आय कर की धारा 80सी में 1.50 लाख रुपये की वार्षिक सीमा तक निवेश कर के आय कर छूट पाने के लिए जिन खर्चों और निवेश विकल्पों को इसके दायरे में रखा गया है, उनमें ईएलएसएस भी एक है। यानी अगर आप एक साल में ईएलएसएस में 1.50 लाख रुपये तक का निवेश करेंगे तो आपकी कर योग्य आमदनी में से उतनी राशि घटा दी जायेगी। पर याद रखें कि धारा 80सी में दिये गये सभी विकल्पों पर कुल कर छूट 1.50 लाख रुपये तक की है, न कि हर विकल्प पर अलग-अलग 1.5 लाख रुपये की।
कितनी होगी कर देनदारी
म्यूचुअल फंड में किये गये निवेश पर आपको जो लाभ मिलता है, उस पर पूँजीगत लाभ कर (कैपिटल गेन टैक्स) लगाया जाता है। मगर कुछ मामलों में यह कर देनदारी शून्य है। यह देनदारी इस बात से तय होती है कि आपने इक्विटी फंड के निवेश पर लाभ हासिल किया है या डेब्ट फंड से, और निवेश की अवधि कितनी रही है।
इक्विटी फंडों पर पूँजीगत लाभ कर
इक्विटी फंडों से मिले लाभ पर कर देनदारी निवेश की अवधि के आधार पर तय होती है। अगर यह निवेश 12 महीने तक या इससे कम अवधि के लिए रखा गया है, तो उससे मिला लाभ अल्पावधि पूँजीगत लाभ (शॉर्ट टर्म कैपिटल गेन) कहा जायेगा। घरेलू निवेशकों और अनिवासी भारतीयों (एनआरआई) के लिए इक्विटी फंड से हुई कमाई पर सपाट 15% की दर से अल्पावधि पूँजीगत लाभ कर चुकाना होता है।
वहीं अगर निवेशक ने इक्विटी फंड की यूनिटों को 12 महीने से अधिक अवधि तक रखा हो, इस पर दीर्घावधि पूँजीगत लाभ कर लागू होगा, जिसकी दर शून्य है। मतलब यह कि उस पर कोई कर देनदारी नहीं बनेगी। यहाँ गौर करें कि कर छूट के लिए इक्विटी फंड केवल ऐसे फंडों को ही माना जायेगा, जिन्होंने अपने निवेश का कम-से-कम 65% हिस्सा घरेलू इक्विटी शेयरों में लगा रखा हो।यह भी ध्यान रखें कि इक्विटी फंडों से मिलने वाला लाभांश (डिविडेंड) भी कर-मुक्त होता है। यह लाभांश आपने निवेश करने के कितने समय बाद हासिल किया है, इस बात से कर देनदारी पर कोई असर नहीं होता और वह कर-मुक्त ही रहता है। हालाँकि नये नियमों के तहत 10 लाख रुपये से अधिक लाभांश की राशि पर 10% की दर से कर लगता है।
गैर-इक्विटी फंडों पर कर देनदारी
जो फंड इक्विटी फंड की परिभाषा पर खरे नहीं उतरते, वे सामान्यत: डेब्ट फंड या संतुलित (बैलेंस्ड) फंड हो सकते हैं। गैर-इक्विटी फंडों में 36 महीने या इससे कम समय के निवेश से मिले लाभ पर अल्पावधि पूँजीगत लाभ कर लागू होगा और इस मामले में यह कर निवेशक की कर श्रेणी (टैक्स स्लैब) के जितना होगा।
इन फंडों में किये गये निवेश पर दीर्घावधि पूँजीगत लाभ 36 महीने से अधिक अवधि पर लागू होता है और इसकी दर इक्विटी फंडों की तरह शून्य नहीं है। इनमें इनमें दीर्घावधि पूँजीगत लाभ कर की दर बिना इंडेक्सेशन लाभ के 10%, या इंडेक्सेशन लाभ के साथ 20% है। निवेशक दोनों तरीकों में से चुन सकता है कि किसमें कम कर देनदारी बन रही है। इंडेक्सेशन लाभ का मतलब यह है कि खरीद लागत में महँगाई दर का असर भी जोड़ा जाता है, ताकि महँगाई का असर काटने के बाद जो वास्तविक लाभ हुआ हो, केवल उतने हिस्से पर ही निवेशक की कर देनदारी बने। इसकी गणना कॉस्ट इन्फ्लेशन इंडेक्स के आधार पर की जाती है। इन सब पहलुओं को ध्यान में रखते हुए जब आप विभिन्न निवेश विकल्पों की तुलना करें, तो उसमें कर चुकाने से पहले का प्रतिफल (रिटर्न) नहीं, बल्कि कर चुकाने के बाद का प्रतिफल देखें। असली कमाई तो वही है जो सारे खर्च और टैक्स वगैरह काटने के बाद आपके हाथ में बचती है।
(निवेश मंथन, मार्च 2017)