आईसीआईसीआई डायरेक्ट ने जनवरी के तीसरे सप्ताह के बाद म्यूचुअल फंड उद्योग पर जारी अपनी रिपोर्ट में पूर्ववर्ती माह की सलाहों में कुछ बदलाव किया है।
ब्रोकिंग फर्म ने इक्विटी डाइवर्सिफाइड फंड, इक्विटी इन्फ्रास्ट्रक्चर फंड, इक्विटी एफएमसीजी और बैलेंस्ड फंड के लिए अल्पकाल एवं दीर्घकाल, दोनों अवधियों के लिए सकारात्मक सलाह दी है। ब्रोकिंग फर्म ने दोनों अवधियों के लिए सकारात्मक सलाह की श्रेणी में इस माह इक्विटी बैंकिंग फर्म को शामिल किया है जबकि इक्विटी फार्मा फंड को इस श्रेणी से निकालते हुए इसमें अल्पकाल के लिए उदासीन सलाह दी है।
ब्रोकिंग फर्म ने इन्कम फंड के लिए अल्पकाल एवं दीर्घकाल में सकारात्मक सलाह और अतिअल्पकाल में उदासीन सलाह बरकरार रखी है। इसी तरह मंथली इन्कम प्लान्स (एमआईपी) के लिए अल्पकाल में उदासीन और दीर्घकाल में सकारात्मक सलाह बरकरार रखी है। ब्रोकिंग फर्म ने इक्विटी टेक्नोलॉजी फंड, आर्बिट्राज फंड, लिक्विड फंड एवं गिल्ट फंड के लिए अल्पकाल एवं दीर्घकाल, दोनों अवधियों के लिए उदासीन सलाह दी है।
इक्विटी बाजार
वर्ष 2016 अनेक अप्रत्याशित घटनाओं से परिपूर्ण रहा, जैसे ब्रेक्सिट का अचंभित करने वाला फैसला, अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव के अप्रत्याशित नतीजे, वैश्विक कमोडिटी दरों में तेज सुधार और आखिरी बैठक में अमेरिकी फेडरल का संभावित कदम से पलट जाना। इन घटनाओं पर प्रतिक्रिया भी आम राय से उलट रही, क्योंकि बाजारों ने इन अचंभों को बहुत ही सहजता के साथ अपनाया और घटनाओं के बाद और ऊँचे स्तर पर पहुँचे।
भारत में विकास के संकेतक स्पष्ट तौर पर दृष्टिगोचर हुए और अधिकांश व्यापक संकेतक ऐसी स्थिति बनने की ओर इंगित कर रहे थे, जो विकास और वित्त वर्ष 2017-18 के अनुमानित पीई आधार पर कॉरपोरेट आय को बढ़ायेगी। तभी, कैलेंडर वर्ष 2016 के आखिरी समय में विमुद्रीकरण के रूप एक बिल्कुल अप्रत्याशित घटना घटी, जो निकट भविष्य में विकास और आय को प्रभावित कर सकती है, लेकिन साथ ही साथ इसने संरचनात्मक बदलाव के बीज भी बोये जिसका भारत की विकास संभावनाओं पर टिकाऊ और दीर्घकालिक प्रभाव पड़ेगा।
विमुद्रीकरण के असर के बारे में अनिश्चितताओं के बीच, 2016-17 के पहले नौ महीनों में उच्च कर संग्रह (प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष, दोनों) के रूप में कुछ हरियाली दिखी। इसके अलावा वित्त वर्ष 2016-17 के लिए कर संग्रह के बजट अनुमानों से आगे बढऩे के सरकार के अनुमानों ने भी विमद्रीकरण के सीमित असर की ओर इंगित किया।
वैश्विक मोर्चे पर, अमेरिकी फेडरल रिजर्व ने 14 दिसंबर की अपनी बैठक में ब्याज दरों में 25 आधार अँकों की वृद्धि की और 2017 में तीन बार दर वृद्धि के संकेत दिये। ये संकेत डोनाल्ड ट्रंप प्रशासन के कार्यभार संभालते वक्त कर कटौती, खर्च और विनियंत्रण के जरिये अमेरिकी अर्थव्यवस्था में तेजी लाने के वादे के अनुरूप है।
ब्रोकिंग फर्म का मानना है कि भारतीय अर्थव्यवस्था पर अमेरिका के नये राष्ट्रपति के चुनाव का बहुत सीमित असर होगा। यह कुल मिला कर सकारात्मक है क्योंकि नतीजे के कारण उत्पन्न हड़बड़ाहट अब खत्म हो चुकी है। डोनाल्ड ट्रंप की अप्रत्याशित जीत पर शुरुआत में नकारात्मक प्रतिक्रिया देने के बाद वैश्विक बाजारों ने नये घटनाक्रम को पूरी तरह आत्मसात करते हुए सुधार की राह पर पग बढ़ा दिये।
अधिकांश प्रमुख वैश्विक बाजारों में सुधार बताता है कि नये राष्ट्रपति द्वारा नीतिगत निर्णयों में संभावित नकारात्मकता या बदलाव उतना गंभीर नहीं होगा जितना पहले सोचा जा रहा था।
परिदृश्य
यद्यपि कुछ क्षेत्रों पर अगली एक या दो तिमाहियों तक असर रहेगा, लेकिन ब्रोकिंग फर्म का मानना है कि 2017-18 में आय में सुधार की उम्मीद है। विमुद्रीकरण का असर तीन से छह महीने तक सीमित रहेगा और यह सुव्यवस्थित कंपनियों के लिए दीर्घकाल में लाभकारी रहेगा। विमुद्रीकरण से कर संग्रह में वृद्धि, नकद अर्थव्यवस्था का बैंकिंग प्रणाली में शामिल होना, बैंकिंग प्रणाली की तरलता में सुधार जैसे कई दीर्घकालिक लाभ होंगे। यह कदम केंद्र सरकार के लिए एक बड़ा भावनात्मक समर्थन बनने जा रहा है और यह प्रमुख कड़े आर्थिक सुधारों के रूप में दिखेगा।
ब्रोकिंग फर्म का मानना है कि केंद्रीय बजट, राज्यों के चुनाव, जीएसटी पर प्रगति और तीसरी तिमाही के नतीजों की शुरुआत का समय होने से उतार-चढ़ाव उच्च स्तर पर बना रहेगा। यह दीर्घकालिक निवेशकों को बाजार में प्रवेश करने और अगले तीन से छह महीनों में अपने निवेश को सुव्यवस्थित करने के लिए एक अच्छा अवसर देता है।
म्यूचुअल फंड सार
म्यूचुअल फंड उद्योग में पिछले तीन वर्ष में भारी निवेश आया है जिससे म्यूचुअल फंडों द्वारा प्रबंधित कुल संपदा में भारी वृद्धि हुई है। दिसंबर, 2016 में म्यूचुअल फंडों द्वारा प्रबंधित कुल संपदा 16.46 लाख करोड़ रुपये के उच्च स्तर तक पहुँच गयी जो सालाना आधार पर 29% की वृद्धि है। इसमें से 47% इन्कम फंडों के पास और 25% इक्विटी फंडों के पास है।
वित्त वर्ष 2016-17 के पहले नौ महीनों में भारतीय म्यूचुअल फंड उद्योग में 313,842 करोड़ रुपये का निवेश हुआ। कुल निवेश में से 50,809 करोड़ रुपये इक्विटी और ईएलएसएस फंडों में आये। इक्विटी बाजारों में गिरावट के बावजूद इक्विटी म्यूचुअल फंडों में निवेश स्थिर बना हुआ है। यह रुख म्यूचुअल फंडों में निवेशकों की बढ़ती भागीदारी और गिरावट को निवेश के अवसर के रूप में उपयोग करने की सोच को दर्शाता है।
(निवेश मंथन, फरवरी 2017)