एसबीआई म्यूचुअल फंड की एमडी और सीईओ श्रीमती अनुराधा राव अर्थव्यवस्था पर नोटबंदी के असर को छोटी अवधि के कष्ट, पर मध्यम एवं लंबी अवधि में लाभ के रूप में देख रही हैं।
नोटबंदी से म्यूचुअल फंडों पर क्या असर होगा, शेयर बाजार में कमजोरी के मौजूदा दौर में उनके फंड घराने की रणनीति क्या है और आम निवेशकों के लिए अभी बेहतर क्या है, जैसे तमाम सवालों पर उन्होंने निवेश मंथन से बेलाग बातचीत की। सबसे अहम यह है कि वे अब ब्याज दरों का चक्र पलटने के संकेत देख रही हैं।
क्या नोटबंदी का विकास दर (जीडीपी) पर कुछ नकारात्मक असर पड़ेगा?
नोटबंदी से कुछ क्षेत्र प्रभावित हुए हैं। एक तो ग्रामीण, कृषि आधारित क्षेत्र है। इसमें अधिकतर लेन-देन नकद में ही होते हैं। फसल बेचते समय किसान को पैसा नकद मिलता है। किसान खाद, बीज आदि खरीदते समय नकद पैसे देता है। वैसे सरकार काफी समय से कोशिशें कर रही है। एपीएमसी कानून लाने का मुख्य मकसद डिजिटल भुगतान को बढ़ावा देना था। लेकिन यह विषय राज्य सरकारों का है, जिसमें केंद्र एक हद तक ही हस्तक्षेप कर सकता है। इसमें दिक्कतें उतनी हैं नहीं, क्योंकि आज हर किसान के पास डेबिट कार्ड और बैंक अकाउंट है। अब इतना ही ढाँचा बनाने की जरूरत है कि खाद और बीज विक्रेता वगैरह के पास पीओएस मशीनें लगी रहें। किसान को जो पैसा मिलना है, वह खाते में आ जाये तो उसके बाद वह जो खर्च करेगा उसका भुगतान भी डेबिट कार्ड से हो जायेगा। इससे पूरी नकदरहित श्रृंखला बन सकती है और बन भी रही है।
आईटी में हमारी पहचान है, लेकिन घरेलू स्तर पर हमने बहुत कम डिजिटलीकरण किया है। भारत में कैश जीडीपी रेश्यो 12.42% है। किसी भी विकासोन्मुख देश या बाकी एशियाई देशों में यह अनुपात इतना अधिक नहीं है। अर्थव्यवस्था में जितना भी नकद लेन-देन होता है, वह पूरी तरह जीडीपी में नहीं दिखता है। इस तरह जीडीपी की कम गणना हो रही है। हम डिजिटलीकरण के माध्यम से लेन-देन के इन आँकड़ों को शामिल कर पायेंगे तो यह नकद अर्थव्यवस्था मुख्यधारा में आ जायेगी। इससे जीडीपी खुद ही बढ़ जाता है।
यानी जहाँ नकदी की कमी के कारण आर्थिक गतिविधियाँ कम हो सकती हैं, तो दूसरी तरफ अघोषित अर्थव्यवस्था मुख्यधारा में आ जायेगी।
बिल्कुल। और मैं पूरी अघोषित अर्थव्यवस्था को काली अर्थव्यवस्था नहीं कह रही। वह सारा गैर-कानूनी नहीं है। मगर जो छोटे सौदे हैं, वे लंबे समय से नकद में चलते आ रहे हैं और उनकी पूरी श्रृंखला नकद में चलती है। अगर इनके आँकड़े जोड़े जा सकें तो अर्थव्यवस्था में बिना किसी नयी गतिविधि के जीडीपी में 1% से 1.5% की बढ़त हो सकती है।
तो जीडीपी पर इसका कुल प्रभाव क्या है? क्योंकि, एक तरफ कहा जा रहा है कि इससे जीडीपी में 1% से 2% की गिरावट आ सकती है, और दूसरी तरफ आपने कहा कि नकद अर्थव्यवस्था अगर खातों में जुडऩे लगे तो इससे जीडीपी में 1% से 1.5% की बढ़त हो सकती है।
छोटी अवधि में कुछ मूल्य श्रृंखलाओं में बाधा आयेगी। कुछ उपभोग भी नकद के माध्यम से होता है। जैसे दोपहिया वाहनों की ज्यादा बिक्री नकद में होती है। मगर हाथ में नकदी न होने की स्थिति में इसकी माँग घट जायेगी। यहाँ माँग तो है, पर उसे पूरा नहीं किया जा रहा। यह दबायी गयी माँग थोड़ी टाली जायेगी। जब नकद प्रवाह सामान्य हो जायेगा, तो यह माँग वापस आ जायेगी।
इसलिए खास कर ऐच्छिक उपभोग से संबंधित क्षेत्रों में यह एक छोटी अवधि की बाधा है। लेकिन पूरी अर्थव्यवस्था में इसका योगदान 10-11% है। इस कारण इसका इतना गहरा प्रभाव नहीं होगा।
वहीं डिजिटलीकरण और नकद अर्थव्यवस्था को मुख्यधारा में लाने से एक काफी बड़ा सकारात्मक प्रभाव होगा। यह प्रभाव एक तो जीडीपी पर होगा, और दूसरे सरकार के राजस्व पर। सभी श्रेणियों का कारोबार मुख्यधारा की अर्थव्यवस्था में जुडऩे पर जो अतिरिक्त राजस्व आना शुरू होगा, उससे सरकार सामाजिक क्षेत्र और बुनियादी ढाँचा क्षेत्र में थोड़ा खुल कर निवेश कर सकेगी। इसलिए यह छोटी अवधि का कष्ट है, पर मध्यम एवं लंबी अवधि में इससे लाभ है।
क्या म्यूचुअल फंड क्षेत्र में होने वाला निवेश भी इसके चलते बढ़ेगा?
काला धन केवल उन क्षेत्रों में जा सकता है जो काला धन खपाते हैं, जैसे रियल एस्टेट और सोना। पर अब वह काला धन बैंकिंग प्रणाली में आ गया है, जिसका निवेश आधिकारिक वित्तीय संपदाओं में हो सकता है। दूसरी तरफ, पिछले एक साल में ब्याज दरों में काफी गिरावट आयी है। इस वक्त मुद्रास्फीति 5% है और एक साल की मियादी जमा (एफडी) पर ब्याज दर भी 5% से 5.5% है। इन हालात में आम आदनी के लिए (बैंकों में) असल में प्रतिफल (रिटर्न) मिलना मुश्किल है।
कुछ लोगों का मानना है कि एक-डेढ़ लाख करोड़ रुपये का नया निवेश म्यूचुअल फंड क्षेत्र में आ सकता है। क्या यह अनुमान सही है?
म्यूचुअल फंड क्षेत्र सहजता से अगले तीन वर्षों तक 30% से अधिक की दर से बढ़ सकता है, क्योंकि जो आम लोग सुरक्षा और प्रतिफल दोनों के लिहाज से मियादी जमाओं पर भरोसा करते थे, वे अब इधर आ रहे हैं।
अभी म्यूचुअल फंड क्षेत्र 16.5 लाख करोड़ रुपये का है। पहले से ही यह क्षेत्र सालाना 36% की दर से बढ़ रहा है। हमने अभी नोटबंदी का कुछ असर देखा है। लेकिन अभी लोगों के मन में यह स्पष्टता नहीं है कि जो पैसा मैंने बैंक में डाला है, उसका क्या हो सकता है? स्पष्टता आने में और 2-3 महीने लग सकते हैं। जब कर चुकाने का समय आयेगा, उसके बाद वह समझ सकेगा कि मेरे हाथ में बचेगा क्या। साथ ही बहुत से नये करदाता भी पहली बार जुड़ेंगे। वे लोग सोचेंगे कि जब मैंने टैक्स भरा ही है तो इसके बाद मेरे पास बचत के क्या-क्या रास्ते हैं। तब कर-बचत योजनाओं पर मुख्य ध्यान जायेगा। इसके अलावा निवेश की सामान्य जरूरत तो है ही। इसलिए मुझे लगता है कि 1.5 लाख करोड़ रुपये का नया निवेश आना तो बहुत आसान चीज होगी।
शेयर बाजार में पहले से गिरावट चल रही थी, पर नोटबंदी के बाद गिरावट बढ़ी। ऐसे में क्या एक निवेशक के लिए अच्छा रहेगा कि वह इक्विटी फंडों के बदले डेब्ट फंडों में अपना निवेश बढ़ाये?
शेयर बाजार को फौरी तौर पर एक चोट लगी है। पर इसमें स्थानीय घटनाओं का प्रभाव कम और वैश्विक घटनाओं का प्रभाव ज्यादा है। एक चीज तय थी कि यदि ट्रंप जीते तो अमेरिकी ब्याज दरों में बढ़त होगी और डॉलर में मजबूती आयेगी। इसके चलते भारतीय शेयर बाजार से पैसा वापस बाहर जा रहा है, एफआईआई बिकवाली से बाजार नीचे आ रहा है। लेकिन इससे घरेलू फंडों के लिए निवेश के अवसर भी सामने आ रहे हैं। घरेलू फंड पूरी तरह से खरीदारी कर रहे हैं।
तो आप इस समय खरीदारी की तरफ हैं?
हाँ, हम खरीदारी कर रहे हैं। मैं तो यह मौका मिलने से बहुत खुश हूँ, क्योंकि कई बार कुछ शेयर बहुत महँगे लगते थे।
क्या शेयरों के मौजूदा भाव आप खरीदारी के लिए अनुकूल मान रही हैं, या आपको लगता है कि इनमें और गिरावट आयेगी?
यह किसी क्षेत्र विशेष पर निर्भर करता है। ऐसा नहीं है कि पूरा बाजार उचित मूल्यांकन पर है और आप कोई भी शेयर किसी भी कीमत पर खरीद लें। फंड मैनेजर अपने फंड की प्रकृति के आधार पर अपना नजरिया बनाते हैं। इस स्थिति में ऐसे शेयर हैं, जिन पर कुछ समय से उनकी नजरें थीं, जिन्हें वे गिरावट आने पर खरीदने के लिए तैयार थे। अभी वे ऐसा ही कर रहे हैं। यह चुनिंदा गतिविधि है, न कि जो मिले वह खरीद लें।
नोटबंदी के बाद ब्याज दरों में गिरावट आयी है। क्या आपको इसके और घटने की उम्मीद है?
यह आरबीआई की पिछली मौद्रिक नीति के कदम उठाने या नहीं उठाने पर आधारित है। आप देखें कि डॉलर मजबूत हो रहा है। आरबीआई की पिछली नीतियों में हुई कटौती का असर बैंकों की ब्याज दरों में दिखने की जो बात है, ऐसा पहले कभी नहीं हुआ कि एक ही दिन में दरें लगभग 1.5% कम हो गयी हों। दो साल की कटौतियों का असर (नोटबंदी के चलते) एक ही दिन में हो गया! इसलिए दरों में और कटौती की जरूरत या संभावना नहीं लग रही है। पहले ही ब्याज दरें महँगाई दर के आसपास हैं। अगर रेपो दर और 10 वर्ष की बॉन्ड दर को देखें तो वे मियादी जमा पर मिलने वाली दरों से ऊँची हैं।
तो क्या आगे आरबीआई अगर अपनी नीतिगत दरें कुछ घटाये, तब भी बैंक अपनी दरें नहीं घटायेंगे और इंतजार करेंगे?
यह आगे आने वाले नकदी प्रवाह पर निर्भर करता है। यदि बैंकिंग प्रणाली में और नकदी का प्रवाह होता है और आरबीआई भी अपनी दरें फिर घटाता है तो मुमकिन है कि ब्याज दरों में और कमी आये। मगर मेरे हिसाब से दरें जितनी घटनी थीं, उतनी घट चुकी हैं। और अब संभवत: ब्याज दरों का चक्र धीरे से पलट रहा है।
चक्र अगर पलट रहा है तो क्या ब्याज दरें अभी इन स्तरों पर ठहरी रहेंगी या आप इनके फिर से चढऩे की बात कर रही हैं?
यह महँगाई दर पर निर्भर करता है। अगर महँगाई दर बढ़े तो आरबीआई के पास और कोई विकल्प नहीं होगा।
यह बड़ी बात है, अगर आप कह रही हैं कि यहाँ से ब्याज दरें फिर से ऊपर जाने का चक्र शुरू होने वाला है।
ऐसा लग रहा है, क्योंकि अमेरिकी ब्याज दरें ऊपर जा रही हैं, डॉलर मजबूत हो रहा है और ओपेक की ओर से उत्पादन कटौती के फैसले के बाद कच्चे तेल की कीमतें बढ़ रही हैं।
मगर अभी तो ज्यादातर लोग दरों में और कटौती की ही बातें कर रहे हैं।
आरबीआई ने पिछली बार दर में कटौती क्यों नहीं की? उन्होंने भविष्य का अनुमान क्या रखा है? उन्होंने कहा है कि मार्च तक हम रास्ते पर हैं। उन्होंने कहा कि मार्च तक के लिए महँगाई दर का जो अनुमान पहले रखा गया था, वह हासिल होने की उम्मीद है और उसके आधार पर ही हमने अक्टूबर में दरों में कटौती कर दी। इसलिए उन्होंने दिसंबर में फिर से कटौती नहीं की। जो कटौती दिसंबर में करनी थी, वह उन्होंने अक्टूबर में ही कर दी थी। जब तक महँगाई दर की भविष्य की दिशा जब तक साफ नहीं होती, तब तक आरबीआई दरों में और कमी नहीं करेगा।
अगर ब्याज दर का चक्र पलट रहा है, तो एक निवेशक की रणनीति क्या होनी चाहिए?
अगर आप इक्विटी निवेशक हैं, तो आप केवल छह महीनों के लिए निवेशक नहीं हैं। अगर आज बाजार गिरा है तो कल सँभलेगा भी। फंड मैनेजर आपके हितों का ध्यान रखने के लिए मौजूद है। उसने पहले ही ऐसे क्षेत्रों को चुन रखा है, जहाँ उसे पता है कि साल भर बाद स्थिति अच्छी होगी। वह ऐसे शेयरों को चुन रहा है। इसलिए आप इक्विटी फंडों में निवेश बनाये रखें, इस समय पैसा निकालें नहीं। बाजार में आज क्या हो रहा है, यह आपके लिए मायने नहीं रखता है।
डेब्ट फंडों में निवेशक को क्या करना चाहिए?
निवेशक बचत खातों और मियादी जमाओं (एफडी) के विकल्प के रूप में अल्पावधि डेब्ट फंडों को चुन सकते हैं, जो कम जोखिम पर आपको बेहतर प्रतिफल दे रहे हैं। लंबी अवधि के लाभ के लिए इक्विटी फंडों में निवेशित रहें। दरअसल ये ऐसा समय है, जब किसी को बाजार में प्रवेश करना चाहिए।
(निवेश मंथन, जनवरी 2017)