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नोटबंदी के 50 दिन

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Category: जनवरी 2017

अरुण पांडेय :

दुनिया के इतिहास में किसी भी देश में नोटबंदी की सबसे बड़ी कवायद खत्म हो गयी है। लेकिन यह लोगों के जेहन में मुश्किलों और आगे कुछ दिन तक आशंकाओँ और सुनहरे भविष्य की उम्मीदें छोड़ गयी है।

बैंकों से नोट बदलने की मियाद खत्म हो चुकी है। लेकिन ये 50 दिन सभी के लिए भरपूर हलचल वाले रहे। कभी सरकार की तरफ से नियम बदले गये, कभी रिजर्व बैंक (आरबीआई) ने एक दिन में दो-दो नियम बदले।
जब आप और हम में बहुत-से लोग बैंकों या एटीएम की कतारों में खड़े थे या फिर नोट बदलने की जुगत कर रहे थे, तो सरकार और रिजर्व बैंक के साथ साथ सबसे ज्यादा हरकत में रहे आयकर विभाग, प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) और पुलिस के लोग। इन्होंने मिल कर देशभर में करीब 600 से ज्यादा छापे डाले, करीब 4000 करोड़ के नोट पकड़े, और 250 किलोग्राम से ज्यादा सोने के भंडार पकड़े।
करेंसी नोटों की इतनी धड़पकड़ यह बताने के लिए काफी है कि किस कदर काला धन देश में शहर-शहर हर जगह जड़ें जमा कर बैठा है। राजधानी दिल्ली से लेकर कोलकाता और मुंबई से लेकर दक्षिण के महानगर चेन्नई में कालेधन के साम्राज्य का पता चला ही है। नोट बदलने में बैंकों और यहाँ तक कि रिजर्व बैंक के कुछ अधिकारियों की मिलीभगत ने इस अभियान को झटका जरूर दिया। खास बात है कि वेल्लोर, मेंगलुरू, इंदौर जैसे शहरों में भी काले कारोबारियों के नेटवर्क उजागर हुए हैं। लेकिन बेंगलुरू काले धन को सफेद करने वाले लोगों की राजधानी बन कर उभरा।
अब सबकी नजर 30 दिसंबर के बाद उठने वाले सरकारी कदमों पर लगी है। सबकी नजर इस बात पर होगी कि कितनी रकम लौट कर वापस रिजर्व बैंक के पास आती है।
रिजर्व बैंक के आँकड़ों के मुताबिक करीब 15.45 लाख करोड़ रुपये के नोटों पर नोटबंदी का असर हुआ है। अटकलें लगायी जा रही हैं कि बैंकों के जरिये रिजर्व बैंक के पास 90% यानी करीब 14 लाख करोड़ रुपये की रकम वापस आ चुकी है। अगर करीब 1.5 लाख करोड़ रुपये की रकम वापस नहीं लौटती तो उसका मतलब है कि सरकार को इतना फायदा मिल सकता है। लेकिन इसके सही-सही आँकड़े अगले एक-दो हफ्तों में ही सामने आने की उम्मीद है।
पर 31 दिसंबर के बाद क्या बैंकों और एटीएम से रकम निकालने पर लगी सीमाएँ खत्म होंगीं? रिजर्व बैंक और वित्त मंत्री अरुण जेटली के संकेतों को पकड़ें तो ऐसा लगता है कि कैश निकालने की दिक्कत अभी तुरंत पूरी तरह खत्म नहीं होगी, लेकिन यह कम जरूर हो जायेगी।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 8 नवंबर को जब नोटबंदी का ऐलान किया था तो लग रहा था कि नोटों की कमी जल्द ही दूर हो जायेगी। लेकिन लोगों और यहाँ तक कि बैंकों की भी परेशानियाँ इस बात से ज्यादा बढ़ीं कि रिजर्व बैंक ने 50 दिनों में करीब 60 नये नियम बना डाले। यानी औसतन हर रोज एक से ज्यादा नये नियम या उनमें बदलाव।
हालाँकि रिजर्व बैंक और सरकार ने दलील दी कि लोगों की दिक्कतों को देखते हुए नियमों में बदलाव किये गये। लेकिन सबसे अजीब स्थिति तब हुई, जब 20 दिसंबर को रिजर्व बैंक ने ऐलान किया कि इसके बाद सिर्फ 5000 रुपये तक के पुराने नोट ही जमा कराये जा सकेंगे, जबकि पहले खुद प्रधानमंत्री, वित्तमंत्री आरबीआई ने ही वादा किया था कि 30 दिसंबर तक नोट जमा कराये जा सकेंगे। लोगों के भारी विरोध को देखते हुए रिजर्व बैंक ने यह नियम फिर बदल दिया और कहा कि केवाईसी प्रक्रिया पूरी हो चुके खातों में यह सीमा लागू नहीं रहेगी।
इस पूरे मामले में रिजर्व बैंक को जिस तरीके से लोगों के भ्रम दूर करने के लिए खुल कर आना था, वैसा नहीं हुआ। रिजर्व बैंक और खास तौर पर उसके नये गवर्नर ऊर्जित पटेल को संवादहीनता के लिए काफी आलोचना झेलनी पड़ी।
दरअसल पूरे फैसले को इतना गुप्त रखा गया कि रिजर्व बैंक को पर्याप्त नये नोट छापने का मौका ही नहीं मिल पाया। सूत्रों की माने तो 8 नवंबर को जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी नोटबंदी का ऐलान करने वाले थे, उससे कुछ घंटे पहले ही रिजर्व बैंक के बोर्ड ने नोटबंदी को मंजूरी दी।
नोटबंदी में 500 और 1000 रुपये के नोट बंद किये गये, जो उस समय देश में चलन में मौजूद कुल नोटों का (मूल्य के आधार पर) 86% हिस्सा थे। जाहिर है इससे घबराहट की स्थिति बन गयी। रिजर्व बैंक के पास 2000 रुपये के नोट तो तैयार थे, लेकिन 500 के नये नोट बिलकुल नहीं थे। इसलिए 2000 के नोट बाजार में आ तो गये, लेकिन पर्याप्त संख्या में 100 और अन्य छोटे मूल्य के नोट नहीं होने की वजह से खुदरे की भारी दिक्कत आ गयी। दो हजार के नोट एक तरह से लंबे वक्त तक खरीदारी के लिए इस्तेमाल ही नहीं हो पाये। छपाई की क्षमता सीमित होने की वजह से रद्द किये गये 1000 और 500 के नोट के करीब 15.45 लाख करोड़ रुपये की तुलना में रिजर्व बैंक 19 दिसंबर तक करीब 5.92 लाख करोड़ रुपये के नये नोट ही बैंकिंग प्रणाली में वापस डाल पाया।
क्या-क्या हुआ 50 दिन में
1. पुराने नोटों का चलन रुका
15 दिसंबर तक पुराने नोटों का इस्तेमाल रेलवे टिकट और रसोई गैस सिलिंडर के अलावा सरकारी अस्पतालों में किया गया। नोटबंदी खत्म होने के बाद अब एटीएम से रकम निकालने की दैनिक सीमा बढ़ कर 4,500 रुपये हो गयी है, पर खाते से कुल निकासी की साप्ताहिक सीमा 24,000 रुपये की ही है।
2. भ्रमित रहा विपक्ष
विपक्षी दल नोटबंदी पर सरकार का विरोध करने के मामले में भ्रमित रहे। कांग्रेस, तृणमूल, आम आदमी पार्टी और वामदलों ने नाराजगी तो जतायी, लेकिन इस मामले में वे सरकार को कठघरे में खड़ा नहीं कर पाये। हालाँकि पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने इसे ऐतिहासिक गलती करार दिया। लेकिन बाद में इस मुद्दे पर संसद नहीं चली और विपक्ष प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को घेर नहीं पाया।
3. नीतीश ने दिया मोदी का साथ
बिहार के मुख्यमंत्री और जेडीयू नेता नीतीश कुमार ने तो इस मामले में विपक्ष का साथ छोड़ कर नोटबंदी के फैसले को सही ठहराया। इससे विपक्ष बिखर गया, जबकि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ऐसा माहौल बनाने में कामयाब रहे कि नोटबंदी का विरोध करना भ्रष्टाचार का समर्थन करने के बराबर है।
4. नकद-रहित लेन-देन को बढ़ावा
नकदी की कमी को देखते हुए सरकार ने नकद-रहित (कैशलेस) लेन-देन को बढ़ावा देने पर पूरा जोर लगा दिया। इसके लिए कई छूटों और सहूलियत का भी ऐलान किया गया। जैसे, 22 नवंबर को रिजर्व बैंक ने पेटीएम, मोबीक्विक जैसे मोबाइल वॉलेट से होने वाले भुगतान की सीमा 10,000 रुपये से बढ़ा कर 20,000 रुपये कर दी। इसके बाद वित्त मंत्रालय ने 8 दिसंबर को क्रेडिट या डेबिट कार्ड या ई वॉलेट और मोबाइल वॉलेट आदि डिजिटल तरीकों से सरकारी कंपनियों के पेट्रोल पंपों पर पेट्रोल या डीजल खरीदने पर 0.75% छूट का ऐलान किया। सरकारी बीमा कंपनियों को बीमा के लिए डिजिटल भुगतान करने पर साधारण बीमा के प्रीमियम पर 10% और नये जीवन बीमा के प्रीमियम पर 8% छूट देने की घोषणा हुई।
5. डिजिटल भुगतान के लिए लकी ड्रॉ
सरकार ने दिसंबर के अंतिम हफ्ते में दो लकी ड्रॉ योजनाओं की घोषणा की - कारोबारियों के लिए डिजी धन योजना और ग्राहकों के लिए लकी ग्राहक योजना। इन योजनाओं में रोजाना और साप्ताहिक ड्रॉ निकाले जायेंगे। 14 अप्रैल 2017 तक चलने वाली इन योजनाओं में 1 करोड़ रुपये का बंपर ईनाम भी है।
6. आय कर छापे
एक तरफ लोगों को नकद-रहित लेन-देन के लिए बढ़ावा दिया जा रहा था, दूसरी तरफ काले धन को सफेद करने वाले संगठित तरीकों का पर्दाफाश करने के लिए देश भर में आय कर विभाग ने करीब 600 छापे डाले।
7. 3500 से ज्यादा इन्कम टैक्स नोटिस
8 नवंबर को नोटबंदी के ऐलान के बाद से आय कर विभाग ने करीब 3600 लोगों को नोटिस भेजे हैं। इनमें से ज्यादातर टैक्स चोरी, हवाला लेन-देन आदि से जुड़े मामले हैं। यही नहीं, आय कर विभाग का 67.5 लाख ऐसे लोगों को भी नोटिस भेजने का इरादा है, जिन्होंने वित्त वर्ष 2014-15 में बड़े-बड़े लेन-देन किये हैं, लेकिन 2015-16 में रिटर्न दाखिल नहीं किया है।
8. नागरिकों से मिली जानकारी
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 25 दिसंबर को मन की बात में खुलासा किया कि सरकार नागरिकों से मिली सूचनाओं के आधार पर भी काला धन रखने वालों पर कार्रवाई कर रही है। सरकार ने नागरिकों से अपील की है कि वे काला धन रखने वालों या उनसे जुड़ी कोई भी जानकारी वेबसाइट पर भेजें। अब तक सरकार को इसमें 4000 से ज्यादा संदेश मिल चुके हैं।
9. प्रधानमंत्री गरीब कल्याण योजना
इस नाम से एक नयी आय घोषणा योजना शुरू कर दी गयी है। 17 दिसंबर को शुरू हुई यह योजना 31 मार्च 2017 को बंद हो जायेगी। इसके तहत छिपायी गयी रकम का खुलासा करने पर 50% कर, उपकर एवं जुर्माना चुकाना होगा। साथ ही इसमें 25% रकम 4 साल के लिए गरीब कल्याण कोष में जमा करानी होगी, जिस पर कोई ब्याज नहीं मिलेगा।
10. पुराने नोट रखने वालों को दंड
सरकार ने एक अध्यादेश को मंजूरी दी है जिसमें 31 मार्च के बाद 1000 और 500 के पुराने नोट रखने वालों पर पाँच गुना तक जुर्माना लगेगा। पहले खबरों में कहा गया कि ऐसे लोगों को जेल भी हो सकती है, पर वित्त मंत्री ने स्पष्ट किया कि ऐसा प्रावधान नहीं रखा गया है।
नोटबंदी का फैसला लेकर प्रधानमंत्री मोदी ने अपने राजनीतिक जीवन का सबसे बड़ा जोखिम उठाया है। इसका असली फायदा दिखने के लिए लोगों को थोड़े लंबे वक्त तक इंतजार करना पड़ेगा, जबकि अच्छा असर दिखने से पहले बेरोजगारी, आर्थिक विकास दर (जीडीपी) में गिरावट जैसी कुछ दिक्कतें भी सामने आ सकती हैं।
ऐसे में लोगों को उम्मीद है कि बजट में कुछ बड़ी राहतों का ऐलान हो सकता है। राजनीतिक मोर्चे पर 5 राज्यों में होने वाले विधान सभा चुनाव प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के लिए एक बड़ा लिटमस टेस्ट साबित होंगे।
क्या दिक्कतें हुईं
1 ज्यादातर लोगों ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के इस फैसले को सही ठहराया लेकिन मजदूरों और छोटे दुकानदारों को खास तौर पर कारोबार का नुकसान हुआ।
2 प्रवासी मजदूरों को बड़ी परेशानी हुई और अनुमान के मुताबिक 25 लाख प्रवासी मजदूरों में करीब 60% रोजगार छिनने की वजह से अपने गृहप्रदेशों को लौट गये।
3 प्रॉपर्टी, कंस्ट्रक्शन, फैक्ट्री, जैसे कामकाज पर बुरा असर रहा।
4 मोबाइल चार्ज करने वाले, पान और चाय की दुकान वालों की कमाई में गिरावट की खबरें आयीं।
5 घरेलू काम करने वाली बाई, प्लंबर, बिजली मिस्त्री वगैरह को होने वाली कमाई में गिरावट आयी।
6 मॉल, रेस्तरां, कपड़ों के कारोबार आदि पर बुरा असर रहा। किराना कारोबारियों का दावा है कि उनकी बिक्री 60% तक घट गयी।
(निवेश मंथन, जनवरी 2017)

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