राजीव रंजन झा:
ये सोचना गलत है
कि तुम पर नजर नहीं है
मसरूफ हम बहुत हैं
मगर बेखबर नहीं हैं
(यह शायरी नहीं है, आयकर विभाग की चेतावनी है!)
लोक-माध्यमों यानी फेसबुक, व्हाट्सऐप्प, ट्विटर आदि पर फैलता यह एक ताजा संदेश है! जाहिर है कि यह चुटकुला है, न कि वास्तव में आयकर विभाग की वास्तविक चेतावनी। मगर मजाक में ही एक बड़ी बात कह दी गयी है।
नोटबंदी पूरी होने के बाद जो आँकड़े सामने हैं, उनसे दिखता है कि 500 और 1000 रुपये के विमुद्रीकृत पुराने नोटों का अधिकांश हिस्सा बैंकिंग प्रणाली में वापस आ चुका है। इससे पहली नजर में ऐसा लग सकता है कि लोगों ने सारा काला धन ठिकाने लगा लिया। लेकिन सच तो यह है कि खेल खत्म नहीं हुआ है, बल्कि खेल अभी शुरू हुआ है। यही संकेत देते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 25 दिसंबर 2016 को अपने रेडियो प्रसारण ‘मन की बात’ में कहा, ‘मैं आपको विश्वास दिलाता हूँ कि यह पूर्ण विराम नहीं है, यह तो अभी शुरुआत है।‘
नीति आयोग के सदस्य और जाने-माने अर्थशास्त्री डॉ. बिबेक देबरॉय ने भी हाल में एक साक्षात्कार में कहा कि विमुद्रीकरण तो पूरे आर्थिक परितंत्र के सफाई अभियान की केवल एक शुरुआत है। मतलब साफ है कि 30 दिसंबर को नोटबंदी की मियाद पूरी होने के साथ यह हिसाब लगाने का वक्त नहीं आया है कि कितना काला धन सामने आया, कितना नहीं। इस नोटबंदी ने एक भूमिका बनायी है। पिक्चर तो अभी बाकी है!
यह सच है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और नोटबंदी की रूपरेखा तैयार करने वाले उनके निकट सहयोगियों ने जैसा परिणाम सोचा होगा, वैसा नहीं हो पाया। भारत जैसे देश में किसी भी नियम की काट के लिए जुगाड़ों की जैसी विविधता हो सकती है, उसका अंदाजा लगा पाना सरकार के लिए संभव नहीं हो पाया। अंदरखाने की खबर रखने वाले बताते हैं कि टीम मोदी जिस एक बड़े चोर रास्ते के बारे में अंदाजा नहीं लगा सकी, वह चोर रास्ता खुद बैंकों का था।
बैंककर्मियों पर कसेगा शिकंजा
बैंकों के माध्यम से इतने व्यापक स्तर पर गड़बडिय़ाँ होंगी, यह टीम मोदी ने सोचा भी नहीं था। दरअसल बैंककर्मियों की अब तक की पहचान ऐसे वर्ग के रूप में नहीं रही है, जो बहुत भ्रष्ट हो। लेकिन संभवत: कुछ बैंककर्मियों ने इसे अपने जीवन भर में कमाई का सबसे बड़ा अवसर मान कर भ्रष्ट रास्ता चुन लिया। बताया जा रहा है कि पीएमओ ने नोटबंदी को ढीला बनाने में भ्रष्ट बैंककर्मियों को मुख्य खलनायक के रूप में चिह्नित किया है। सरकारी अमले से जुड़े कुछ लोगों का मानना है कि अगले कई महीनों तक भ्रष्ट बैंककर्मियों की धरपकड़ चलती रहेगी और इस कार्रवाई की जद में आने वाले बैंक-कर्मियों की संख्या कई हजार तक भी पहुँच सकती है।
एक अधिकारी का कहना है कि बड़ी संख्या में बैंककर्मियों ने पुराने नोट बदलवा कर काला धन रखने वालों को बचने का रास्ता तो दे दिया, लेकिन ऐसे लोग पहली बार अपराध करने वाले मुजरिम की तरह बहुत से निशान छोड़ते गये। इसलिए अगले कई महीनों तक गैरकानूनी ढंग से नोट बदलने के चक्कर में पकड़े जाने वाले बैंककर्मियों की खबरें मिलती रह सकती हैं। यह आसानी से समझा जा सकता है कि जाँच एजेंसियाँ ऐसे गोरखधंधे में जुटे लोगों का एक सिरा पकड़ते ही आगे बहुत से गुनहगारों को दबोच सकती हैं। किसी के पास अधिक मात्रा में नये नोट मिलने पर उससे स्रोत पूछा जायेगा और फिर स्रोत को पकड़ कर उससे फायदा उठाने वाले बाकी लोगों के बारे में पूछा जायेगा।
तार कैसे जुड़ते हैं, इसका एक उदाहरण कोटक महिंद्रा बैंक के एक मैनेजर की गिरफ्तारी में दिखता है। कोलकाता के एक बड़े व्यापारी पारसमल को मुंबई में 25 करोड़ रुपये के पुराने नोटों को बदलते हुए गिरफ्तार किया गया। इसी तरह दिल्ली के एक वकील रोहित टंडन की गिरफ्तारी भी सुर्खियों में रही। इन दोनों के तार जुड़े कोटक महिंद्रा बैंक के कस्तूरबा गांधी मार्ग, दिल्ली शाखा के प्रबंधक आशीष कुमार से। प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) ने आशीष कुमार को दबोचा तो नौ फर्जी खाते खुलवा कर 34 करोड़ रुपये के पुराने नोट बदले जाने और बदले में 13 करोड़ रुपये कमीशन लेने की कहानी भी खुली।
खबरों के मुताबिक पारसमल और रोहित टंडन जैसे खिलाडिय़ों ने कई बैंक प्रबंधकों की मिली-भगत से फर्जी खाते खुलवाये, उनमें पुराने नोट जमा कराये और फिर इलेक्ट्रॉनिक फंड ट्रांसफर के जरिये वे पैसे दूसरे खातों में भेज दिये गये। जाहिर है कि जिन खातों में पैसे भेजे गये, उन खातों की भी पूरी जाँच होगी। लिहाजा अब न केवल ये सारे बैंक प्रबंधक जाँच एजेंसियों के घेरे में हैं, बल्कि उनके माध्यम से हेराफेरी करने वाले तमाम लोग पकड़ में आ रहे हैं या आने वाले दिनों में पकड़े जा सकते हैं।
केंद्र सरकार जिस एक और तबके से बुरी तरह नाराज लगती है, वह तबका है जौहरियों का। सरकार मान रही है कि काला धन ठिकाने लगाने वालों को चोर रास्ता मुहैया कराने में जौहरियों ने भी बड़ी भूमिका निभायी है। नोटबंदी की घोषणा के बाद से ही लगातार जौहरियों के यहाँ छापे मारे जाने की खबरों का सिलसिला बना हुआ है। पर सवाल है कि क्या भविष्य में सोना खरीद कर काला धन छिपाने का रास्ता मुश्किल बनाने वाले कुछ और कदम भी उठाये जाने वाले हैं? मुमकिन है कि केंद्र सरकार बजट में इस बारे में कुछ ऐलान कर दे। सोने-जवाहरात की खरीदारी में नकदी के उपयोग को सीमित करने और खरीदार की पहचान के बारे में नियमों को सख्त किया जा सकता है।
भ्रष्ट तंत्र ने निकाले रास्ते
विमुद्रीकृत किये गये नोटों का अधिकांश हिस्सा बैंकों में जमा होने का एक अहम कारण यह माना जा रहा है कि ऊपर से नीचे तक फैले भ्रष्ट तंत्र ने विभिन्न छूटों का जम कर दुरुपयोग किया।
भ्रष्ट नौकरशाहों और अधिकारियों ने अपने से नीचे वाले मातहतों को काला सफेद करने में लगाया, उन्होंने अपने से नीचे वालों को। फर्जी या केवल कागजी कारोबार वाली कंपनियों और फर्मों ने कैश इन हैंड यानी पहले से हाथ में पड़ी नकदी दिखा कर काला धन सफेद किया। बहुत से उद्योगपतियों और व्यवसायियों ने अपने सप्लायरों, कर्मचारियों आदि को भारी मात्रा में पुराने नोटों से अग्रिम भुगतान कर दिया। यह श्रृंखला नीचे तक चली। काफी नकद लेन-देन वाले व्यवसायों में खुदरा दुकानदारों तक ने नवंबर-दिसंबर के दौरान भारी मात्रा में नकद बिक्री दिखा कर पैसे बैंक में जमा किये।
मुंबई के एक वित्तीय संस्थान में बड़े पद पर कार्यरत एक अधिकारी ने एक जैसे दो किस्से बताये। पहले वाकये में लगभग 600 कर्मचारियों वाली फैक्ट्री के मालिक ने अपने सभी कर्मचारियों को दो साल का वेतन पुराने नोटों के रूप में बाँट दिया। वहीं उनके एक परिचित ने अपने घर पर काम करने वाली बाई को दो साल की तनख्वाह एक साथ दे दी, जाहिर है कि पुराने नोटों में। इस अधिकारी का कहना था कि नोटबंदी के चलते देश भर में एक तरह से संपत्ति का अनचाहा वितरण हो गया है, जिसमें पैसा बड़े लोगों के हाथों से निकल कर छोटे लोगों के हाथों में आया है। गरीब वर्ग में नोटबंदी के चलते भारी असंतोष पैदा नहीं होने का एक मुख्य कारण वे इसी बात को मानते हैं। उनका कहना है कि इस तरह हुए अनचाहे वितरण का एक बड़ा हिस्सा उन छोटे लोगों के हाथों में ही रह जायेगा, वापस बड़े लोगों के पास नहीं लौटेगा। जिन कर्मचारियों को एक साथ बहुत सारा पैसा अग्रिम वेतन के नाम पर दे दिया गया, वे वास्तव में उतने समय तक फिर से वेतन लिये बिना काम करते रहें यह संभव नहीं होगा। कुछ ही समय बाद वे फिर से वेतन माँगने लगेंगे और नहीं मिलने पर काम बदल लेंगे।
आयकर विभाग के सामने बड़ा लक्ष्य
8 नवंबर 2016 से पहले और 30 दिसंबर 2016 के बाद की स्थिति में एक बड़ा अंतर है। पहले काली नकदी दबी हुई थी, जिसे बाहर निकालने का एकमात्र तरीका छापेमारी थी। अब सारा पैसा बैंक में है। एक अधिकारी कहते हैं कि अब आयकर विभाग के सामने पूरी सूची होगी कि किस-किसने भारी मात्रा में नकदी जमा करायी है। आयकर अधिकारी ऐसे लोगों के सामने सीधा विकल्प रखेंगे कि आप खुद अघोषित आय होने का फॉर्म भर कर 50% कटवायें, नहीं तो 85% का दूसरा फॉर्म भी सामने रखा है।
8 नवंबर से 30 दिसंबर के बीच खुले चालू खातों (करंट एकाउंट) की खास तौर पर जाँच होने वाली है। आयकर विभाग को 50% आयकर एवं जुर्माने और 25% राशि चार साल के लिए जमा करने वाली प्रधानमंत्री गरीब कल्याण योजना के तहत बड़ी राशि जुटाने का अनौपचारिक लक्ष्य मिलेगा और इसे पूरा करने में विभाग को बहुत मुश्किल भी नहीं आयेगी।
हालाँकि ऐसी स्थिति में आयकर अधिकारियों की ओर से बड़े स्तर पर रिश्वतखोरी होने की आशंकाएँ भी जतायी जा रही हैं। एक बड़े व्यवसायी कहते हैं कि सबसे ज्यादा पौ-बारह तो आयकर अधिकारियों की होने वाली है। मोदी सरकार इन आशंकाओं को दूर करने के लिए कैसे कदम उठाती है, यह देखने वाली बात होगी।
कैशलेस रिश्वत
नोटबंदी के चलते बहुत सारी काली नकदी बैंकिंग प्रणाली में आने की उम्मीद भले ही टूटी हो, लेकिन इतना तो सभी मान रहे हैं कि सारी नकदी बैंक खातों में आ जाने से काली नकदी बाजार से एकबारगी हट गयी है। बेशक, नये नोटों में रिश्वतखोरी पकड़े जाने के भी काफी मामले बीते दिनों में सामने आये हैं। लेकिन यह अपने-आप में स्पष्ट है कि पहले जितनी नकदी बाजार में है ही नहीं।
भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) के ताजा आँकड़ों के मुताबिक 23 दिसंबर 2016 को प्रचलित मुद्रा (सीआईसी) 9,81,870 करोड़ रुपये की थी, जो नोटबंदी से पहले 4 नवंबर को कुल 17,97,460 करोड़ रुपये थी। इस तरह लगभग सात हफ्तों में प्रचलित मुद्रा में 45% की कमी आ गयी। इसलिए हर तरह के नकद लेन-देन पर अंकुश लगना स्वाभाविक है। जब रिश्वत देने वाले के पास नकदी होगी ही नहीं, तो वह देगा कैसे?
ऐसे में कुछ लोगों का मानना है कि कैशलेस रिश्वत के नये अनोखे तरीके भी सामने आ सकते हैं। नकद के बदले कीमती सामानों के रूप में रिश्वत देने का चलन बढ़ सकता है। किसी व्यापारी या उद्योगपति को अगर एक अधिकारी को रिश्वत देनी है, तो वह प्रीपेड कार्ड दे सकता है। यह भी हो सकता है कि एक व्यापारी खुद अपने या अपनी कंपनी के नाम का एक क्रेडिट कार्ड ले कर किसी अधिकारी को दे सकता है कि वह उससे खर्च कर ले। इस तरीके में तो वह कंपनी उस खर्च को अपने खाते में भी दिखा सकती है। उस कार्ड का इस्तेमाल वास्तव में व्यापारी ने किया या उस अधिकारी ने, यह स्थापित करना आसान नहीं होगा।
मगर ऐसे रास्तों से छोटी-मोटी हेराफेरी ही की जा सकती है। बड़ी राशि का किसी भी तरीके से डिजिटल लेन-देन होने पर उसके पदचिह्न संबंधित व्यक्ति तक पहुँच ही जाते हैं। हाल में रिश्वतखोरी का एक कॉर्पोरेट मॉडल भी विकसित हुआ, मगर पूर्व संचार मंत्री दयानिधि मारन के विरुद्ध एयरसेल-मैक्सिस सौदे के संबंध में चल रहा मुकदमा दिखाता है कि इस कॉर्पोरेट मॉडल में हुई रिश्वतखोरी को भी बखूबी स्थापित किया जा सकता है।
इसलिए भले ही नोटबंदी की यह कह कर आलोचना की जा रही हो कि इससे काले धन का सृजन तो नहीं रुकने वाला, मगर यह भी सच है कि नकदी की कमी ही अपने-आप में काली कमाई के रास्तों में एक बड़ी बाधा बन सकती है। हाल में वित्त राज्यमंत्री अर्जुन राम मेघवाल ने अजमेर में कहा कि 500 और 1000 रुपये के पुराने नोटों के रूप में जो करीब 86% मुद्रा थी, उसमें से 50% मुद्रा उस समय उपलब्ध आँकड़ों के अनुसार चलन में नहीं थी। नोट के नंबरों से होने वाली ट्रैकिंग के आधार पर उन्होंने दावा किया कि 8 नवंबर से पहले ऐसे लगभग आधे नोट लेन-देन में नहीं थे बल्कि वे बोरों या बक्सों में बंद थे।
दरअसल ऐसी ही नकदी बड़ी राशि के काले लेन-देन या भ्रष्टाचार में इस्तेमाल होती रही है। लेकिन अब ऐसी सारी नकदी साफ हो चुकी है। एक तरह से कहा जा सकता है कि काले धन के सृजन का इंजन भले ही बंद नहीं हुआ हो, मगर उस इंजन के लिए स्नेहक (लुब्रिकेंट) की तरह इस्तेमाल होने वाली नकदी गायब हो चुकी है। वह नकदी बैंक खातों में जा चुकी है। पहले तो उसके स्रोत की खोजबीन अब संभव हो गयी है। साथ ही, यह नकदी उन खातों से निकल कर जिस किसी के पास जायेगी, उसके पदचिह्न पहचाने जा सकेंगे।
(निवेश मंथन, जनवरी 2017)