राजेश रपरिया, सलाहकार संपादक:
नये साल की पूर्व संध्या पर प्रधानमंत्री मोदी के राष्ट्रीय संबोधन को लेकर जिन देशवासियों में भारी उत्तेजना-व्याकुलता थी, उनको गहरी निराशा ही हाथ लगी।
प्रधानमंत्री मोदी का यह संबोधन नोटबंदी के 50 दिनों के दौरान मोदी सरकार के किये दावों का मंडन कम, खंडन ज्यादा करता है। इस संबोधन से यह निष्कर्ष निकालने में कोई संकोच नहीं होना चाहिए कि नोटबंदी के फैसले के कारण प्रधानमंत्री मोदी और उनके सिपहसालार अब दबाव में हैं। 8 नवंबर को 500 और 1000 के नोटों की कानूनी वैधता समाप्त करने की घोषणा प्रधानमंत्री मोदी ने की थी और देशवासियों से कालाधन, भ्रष्टाचार और आतंकवाद से छुटकारा दिलाने के लिए 50 दिनों की मोहलत माँगी थी। यह मोहलत 30 दिसंबर को समाप्त हो गयी। इन 50 दिनों में 70 से ज्यादा बार नोटबंदी संबंधी अपने आदेश-निर्देश मोदी सरकार और भारतीय रिजर्व बैंक ने बदले, जो अब मोदी सरकार की अधकचरी तैयारी और समझ के जीवंत उदाहरण बन चुके हैं। मोदी सरकार के वित्त मंत्री अरुण जेटली अब तक यह मानने को तैयार नहीं हैं कि देश में कहीं भी नोटों की कोई किल्लत आयी। पर अब नये साल में भारतीय रिजर्व बैंक ने वाणिज्यिक बैंकों को निर्देश दिये हैं कि नगदी का 40% हिस्सा गाँवों में भेजा जाये। प्रधानमंत्री मोदी ने साफ-साफ कहा था कि 31 मार्च 2017 तक रद्द नोटों को रिजर्व बैंक के काउंटरों पर बदला जा सकता है। अब प्रधानमंत्री मोदी ने रिजर्व बैंक के इस वादे पर अड़चन लगा दी है, जो अभूतपूर्व है।
प्रधानमंत्री ने इस संबोधन में नोटबंदी से त्रस्त लोगों के आँसू पोछने की कोशिश अवश्य की और चुनिंदा वर्गों को राहत देने के लिए कई नयी घोषणाएँ कीं। इनमें एक-आध को छोड़ बाकी सब घोषणाएँ पुराने कार्यक्रमों, योजनाओं का नवीकरण हैं या उनका विस्तार भर। अब क्रेडिट गारंटी स्कीम में गैर बैंकिंग वित्तीय संस्थाओं को भी शामिल कर लिया गया है, जो घोटालों के खतरे की नयी घंटी है।
प्रधानमंत्री आवास योजना के तहत शहरों में निर्धारित कर्ज सीमा पर ब्याज में 3-4% छूट की घोषणा की गयी है। इसमें केवल ब्याज छूट को बढ़ाया गया है। इस योजना के तहत गाँवों में बनाये जाने वाले पक्के मकानों का लक्ष्य 33% बढ़ाया गया है। इस योजना के तहत 2019 तक एक करोड़ मकान बनाये जाने का लक्ष्य था। गाँवों के लिए यह योजना इंदिरा आवास योजना का मोदी संस्करण है। पिछले दो सालों से आवास निर्माण को प्रोत्साहित करने के लिए मोदी सरकार ने कई यत्न किये हैं, पर वांछित नतीजे अब तक नहीं मिले हैं। इस क्षेत्र से जुड़े लगभग 150 उद्योगों पर कोई खास असर दिखाई नहीं देता है। पर इसमें कोई दो मत नहीं है कि इस क्षेत्र की गतिविधियों में उफान आता है, तो अर्थव्यवस्था में बहार आने में देर नहीं लगेगी।
प्रधानमंत्री ने किसानों को राहत देने की भी घोषणा की है, पर वह ऊँट के मुँह में जीरा है। नोटबंदी के कारण किसानों को औने-पौने दामों में अपनी उपज बेचनी पड़ी है, जिससे खरीफ की अच्छी फसल का लाभ किसानों को नहीं मिला है। रबी-खरीफ के लिए कर्जों पर दो महीने के ब्याज से महज 800-1200 रुपये ही किसानों के पल्ले पडऩे हैं। छोटे कारोबारियों को राहत देने की घोषणा की गयी है।
क्रेडिट गारंटी स्कीम की सीमा दो करोड़ रुपये की गयी है। पर यह महज किताबी योजना है, जमीन पर इसका कोई लाभ नहीं है। बैंक प्रबंधक जान-बूझकर इस योजना से अनजान बने रहते हैं। कार्यशील पूँजी कर्ज को अधिक देने के निर्देश दिये गये हैं, पर इसका फिलहाल कोई लेवाल बाजार में नहीं है। वरिष्ठ नागरिकों को 7.5 लाख रुपये की जमा-राशि पर 10 साल के लिए सुरक्षित ब्याज की घोषणा भी प्रधानमंत्री मोदी ने की है। यह घोषणा स्वागत-योग्य है, पर पर्याप्त नहीं है। वरिष्ठ नागरिकों की ब्याज आय को रेपो दर से जोड़ कर 3% ज्यादा सुरक्षित ब्याज देने से उनको स्थायी रूप से बड़ी राहत मिलती।
गर्भवती महिलाओं को 6,000 रुपये आर्थिक सहायता देने की भी घोषणा की गयी है। असल में यह मदद मनमोहन सरकार ने 2013 में पायलट प्रोजेक्ट के रूप में 53 जिलों में शुरू की थी। पर मोदी सरकार ने इसे दफन कर दिया और अब खोद कर बाहर निकाला है। यह कृत्य मोदी सरकार के कामकाज पर स्वयं में टिप्पणी है। राजनीतिक दलों के चंदों को लेकर भी कोई ठोस पहल करने की हिम्मत साहसी प्रधानमंत्री नहीं दिखा पाये। सब जानते हैं कि राजनीतिक दल काला धन और भ्रष्टाचार की गंगोत्री हैं, जहाँ से काला धन पवित्र होकर मुख्य धारा में आ जाता है।
पर हाँ, इस संबोधन से प्रधानमंत्री मोदी ने अगले बजट की पटकथा अवश्य लिख दी है। अब वे विकास पुरुष के बदले गरीबों के मसीहा बनना चाहते हैं। जाहिर है कि वित्त मंत्री अरुण जेटली उनकी यह छवि गढ़ने की हरसंभव कोशिश अगले बजट में करेंगे। ठ्ठ
(निवेश मंथन, जनवरी 2017)