नोटबंदी के फैसले के पहले हफ्ते में अकेले भारतीय स्टेट बैंक में 1.30 लाख करोड़ रुपये जमा हुए और 2.67 करोड़ लेनदेन की प्रविष्टियाँ हुईं। सरकार का अनुमान है कि नोटबंदी से 31 दिसंबर 2016 तक 10 लाख करोड़ रुपये बैंकों में जमा होंगे। इसका सीधा अर्थ यह होगा कि 25 करोड़ बैंक प्रविष्टियों की छानबीन आय कर कर्मियों को करनी पड़ेगी। जाहिर है कि इस कार्य के लिए कर प्रशासन डेटा एनालिटिक्स और डेटा माइनिंग तकनीक का सहारा लेगा। यह सुविधा कर प्रशासन के पास है। पर सवाल यह है कि कर प्रशासन कितनी दक्षता से यह कार्य कर पायेगा?
मनमोहन सिंह की सरकार के कार्यकाल में ही 2005 में लेन-देन के आँकड़ों का विश्लेषण शुरू हो गया था। तब अनिवार्य कर दिया गया कि बैंक, म्यूचुअल फंड कंपनियाँ, संपत्ति रजिस्ट्रार और क्रेडिट कार्ड कंपनियाँ बड़े लेन-देन के विवरण आय कर विभाग को भेजेंगी। 10 लाख रुपये या उससे अधिक की जमाराशियों, 20 लाख रुपये से अधिक की भूसंपदा, म्यूचुअल फंडों में 2 लाख रुपये से अधिक के निवेश या क्रेडिट कार्ड से बड़ी खरीद-फरोख्त को इस दायरे में लाया गया।
बड़े लेनदेन पर पैनकार्ड या कोई पहचान-पत्र देना भी अनिवार्य किया गया। आज कोई वाहन खरीदें, बैंक या डाकखाने में सावधि जमा करायें, 10 लाख रुपये से अधिक की भूसंपदा खरीदें या 2 लाख से अधिक की कोई वस्तु या सेवा खरीदने पर पैनकार्ड या पहचान पत्र देना अनिवार्य होता है। टीडीएस यानी स्रोत पर कर कटौती का दायरा भी पिछले पाँच सालों में विशाल हुआ है। जिन लोगों को कर से छूट मिली हुई है, उन्हें भी पहले कर कटौती करानी होती है और फिर उसकी वापसी के लिए आवेदन करना पड़ता है। इसी तरह 2 लाख रुपये की नकद खरीद पर टीसीएस यानी स्रोत पर कर संग्रह अनिवार्य बना दिया गया है।
कर प्रशासन के पास अकूत डेटा जमा है, पर वह आय कर दाताओं की संख्या में अपेक्षित वृद्धि करने में नाकाम रहा है। पिछले 10 सालों में आय कर रिटर्न की संख्या भी 2.7 करोड़ से बढ़ कर 3.9 करोड़ हो पायी है। लक्ष्य था कि हर साल इसमें 15% वृद्धि हो, पर यह संख्या बढ़ी है केवल 4% की दर से। सूचना-तकनीक के इस्तेमाल में कर प्रशासन बाकी अन्य सरकारी महकमों से आगे रहा है। पर कारगर नतीजे देने में यह विभाग सबसे फिसड्डी साबित हुआ है। केवल आय कर रिटर्न और पैन कार्ड जारी करने से आगे यह विभाग अभी नहीं बढ़ पाया है।
सरकार ने पार्थसारथी शोम की अगुवाई में टैक्स ऐडमिनिस्ट्रेशन रिफॉर्म कमीशन बनाया था। साल 2015 में इस कमीशन ने अपनी रिपोर्ट सरकार को दे दी है। इसमें भी कर प्रशासन की ऐसी अनेक खामियों की ओर इंगित किया गया है और कई सुझाव दिये गये हैं। इनमें सरकारी कर प्रशासन के प्रत्यक्ष और प्रत्यक्ष कर विभागों में तालमेल का अभाव, रिसर्च विभाग में कुशल कर्मियों की आवश्यकता, एनालिटिक विशेषज्ञों की तैनाती आदि अनेक सुझाव शामिल हैं। पर अब तक कोई खास नतीजा सामने नहीं आया है। इसका सबसे बड़ा कारण कर प्रशासन में फैला भ्रष्टाचार है। आम धारणा यह है कि कर विभाग में वादों का निर्णय नहीं, सेट्लमेंट होता है।
नोटबंदी से बैंकों में नकदी की बाढ़ आ गयी है। सरकार रोजाना लोगों को अपने खातों में अन्य लोगों के पैसे जमा नहीं करने के लिए आगाह कर रही है। सरकार ने साफ-साफ चेतावनी दी है कि जो लोग अपने खातों में ढाई लाख रुपये से ज्यादा जमा कर रहे हैं, उनकी गहन छानबीन की जायेगी कि ये असली हैं या बेनामी। जनधन खातों में अचानक नकदी की बाढ़ आ गयी है। इन खातों में 50,000 रुपये से अधिक जमाराशि की भी जाँच की जायेगी। सरकार ने बैंक खातों का दुरुपयोग करने वालों के खिलाफ बेनामी कानून का इस्तेमाल होने के बारे में भी लोगों को चेताया है। इसमें जेल और जुर्माना का प्रावधान है।
पर सवाल यही है कि कर प्रशासन क्या बैंकों की तरह इतना बड़ा मोर्चा सँभाल पायेगा? अब सारा भार आय कर विभाग पर आ गया है। पर एक तथ्य और भी है कि बैंकों की तरह आय कर विभाग का श्रम बल उतना विशाल और व्यापक नहीं है। आय कर विभाग में एडिश्नल कमिश्नर तक के अलग-अलग स्तरों के अधिकारियों की संख्या 7,294 है। इनमें आय कर अधिकारियों की संख्या 4204 है, जबकि 469 एडिश्नल कमिश्नर, 647 ज्वाइंट कमिश्नर, 1240 डिप्टी कमिश्नर और 734 असिस्टेंट कमिश्नर हैं।
एडिशनल कमिश्नर साल में 30-40 मामलों को सुलझाते हैं। ज्वाइंट कमिश्नर और असिस्टेंट कमिश्नर भी बमुश्किल 40 केसों को सुलझा पाते हैं। लगभग 75% आय कर अधिकारी ही आय कर निर्धारण करते हैं और 100-150 मामले सुलझा पाते हैं। एक बड़ी दिक्कत इन अधिकारियों के सामने यह भी है कि अगर निर्धारिती मिथ्या जानकारी देता है तो उसे सिद्ध करने की जिम्मेदारी आय कर अधिकारियों की है। कोढ़ में खाज यह है कि आय करदाताओं के बीच भी इस विभाग की छवि खराब है। पारदर्शिता और सुशासन के मापदंडों पर यह विभाग फिसड्डी है।
(निवेश मंथन, दिसंबर 2016)
कितनी छानबीन कर सकेगा आय कर विभाग
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