किशोर नर्ने, एसोसिएट डायरेक्टर, मोतीलाल ओसवाल कमोडिटीज :
घरेलू बाजार में हाल में सोने का भाव लगभग 35,000 रुपये प्रति 10 ग्राम से गिर कर इस समय 31,000 के नीचे आ गया है।
अगले एक महीने की बात करें तो यह 29,000 से 31,000 रुपये के बीच में रहना चाहिए। इससे ज्यादा निचले स्तर आने या इससे ज्यादा ऊपर के स्तर आने की संभावना कम है। दरअसल रुपया भी हाल में कुछ मजबूत होने के बाद अब इन स्तरों के पास ठहरना (कंसोलिडेट) चाहिए।
हाल में सोने का भाव 35,000 जाने का मूल कारण रुपया ही था, कोई बाहरी कारण नहीं था। सीरिया संकट वगैरह के बावजूद अंतरराष्ट्रीय बाजार में सोना इतना नहीं बढ़ा था। अंतरराष्ट्रीय बाजार में यह केवल करीब 5% बढ़ा था, लेकिन घरेलू बाजार में यह 10% से ज्यादा बढ़ गया।
अंतरराष्ट्रीय बाजार में अभी सोने का भाव 1320-1420 डॉलर प्रति औंस के बीच ठहरना चाहिए। यह फेडरल रिजर्व के फैसले पर भी निर्भर करेगा। माना जा रहा है कि इसी सितंबर में फेडरल रिजर्व अपने क्यूई-3 कार्यक्रम को धीमा करने का ऐलान करेगा और दिसंबर 2013 से वह बॉण्डों की खरीदारी धीमी करना शुरू कर देगा, जो मासिक 85 अरब डॉलर का है। इसे घटा कर 65 अरब डॉलर किया जा सकता है। अगर अमेरिका में अर्थव्यवस्था सुधरने लगती है और आसानी से उपलब्ध नकदी थोड़ा-सा कम हो जाती है तो वहाँ ब्याज दरें और विशेष रूप से बॉण्डों की यील्ड बढऩे की संभावना है।
ब्याज दर बढऩे की स्थिति में अंतरराष्ट्रीय बाजार में सोने का प्रदर्शन अच्छा नहीं रहता है। जब ब्याज दर शून्य रहे, तब सोने की कीमत ऊँचे स्तर पर रहेगी, जैसा आपने 2011 के अंत में देखा था। उस समय अमेरिका में लगभग शून्य ब्याज दर थी, 0.25% के आसपास। उस समय ही सोने ने 1900-1950 डॉलर की सबसे ऊँचा स्तर छुआ था। वहाँ से धीरे-धीरे अमेरिका में ब्याज दरें बढ़ कर अभी 2.5-2.6% तक आ गयी हैं, जो अगले छह महीने में 3.1-3.2% तक जा सकती हैं। जैसे-जैसे अमेरिका में ब्याज दरें बढ़ती जायेंगी, वैसे-वैसे अंतरराष्ट्रीय स्तर पर सोने की कीमतें नीचे आ जायेंगी। मेरा अनुमान है कि अगले छह महीनों में, यानी मार्च 2014 तक सोने का भाव 1200 डॉलर के नीचे होना चाहिए, जो अभी 1360 डॉलर के आसपास है।
भारतीय बाजार में अगर रुपया स्थिर रहा तो सोने की कीमतें भी नरम रहेंगी। अगर डॉलर की कीमत वापस 68-69 रुपये की ओर नहीं जाये और अंतरराष्ट्रीय बाजार में सोने की कीमतें 1200 डॉलर तक आ जायें तो यहाँ सोना एक बार 28,000 रुपये के नीचे भी जा सकता है।
भारत में दीवाली और शादी-ब्याह का मौसम आने से कुछ माँग बनने का अंतरराष्ट्रीय कीमतों पर असर नहीं पड़ेगा। घरेलू कीमतें सीधे तौर पर अंतरराष्ट्रीय भाव और डॉलर की विनिमय दर से तय होती हैं। घरेलू मौसमी माँग का ज्यादा फर्क नहीं पड़ता।
1320-1420 डॉलर का दायरा
अगर एक महीने के नजरिये से देखें तो मेरे विचार से एक महीने में अंतरराष्ट्रीय स्तर पर 1320 डॉलर से 1420 डॉलर के बीच भाव ठहरना चाहिए और रुपया 63 से 65 के बीच में जमना चाहिए। अगर ये दोनों बातें करता हूँ। इसकी वजह से भारतीय सोना 29,000 से लेकर 31,000 के बीच में रहेगा।
एक कारोबारी के लिए इस समय हर दिन कारोबारी रणनीति तय करने की स्थिति है, क्योंकि अभी छोटी अवधि के लिहाज से ज्यादा स्पष्टता नहीं है। लेकिन एक सीमित दायरे में चाल की संभावना के मद्देनजर अगर सोना 31,000-31,500 के पास जाये तो वह बिकवाली का स्तर होगा, जबकि 29,000 के आसपास के स्तरों पर खरीदारी करना ठीक रहेगा। लेकिन अगले छह महीने में तो सोना कमजोर ही लग रहा है।
इन छह महीनों में घरेलू बाजार में कितना नीचे तक जा सकता है, यह काफी हद तक रुपये पर निर्भर करेगा। अभी यह स्पष्टता नहीं है कि अगले छह महीनों में रुपया कहाँ जाने वाला है। रुपये को प्रभावित करने वाली काफी चीजें हैं। अभी तो नये आरबीआई गवर्नर आये हैं। उनकी नीतियाँ कैसी रहती हैं, यह देखना होगा। लोग कह रहे है कि उनकी नीतियाँ उदार रहेंगी, लेकिन उनका असर देखना बाकी है।
इसके अलावा, कंपनियों के तिमाही मुनाफे भी पिछली दो तिमाहियों की तुलना में कमजोर ही रहेंगे। एफआईआई कितना पैसा डालेंगे या निकालेंगे, यह भी अनिश्चित है। एनआरआई के खाते में अतिरिक्त जमा आकर्षित करके डॉलर जुटाने के प्रयास कितने कारगर रहते हैं, इसे देखना होगा। चुनाव भी नजदीक हैं। काफी चीजें हैं, जिनके चलते अनिश्चितता का मौहाल है और रुपये में छह महीने का नजरिया बनाना मुश्किल है। इसीलिए भारतीय बाजार में सोने की कीमत को लेकर भी लंबी अवधि के लिए नजरिया स्पष्ट नहीं है। जो अनिश्चितता है, वह मुख्य रूप से रुपये की वजह से ही है, क्योंकि सोने का अंतरराष्ट्रीय रुझान तो स्पष्ट रूप से नीचे की ओर है।
निवेशक की नजर से देखें तो उसके पोर्टफोलियो में सोने की हिस्सेदारी तेजी-मंदी हर तरह के समय में 10-15% होनी चाहिए। लेकिन बीच में काफी निवेशकों ने अपने पोटफोलियो में इक्विटी वगैरह कम करके सोना ज्यादा खरीदा था। अगर किसी का सोने में निवेश 15% से ज्यादा है, तो उसे अभी 10% से 15% के बीच लाकर छोड़ देना चाहिए। कुछ लोगों ने अपना 50% तक पैसा सोने में डाल दिया था। उनको एक बार निकल जाना चाहिए और इसे घटा कर पोर्टफोलिओ का केवल 10% कर देना चाहिए। सोने में इतना निवेश हमेशा बनाये रखना चाहिए। वह निवेश रणनीति का हिस्सा है।
चाँदी पिछले कुछ समय से सोने के मुकाबले धीमा प्रदर्शन करती रही है। यह बहुत ही ज्यादा उतार-चढ़ाव वाली धातु है और निवेशकों के लिए ठीक नहीं है। भारत में चाँदी की कीमतें साल 2011 में 72000-73000 के ऊपरी स्तर तक चली गयी थीं। उसके बाद की स्थिति देखें तो सोना आगे नयी ऊँचाई बनाता गया, लेकिन चाँदी वापस उस स्तर तक नहीं जा सकी। चाँदी वापस 70,000 भी पार नहीं कर सकी। अभी यह 55,000 रुपये प्रति किलोग्राम के ऊपर-नीचे झूल रही है। सोना जब 18,000 रुपये के स्तर पर था, तब भी चाँदी 50,000 पर थी। सोना 35,000 रुपये का हो गया, तो भी यह 55,000-60,000 के आसपास ही है। इससे यह स्पष्ट होता है कि इसका प्रदर्शन अच्छा नहीं है।
मेरे हिसाब से चाँदी लंबी अवधि के निवेश लायक धातु है ही नहीं। यह कारोबारियों के लिए ही ठीक है। लंबी अवधि के लिहाज से मैं चाँदी को पंसद नहीं करूँगा। छोटी अवधि के लिए भी इस समय चाँदी का रुझान मंदा ही है।
लंबी अवधि के निवेशक को अगर बहुमूल्य धातुओं में निवेश करना है तो उसे सोने में निवेश का ही विकल्प चुनना चाहिए। चाँदी के मुकाबले हमेशा सोना ही पहले है। दोनों साथ-साथ रखने का मतलब नहीं बनता। दोनों समान संपत्ति-वर्ग के हैं, ऐसे में दोनों में निवेश रखने से कोई फायदा नहीं। इससे अच्छा है कि सोना ही रखा जाये।
तकनीकी स्तरों के हिसाब से एक महीने के लिए मुझे लगता है कि 49,500 के आसपास चाँदी की खरीदारी ठीक रहेगी, जबकि 54,000-54,500 के आसपास बेचने लायक स्तर रहेंगे। सोने में एकदम छोटी अवधि के तकनीकी स्तर देखें तो 30,000-30,100 के आसपास समर्थन है, जबकि ऊपर 31,400 के आसपास बाधा है। अगर यह नीचे की ओर 30,000 का स्तर तोड़ देता है तो 29,700 का अगला स्तर देखने को मिल सकता है।
(निवेश मंथन, सितंबर 2013)