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ये फासलों का बाजार है, जरा सँभल कर सौदे करें

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Category: सितंबर 2013

शेयर बाजार में या कमोडिटी और मुद्रा बाजार में भी बहुत-से कारोबारी तकनीकी संकेतकों या संरचनाओं के आधार पर सौदे करते हैं और मुनाफा कमाने का प्रयास करते हैं।

लेकिन किसी भी कारोबारी के लिए सबसे बड़ा जोखिम यह होता है कि आज बाजार बंद होने के बाद अगर अगले दिन बाजार एकदम बदले हुए रुझान के साथ और बड़े फासले या अंतर (गैप) के साथ खुला तो क्या होगा? जाहिर है कि ऐसे में उसका सौदा अचानक ही बड़े घाटे में आ जाता है और इस घाटे से बचने का उसके पास कोई उपाय नहीं होता।
जैसे, 14 अगस्त 2013 को निफ्टी फ्यूचर 5781 पर बंद हुआ था। अगले दिन 16 अगस्त को यह 39 अंक की गिरावट के साथ 5742 पर खुला। इससे पहले 8 अगस्त से 14 अगस्त के दौरान बाजार की दिशा ऊपर थी। इसलिए रुझान के आधार पर चलने वाले तकनीकी कारोबारी इसमें खरीदारी सौदे को अगले दिन जारी रखने की ही सोचते। मगर अगले दिन बाजार की चाल पलट गयी और यह काफी नीचे खुला ही।
घाटा काटने का स्तर लगा कर चलने की सलाह भी ऐसे मौकों पर कारोबारी की रक्षा नहीं कर पाती, क्योंकि उसने जिस स्तर पर घाटा काटना तय कर रखा होता है, बाजार में अगले दिन की शुरुआत ही उस स्तर से काफी बड़े अंतर पर होती है। तो क्या अगले दिन बड़े अंतर से (ऊपर या नीचे) खुलने के जोखिम का कोई बचाव कारोबारियों के लिए संभव है?
कैलाश पूजा इन्वेस्टमेंट्स के सीईओ प्रदीप सुरेका के मुताबिक इस जोखिम से बचने का एक उपाय तो यही है कि केवल एकदिनी (इंट्राडे) सौदे करें। लेकिन कई दिनों के सौदे में बड़े अंतराल के खतरे से बचने का सबसे पहला उपाय वे बताते हैं ऑप्शन खरीद कर हेज करना। आपने किसी शेयर में खरीदारी का सौदा कर रखा है और बाजार बंद होने से कुछ पहले आपको लगे कि अगले दिन बाजार निचले अंतराल से खुल सकता है तो वैसी हालत में आप अपने इस खरीदारी सौदे के जोखिम को सँभालने के लिए पुट ऑप्शन खरीद सकते हैं। प्रदीप कहते हैं कि अगले दिन अगर बाजार सामान्य ढंग से खुला और कोई निचला अंतराल नहीं बना तो ऑप्शन वापस बेच सकते हैं। ऑप्शन की इस खरीद-बिक्री से आपको थोड़ा अतिरिक्त खर्च जरूर करना पड़ेगा, लेकिन आप बड़ा घाटा हो जाने के जोखिम से बच जायेंगे।
हालाँकि यह पहले से अंदाजा लगाना मुश्किल हो सकता है कि अगले दिन बाजार बड़े अंतराल से खुलने की आशंका है या नहीं। इसलिए जो कारोबारी कुछ दिनों के सौदे करते हैं, वे अपने सौदे के साथ ही ऑप्शन खरीद सकते हैं। सौदा निपटाने के वक्त ही वह ऑप्शन वापस बेचें।
इक्विटी रश के कुणाल सरावगी बताते हैं कि कई बार अंतराल के साथ खुलने पर कारोबारियों को फायदा भी होता है, अगर वह अंतराल पिछले दिन के रुझान की ही दिशा में बना हो। नुकसान तब होता है, जब दिशा पलटने के साथ अंतराल बने। ऐसे नुकसान का मनोवैज्ञानिक असर भी कारोबारियों पर पड़ता है। बड़े अंतराल के साथ खुलने पर घाटा काटने का जो स्तर आपने सोच रखा था, वह बेकार हो जाता है और आपका घाटा काफी बड़ा हो जाता है। लोग सोचते रहते हैं कि यह घाटा जरा कम हो जाये, तब इसे निपटायेंगे।
शेयर कारोबारी रमेश चंद गुप्ता बताते हैं कि घाटा काटने के स्तर से नीचे खुलने पर मैं इंतजार करता हूँ कि भाव थोड़ा सँभल जाये, क्योंकि एकदम नीचे काटना तो मुश्किल होता है। लेकिन कुणाल सरावगी के अनुसार सही रणनीति तो यही है कि जब भाव आपके घाटा काटने के स्तर के नीचे आ जाये तो आपको तुरंत सौदे से बाहर निकलना चाहिए, भले ही घाटा बड़ा लग रहा हो। इसमें हिचकने पर और बुरी तरह फँस जाने का अंदेशा रहेगा।
कुणाल कहते हैं कि अगर आप बिना विचलित हुए एक व्यवस्थित तरीके से तकनीकी सौदे करते हैं तो ऐसे अंतराल कभी आपके हक में जाते हैं और कभी घाटा दे जाते हैं। इसलिए शुद्ध रूप से हिसाब लगभग बराबर ही हो जाता है और लंबी अवधि में खास असर नहीं पड़ता है।
कुणाल के अनुसार बचाव एक तरीका यह है कि आप कॉल और पुट ऑप्शन की खरीदारी के जरिये ही सौदे करें। इसमें बड़े अंतराल से खुलने के बाद भी आपका घाटा सीमित रहता है। इसमें अधिकतम नुकसान वही होता है, जो आपने प्रीमियम दिया है, और वह प्रीमियम भी तुरंत शून्य नहीं हो जाता है।
हालाँकि ऑप्शन खरीदना केवल तकनीकी नजरिये से बाजार की दिशा समझ लेने भर से फायदेमंद नहीं हो सकता। कई बार ऐसा हो सकता है कि आपने बाजार की दिशा का अंदाजा तो सही लगाया, लेकिन खरीदे हुए ऑप्शन में आपको फायदा नहीं मिला। यह वायदा बाजार के अपने समीकरणों की वजह से हो सकता है। कुणाल बताते हैं कि ऑप्शन खरीदते समय देखना पड़ता है कि वे कितने महँगे हैं। साथ ही अगर निपटान (एक्सपायरी) नजदीक है तो उनकी कीमत तेजी से गिर सकती है।
कुणाल की सलाह है कि कारोबारी अगर हेजिंग के लिए पेयर ट्रेडिंग यानी तेजी-मंदी के जोड़े में सौदे करें तो बड़े अंतराल के खतरे से बच सकते हैं। जिस शेयर में बाजार से ज्यादा मजबूती हो, उसे आप खरीदें और बाजार की तुलना में जो शेयर धीमा या कमजोर चल रहा हो, उसे आप बेच लें। दोनों सौदे बराबर राशि के होने चाहिए। ऐसा करने से बाजार चाहे जिस ओर भी बड़े अंतराल से खुले, उसमें आपको कोई बड़ा घाटा नहीं होगा। अगर बाजार तेज अंतराल से खुला है तो आपकी खरीदारी वाला शेयर काफी बढ़ जाता है। वहीं अगर बाजार निचले अंतराल से खुला है तो आपकी बिकवाली वाला शेयर काफी नीचे आ जाता है। ऐसे में अगर आपको फायदा न भी मिले तो नुकसान मामूली ही रहता है।
(निवेश मंथन, सितंबर 2013)

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