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मोदी राज के तीन साल : वादों का क्या...

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Category: जून 2017

राजेश रपरिया, सलाहकार संपादक :

इसमें कोई दो राय नहीं हो सकती है कि मोदी को खस्ताहाल अर्थव्यवस्था मिली थी।

उपभोक्ता मुद्रास्फीति, कर संग्रह, विदेशी मुद्रा कोष, भुगतान संतुलन, सरकारी घाटा, सेंसेक्स और अब तक आर्थिक विकास दर भी तब से बेहतर स्थिति में है। इसमें अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल की कीमतों की अहम भूमिका है। 2014 में कच्चे तेल की कीमत 105 डॉलर प्रति बैरल थी, जो अब 48 डॉलर प्रति बैरल के आसपास है। मोदी सरकार के कई कार्यक्रमों और योजनाओं का प्रदर्शन बेहतर और सराहनीय है, जिनमें प्रधानमंत्री उज्ज्वला योजना, प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना, प्रधानमंत्री आवास योजना-ग्रामीण प्रमुख हैं। प्रत्यक्ष लाभ अंतरण (डीबीटी) की जितनी सराहना की जाये, कम है। जनधन योजना और नोटबंदी का जनमानस पर सर्वाधिक व्यापक प्रभाव पड़ा है। शीर्ष स्तर पर पक्षपात की बात छोड़ दें तो मोदी सरकार का भ्रष्टाचार का कोई मामला सामने नहीं आया है। इसे प्रधानमंत्री मोदी की सबसे बड़ी उपलब्धि माना जा सकता है, क्योंकि 2014 के लोकसभा चुनाव में यूपीए शासन का भ्रष्टाचार और विदेशी काला धन बड़े मुद्दे बन कर उभरे थे।
भाजपा के प्रधानमंत्री पद के दावेदार के रूप में मोदी ने अपने चुनाव अभियान में काला धन, महँगाई, रोजगार, किसानों को लाभप्रद मूल्य, सामाजिक खर्चों में बढ़ोतरी, टैक्स टेररिज्म हटाने, शिक्षा पर सरकारी व्यय बढ़ाने आदि के बहुतेरे लंबे-चौड़े वादे किये थे, जिनका भाजपा के घोषणा पत्र में विस्तृत ब्यौरा है। बैंकों के बढ़ते एनपीए (नॉन परफॉर्मिंग एसेट्स) को अंकुश में रखने, न्यायिक प्रक्रिया में तेजी लाने के लिए निचली अदालतों में न्यायाधीशों को दोगुना करने का भी वादा किया गया था। इन वादों और मुद्दों पर मोदी सरकार के तीन साल के प्रदर्शन और उपलब्धियों को नापे-तौलें तो तमाम मजबूत आर्थिक संकेतक, महँगाई दर, विकास दर, बढ़ता विदेशी मुद्रा कोष, नियंत्रित सरकारी घाटा, कुलांचे भरता शेयर बाजार, बढ़ता कर संग्रह आदि उपलब्धियाँ सारहीन और बेमानी लगती हैं, खास कर विदेशी काला धन, रोजगार और किसानों को लाभप्रद मूल्य के वादों के संदर्भ में। इन तीन ही वादों में देश की तकदीर और तस्वीर बदलने का दमखम था।
विदेशी काला धन की वसूली से हर खाते में 15 लाख रुपये जमा करने की बात को भाजपा ने खुद ही चुनावी जुमला कह दिया है। तब मोदी को जिम्मेदार ठहराना ज्यादती होगी। देसी काले धन को जड़मूल से समाप्त करने के लिए प्रधानमंत्री मोदी ने नोटबंदी का ऐतिहासिक और दुस्साहसी फैसला किया। देसी काला धन वसूली के लिए अब मोदी सरकार ने और भी बाड़बंदी की है। पर न मोदी सरकार, न ही भारतीय रिजर्व बैंक यह बताने में समर्थ है कि इस असाधारण फैसले से कितना काला धन पकड़ा गया। रिजर्व बैंक तो इसका जवाब देने से मुँह चुराने लगा है। शुरुआती अनुमान था कि नोटबंदी से तीन से साढ़े चार लाख करोड़ रुपये का नगद काला धन पकड़ा जायेगा।
युवाओं को एक करोड़ रोजगार सालाना देने का ललचाने वाला भारी वादा मोदी ने किया था, जिसका ब्योरा भाजपा घोषणापत्र में भी है। यूपीए काल के विकास को रोजगारविहीन विकास से भाजपा ने नवाजा था। पर इस वादे पर प्रधानमंत्री मोदी पूरी तरह नाकाम रहे हैं। श्रम ब्यूरो के ताजा सर्वे के अनुसार अर्थव्यवस्था के आठ क्षेत्रों में 2015 और 2016 में 1.55 और 2.31 लाख नये रोजगार सृजित हुए, जो पिछले आठ साल का सबसे न्यूनतम स्तर है। मनमोहन सिंह के आखिरी सबसे दो खराब साल 2012 और 2013 में कुल 7.41 लाख नये रोजगार पैदा हुए थे। मोदी राज के दो साल 2015 और 2016 में कुल 3.86 लाख नये रोजगार सृजित हुए यानी 2.55 लाख कम रोजगार।
मोदी सरकार ने सत्ता पर काबिज होते ही रोजगार बढ़ाने के लिए बड़े तामझाम से मेक इन इंडिया, स्किल इंडिया, स्टार्ट अप इंडिया, स्टैंड अप इंडिया आदि अनेक घोषणाएँ की थीं। पर इनकी उपलब्धियों को कोई सरकारी हाकिम नहीं बताता है। अब तक तेजी से बढ़ रही छँटनी की खबरों से घबराहट फैलना लाजिमी है। प्रधानमंत्री भी रोजगार के बिगड़ते हालात से बेचैन हैं। उन्होंने निर्देश दिये हैं कि हर नये प्रोजेक्ट से कितने रोजगार पैदा होंगे, इसका उल्लेख अवश्य होना चाहिए।
मोदी ने किसानों को उपज लागत का 50% अधिक लाभप्रद मूल्य देने का वादा किया था। सत्ता में मोदी को तीन साल हो गये, पर मोदी समेत उनके मंत्रियों को इसका जिक्र भी गवारा नहीं है। भाजपा के लोग बताते हैं कि प्रधानमंत्री मोदी 20-22 घंटे रोजाना काम करते हैं। खुद मोदी भी अपने %हार्डवर्कÓ के लिए अपनी पीठ थपथपा चुके हैं। हो सकता है कि देश को उनकी मेहनत और कोशिशों का नतीजा उनके दूसरे कार्यकाल में मिले, जिसकी संभावनाओं को आज खारिज नहीं किया जा सकता है।
(निवेश मंथन, जून 2017)

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