मोदी सरकार के तीन वर्षों की एक बड़ी खासियत यह है कि वह जनता से सीधा संवाद करने और उस पर काम करने वाली सरकार के रूप में उभरी है।
रेडियो पर प्रधानमंत्री की 'मन की बात' का विरोधी जितना चाहे मजाक उड़ायें, लेकिन जनता से संवाद में इस कार्यक्रम ने बड़ी भूमिका निभायी है। इस कार्यक्रम के जरिये जनता ने अपने प्रधानमंत्री को समझने की कोशिश की है।
प्रधानमंत्री ने कई ऐसी वेबसाइटें शुरू की हैं, जिन पर जा कर कोई भी व्यक्ति अपनी राय, अपना सुझाव या अपनी शिकायत दर्ज करा सकता है। इनमें से कई शिकायतों और सुझावों पर सरकार की ओर से पहल भी हुई, जिससे जनता का भरोसा सरकार में बढ़ा। बेटी की शादी में दिक्कत, इलाज के लिए पैसे न होना जैसी व्यक्तिगत शिकायतों पर भी प्रधानमंत्री कार्यालय ने आगे बढ़ कर मदद की।
कम-से-कम तीन मंत्रालयों, पीएमओ, विदेश मंत्रालय और रेल मंत्रालय द्वारा ट्विटर पर आयी शिकायतों पर इतनी त्वरित गति से कार्रवाई हुई कि जनता को अपनी सरकार होने का अहसास हुआ। संभव है कि कई शिकायतों पर कार्रवाई न हो पायी हो, लेकिन जितनी भी कार्रवाई हुई उससे यह अहसास हुआ कि सरकार अपने नागरिकों के सुख-दुख में साथ खड़ी है।
तीन तलाक का मुद्दा
यह पूरा विश्लेषण मुस्लिम समाज में तीन तलाक के मुद्दे पर सरकार के रुख का जिक्र किये बिना अधूरा है। अब तक मुस्लिम समाज के भीतर की प्रथाओं पर कोई आपत्ति उठाया जाना, वह भी सरकार की ओर से, असंभव दिखता था। ऐसे मुद्दों पर बोल कर कोई भी पार्टी या सरकार मुस्लिम समाज की नाराजगी मोल लेना नहीं चाहती थी। लेकिन मोदी सरकार ने इस मुद्दे को मुस्लिम समाज का मुद्दा मानने के बजाय एक भारतीय स्त्री का मुद्दा मानने की हिम्मत दिखायी है।
इस मुद्दे पर मोदी सरकार के दृढ़ रवैये का असर यह हुआ कि मुस्लिम समाज में इस पर एक बहस शुरू हो गयी है और आम तौर पर अपने समाज के बुजुर्गों, मजहबी नेताओं के विरुद्ध नहीं जाने वाली मुस्लिम महिलाएँ खुल कर तीन तलाक की प्रथा के खिलाफ सामने आ रही हैं। यह एक बहुत बड़ा बदलाव है। राजनीतिक दृष्टि से एक बड़ा संरचनात्मक आधार परिवर्तन है, जिसमें मोदी सरकार ने मुस्लिम समाज के एक बड़े वर्ग को अपने साथ कर लिया है।
(निवेश मंथन, जून 2017)