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पुराने नोटों पर फैसला जुलाई में

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Category: मई 2017

जिन लोगों के पास अब भी 1,000 और 500 रुपये के पुराने नोट किसी वजह से बचे रह गये हैं, उन्हें सरकार की ओर से निराशा मिली है।

मगर उनके लिए सर्वोच्च न्यायालय से एक अंतिम आशा बाकी है। इस बारे में सर्वोच्च न्यायालय में दायर की गयी याचिका पर अंतिम फैसला जुलाई में आ सकता है, जब न्यायालय में गर्मी की छुट्टियों के बाद दोबारा कामकाज शुरू होगा।
सर्वोच्च न्यायालय में इस मामले में हुई सुनवाई के दौरान केंद्र सरकार ने साफ कह दिया कि वह पुराने नोटों को जमा करने की तिथि नहीं बढ़ा सकती है और जिनके पास ये नोट बचे रह गये हैं उन्हें नुकसान उठाना होगा। हालाँकि याचिका दायर करने वालों ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के उस भाषण का हवाला दिया है, जिसमें उन्होंने कहा था कि 31 दिसंबर 2016 की समय-सीमा पूरी होने के बाद लोग 31 मार्च 2017 तक आरबीआई में पैसे जमा करा सकेंगे। मगर सरकार की ओर से दलील रखते हुए अटॉर्नी जनरल ने नोटबंदी के बाद बने कानून का उल्लेख किया और कहा कि इस कानून के मुताबिक तिथि आगे नहीं बढ़ायी जा सकती है।
अब गर्मी छुट्टी के बाद जुलाई में सर्वोच्च न्यायालय इस मामले में अपना फैसला सुना सकता है। मंगलवार 11 अप्रैल को हुई सुनवाई के दौरान न्यायालय ने कहा कि पहले वह तिथि बढ़ाये जा सकने के बारे में अपना फैसला देगा। इसके बाद वह इस संबंध में दायर व्यक्तिगत मामलों पर फैसला करेगा।
सेबी की कई अहम घोषणाएँ
कमोडिटी में शुरू होगा ऑप्शन कारोबार
शेयर बाजार और कमोडिटी बाजार के नियामक भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड (सेबी) ने 26 अप्रैल 2017 को अपनी बोर्ड बैठक के बाद कई महत्वपूर्ण फैसले लिये हैं, जिनका शेयर बाजार, म्यूचुअल फंडों और कमोडिटी बाजार पर बड़ा असर पडऩे वाला है।
म्यूचुअल फंड : एसेट मैनेजमेंट कंपनियाँ अपनी लिक्विड योजनाओं में ऑनलाइन तरीके से 50,000 रुपये या फोलिओ के कुल मूल्य के 90% (दोनों में से जो भी कम हो) तक की तत्काल निकासी (इंस्टैंट एक्सेस) की सुविधा दे सकेंगी। जिन लिक्विड योजनाओं में यह सुविधा पहले से दी जा रही थी, उनमें अब अधिकतम सीमा को घटा कर 50,000 रु. पर लाना होगा। लिक्विड के अलावा अन्य किसी योजना में दी जा रही ऐसी सुविधा तत्काल प्रभाव से बंद होगी। निवेशक एक वित्त वर्ष में प्रति म्यूचुअल फंड 50,000 रु. तक का निवेश ई-वैलेट से कर सकेंगे।
कमोडिटी बाजार : सेबी ने कमोडिटी डेरिवेटिव एक्सचेंजों को ऑप्शन ट्रेडिंग की सुविधा देने की अनुमति दे दी है। इस बारे में सेबी विस्तृत दिशानिर्देश जारी करेगा।
एनबीएफसी : जिन गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों (एनबीएफसी) का नेटवर्थ कम-से-कम 500 करोड़ रुपये हो, उन्हें संस्थागत खरीदार (क्यूआईबी) के रूप में वर्गीकृत किया जायेगा। किसी आईपीओ में जारी होने वाले शेयरों का आधा हिस्सा क्यूआईबी को आवंटित किया जाता है।
प्रेफरेंशियल आवंटन : बैंकों, वित्तीय संस्थाओं को प्रेफरेंशियल आवंटन के नियमों में उसी तरह की ढील दी गयी है, जैसी म्यूचुअल फंडों और बीमा कंपनियों को दी है।
इश्यू की राशि पर नजर : अभी 500 करोड़ रुपये से अधिक के पब्लिक इश्यू से जुटायी गयी राशि के उपयोग पर निगरानी रखने के लिए एक निगरानी एजेंसी नियुक्त की जाती है। सेबी ने इस सीमा को घटा कर 100 करोड़ रुपये कर दिया है, ताकि ज्यादा पब्लिक इश्यू इस निगरानी के दायरे में आ सकें।
पी-नोट्स : निवासी और अनिवासी भारतीय स्वयं या अपने स्वामित्व वाली किसी इकाई के जरिये ऑफशोर डेरिवेटिव (पार्टिसिपेटरी नोट या पी-नोट) खरीदने की अनुमति नहीं होगी।
इक्विटी और कमोडिटी का एकल पंजीकरण : एक ही ब्रोकिंग कंपनी को इक्विटी और कमोडिटी डेरिवेटिव बाजारों में एक साथ कारोबार चलाने की अनुमति दी जायेगी। अब तक ब्रोकरों को इक्विटी और कमोडिटी के लिए अलग-अलग कंपनियाँ बनाने की जरूरत होती है।
नोटबंदी से जुड़ गये 95 लाख नये करदाता
बहुत-से लोग आज भी पूछते हैं कि नोटबंदी का क्या फायदा हुआ। शायद उन्हें अपने सवाल का जवाब इस खबर में मिले। वित्त मंत्रालय के सूत्रों के हवाले से आयी एक खबर के मुताबिक नोटबंदी और अन्य उपायों के जरिये सरकार ने काले धन के खिलाफ जो मुहिम छेड़ी, उसके चलते करदाताओं की संख्या अचानक 95 लाख बढ़ कर गयी है। वित्त वर्ष 2015-16 के लिए भरे गये ई-रिटर्न की संख्या 5.28 करोड़ रही है, जो पिछले वर्ष की तुलना में 22% ज्यादा है। कागजी तौर पर भरे गये रिटर्न की संख्या इससे अलग है।
सरकार ने नोटबंदी के बाद ऑपरेशन क्लीन मनी अभियान चलाया, जिसमें 1,000 और 500 के पुराने नोटों में बड़ी राशि जमा करने वाले संदिग्ध लोगों को चिह्नित किया गया और स्पष्टीकरण माँगे गये। नोटबंदी के दौरान बड़ी रकम की खरीदारी करने वाले लोगों की भी सूची तैयार की गयी। आय कर विभाग की ओर से भेजे गये संदेशों के बाद ऐसे बहुत-से लोगों ने रिटर्न दाखिल किया। हालाँकि नोटबंदी के बाद लायी गयी प्रधानमंत्री गरीब कल्याण योजना के तहत कर, जुर्माना और सरचार्ज के रूप में हासिल कुल रकम 2,300 करोड़ रुपये ही रही है, जो निश्चित रूप से सरकार की उम्मीदों से काफी कम होगी।
(निवेश मंथन, मई 2017)

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