पंकज पांडेय, रिसर्च प्रमुख, आईसीआईसीआई डायरेक्ट :
पूँजी बाजार में सूचीबद्ध किसी कंपनी का शेयर भाव इस बात पर निर्भर करता है कि लंबी अवधि में उसकी आय में वृद्धि की संभावनाएँ कैसी हैं।
तिमाही नतीजे आय के मामले में कंपनी के बेहतर या कमजोर प्रदर्शन के रुझान का महत्वपूर्ण संकेतक हैं। किसी शेयर के बारे में लोगों की राय बनाने में इनकी अहम भूमिका होती है। लेकिन तिमाही नतीजों को देखते समय ध्यान रखना चाहिए कि उत्पादों एवं सेवाओं की माँग के मौसमी उतार-चढ़ाव भी होते हैं, या कुछ ऐसी अनपेक्षित घटनाएँ हो सकती हैं जो कंपनी के नियंत्रण के बाहर हों। इन नतीजों को देखना इसलिए भी महत्वपूर्ण है कि कंपनी प्रबंधन ने पहले भविष्य के जो अनुमान रखे थे, उनकी तुलना में वास्तविक नतीजों को इनसे परखा जा सकता है। इस तुलना से प्रबंधन की साख तय होती है।
तिमाही नतीजों की घोषणा से शेयरों के भाव में भी उतार-चढ़ाव आते हैं। हालाँकि इन दोनों के बीच कोई बिल्कुल सीधा संबंध नहीं बनता है, क्योंकि कीमतों में फेरबदल होना कई अन्य बातों पर भी निर्भर करता है, जैसे बाजार की धारणाएँ और निवेश प्रवाह की स्थिति। शेयर भावों में उतार-चढ़ाव इस बात से जुड़ा होता है कि तिमाही नतीजे क्या सकारात्मक या नकारात्मक रूप से चौंकाने वाले हैं? हालाँकि जिन शेयरों के बारे में बाजार में काफी शोध (रिसर्च) होता रहता है, या जो मुख्य सूचकांकों में शामिल होते हैं, उनमें नतीजों से होने वाला उतार-चढ़ाव सीमित रहता है। दूसरी ओर, जिन शेयरों के बारे में शोध (रिसर्च) कम होते हैं, उनमें नतीजों के चलते ज्यादा उतार-चढ़ाव आते हैं।
मौजूदा वैश्विक अर्थव्यवस्था में काफी बड़ी संख्या में कारक बदलते रहते हैं। तिमाही नतीजे किसी कंपनी के प्रदर्शन पर इन कारकों से होने वाले महत्वपूर्ण प्रभावों को समझने के लिए एक अंतर्दृष्टि देते हैं। ये कारक कंपनी की ओर से बताये गये आँकड़ों को परखने और उनका आकलन करने में मददगार होते हैं। तिमाही नतीजों में जो मुख्य संख्याएँ सामने रखी जाती हैं, उनके आधार पर बिक्री और लाभदायकता की विस्तृत समीक्षा करनी चाहिए। हालाँकि तिमाही नतीजों में दी जाने वाली सूचनाएँ वार्षिक नतीजों की तुलना में कुछ कम होती हैं, मगर प्रेस वक्तव्यों, प्रबंधन की टिप्पणियों, विश्लेषकों के साथ कॉन्फ्रेंस कॉल और नोट टू एकाउंट आदि में काफी विवरण मिल जाते हैं।
कंपनी के तिमाही नतीजों में कामकाजी स्तर पर जो महत्वपूर्ण पैमाने होते हैं, उनमें बिक्री के रुझान, कच्चे माल की लागत और अन्य कामकाजी खर्चों को देखना चाहिए। बिक्री के मोर्चे पर देखें तो बिक्री की मात्रा में वृद्धि का खास महत्व है। कच्चे माल की लागत के संदर्भ में यह देखना अहम है कि अगर यह लागत बढ़े तो कंपनी अपने उत्पाद का मूल्य कितना बढ़ा पाती है।
अन्य कामकाजी खर्चों में यह देखने का प्रयास करना चाहिए कि उस कंपनी के व्यवसाय का आकार कितना बढ़ सकता है और आकार बढऩे पर उसे लागत घटने का कितना फायदा मिल सकता है। इसके बाद, इन पैमानों के आधार पर हासिल एबिटा मार्जिन पर भी खास नजर रखनी चाहिए, क्योंकि यह उस व्यवसाय के कामकाजी स्वास्थ्य को दर्शाता है और एक तरह से इस बात की झलक देता है कि वह व्यवसाय कितनी अच्छी तरह चल रहा है। कामकाजी प्रदर्शन को आँकने में आरओसीई से भी मदद मिलती है, जो हासिल एबिटा मार्जिन और एसेट टर्नओवर दोनों के आधार पर निकाला जाता है। आरओसीई अनुपात जितना ऊँचा हो, कंपनी का प्रदर्शन कामकाजी मोर्चे पर उतना ही बेहतर माना जाता है।
तिमाही नतीजों की तालिका में एबिटा के स्तर से नीचे जाने पर अन्य आय, ब्याज और मूल्यह्रास के आँकड़े महत्वपूर्ण होते हैं। ब्याज लागत घट रही हो, तो यह कंपनी के बही-खाते की सेहत सुधरने का संकेत होगा। कई बार कंपनियाँ अपनी मूल्यह्रास नीति को बीच में ही बदल देती हैं। ऐसा बदलाव होने पर इसके कारण को समझने का प्रयास करना चाहिए, क्योंकि इससे मुनाफे की राशि पर काफी असर होता है।
एक खास पहलू है कर की प्रभावी दर। यह देखना चाहिए कि क्या कंपनी को कोई कर लाभ मिला है और वह लाभ भविष्य में कितना टिकाऊ है। भारतीय संदर्भ में, कंपनियों को अपना तुलन पत्र या बही-खाता (बैलेंस शीट) छमाही आधार पर जारी करना होता है, जो उस व्यवसाय की वित्तीय सेहत को बताने वाला एक महत्वपूर्ण साधन है। बैलेंस शीट में उधारी, यानी ऋण:इक्विटी अनुपात, कार्यशील पूँजी चक्र और नकदी सृजन जैसे अहम पैमानों पर ध्यान देना चाहिए। पिछले तिमाही नतीजे उपलब्ध होने की स्थिति में आमदनी के आँकड़ों को जोड़ कर उनका इस्तेमाल मौजूदा मूल्यांकन के मानकों, जैसे पी/ई अनुपात, पी/बी और ईवी/एबिटा आदि को निकालने में किया जा सकता है।
इसलिए, तिमाही नतीजे एक व्यवसाय के लंबी अवधि के लक्ष्यों की ओर उसकी यात्रा पर नजर रखने में विश्लेषण का एक महत्वपूर्ण औजार हैं। तिमाही नतीजों से कंपनी के पिछले प्रदर्शन का एक रुझान मिलता है, और यह दिखता है कि उसकी आमदनी में कितनी निरंतरता है। साथ ही कंपनी के उत्पादों और सेवाओं के लिए माँग पर मौसमी प्रभावों को भी इससे परखा जा सकता है। कंपनी की भविष्य की आय इस बात पर निर्भर करती है कि कंपनी अपनी वृद्धि के लिए किस तरह के फैसले करती है और किन वैकल्पिक रास्तों को चुनती है।
(निवेश मंथन, अप्रैल 2017)