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बीमा में निवेश, न पूरी सुरक्षा, न प्रतिफल में मिठास

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Category: मार्च 2017

राजीव रंजन झा :

बीमा के साथ निवेश का मसला कुछ ऐसा है, जिसे कुछ लोग एक पंथ दो काज की तरह देखते हैं तो कुछ लोग इसे एक साथ दो नावों की सवारी मानते हैं।

तो आखिर इन दोनों बातों में से सच क्या है? इन दोनों में से कोई भी बात पूरी तरह सच नहीं है। एक तरफ तो यह बात माननी पड़ती है कि बीमा उत्पाद निवेश के बहुत अच्छे विकल्प साबित नहीं हुए हैं। प्रतिफल (रिटर्न) के मामले में ये काफी पीछे हैं। वहीं दूसरी ओर, ऐसा भी नहीं है कि बीमा के साथ निवेश को जोडऩा हर मामले में बेकार ही हो, खास कर ऐसे मामलों में जहाँ व्यक्ति अपने न रहने की स्थिति में परिवार के भविष्य को सुरक्षित रखने के विकल्प चुनता है।
इसलिए यह जरूर कहा जा सकता है कि बीमा उत्पाद मुख्य रूप से आर्थिक सुरक्षा के ही औजार हैं, सबसे अच्छे निवेश विकल्प नहीं। बीमा एक जरूरी उत्पाद है, जो आपकी वित्तीय योजना में सबसे पहले लिया जाना चाहिए। मगर इसे लेने का कारण सही होना चाहिए, तभी वह आपके वित्तीय लक्ष्यों को पूरा करने में सहायक बन सकता है। कुछ लोग इसे केवल कर बचत की सीमा पूरी करने के लिए खरीद लेते हैं, जो सही कारण नहीं है। इसी तरह कुछ लोग इसे निवेश का मुख्य साधन बना लेते हैं, जबकि ऐसा बिल्कुल नहीं करना चाहिए।
कम जानकारी से होती है गलती
कई बार बीमा योजनाओं के बारे में कम जानकारी भी ऐसी गलती का कारण बनती है। इसलिए सबसे पहले यह समझ लें कि बीमा योजनाएँ कितनी तरह की हैं। मुख्य रूप से ये चार प्रकार की हैं - सावधि बीमा (टर्म प्लान), एनडॉवमेंट योजना, मनी बैक बीमा योजना और यूलिप। इनमें सावधि बीमा शुद्ध रूप से बीमा सुरक्षा देता है और बीमा अवधि पूरी होने तक बीमाधारक जीवित रहे तो उसे कुछ वापस नहीं मिलता। बाकी तीनों में बीमा के साथ निवेश भी जुड़ा होता है।
एनडॉवमेंट योजना में बीमा सुरक्षा तो मिलती ही है, यानी बीमा अवधि के दौरान बीमाधारक की मृत्यु हो जाने पर उसके परिजनों को बीमा राशि मिलती है, वहीं अवधि पूरी होने तक बीमाधारक के जीवित रहने पर उसे अपने निवेश पर प्रतिफल मिलता है।
मनी बैक योजना एनडॉवमेंट की तरह ही है, मगर इसमें योजना अवधि के बीच-बीच में बीमाधारक को भुगतान मिलता रहता है और ऐसे हर भुगतान के साथ बीमा सुरक्षा घटती जाती है। वहीं यूलिप का मतलब है यूनिट लिंक्ड इंश्योरेंस प्लान। इसमें निवेश की रकम का एक हिस्सा बीमा सुरक्षा देने में लगाया जाता है और बाकी हिस्से का निवेश इक्विटी एवं ऋण प्रपत्रों में किया जाता है। यूलिप में मिलने ले प्रतिफल का सीधा संबंध इक्विटी और/या ऋण बाजार से जुड़ा होता है, इसलिए इसमें तुलनात्मक रूप से जोखिम भी ज्यादा रहता है।
बीमा उत्पादों की सबसे मुख्य श्रेणी ‘पारंपरिक’ बीमा की है, जिनमें सावधि बीमा (टर्म प्लान) और यूलिप को हटा कर बाकी अधिकांश बीमा उत्पाद आते हैं। एक आकलन के मुताबिक बीते वित्त वर्ष में बीमा कंपनियों के कुल करीब 3.26 लाख करोड़ रुपये के प्रीमियम संग्रह में सबसे बड़ी हिस्सेदारी इन्हीं पारंपरिक बीमा उत्पादों की थी।
बीमा, निवेश, कर बचत साथ-साथ
सावधि बीमा के साथ-साथ बाकी तीनों प्रकार की योजनाओं से भी कर बचत होती है, जिनमें निवेश को जोड़ा जाता है। मगर जानकारों का एक बड़ा वर्ग बीमा योजनाओं को निवेश का एक सक्षम रास्ता नहीं मानता। कारण यह है कि बीमा वाली निवेश योजनाओं में मिलने वाला प्रतिफल (रिटर्न) अन्य निवेशों की तुलना में काफी कम रहता है। लिहाजा उनकी सलाह होती है कि बीमा कराते समय केवल शुद्ध रूप से बीमा सुरक्षा पर ध्यान दें, और निवेश के लिए स्वतंत्र रूप से ऐसे विकल्पों में पैसा लगायें, जहाँ आपको अच्छा प्रतिफल मिल सके। हालाँकि बीमा कंपनियों का दावा है कि एनडॉवमेंट प्लान या यूलिप आपको एक साथ बीमा की सुरक्षा, निवेश का लाभ और कर की बचत उपलब्ध कराते हैं।
पारंपरिक बीमा में सुरक्षा कम?
मगर क्या ये पारंपरिक योजनाएँ पर्याप्त बीमा सुरक्षा उपलब्ध कराती हैं? कहीं ऐसा तो नहीं कि ये योजनाएँ अपने प्राथमिक उद्देश्य यानी परिवार को बीमा सुरक्षा उपलब्ध कराने के मामले में ही पीछे रह जाती हों? एक मोटा-मोटा आकलन कहता है कि किसी व्यक्ति की सालाना आमदनी अगर 10 लाख रुपये हो तो उसे किसी अवांछित घटना की स्थिति में अपने परिवार को वित्तीय सुरक्षा देने के लिए एक करोड़ रुपये का बीमा कराना चाहिए।
एक करोड़ रुपये की एनडॉवमेंट योजना के लिए अगर बीमा राशि के 10% प्रीमियम के आधार पर भी देखें (जो कर छूट के लिए आवश्यक सीमा है) तो सालाना प्रीमियम करीब 10 लाख रुपये होगा, यानी उसकी सालाना कमाई के बराबर ही। क्या कोई व्यक्ति अपनी पूरी कमाई के बराबर राशि केवल बीमा प्रीमियम के भुगतान में दे सकता है? जाहिर है कि ऐसा संभव नहीं होगा। यानी एनडॉवमेंट योजना किसी भी तरह से एक व्यक्ति को उतनी बीमा सुरक्षा नहीं दे सकती, जितनी जरूरी है।
ऐसे में पर्याप्त बीमा सुरक्षा पाने का एकमात्र तरीका है सावधि बीमा। एक करोड़ रुपये का सावधि बीमा 30-35 साल के स्वस्थ व्यक्ति को लगभग 14,000-15,000 रुपये के सालाना प्रीमियम पर मिल सकता है, जिसे चुकाना सालाना 10 लाख रुपये की आमदनी वाले व्यक्ति के लिए बहुत ही आसान है।
क्यों नहीं बिकता सावधि बीमा?
जब सावधि बीमा ऐसी सस्ती दर पर बड़ी राशि की बीमा सुरक्षा उपलब्ध कराता है, तो यह ज्यादा लोकप्रिय होने के बदले सबसे कम लोकप्रिय क्यों है? दरअसल बीमा कंपनियों का यह अनुभव है कि उन्हें शुद्ध बीमा सुरक्षा वाले ऐसे उत्पाद बेचने में काफी दिक्कतें होती हैं, जिनमें बीमाधारक को योजना अवधि पूरी होने के बाद कोई राशि वापस नहीं मिलने वाली हो।
बहुत कम लोग यह समझ पाते हैं कि बीमा को अपने परिवार की वित्तीय सुरक्षा के लिए किये जाने वाले खर्च के रूप में लेना चाहिए। लेकिन जब उस बीमा सुरक्षा के साथ निवेश को जोड़ कर उन्हें समझाया जाता है कि योजना की अवधि तक बीमा सुरक्षा मिलेगी और योजना अवधि पूरी होने के बाद खुद आपको इतने पैसे वापस मिलेंगे, तो लोग ऐसा उत्पाद खरीदने के लिए आसानी से तैयार हो जाते हैं। मगर ऐसा करते समय वे यह विश्लेषण नहीं कर पाते कि शुद्ध बीमा पर खर्च करने के बदले मिश्रित निवेश करते समय उन्हें निवेश वाले हिस्से पर दूसरे निवेशों की तुलना में कम फायदा मिल रहा है।
दूसरी बात यह है कि बीमा मुख्य रूप से ऐसा उत्पाद है, जिसे लोग खुद कम खरीदते हैं। ज्यादातर लोग इसे तब खरीदते हैं, जब कोई एजेंट उनके पीछे पड़ कर इसके फायदे गिनाने लगता है। सावधि बीमा सबसे सस्ता बीमा होने के कारण इसमें एजेंटों को मिलने वाला कमीशन भी सबसे कम होता है। ऐसे में कोई एजेंट भला क्यों इसे अपने ग्राहकों के सामने पेश करेगा?
प्रतिफल देने में भी पीछे?
इस तरह पारंपरिक बीमा योजनाएँ बीमा सुरक्षा देने में तो पीछे हैं, पर क्या प्रतिफल के मामले में उनका प्रदर्शन संतोषजनक है? यहाँ भी जवाब नकारात्मक है। दरअसल खुद बीमा कंपनियाँ भी अपनी योजनाओं के प्रतिफल बताने के मामले में पारदर्शी नहीं हैं। जब कोई सलाहकार आपको किसी म्यूचुअल फंड योजना के प्रदर्शन के बारे में बताता है, तो वह उस योजना पर सालाना प्रतिफल की दर बताता है। वह उसकी तुलना उसी श्रेणी के अन्य फंडों के सालाना प्रतिफल से करता है और यह तुलना केवल 1 महीने से लेकर 10 साल तक की अलग-अलग अवधियों के लिए की जा सकती है।
मगर जब एक बीमा एजेंट आपको किसी बीमा योजना के फायदे बताता है तो वह कहता है कि आपको इस योजना में 20 साल तक हर महीने ‘क’ राशि जमा करनी है और उसके बाद 16 साल तक आपको हर महीने ‘ख’ राशि मिलती रहेगी। आप ‘ख’ राशि की तुलना आज की मन:स्थिति से करते हैं और 20 साल बाद उतने पैसे का वास्तविक मोल कितना रह जायेगा यह नहीं समझ पाते।
आज 25,000 रुपये का निवेश करें और 20 साल बाद 50,000 रुपये पायें, यह सुन कर लगता है कि दोगुनी रकम मिलेगी। पर 20 साल बाद के 50,000 रुपये आज के 25,000 रुपये के बराबर भी नहीं होंगे। आज अगर दिल्ली में दो बेडरूम के मकान का किराया 25,000 रुपये हो, तो संभवत: 20 साल बाद उसी मकान का किराया 50,000 रुपये नहीं बल्कि उससे काफी ज्यादा होगा। कितना ज्यादा? इसका अंदाजा लगाने के लिए आप किसी से यह पूछ लें कि 20 साल पहले उसी मकान का किराया कितना था! शायद 4,000 रुपये या 6,000 रुपये!
इसलिए आपको 10 साल या 20 साल बाद कितने पैसे मिलेंगे, यह न पूछें। यह पूछें कि प्रतिफल की दर कितनी होगी। तुलना करें कि वह प्रतिफल अन्य विकल्पों से कितना कम या ज्यादा है। मगर शायद ही कोई बीमा कंपनी आपको अपनी ओर से यह बताती हो कि उनकी किस योजना पर सालाना प्रतिफल की दर कितनी है। इसका कारण यही है कि अधिकांश बीमा योजनाएँ निवेश पर 4-5% तक ही वार्षिक प्रतिफल देती हैं। बहुत हुआ तो यह प्रतिफल 6% तक चला जाता है। आखिर इतना प्रतिफल सबको बता कर निवेश आकर्षित करना कैसे संभव होगा!
इसकी तुलना में ईएलएसएस योजनाएँ लंबी अवधि में दो अंकों में प्रतिफल देने में सक्षम हैं। अगर इक्विटी यानी शेयर बाजार से जुड़ा जोखिम नहीं लेना चाहें तो पीपीएफ जैसा बिल्कुल सुरक्षित निवेश भी बीमा उत्पादों से काफी अच्छा प्रतिफल देता है। इसलिए कुछ जानकार सलाह देते हैं कि आप बीमा सुरक्षा के लिए सावधि बीमा (टर्म प्लान) लें और निवेश वाली रकम पीपीएफ या ईएलएसएस जैसे विकल्पों में डालें।
बीमा में निवेश : क्या-क्या देखें?
बजाज कैपिटल के ग्रुप सीईओ अनिल चोपड़ा बताते हैं कि पारंपरिक बीमा योजना में निवेश करते समय उसका आईआरआर (इंटरनल रेट ऑफ रिटर्न) देखना चाहिए। पर इस बारे में सवाल करने पर भी कोई सरल जवाब नहीं मिलता, क्योंकि लोग इसे बताना नहीं चाहते।
साथ ही मॉर्टलिटी चार्ज की दर भी पूछनी चाहिए। यह दर बताती है कि बीमा कंपनी प्रीमियम में से कितनी राशि बीमाधारक की मृत्यु की स्थिति में बीमा सुरक्षा देने क लिए कितने पैसे काट लेती है। इसके अलावा फंड ऐडमिनिस्ट्रेशन और प्रशासनिक खर्च वगैरह के शुल्क भी होते हैं, जिन पर नजर डालनी चाहिए।
इन सबके साथ-साथ यह पता करें कि बीमा कंपनी का दावा निपटान अनुपात (क्लेम सेट्लमेंट रेश्यो) और टर्न एराउंड टाइम (टैट) यानी दावा निपटाने में लगने वाला औसत समय कितना है। मगर पारदर्शिता की कमी के कारण एनडॉवमेंट प्लान की तुलना करने के लिए कोई टेबल चार्ट बना पाना संभव नहीं होता।
चोपड़ा कहते हैं कि एनडॉवमेंट प्लान के बहुत ज्यादा प्रकार हो जाते हैं, जैसे कोई होल लाइफ है तो कोई सेकेंड इन्कम प्लान। इनकी अवधि भी पाँच साल से लेकर 30 साल तक बहुत अलग-अलग होती है। किसी में योजना पूरी होने पर एकमुश्त भुगतान मिलता है तो किसी में पेंशन मिलती है। किसी में केवल एन्विटी राशि मिलती है, तो किसी में बीच-बीच में पैसे मिलते रहते हैं।
ऐसे में भला इन योजनाओं में से कोई व्यक्ति चुने तो कैसे? चोपड़ा बताते हैं कि इसके लिए व्यक्ति की जरूरत पर ध्यान दिया जाता है। अगर किसी को केवल बीमा सुरक्षा की जरूरत हो तो इन योजनाओं के बदले शुद्ध सावधि बीमा ही ले लेना चाहिए, क्योंकि उसमें सबसे कम प्रीमियम लगता है।
पारंपरिक बीमा उत्पादों से जुड़ा एक खास पहलू है सेवा कर या सर्विस टैक्स का। जब आप पारंपरिक बीमा उत्पाद खरीदते हैं तो उसके पहले साल के प्रीमियम पर 3.75% सेवा कर लगता है। बाद के वर्षों में दिये जाने वाले प्रीमियम पर यह घट कर 1.88% हो जाता है। जाहिर है कि बीमा में किये गये निवेश के मूलधन में से इतना हिस्सा तो पहले ही कट गया, यानी प्रतिफल और ज्यादा घट जायेगा। सेवा कर लगने और बीमा कंपनी द्वारा लगाये जाने वाले शुल्कों को बीमा उत्पादों पर कम प्रतिफल मिलने का एक बड़ा कारण कहा जा सकता है।
बीमा उत्पादों का दूसरा पहलू यह है कि इनमें तरलता बहुत ही कम है, और इनमें लगाया गया पैसा आपको काफी लंबी अवधि के बाद वापस मिलता है। बीमा योजनाओं की अवधि 10 साल से 15-20 साल तक या इससे भी अधिक हो सकती है। अगर आपको बीमा योजनाओं में इनकी निर्धारित अवधि से पहले पैसे निकालने का विकल्प मिलता भी है तो योजना के लाभों में काफी कटौती हो जाती है। बीमा योजना के शुरुआती वर्षों में यदि आप इसे वापस करना चाहें तो आप उनमें निवेशित राशि का केवल 20-30% हिस्सा ही वापस पा सकेंगे।
यूलिप योजनाओं में भी प्रतिफल की तुलना करना आसान नहीं होता। चोपड़ा कहते हैं कि यूलिप की भी अलग-अलग किस्में हैं। इनमें से कुछ 100% इक्विटी निवेश वाली हैं, कोई संतुलित (बैलेंस्ड), किसी में इक्विटी ज्यादा डेब्ट कम। ऐसे में किसी बीमा कंपनी के यूलिप का प्रदर्शन समझने के लिए यह देखना चाहिए कि उसकी विभिन्न यूलिप योजनाओं का औसत प्रतिफल कितना रहा है और किसी योजना में मिला सबसे अच्छा प्रतिफल कितना रहा है।
अगर गौर करें तो आपको म्यूचुअल फंडों या पीपीएफ में पैसा लगाने की सलाह देने वाले एजेंट बहुत कम मिलेंगे और बीमा एजेंट हर गली में मिलेंगे। ये बीमा एजेंट भी आपको सावधि बीमा के बारे में नहीं बतायेंगे, बल्कि पारंपरिक बीमा योजना और यूलिप के बारे में ही बतायेंगे। इसका सीधा कारण यह है कि पीपीएफ, म्यूचुअल फंड और खुद बीमा कंपनियों के सावधि बीमा की तुलना में पारंपरिक बीमा योजनाओं और यूलिप की बिक्री पर एजेंटों को मिलने वाला कमीशन कई गुणा ज्यादा आकर्षक होता है। पारंपरिक बीमा योजनाओं पर एजेंटों को मिलने वाला कमीशन 25-35% तक हो सकता है। इसलिए ये योजनाएँ आपके वित्तीय भविष्य के लिए अच्छी हों या नहीं, पर बीमा एजेंटों के वित्तीय भविष्य के लिए बहुत अच्छी हैं!
(निवेश मंथन, मार्च 2017)

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